Q. महिलाओं ने भारत में पर्यावरण और सामाजिक न्याय आंदोलनों को आगे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई है, फिर भी उन्हें औपचारिक निर्णय लेने वाले स्थानों से अलग रखा जाता है। इस चुनौती को कायम रखने वाली संरचनात्मक बाधाओं की जाँच कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि भारत में पर्यावरण एवं सामाजिक न्याय आंदोलनों को आगे बढ़ाने में महिलाओं ने किस तरह केंद्रीय भूमिका निभाई। 
  • संरचनात्मक बाधाओं की जाँच कीजिए जो महिलाओं को औपचारिक निर्णय लेने वाले स्थानों से दूर रखती हैं। 
  • आगे की राह लिखिए।

उत्तर

भारत में महिलाएँ लंबे समय से पर्यावरण एवं सामाजिक न्याय का समर्थन करती रही हैं, फिर भी उन्हें औपचारिक निर्णय लेने के स्थानों से बाहर रखा गया है। जमीनी स्तर पर नेतृत्व के बावजूद, गहरी जड़ें जमाए हुए संरचनात्मक, सामाजिक तथा संस्थागत अवरोध नीति निर्माण में उनकी उपस्थिति को सीमित करते हैं, जो समान विकास एवं पारिस्थितिक लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए समावेशी शासन की आवश्यकता को दर्शाता है।

पर्यावरण एवं सामाजिक न्याय आंदोलनों में महिलाओं की भूमिका

  • पारिस्थितिकी नारीवादी नेतृत्व: महिलाओं ने वनों की रक्षा की, पारिस्थितिकी संरक्षण को आजीविका सुरक्षा एवं सामुदायिक पहचान से जोड़ा है।
    • उदाहरण: गौरा देवी ने उत्तराखंड में चिपको आंदोलन (वर्ष 1973) का नेतृत्व किया, जिसने समुदाय-आधारित संरक्षण के लिए राष्ट्रीय कार्रवाई को गति दी।
  • विस्थापन का विरोध: महिलाओं ने जबरन विस्थापन को चुनौती दी एवं बड़ी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में उचित पुनर्वास की माँग की।
    • उदाहरण: मेधा पाटकर ने नर्मदा बचाओ आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसमें बाँधों के कारण 2 लाख से अधिक लोगों के विस्थापन का विरोध किया गया।
  • मद्यपान जैसी सामाजिक बुराई से लड़ना: महिलाओं ने घरेलू हिंसा को दूर करने एवं परिवारों की रक्षा करने के लिए शराब के दुरुपयोग का विरोध किया।
  • जैव विविधता की रक्षा करना: महिलाओं ने देशज वनस्पतियों एवं जीवों के संरक्षण के लिए पारिस्थितिक रूप से हानिकारक परियोजनाओं का विरोध किया।
    • उदाहरण: महिलाओं ने साइलेंट वैली आंदोलन में योगदान दिया, जिसके परिणामस्वरूप केरल में साइलेंट वैली नेशनल पार्क (1985) का निर्माण हुआ।
  • कृषि पारिस्थितिकी को बढ़ावा देना: महिलाओं ने स्वदेशी बीजों को संरक्षित किया एवं टिकाऊ खेती के प्रयासों का नेतृत्व किया।
    • उदाहरण: वंदना शिवा द्वारा स्थापित नवदान्या ने जैविक बीज संरक्षण एवं कृषि में 9 लाख से अधिक महिला किसानों को सशक्त बनाया।

औपचारिक भागीदारी को सीमित करने वाली संरचनात्मक बाधाएँ

  • कम राजनीतिक प्रतिनिधित्व: औपचारिक राजनीतिक प्रणालियों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है।
    • उदाहरण: 18वीं लोकसभा में केवल 14% सांसद महिलाएँ हैं, जो वैश्विक औसत से बहुत कम है।
  • सीमित भूमि स्वामित्व: भूमि की कमी आर्थिक शक्ति एवं संस्थागत निर्णय लेने की पहुँच को प्रतिबंधित करती है।
    • उदाहरण: लगभग 13% भारतीय महिलाओं के पास कृषि भूमि है, जो ग्रामीण शासन में नीतिगत प्रभाव को सीमित करती है (ऑक्सफैम रिपोर्ट)।
  • गतिशीलता एवं सुरक्षा अंतराल: हिंसा का डर महिलाओं की नागरिक एवं सार्वजनिक भागीदारी को सीमित करता है।
    • उदाहरण: 31,000 से अधिक बलात्कार के मामले (2021) दर्ज किए गए, जिससे सार्वजनिक मामलों में महिलाओं की भागीदारी प्रभावित हुई।
  • पितृसत्तात्मक मानदंड: सामाजिक कंडीशनिंग निर्णय लेने में महिला स्वायत्तता को हतोत्साहित करती है।
  • शैक्षणिक असमानता: साक्षरता एवं शिक्षा में अंतराल नेतृत्व की भूमिकाओं तक पहुँच को सीमित करता है।
    • उदाहरण: महिला साक्षरता 70.3% है जबकि पुरुषों की साक्षरता 84.7% है, जिससे नीति मंचों तक पहुँच सीमित हो जाती है (NFHS-5)।

आगे की राह 

  • राजनीतिक आरक्षण लागू करना: कानूनी अधिदेश औपचारिक शासन में महिला प्रतिनिधित्व को बेहतर बना सकते हैं।
    • उदाहरण: नारी शक्ति वंदन अधिनियम (महिला आरक्षण अधिनियम) 2023 राज्य एवं राष्ट्रीय विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें अनिवार्य करता है।
  • शिक्षा एवं नेतृत्व का विस्तार करना: प्रारंभिक हस्तक्षेपों से नागरिक जागरूकता एवं आत्मविश्वास का निर्माण होना चाहिए।
    • उदाहरण: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ लड़कियों को सार्वजनिक भूमिकाओं के लिए तैयार करने के लिए नेतृत्व प्रशिक्षण को एकीकृत कर सकता है।
  • सुरक्षा एवं गतिशीलता सुनिश्चित करना: सुरक्षित बुनियादी ढाँचा समाज में समावेशी भागीदारी का समर्थन करता है।
    • उदाहरण: दिल्ली की CCTV बसों एवं महिला मोहल्ला क्लीनिकों ने महिलाओं के लिए सुरक्षा तथा सेवा पहुँच में सुधार किया है।
  • आर्थिक एजेंसी को बढ़ावा देंना: वित्तीय स्वतंत्रता महिलाओं की आवाज एवं स्वायत्तता को बढ़ाती है।
    • उदाहरण: DAY-NRLM के तहत 9 मिलियन से अधिक SHG महिलाओं को ऋण, आय एवं प्रशिक्षण तक पहुँच प्रदान करते हैं।
  • जमीनी स्तर पर समावेश को बढ़ावा देना: सामुदायिक शासन में स्थानीय महिला नेताओं को पहचानें एवं उनका समर्थन करना।
    • उदाहरण: नागालैंड में महिलाओं के नेतृत्व वाली वन समितियाँ समुदाय-आधारित वन संसाधन प्रबंधन का मार्गदर्शन करती हैं।

भारतीय महिलाओं ने जमीनी स्तर पर पारिस्थितिकी एवं सामाजिक बदलाव को आगे बढ़ाया है। शिक्षा, सुरक्षा, आर्थिक सशक्तीकरण तथा आरक्षण के माध्यम से औपचारिक निर्णय लेने में उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करना समावेशी, सहभागी एवं सतत शासन के निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण है जो सामाजिक आवश्यकताओं तथा पर्यावरणीय चुनौतियों दोनों का जवाब देता है।

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