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Q. भारत में एक ही राज्य मंत्री द्वारा कई वैज्ञानिक विभागों और मंत्रालयों की देखरेख के निहितार्थों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • भूमिका:
    • एक ही राज्य मंत्री द्वारा अनेक वैज्ञानिक विभागों की देखरेख का हालिया उदाहरण दीजिए।
    • “एकल राज्य मंत्री” की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
  • मुख्याग:
    • भारत में एक ही राज्य मंत्री द्वारा अनेक वैज्ञानिक विभागों और मंत्रालयों की देखरेख के निहितार्थों का विश्लेषण कीजिए।
    • चुनौतियों से निपटने के लिए व्यावहारिक समाधान प्रदान कीजिए।
  • निष्कर्ष: केंद्रीकृत दृष्टिकोण के संतुलित दृष्टिकोण का सारांश दीजिए। विशेष मंत्रियों और अतिरिक्त सहायता उपायों की आवश्यकता पर जोर दीजिए।

 

भूमिका:

राज्य मंत्री को कई वैज्ञानिक विभागों की देखरेख करने का दृष्टिकोण भारत में लोकप्रिय हुआ है। उदाहरण के लिए, डॉ. जितेंद्र सिंह वर्तमान में विज्ञान और प्रौद्योगिकी , पृथ्वी विज्ञान , परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष  विभागों का प्रबंधन करते हैं । इस रणनीति का उद्देश्य शासन को सुव्यवस्थित करना और अंतःविषय सहयोग को बढ़ावा देना है। हालाँकि, यह  चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करता है जिनका सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।

मुख्याग:

एक एकल “राज्य मंत्री” का अर्थ है एक व्यक्ति जो कई विभागों या मंत्रालयों के लिए मंत्री पद की जिम्मेदारी संभालता है । इस दृष्टिकोण का उद्देश्य समन्वित नीति कार्यान्वयन और कुशल प्रशासन सुनिश्चित करना है, जिसमें कई तरह के पोर्टफोलियो शामिल हैं

 

भारत में एक ही राज्य मंत्री द्वारा अनेक वैज्ञानिक विभागों और मंत्रालयों की देखरेख के निहितार्थ:

लाभ:

  • सुव्यवस्थित निर्णय-प्रक्रिया: केंद्रीकृत निगरानी नौकरशाही की देरी को कम कर सकती है, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेज़ी आ सकती है। उदाहरण के लिए: डॉ. जितेंद्र सिंह द्वारा दो महीने के भीतर 134 प्रस्तावों को तेज़ी से मंज़ूरी देना सुव्यवस्थित निर्णय-प्रक्रिया के कारण बेहतर दक्षता को दर्शाता है।
  • संवर्धित अंतर्विभागीय समन्वय: केंद्रीकृत प्रबंधन ,विभागों के बीच बेहतर समन्वय को बढ़ावा देता है, जिससे अंतःविषयक परियोजनाओं को सुविधाजनक बनाया जा सकता है
    उदाहरण के लिए: ‘ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन शमन’ जैसे विषयों पर सहयोग प्रभावी अंतर-विभागीय समन्वय को प्रदर्शित करता है, जिसके परिणामस्वरूप वैज्ञानिक क्षेत्रों में नवीन समाधान सामने आते हैं
  • इष्टतम संसाधन उपयोग: एक ही मंत्री संसाधनों के रणनीतिक आवंटन की देखरेख कर सकता है, जिससे विभागों में उनका इष्टतम उपयोग सुनिश्चित हो सके। उदाहरण के लिए: अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा जैसे विभागों के बीच साझा संसाधनों से लागत बचत और दक्षता में वृद्धि हुई, जैसा कि एकीकृत परियोजनाओं में देखा गया है।
  • एकीकृत नीति कार्यान्वयन: विभागों में सुसंगत नीति कार्यान्वयन, राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और सुसंगत प्रगति के साथ संरेखण सुनिश्चित करता है उदाहरण के लिए: पृथ्वी विज्ञान और अंतरिक्ष विभागों में नीतियों को लगातार संरेखित किया गया है, जिससे वैज्ञानिक पहलों की समग्र प्रभावशीलता बढ़ गई है।
  • केंद्रीकृत जवाबदेही: केंद्रीकृत जवाबदेही निगरानी को सरल बनाती है, जिससे प्रगति को ट्रैक करना और समस्याओं का समाधान करना आसान हो जाता है। उदाहरण के लिए: डॉ. जितेंद्र सिंह के नेतृत्व में स्पष्ट जवाबदेही संरचना ने कई वैज्ञानिक विभागों में पारदर्शिता और प्रदर्शन निगरानी में सुधार किया है ।

नकारात्मक पक्ष:

  • प्रशासन पर अत्यधिक बोझ: विभिन्न विभागों का प्रबंधन एक ही मंत्री पर बोझ डाल सकता है, जिससे निर्णय लेने की गुणवत्ता प्रभावित होती है। उदाहरण के लिए: अंतरिक्ष और पृथ्वी विज्ञान जैसे विभागों की देखरेख की विशाल ज़िम्मेदारियाँ अक्षमताओं को जन्म दे सकती हैं , जैसा कि विभागीय आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने में आने वाली चुनौतियों में देखा जा सकता है ।
  • उपेक्षा की संभावना: कुछ विभागों पर कम ध्यान दिया जा सकता है , जिससे विकास और संसाधन आवंटन में असंतुलन पैदा हो सकता है। उदाहरण के लिए: जैव प्रौद्योगिकी विभाग को अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा जैसे अधिक प्रमुख क्षेत्रों के पक्ष में नजरअंदाज किया जा सकता है , जिसके परिणामस्वरूप धीमी प्रगति और कम वित्तपोषण हो सकता है
  • परस्पर विरोधी प्राथमिकताएँ: कई विभागों की ज़रूरतों को संतुलित करने से प्राथमिकता निर्धारण और संसाधन वितरण में टकराव पैदा हो सकता है। उदाहरण के लिए: परमाणु ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन शमन पहलों के एजेंडों के बीच टकराव सुसंगत नीति कार्यान्वयन को जटिल बना सकता है।
  • ध्यान का कम होना: जिम्मेदारियों का व्यापक दायरा मंत्री के ध्यान को कम कर सकता है, जिससे नीति क्रियान्वयन की प्रभावशीलता कम हो सकती है। उदाहरण के लिए: कई वैज्ञानिक क्षेत्रों के प्रबंधन की जटिलता के कारण विशिष्ट विभागीय मुद्दों पर अपर्याप्त ध्यान दिया जा सकता है , जिससे समग्र प्रगति बाधित हो सकती है।
  • जवाबदेही के मुद्दे: एक मंत्री को अधिक कार्यभार सौंपने से जवाबदेही अस्पष्ट हो सकती है, क्योंकि एक क्षेत्र में सफलता दूसरे क्षेत्र में विफलताओं को ढक सकती है। उदाहरण के लिए: अंतरिक्ष अन्वेषण में सफलताओं के कारण जैव प्रौद्योगिकी विभाग में प्रदर्शन संबंधी मुद्दों को अनदेखा किया जा सकता है , जिससे सुधारात्मक कार्रवाई में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

समस्याओं के समाधान के उपाय:

  • विशेषज्ञ मंत्रियों की नियुक्ति: एक केंद्रीय समन्वय निकाय बनाए रखते हुए उच्च प्राथमिकता वाले विभागों को समर्पित मंत्री नियुक्त करना । यह दृष्टिकोण केंद्रित निगरानी और विशेष प्रबंधन सुनिश्चित करता है , जिससे विभागीय प्रभावशीलता बढ़ती है।
  • सहायक स्टाफ में वृद्धि: कई विभागों को संभालने वाले मंत्री को अतिरिक्त प्रशासनिक सहायता प्रदान करना। इससे प्रशासनिक बोझ कम होता है , जिससे निर्णय लेने में बेहतर ध्यान और दक्षता मिलती है।
  • नियमित ऑडिट और मूल्यांकन: विभागों में प्रदर्शन का आकलन करने के लिए नियमित ऑडिट लागू करना । नियमित मूल्यांकन जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं, सुधार की आवश्यकता वाले क्षेत्रों की पहचान करते हैं और निरंतर प्रगति को बढ़ावा देते हैं
  • हितधारकों की सहभागिता: प्राथमिकताओं को संतुलित करने के लिए प्रत्येक विभाग के हितधारकों के साथ सहभागिता बढ़ाना। इससे यह सुनिश्चित होता है कि विविध आवश्यकताओं को संबोधित किया जाता है, जिससे अधिक व्यापक और समावेशी नीति विकास होता है
  • एकीकृत परियोजना दल: विशिष्ट पहलों के लिए अंतःविषयक परियोजना दल बनाना । विभागों में विशेषज्ञता का लाभ उठाने से बेहतर परियोजना परिणाम और अभिनव समाधान प्राप्त होते हैं।

निष्कर्ष:

एक ही राज्य मंत्री द्वारा कई वैज्ञानिक विभागों की देखरेख करने से समन्वय और दक्षता में वृद्धि हो सकती है लेकिन इससे संसाधन आवंटन, नीति कार्यान्वयन और जवाबदेही से संबंधित महत्वपूर्ण जोखिम भी उत्पन्न होते हैं। विशेषज्ञ मंत्रियों की नियुक्ति, अतिरिक्त सहायता प्रदान करना और नियमित ऑडिट लागू करना इन चुनौतियों को कम करने में मदद कर सकता है, जिससे भारत के वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्रों में संतुलित और प्रभावी शासन सुनिश्चित हो सके।

 

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