Q. MMDRA संशोधनों के तहत नीलामी आधारित व्यवस्था शुरू करने के महत्त्व पर चर्चा कीजिए। इस बदलाव ने राज्यों के लिए संसाधन आवंटन, निजी क्षेत्र की भागीदारी और राजस्व सृजन को कैसे प्रभावित किया है? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • MMDRA संशोधनों के तहत नीलामी आधारित व्यवस्था शुरू करने के महत्व पर चर्चा कीजिए।
  • परीक्षण कीजिए कि इस बदलाव ने राज्यों के लिए संसाधन आवंटन, निजी क्षेत्र की भागीदारी और राजस्व सृजन को किस प्रकार प्रभावित किया।

उत्तर

खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) संशोधन अधिनियम (MMDRA) के तहत शुरू की गई नीलामी आधारित व्यवस्था का उद्देश्य खनिज संसाधन आवंटन में पारदर्शिता और दक्षता लाना है। मई 2025 में भारत ने पोटाश और हैलाइट ब्लॉक की अपनी पहली नीलामी की, जो आयात प्रतिस्थापन और खनिज सुरक्षा की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।

MMDRA के तहत नीलामी आधारित व्यवस्था शुरू करने का महत्त्व

  • पारदर्शिता में वृद्धि: नीलामी प्रणाली ने पहले के विवेकाधीन आवंटनों की जगह प्रतिस्पर्द्धी बोली प्रणाली को अपनाया है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हुई है। 
    • उदाहरण के लिए, नई नीलामी व्यवस्था की शुरुआत से लेकर जून 2025 तक 119 से अधिक खनिज ब्लॉकों का आवंटन पारदर्शी इलेक्ट्रॉनिक नीलामी के माध्यम से किया गया है।
  • बाजार संचालित मूल्यांकन: प्रतिस्पर्द्धी बोली से खनिज संसाधनों का वास्तविक बाजार मूल्य पता चलता है, जिससे अवमूल्यन को रोका जा सकता है।
  • सभी के लिए अवसर: यह व्यवस्था सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, निजी कंपनियों और MSME को समान भागीदारी की अनुमति देती है, जिससे समान अवसर को बढ़ावा मिलता है। 
    • उदाहरण के लिए, अन्वेषण लाइसेंस ने स्टार्टअप्स को 2023 में लिथियम और दुर्लभ पृथ्वी जैसे रणनीतिक खनिज क्षेत्रों में प्रवेश करने की अनुमति दी ।
  • नीतिगत स्पष्टता और दीर्घकालिक सुरक्षा: सुधार 50 वर्षों तक के लिए पट्टे की वैधता का आश्वासन देते हैं, जिससे दीर्घकालिक निवेश और तकनीकी नवाचार को प्रोत्साहन मिलता है।
  • रणनीतिक खनिजों पर ध्यान केंद्रित करना: नीलामी में रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऊर्जा सुरक्षा के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों के आवंटन को प्राथमिकता दी जाती है। 
    • उदाहरण के लिए, राजस्थान के हनुमानगढ़ में पोटाश ब्लॉक की नीलामी उर्वरकों पर आयात निर्भरता को कम करने के भारत के लक्ष्य का समर्थन करती है।
  • भूवैज्ञानिक पहुँच को मजबूत बनाना: नीलामी के नियमों में पहले भूवैज्ञानिक अन्वेषण अनिवार्य है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बोलीदाताओं के पास निवेश निर्णयों के लिए पर्याप्त डेटा हो। 
    • उदाहरण के लिए, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने वर्ष 2023 से 12,000 से अधिक खनिज स्थलों के लिए डेटा जारी किया है।

नीलामी आधारित व्यवस्था का प्रभाव

संसाधनों का आवंटन

  • कुशल और प्रतिस्पर्द्धी आवंटन: पारदर्शी प्रतिस्पर्धा के माध्यम से तकनीकी और वित्तीय रूप से मजबूत बोलीदाताओं को खनिज ब्लॉक आवंटित किए जाते हैं।
  • लघु उद्यमों का समावेशन: अन्वेषण लाइसेंस ढाँचा और फेसलेस नीलामी प्रक्रिया प्रवेश बाधाओं को कम करती है। 
    • उदाहरण: नवंबर 2023 के दौर के दौरान SME ने 20 लिथियम और ग्रेफाइट ब्लॉक जीते।
  • महत्त्वपूर्ण संसाधनों का प्राथमिकता निर्धारण: यह प्रणाली महत्त्वपूर्ण खनिजों को पारदर्शी तरीके से आवंटित करके राष्ट्रीय उद्देश्यों का समर्थन करती है। 
    • उदाहरणार्थ: वर्ष 2023 में अनुसूची I के अंतर्गत 24 महत्त्वपूर्ण खनिजों को अधिसूचित किया गया, जिससे उनकी नीलामी अनिवार्य हो गई।

निजी क्षेत्र की भागीदारी

  • निजी भागीदारी में वृद्धि: निजी कंपनियाँ सक्रिय रूप से खनिज ब्लॉकों को सुरक्षित कर रही हैं, जिनमें दुर्लभ मृदा तत्व भी शामिल हैं। 
    • उदाहरणार्थ: हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड ने उत्तर प्रदेश और राजस्थान में पोटाश और दुर्लभ मृदा के लिए ब्लॉक जीते।
  • प्रौद्योगिकी अंगीकरण और नवाचार: निजी क्षेत्र की भागीदारी ने खनन और प्रसंस्करण में LiDAR और AI जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों के उपयोग को गति दी है।
  • अन्वेषण-आधारित विकास: सुधारित व्यवस्था के तहत अन्वेषण में निजी और सार्वजनिक निवेश में वृद्धि हुई है। 
    • उदाहरण के लिए, GSI ने वर्ष 2024-25 के दौरान 180 से अधिक अन्वेषण परियोजनाएँ संचालित कीं, जिससे खनिज खोज को बल मिला।

राजस्व सृजन

  • पर्याप्त राज्य राजस्व: नीलामी ने अग्रिम भुगतान, रॉयल्टी और प्रीमियम के माध्यम से लगभग 4 लाख करोड़ रुपये का योगदान दिया है।
  • तत्काल वित्तीय लाभ: उच्च प्रीमियम बोलियाँ राज्यों को प्रत्यक्ष वित्तीय लाभ प्रदान करती हैं। 
    • उदाहरण के लिए, कर्नाटक में गनाचरपुरा ब्लॉक को 270% प्रीमियम प्राप्त हुआ  जिससे राज्य विकास योजनाओं को सहायता मिली।
  • रॉयल्टी पर निर्भरता में कमी: यह मॉडल उच्च पट्टा प्रीमियम की शुरुआत सुनिश्चित करके निष्कर्षण के बाद की रॉयल्टी पर निर्भरता को कम करता है।

निष्कर्ष

MMDRA के तहत नीलामी आधारित व्यवस्था पारदर्शी, कुशल और निवेश-अनुकूल खनिज प्रशासन की दिशा में एक परिवर्तनकारी बदलाव का प्रतीक है। संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने, तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देने और खनिज सुरक्षा को मजबूत करने के माध्यम से, यह दृष्टिकोण भारत को आत्मनिर्भरता और दीर्घकालिक आर्थिक विकास के लिए अपने विशाल संसाधनों का दोहन करने की स्थिति में लाता है।

PWONLYIAS विशेष 

MMDR अधिनियम संशोधन में प्रमुख परिवर्तन (खान एवं खनिज विकास एवं विनियमन अधिनियम)

  • नीलामी आधारित व्यवस्था की शुरूआत: सभी खनिज रियायतें अब केवल प्रतिस्पर्द्धी बोली के माध्यम से आवंटित की जाती हैं, जिससे पारदर्शिता बढ़ती है।
  • विवेकाधीन आवंटन को हटाना: पहले आओ-पहले पाओ या सरकारी विवेकाधिकार की सुविधा प्रदान करने वाली पूर्व प्रणालियों को समाप्त कर दिया गया, जिससे भ्रष्टाचार और पक्षपात पर अंकुश लगा।
  • पट्टा अवधि का विस्तार: नीलामी के माध्यम से दिए गए खनन पट्टों की अब एक समान 50 वर्ष की अवधि होगी, जिससे दीर्घकालिक योजना और निवेश सुनिश्चित होगा।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति: निजी क्षेत्र अब कुछ शर्तों के अधीन कोयला और परमाणु खनिजों जैसे पूर्व में सरकार द्वारा आरक्षित खनिजों का खनन कर सकेंगे।
  • खनन पट्टों का हस्तांतरण: नीलामी के माध्यम से प्राप्त पट्टों को अब स्वतंत्र रूप से हस्तांतरित किया जा सकता है, जिससे बाजार दक्षता और परिसंपत्ति मुद्रीकरण में सुधार होगा।
  • जिला खनिज फाउंडेशन (DMF) को सुदृढ़ करना: DMF खनन राजस्व का उपयोग करके स्थानीय क्षेत्र के विकास को सुनिश्चित करता है, जिसमें खनिकों का अनिवार्य योगदान शामिल है।
  • अन्वेषण और समग्र लाइसेंस: नए प्रावधानों से पूर्वेक्षण और खनन दोनों के लिए समग्र लाइसेंस प्रदान करने की अनुमति मिलती है, जिससे परियोजना की समयसीमा में तेजी आएगी।
  • अंतिम-उपयोग प्रतिबंधों को हटाना: वर्ष 2021 के संशोधन ने खनिज उपयोग पर प्रतिबंध हटा दिए, जिससे कंपनियों को केवल बंदी उपभोग के लिए ही नहीं, बल्कि किसी भी उद्देश्य के लिए खनिजों का उपयोग करने की अनुमति मिल गई।

 

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