प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत की उर्वरक नीति और प्रबंधन में खामियाँ।
- उर्वरक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए सुधार की आवश्यकता।
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उत्तर
भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उर्वरक उपभोक्ता है, जो वर्ष 2023 में म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) का 100%, डायमोनियम फॉस्फेट (DAP) का 60% और यूरिया का 20% आयात मुख्य रूप से मध्य पूर्व से करता है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने आपूर्ति की गंभीर भेद्यताओं को उजागर किया, और ईरान-इजरायल के बीच बढ़ते तनाव ने नए जोखिम उत्पन्न किए, जिससे नीतिगत सुधारों और आपूर्ति विविधीकरण की तत्काल आवश्यकता पर बल मिला।
भारत की उर्वरक नीति और प्रबंधन में खामियाँ
- रणनीतिक भंडारों की कमी: भारत तेल या अनाज जैसे उर्वरकों का कोई दीर्घकालिक बफर नहीं रखता है।
- उदाहरण के लिए: इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (IFFCO) और नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड (NFL) जैसी कंपनियाँ केवल 30-45 दिनों की आपूर्ति का भंडारण करती हैं, जो खरीफ-रबी के चरम मौसम के दौरान अपर्याप्त होता है।
- आयात पर अत्यधिक निर्भरता: कच्चे माल और तैयार उर्वरकों के लिए मध्य पूर्व तथा रूस पर अत्यधिक निर्भरता।
- उदाहरण: वर्ष 2023 में, भारत के कुल उर्वरक आयात का 20-25% खाड़ी देशों से संपन्न हुआ, मुख्य रूप से महत्त्वपूर्ण होर्मुज जलडमरूमध्य के माध्यम से।
- प्रतिक्रियात्मक नीति निर्माण: नीतियाँ संकट के बाद बिना किसी पूर्व-योजना या संकट-पूर्व तैयारी के प्रतिक्रिया करती हैं।
- उदाहरण: वर्ष 2022 के रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद भारत मूल्य अस्थिरता के बावजूद DAP और MOP भंडार बनाने में विफल रहा।
- लागत-केंद्रित खरीद: सरकार सुरक्षित, विविध और प्रत्यास्थ सोर्सिंग की तुलना में सस्ते तथा थोक सौदों को प्राथमिकता देती है।
- उदाहरण: कतर या सऊदी अरब के साथ दीर्घकालिक सौदों में संकट के दौरान आपूर्ति शृंखला प्रत्यास्थता के बजाय मूल्य निर्धारण को प्राथमिकता दी गई।
- अकुशल बुनियादी ढाँचा: पुराने यूरिया संयंत्र और खराब रसद व्यवस्था के कारण आंतरिक ग्रामीण क्षेत्रों में उर्वरक वितरण में देरी होती है।
- उदाहरण: बंदरगाह से खेत तक की देरी और बुवाई के मौसम में अड़चनें, विशेष रूप से पूर्वी राज्यों में समय पर पहुँच को कम करती हैं ।
- उच्च राजकोषीय बोझ: उर्वरक सब्सिडी सहायक है, लेकिन इसकी वजह से आवश्यक कृषि-बुनियादी ढाँचे और नवाचार के लिए उपलब्ध निधि कम हो जाती है।
- उदाहरण: वित्त वर्ष 24 में सब्सिडी बिल 2.5 लाख करोड़ रुपये को पार करने का अनुमान है, जिससे सिंचाई या अनुसंधान एवं विकास पर पूँजीगत खर्च सीमित हो जाएगा।
यद्यपि ये अंतर अभी भी कायम हैं, फिर भी भारतीय कृषि को बाहरी झटकों से बचाने के लिए तत्काल सुधार की आवश्यकता है।
उर्वरक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए सुधार की आवश्यकता
- रणनीतिक भंडार बनाना: आपूर्ति शृंखला के झटकों को झेलने के लिए 3-6 महीने के उर्वरक भंडार स्थापित करने चाहिए।
- उदाहरण: खाद्य सुरक्षा के लिए FCI के बफर स्टॉक मॉडल के समान DAP-MOP भंडार बनाए जाने चाहिए।
- आयात स्रोतों में विविधता लाना: फॉस्फेट-समृद्ध देशों के साथ संबंधों का विस्तार करके खाड़ी देशों पर निर्भरता कम करनी चाहिए।
- उदाहरण: मोरक्को (70% वैश्विक फॉस्फेट भंडार), कनाडा (पोटाश) और जॉर्डन में संयुक्त उद्यमों के लिए निवेश करना चाहिए।
- घरेलू संयंत्रों का आधुनिकीकरण: ऊर्जा-कुशल तकनीक और डिजिटल निगरानी का उपयोग करके पुरानी फैक्टरियों को पुनः: स्थापित करना चाहिए।
- उदाहरण: गोरखपुर उर्वरक संयंत्र, जिसे वर्ष 2022 में HURL द्वारा पुनर्जीवित किया जाएगा, अत्याधुनिक अमोनिया उत्पादन तकनीक का उपयोग करता है, जिससे ऊर्जा दक्षता और उत्पादन क्षमता में सुधार होता है।
- विकल्पों को बढ़ावा देना: संतुलित और संधारणीय उपयोग के लिए जैव उर्वरकों, नैनो यूरिया और जैविक इनपुट को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- उदाहरण: वित्त वर्ष 2023-24 की तुलना में वित्त वर्ष 2024-25 में IFFCO नैनो यूरिया प्लस (लिक्विड) की बिक्री में 31% और नैनो DAP (लिक्विड) की बिक्री में 118% की वृद्धि हुई जो नैनो उर्वरकों के लिए किसानों की बढ़ती पसंद को दर्शाता है।
- लचीला अनुबंध और रसद: संघर्ष क्षेत्रों से बचते हुए लचीले शिपिंग मार्गों के माध्यम से दीर्घकालिक आपूर्ति को सुरक्षित करना चाहिए।
- उदाहरण: संकट के दौरान होर्मुज जलडमरूमध्य से दूर व्यापार करना चाहिए; चाबहार बंदरगाह के माध्यम से वैकल्पिक मार्ग विकसित करना चाहिए।
- सब्सिडी वितरण में सुधार: तेजी से हस्तांतरण और बेहतर लक्ष्यीकरण के लिए सब्सिडी को युक्तिसंगत और डिजिटल बनाना।
- उदाहरण: उर्वरकों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) अब 100% खुदरा विक्रेताओं को कवर करता है, जिससे निधि उपयोग और जवाबदेही में सुधार होता है।
आत्मनिर्भर भारत की ओर भारत की यात्रा में उर्वरक क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने, घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने, आयात पर निर्भरता कम करने तथा आपूर्ति शृंखलाओं को मजबूत करने का प्रयास किया जाना चाहिए। साहसिक सुधारों और अत्याधुनिक नवाचारों के माध्यम से, भारत एक आत्मनिर्भर भविष्य का निर्माण कर सकता है, अपनी खाद्य सुरक्षा की रक्षा कर सकता है और वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच प्रत्यास्थ बना रह सकता है।
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