Q. क्या आपको लगता है कि आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान में पशुओं का प्रयोग नैतिक रूप से उचित है? व्यवहार्य विकल्प प्रदान करने में पुनर्योजी चिकित्सा और जैव-कृत्रिम मॉडलों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिये कि आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान में पशुओं का  प्रयोग नैतिक रूप से उचित है या नहीं।
  • व्यवहार्य विकल्प प्रस्तुत करने में पुनर्योजी चिकित्सा और जैवकृत्रिम मॉडलों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

पशुओं के  प्रयोगों से गंभीर नैतिक दुविधाएँ उत्पन्न होती हैं, क्योंकि इससे उन संवेदनशील प्राणियों को कष्ट पहुँचता है जो मानवीय देखभाल और करुणा पर निर्भर हैं। प्रयोगशालाओं में पशुओं द्वारा झेले जाने वाले कष्टों का सुप्रलेखित विवरण हमें मानवीय और वैज्ञानिक रूप से ठोस विकल्प तलाशने के लिए बाध्य करता है। 

पशु प्रयोग के पक्ष में तर्क

  • वैज्ञानिक विश्वसनीयता और नियंत्रण: पशु मॉडल अनुसंधान के लिए एक नियंत्रित और अनुकरणीय वातावरण प्रदान करते हैं। जैसा कि ए.एल. टैटम ने कहा है, मानव विषय अप्रत्याशित होते हैं जबकि पशु प्रयोग अधिक सुसंगत परिणाम प्रदान करते हैं।
  • मानव स्वास्थ्य की उन्नति: ऐतिहासिक रूप से, पशु परीक्षण ने टीकों, शल्य चिकित्सा तकनीकों और पोलियो और कैंसर जैसी बीमारियों के उपचार के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • विनियामक आवश्यकताएँ: कई देश सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मानव नैदानिक परीक्षणों से पहले पशु परीक्षणों को अनिवार्य बनाते हैं।

पशु प्रयोग के विरुद्ध तर्क

  • नैतिक चिंताएँ और पीड़ा: इंसानों की तरह जानवर भी दर्द और पीड़ा महसूस करते हैं। प्रयोग के लिए उनका प्रयोग करना, विशेषकर जब विकल्प मौजूद हों, करुणा और अहिंसा के नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन है।
  • मनुष्यों पर संदिग्ध प्रयोज्यता: पशु परीक्षणों से प्राप्त निष्कर्ष हमेशा मानव शरीरक्रिया विज्ञान के लिए प्रासंगिक नहीं होते, जिसके परिणामस्वरूप अप्रभावी या असुरक्षित चिकित्सा परिणाम सामने आते हैं।
  • ऐतिहासिक दुरुपयोग: कभी भोजन संबंधी प्रयोगों में मनुष्यों का इस्तेमाल किया जाता था, और जानवरों का इस्तेमाल सुविधा के कारण शुरु हुआ था, न कि श्रेष्ठ नैतिकता के कारण। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे नैतिक सीमाओं को मनमाने ढंग से बदला जा सकता है।
  • नैतिक उदासीनता: एक बार जब पशुओं के प्रति अमानवीयता को तर्कसंगत बना दिया जाता है, तो विभिन्न परिस्थितियों में इसे संभावित रूप से मनुष्यों तक भी विस्तारित किया जा सकता है।

विकल्प के रूप में पुनर्योजी चिकित्सा और जैव-कृत्रिम मॉडल की भूमिका

  • ऊतक इंजीनियरिंग में प्रगति: पुनर्योजी चिकित्सा त्वचा, अग्न्याशय और हृदय जैसे कृत्रिम अंगों के निर्माण को सक्षम बनाती है, जो पशु परीक्षण के लिए नैतिक विकल्प प्रदान करती है।
  • सटीकता में सुधार: प्रयोगशाला में विकसित मानव ऊतक मानव प्रतिक्रियाओं का अधिक निकट अनुमान प्रदान करते हैं, जिससे फार्मास्यूटिकल्स और चिकित्सा में परीक्षण की सटीकता में संभावित रूप से वृद्धि होती है।
  • शैक्षिक बदलाव पहले से ही चल रहा है: स्कूल और विश्वविद्यालय जीवित पशुओं के विच्छेदन के बजाय कंप्यूटर-आधारित 2D/3D दृश्य शारीरिक मॉडल का उपयोग बढ़ा रहे हैं। यह बदलाव दर्शाता है कि कुछ क्षेत्रों में मानवीय और प्रभावी विकल्प पहले से ही व्यवहार्य हैं।
  • नीतिगत अनुशंसा: पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 जैसे कानूनों में संशोधन करके जहाँ भी संभव हो, प्रयोगशाला में विकसित शारीरिक अंगों के उपयोग के लिए निर्देश शामिल करने से इस नैतिक और वैज्ञानिक बदलाव को संस्थागत रूप दिया जा सकता है।
  • पुनर्योजी चिकित्सा उद्योग के साथ समन्वय: अनुसंधान प्रयोगशालाओं और ऊतक-इंजीनियरिंग संस्थानों के बीच सहयोग से कृत्रिम जैविक मॉडलों में परिवर्तन में तेजी लाई जा सकती है, जिससे कई क्षेत्रों में पशु परीक्षण अनावश्यक हो जाएगा।

हालाँकि पशु प्रयोगों ने कभी वैज्ञानिक प्रगति में केंद्रीय भूमिका निभाई थी, लेकिन आधुनिक नैतिक विचार और वैज्ञानिक विकास इसके औचित्य पर लगातार सवाल उठा रहे हैं। पुनर्योजी चिकित्सा और जैव-कृत्रिम मॉडल प्रभावी, मानवीय और वैज्ञानिक रूप से ठोस विकल्प प्रदान करते हैं। अब समय आ गया है कि हम अपनी शोध पद्धतियों को इस तरह पुनर्निर्देशित करें कि वे करुणा और प्रगति दोनों को प्रतिबिंबित करें।

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