प्रश्न की मुख्य माँग
- इस बात का औचित्य बताइए कि सदस्यों को मनोनीत करने की उपराज्यपाल की शक्ति लोकतांत्रिक जवाबदेही के सिद्धांतों और संविधान की मूल संरचना के अनुरूप है।
- राज्यपाल की मनोनीत करने की शक्ति से संबंधित चिंताओं पर चर्चा कीजिए।
- संघवाद की सुरक्षा के लिए सुझावात्मक उपाय प्रदान कीजिए।
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उत्तर
वर्ष 2019 में किया गया जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन, जिसमें राज्य को विभाजित कर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए, उसकी शासन संरचना में मौलिक परिवर्तन लेकर आया। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में वर्ष 2023 का संशोधन उपराज्यपाल को निर्वाचित सरकार की सलाह के बिना, कश्मीरी प्रवासियों, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के प्रतिनिधियों और अल्प प्रतिनिधित्व वाली महिलाओं सहित पाँच विधानसभा सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार देता है। यह लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व और संविधान की मूल संरचना के साथ इसकी संगतता पर प्रश्न उठाता है।
औचित्य: लोकतांत्रिक जवाबदेही और बुनियादी ढाँचे के अनुरूप मनोनीत करने की शक्तियाँ
- समावेशी प्रतिनिधित्व को बढ़ावा: यह प्रावधान कश्मीरी प्रवासियों, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर समुदाय तथा महिलाओं जैसे अल्प प्रतिनिधिकारी समूहों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है, जिससे लोकतांत्रिक समावेशिता बढ़ती है।
- उदाहरण: उप-राज्यपाल को दो कश्मीरी प्रवासियों (एक महिला), एक पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर से, तथा विधानसभा में कम प्रतिनिधित्व होने पर दो महिलाओं को नामित करने का अधिकार है।
- केंद्रीय कानून के तहत वैधानिक प्राधिकार: जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धाराओं 15A और 15B में किए गए संशोधन उपराज्यपाल को स्पष्ट रूप से नामांकन का अधिकार देते हैं, जो संसद द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग है।
- अन्य संघीय प्रदेशों से दृष्टांत: पुडुचेरी के एक दृष्टांत (के. लक्ष्मी नारायणन वाद) ने उपराज्यपाल की मनोनीत करने की शक्ति को विवेकाधीन शक्तियों के रूप में बरकरार रखा, जिससे विधिक संगति स्थापित हुई।
- संक्रमण काल के दौरान विधायी कार्य का संरक्षण: राज्य का दर्जा विलंबित होने और शासन प्रणाली के विकासशील होने की स्थिति में मनोनीत सीटें विधायी निरंतरता बनाए रखने और संक्रमण काल के दौरान संतुलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने में मदद कर सकती हैं।
चिंताएँ: लोकतांत्रिक जवाबदेही और संवैधानिक असंतोष
- निर्वाचित सरकार के जनादेश का अतिक्रमण: सदस्यों को इस प्रकार से मनोनीत करने के परिणाम स्वरूप निर्वाचित सरकार की “सहयोग और सलाह” की भूमिका को दरकिनार कर दिया जाता है, जिससे प्रतिनिधि शासन की भावना कमजोर होती है।
- उदाहरण: यह उस सिद्धांत के विपरीत है कि कार्यपालिका की कार्रवाई को निर्वाचित जनादेश को प्रतिबिंबित करना चाहिए।
- सरकार की स्थिरता में परिवर्तन का जोखिम: 119 सदस्यीय विधानसभा में पाँच मनोनीत सदस्य बहुमत या अल्पमत की स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे सरकार के गठन पर प्रभाव पड़ सकता है।
- उदाहरण: कड़े मुकाबले वाली विधानसभा में परिणाम तय करने की क्षमता।
- उप–राज्यपाल के विवेक पर सर्वोच्च न्यायालय के सिद्धांत के साथ विरोधाभास: दिल्ली सेवाओं के वाद (वर्ष 2018, 2023) में यह निर्णय दिया गया कि उपराज्यपाल को विरल अपवादों को छोड़कर अन्य सभी मामलों में निर्वाचित सरकार की सलाह पर कार्य करना चाहिए, जिससे एकतरफा मनोनीत करने की शक्ति विवादास्पद हो जाती है।
- लोकतांत्रिक पतन का आरोप: जम्मू-कश्मीर में विपक्षी दल, इन प्रावधानों को चुनावी लोकतंत्र के सार को कमजोर करने वाला मानते हैं।
- प्रशासनिक अतिक्रमण की संभावना: किसी नियुक्त अधिकारी को विधायी संतुलन को प्रभावित करने की अनुमति देना, संघवाद और विकेन्द्रीकरण निर्णय लेने के विपरीत है।
- उदाहरण: स्थानीय राजनीतिक प्राधिकार पर केन्द्रीय नियंत्रण का प्रभावी होना।
संघवाद की रक्षा के लिए सुझावात्मक उपाय
- सहयोग और परामर्श आवश्यकता को अनिवार्य करना: LG द्वारा सभी विधायी नामांकनों के लिए निर्वाचित सरकार के साथ परामर्श को, कानूनी पूर्वापेक्षा बनाया जाना चाहिए।
- मनोनीत करने के लिए पारदर्शी मानदंडों को संहिताबद्ध करना: वस्तुनिष्ठ, डेटा-आधारित पात्रता मानदंड यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि मनोनीत करने की प्रक्रिया के अंतर्गत वास्तव में अल्प प्रतिनिधित्व का ध्यान रखा गया है।
- विधायी निरीक्षण लागू करना: विधानसभा की पुष्टि अथवा समिति की जाँच को अनिवार्य किया जाना चाहिये ताकि मनोनीत किये गये सदस्य लोकतांत्रिक जांच के अधीन हों।
- राज्य का दर्जा बहाल करना: निर्वाचित विधानसभा को पूर्ण विधायी शक्तियाँ लौटाने से केंद्रीय अतिक्रमण कम होगा और जवाबदेही मजबूत होगी।
- स्वतंत्र चयन पैनल: नागरिक समाज के प्रतिनिधित्व वाली एक द्विदलीय समिति नामांकन प्रक्रिया में निष्पक्षता सुनिश्चित कर सकती है।
- मनोनीत सदस्यों के मताधिकार को सीमित करना: चुनावी जनादेश की रक्षा हेतु मनोनीत सदस्यों को विश्वास प्रस्ताव या प्रमुख वित्तीय मामलों पर मतदान करने से प्रतिबंधित करना चाहिए।
- सरकारिया एवं पुंछी आयोग के दिशा-निर्देशों को अपनाना: इन आयोगों की सिफारिशों को लागू करने से विवेकाधीन अतिक्रमण को सीमित किया जा सकता है तथा सहकारी संघवाद को सुदृढ़ किया जा सकता है।
निष्कर्ष
निर्वाचित सरकार के सहयोग और परामर्श के बिना, जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सदस्यों को मनोनीत करने का उपराज्यपाल का एकतरफा अधिकार गंभीर संवैधानिक और लोकतांत्रिक चिंताएँ उत्पन्न करता है। समावेशिता का उद्देश्य सराहनीय है, किंतु विधानसभा के बहुमत में परिवर्तन की संभावना लोकतंत्र और संघवाद की मूल संरचना को प्रभावित करती है। पारदर्शी प्रक्रियाएँ, विधायी पर्यवेक्षण और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायशास्त्र के साथ संरेखण सुनिश्चित करने से लोकतांत्रिक जवाबदेही की रक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी।
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