प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत के अंतर्देशीय जल में जलकुंभी के कारण उभरी पारिस्थितिक, आर्थिक एवं प्रशासनिक चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
- भारत में पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी पर इसके प्रभावों का विश्लेषण कीजिए।
- इसके प्रबंधन के लिए एक व्यापक क्षेत्र-विशिष्ट नीति ढाँचा प्रस्तावित कीजिए।
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उत्तर
औपनिवेशिक शासन के दौरान एक सजावटी पौधे के रूप में प्रचलित जलकुंभी (इचोर्निया क्रैसिप्स) आज भारत के अंतर्देशीय जल के 2,00,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैल चुकी है। इसके अनियंत्रित प्रसार ने नदियों, झीलों एवं पश्चजल को ‘हरित रेगिस्तान’ में बदल दिया है, जिससे आजीविका, जैव विविधता तथा प्रशासनिक व्यवस्था को खतरा है। केरल में वेम्बनाड झील, जो एक रामसर स्थल है, को इस आक्रामक खरपतवार के कारण गंभीर पारिस्थितिक एवं आर्थिक खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
जलकुंभी की पारिस्थितिक, आर्थिक एवं प्रशासनिक चुनौतियाँ
- कृषि व्यवधान: मोटी परतें सिंचाई नहरों एवं धान की जल निकासी में बाधा डालती हैं, जिससे जल प्रवाह कम होता है, श्रम लागत बढ़ती है तथा किसानों की उपज कम होती है।
- उदाहरण: केरल के ‘धान के कटोरे’ कुट्टनाड में, किसान खेती के लिए नहरों की सफाई में अधिक समय एवं पैसा खर्च करते हैं।
- मत्स्य पालन का पतन: जलकुंभी मछली प्रजनन स्थलों को अवरुद्ध करती है, ऑक्सीजन के स्तर को कम करती है एवं जालों को उलझा देती है, जिससे पारंपरिक मछली पकड़ने की आजीविका कमजोर हो जाती है।
- पर्यटन एवं परिवहन में गिरावट: यह खरपतवार जलमार्गों को अवरुद्ध करता है, नौगम्यता को कम करता है एवं सुंदर परिदृश्यों को नुकसान पहुँचाता है, जिससे पारिस्थितिक पर्यटन तथा स्थानीय परिवहन को सीधा खतरा होता है।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: विघटित बायोमास से मीथेन उत्पन्न होता है, जो एक अत्यधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जो अंतर्देशीय जल से जुड़ी जलवायु चुनौतियों को और बदतर बना देती है।
- उदाहरण: वैश्विक अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि जलकुंभी की परतें मीठे जल निकायों में CH₄ उत्सर्जन को काफी बढ़ा देती हैं।
- जैव विविधता क्षरण: जलकुंभी का आवरण सूर्य के प्रकाश के प्रवेश एवं ऑक्सीजन के आदान-प्रदान को रोकती है, जिससे जलीय वनस्पतियों तथा जीवों का दम घुटता है एवं खाद्य श्रृंखलाएँ नष्ट हो जाती हैं।
- शासन का विखंडन: नियंत्रण की जिम्मेदारी कृषि, मत्स्य पालन, सिंचाई एवं पर्यावरण विभागों के बीच बँटी हुई है, जिससे दोहराव तथा अकुशलता उत्पन्न होती है।
- उदाहरण: ओडिशा की चिल्का झील में, एजेंसियों के बीच जिम्मेदारियों का अतिव्यापन प्रभावी खरपतवार हटाने की रणनीति को जटिल बनाता है।
भारत में पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी पर प्रभाव
- प्रकाश एवं ऑक्सीजन अवरोध: मोटा आवरण जल में सूर्य के प्रकाश के प्रवेश एवं ऑक्सीजन के प्रसार को रोकती हैं, जिससे जलीय जीवों के लिए स्थिति प्रतिकूल हो जाती है।
- जैव विविधता का ह्रास: आक्रामक एकल-कृषि के प्रभुत्व एवं प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में परिवर्तन के कारण देशज जलीय पौधे तथा जानवर विस्थापित हो रहे हैं।
- उदाहरण: बेलंदूर झील (कर्नाटक) में जलकुंभी के अनियंत्रित प्रसार के कारण देशज प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं।
- जलविज्ञान संबंधी गड़बड़ी: जलकुंभी प्राकृतिक जल प्रवाह को बाधित करती है, बाढ़ को बढ़ाती है, स्थिर तालाब बनाती है एवं जल की गुणवत्ता को कम करती है।
- जलीय खाद्य श्रृंखलाओं का पतन: मछली पालन केंद्रों का दम घोंटकर एवं पादप प्लवक को कम करके, यह खरपतवार शिकारी-शिकार संबंधों को अस्थिर कर देता है।
- पर्यटन एवं पारिस्थितिक पर्यटन का ह्रास: जलमार्गों के अवरुद्ध होने से प्राकृतिक सौंदर्य कम हो जाता है एवं नावों की पहुँच कम हो जाती है, जिससे पारिस्थितिक पर्यटन राजस्व प्रभावित होता है।
- उदाहरण: वेम्बनाड पश्चजल के अवरुद्ध होने के कारण केरल के हाउसबोट पर्यटन उद्योग को नुकसान हो रहा है।
- उत्सर्जन से जलवायु पर प्रभाव: इस पौधे के बड़े पैमाने पर क्षय से मीथेन गैस निकलती है, जो अंतर्देशीय जलीय पारिस्थितिकी तंत्र से ग्लोबल वार्मिंग में योगदान करती है।
- उदाहरण: जलकुंभी के अपघटन से शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें उत्पन्न होती हैं, जिनमें मीथेन CO₂ से 25 गुना अधिक शक्तिशाली होती है।
प्रबंधन के लिए क्षेत्र-विशिष्ट नीति ढाँचा
- एकल-बिंदु जवाबदेही: एक एकीकृत प्राधिकरण को राज्यों में जलकुंभी हटाने, अनुसंधान एवं उपयोग की रणनीतियों का समन्वय करना चाहिए।
- उदाहरण: एक राष्ट्रीय जलीय खरपतवार प्रबंधन मिशन असम, बिहार एवं केरल जैसे राज्यों के लिए संसाधनों को एकत्रित कर सकता है।
- यंत्रीकृत एवं वैज्ञानिक निष्कासन: कुशल कटाई के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना, विशेषकर जहाँ शारीरिक श्रम दुर्लभ है।
- उदाहरण: लोकटक झील (मणिपुर) एवं चिल्का झील (ओडिशा) में यंत्रीकृत खरपतवार हटाने के अभियान परीक्षणाधीन हैं।
- चक्रीय-अर्थव्यवस्था के उपयोग को बढ़ावा देना: स्वयं सहायता समूहों एवं ग्रामीण उद्यमों के माध्यम से जलकुंभी को विपणन योग्य उत्पादों में परिवर्तित करना।
- उदाहरण: ओडिशा में, महिला स्वयं सहायता समूह जलकुंभी से टोकरियाँ, फर्नीचर एवं हस्तशिल्प बनाते हैं, जबकि असम तथा पश्चिम बंगाल में इसका उपयोग कागज एवं बायोगैस उत्पादन के लिए नवीन रूप से किया जाता है।
- समुदाय-अकादमिक-नीति सहयोग: स्थायी समाधानों के लिए बहु-हितधारक सहभागिता को प्रोत्साहित करना।
- उदाहरण: असम के दीपोर बील में विश्वविद्यालयों एवं मछुआरा सहकारी समितियों के बीच सहयोग समावेशी संरक्षण का उदाहरण है।
- जागरूकता अभियान एवं स्थानीय स्तर पर अपनाना: आजीविका एवं पर्यावरण संरक्षण से जुड़े नागरिकों के नेतृत्व में जलकुंभी संग्रहण को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
जलकुंभी को खतरे एवं संसाधन दोनों के रूप में देखा जाना चाहिए। क्षेत्र-विशिष्ट कार्य योजनाओं, यंत्रीकृत निष्कासन तथा निरंतर निगरानी वाली एक एकल नोडल एजेंसी आवश्यक है। स्वयं सहायता समूहों एवं सहकारी समितियों के माध्यम से बायोमास को खाद, जैव ईंधन तथा शिल्प में परिवर्तित करके आय के स्रोत बनाए जा सकते हैं। आर्द्रभूमि एवं सिंचाई प्रशासन में जलकुंभी नियंत्रण को शामिल करने से पारिस्थितिक तंत्र पुनर्स्थापन होंगे, आजीविका सुरक्षित होगी एवं मीथेन उत्सर्जन में कमी आएगी, जिससे संक्रमित जल उत्पादक, लचीले सार्वजनिक संसाधनों में बदल जाएगा।
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