Q. भारतीय विनिर्माण क्षेत्र उत्पादकता, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता की चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस संदर्भ में, औद्योगिक क्रांति 5.0 की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिए और विश्लेषण कीजिए कि भारत संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए इसका लाभ कैसे उठा सकता है। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • औद्योगिक क्रांति 5.0 (IR5.0) की प्रमुख विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि भारत विनिर्माण में संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने एवं आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए IR5.0 का लाभ कैसे उठा सकता है।
  • IR 5.0 का लाभ उठाने में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

उत्तर

भारतीय विनिर्माण क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15-16% का योगदान देता है, फिर भी पुरानी तकनीकों, नियामक बोझ, कौशल अंतराल एवं वैश्विक प्रतिस्पर्धा से बाधित है। जहाँ उद्योग 4.0 ने स्वचालन तथा अनुकूलन पर जोर दिया, वहीं औद्योगिक क्रांति 5.0 उन्नत तकनीकों को मानवीय रचनात्मकता के साथ जोड़ते हुए मानव-केंद्रित, सतत एवं लचीली औद्योगिक प्रथाओं की ओर एक बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है।

भारतीय विनिर्माण क्षेत्र के सामने चुनौतियाँ

  • उत्पादकता: पुरानी मशीनरी एवं सीमित स्वचालन के कारण कम उत्पादकता उत्पन्न होती है, जिससे कार्यबल की दक्षता कम हो जाती है।
  • नवाचार घाटा: उद्योगों द्वारा सीमित अनुसंधान एवं विकास खर्च उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में नवाचार को कम करता है जिससे आयात पर निर्भरता बढ़ती है।
    • उदाहरण: एक फार्मा हब होने के बावजूद, भारत 70% सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (Active Pharmaceutical Ingredients- APIs) के लिए चीन से आयात पर निर्भर है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता: कमजोर वैश्विक मूल्य श्रृंखला एकीकरण भारतीय कंपनियों को कम मूल्य संवर्धन पर केंद्रित रखता है, जिससे निर्यात सीमित होता है एवं वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता कम होती है।

औद्योगिक क्रांति 5.0 की प्रमुख विशेषताएँ

  • मानव-केंद्रित दृष्टिकोण: औद्योगिक प्रक्रियाओं के केंद्र में मानवीय रचनात्मकता, समस्या-समाधान एवं कल्याण को रखने पर केंद्रित है।
    • उदाहरण: नवाचार को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल ट्विन्स, AI एवं रोबोटिक्स के साथ मनुष्यों का सहयोग।
  • स्थायित्व अभिविन्यास: जलवायु एवं संसाधन संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए हरित विनिर्माण, वृत्ताकार अर्थव्यवस्था तथा निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों पर जोर।
  • लचीली प्रणालियाँ: लचीली एवं अनुकूल आपूर्ति श्रृंखलाएँ बनाती हैं, जो वैश्विक समस्याओं का सामना कर सकें।
    • उदाहरण: COVID-19 महामारी के कारण महत्वपूर्ण क्षेत्रों में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान उत्पन्न हुए।
  • मानव-मशीन सहयोग: तालमेल को प्रोत्साहित करता है जहाँ मशीनें दोहराए जाने वाले कार्यों को संभालती हैं जबकि मनुष्य रचनात्मक, नैतिक एवं जटिल भूमिकाएँ निभाते हैं।
    • उदाहरण: ऑटोमोबाइल असेंबली एवं खतरनाक कार्यों में को-बॉट्स का उपयोग जबकि मनुष्य डिजाइन तथा अनुकूलन की देखरेख करते हैं।
  • उत्पादन का निजीकरण: विविध उपभोक्ताओं के लिए अत्यधिक अनुकूलित उत्पाद प्रदान करने के लिए उन्नत डेटा विश्लेषण एवं स्मार्ट विनिर्माण का उपयोग करता है।

संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने एवं आर्थिक विकास को गति देने के लिए भारत के विनिर्माण क्षेत्र के लिए IR5.0 का लाभ उठाना।

  • कार्यबल का कौशल विकास: रचनात्मकता एवं अनुकूलनशीलता जैसे सॉफ्ट स्किल्स के साथ-साथ AI, रोबोटिक्स, IoT में माँग-संचालित, उद्योग-संरेखित कौशल।
    • उदाहरण: AICTE ने उद्योग 5.0 के लिए 4 करोड़ छात्रों को तैयार करने हेतु वर्ष 2025 को “AI का वर्ष” घोषित किया है।
  • अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार को बढ़ावा देना: कर छूट एवं नवाचार समूहों के साथ स्वदेशी डिज़ाइन, उन्नत सामग्री तथा उभरती तकनीक में अधिक निवेश।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: उत्पादकता एवं उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार के लिए AI, डिजिटल ट्विन्स तथा स्मार्ट रोबोटिक्स को अपनाना।
  • पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना: नवाचार को गति देने के लिए उद्योगों, शिक्षा जगत एवं सरकार के बीच सहयोगी प्लेटफ़ॉर्म का निर्माण।
    • उदाहरण: हैकाथॉन, संस्थानों की नवाचार परिषदें, कपिला स्टार्टअप नीति एवं ATAL संकाय विकास कार्यक्रम।
  • सतत विनिर्माण: वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए वृत्ताकार अर्थव्यवस्था मॉडल एवं ऊर्जा दक्षता को प्राथमिकता देना।
    • उदाहरण: “वोकल फॉर लोकल” + MSMEs के लिए शून्य प्रभाव-शून्य दोष आधारित उत्पादन।

उद्योग 5.0 का लाभ उठाने में भारत के सामने चुनौतियाँ

  • डिजिटल विभाजन: महानगरों एवं टियर-2/3 शहरों के बीच उच्च गति वाले इंटरनेट, क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर तथा स्मार्ट तकनीकों तक असमान पहुँच समावेशी अपनाने में बाधा बन सकती है।
  • उच्च संक्रमण लागत: MSMEs, जो सकल घरेलू उत्पाद का 30% हिस्सा हैं, को उच्च अग्रिम पूंजीगत लागतों के कारण सहयोगी रोबोट, डिजिटल ट्विन एवं AI-संचालित उपकरणों को अपनाने में कठिनाई हो सकती है।
  • नियामक अंतराल: AI नैतिकता, डेटा प्रशासन एवं मानव-मशीन सहयोग में उत्तरदायित्व पर स्पष्ट नीति का अभाव अपनाने में देरी कर सकता है।
  • साइबर सुरक्षा जोखिम: मानव-मशीन कनेक्टिविटी में वृद्धि साइबर हमलों की कमजोरियों को बढ़ाती है, जिससे बौद्धिक संपदा की चोरी एवं आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान का खतरा बढ़ जाता है।
  • कम अनुसंधान एवं विकास व्यय: यह नवाचार में बाधा डालता है एवं वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को कम करता है। भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 0.64% है, जबकि चीन का 2.4% है, जो इस अंतर को करने की आवश्यकता को दर्शाता है।

इस प्रकार, विकसित भारत वर्ष 2047 के साथ एक राष्ट्रीय रोडमैप को संरेखित करके, टियर-2/3 शहरों में समावेशी कौशल में निवेश करके एवं MSMEs के लिए नवाचार वित्तपोषण को सक्षम करके, भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश तथा जमीनी स्तर की प्रतिभा का दोहन कर सकता है। इस प्रकार, औद्योगिक क्रांति 5.0 भारत को उत्पादकता अंतराल को दूर करने, नवाचार को बढ़ावा देने एवं वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए एक परिवर्तनकारी मार्ग प्रदान करती है।

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