प्रश्न की मुख्य माँग
- DPDP अधिनियम संशोधन के सकारात्मक प्रभाव।
- संशोधनों से उत्पन्न चिंताएँ, जिसके कारण सूचना देने से इनकार किया जा रहा है।
- सुझावात्मक उपाय।
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उत्तर
भूमिका
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) अधिनियम, 2023 ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(j) में संशोधन किया है, जिसमें व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित विस्तृत प्रावधान को केवल छह शब्दों की धारा तक सीमित कर दिया गया है। इसका सीधा प्रभाव नागरिकों के सूचना के अधिकार और व्यक्तिगत गोपनीयता के मध्य संतुलन पर पड़ा है, जिसके पारदर्शिता और उत्तरदायित्व पर महत्त्वपूर्ण निहितार्थ हैं।
मुख्य भाग
DPDP अधिनियम संशोधनों के सकारात्मक प्रभाव
- डेटा गोपनीयता संरक्षण को बढ़ावा: यह सुनिश्चित करता है कि संवेदनशील नागरिक जानकारी को अंधाधुंध सार्वजनिक नहीं किया जा सके।
- उदाहरण: व्यक्तिगत चिकित्सीय अभिलेख या वित्तीय विवरण अब सार्वजनिक पहुँच से सुरक्षित रहेंगे, जिससे दुरुपयोग या पहचान चोरी की संभावना कम होगी।
- लोक प्राधिकरणों के लिए स्पष्टता: लोक सूचना अधिकारियों (PIOs) और सरकारी अधिकारियों को सूचना रोकने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश मिलते हैं, जिससे अस्पष्टता घटती है।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था की प्रथाओं के साथ संरेखण: RTI को DPDP ढाँचे के अनुरूप लाता है, जो सार्वजनिक अभिलेखों के बढ़ते डिजिटलीकरण को नियंत्रित करता है।
- उदाहरण: सरकार के पास उपलब्ध डिजिटल डेटा, जैसे आधार से जुड़े अभिलेख, अब अधिक कड़े सुरक्षा मानकों के अंतर्गत आते हैं।
- कानूनी दायित्व से बचाव: डेटा उल्लंघन पर कठोर दंड सार्वजनिक प्राधिकरणों को उत्तरदायीपूर्वक डेटा सँभालने हेतु प्रेरित करते हैं।
- उदाहरण: प्रशासनिक त्रुटियों के कारण व्यक्तिगत जानकारी का अनजाने में खुलासा होने से बचाव होता है।
संशोधनों से उत्पन्न चिंताएँ: ‘सूचना देने से इनकार करने के अधिकार’ की ओर झुकाव
- ‘सूचना देने से इनकार करने के अधिकार’ में परिवर्तन: व्यक्तिगत जानकारी की व्यापक व्याख्या से अधिकांश सरकारी अभिलेखों तक पहुँच से इनकार संभव हो जाता है, भले ही वह सार्वजनिक हित में हो।
- उदाहरण: नागरिक के अपने सुधारित अंक-पत्र या अधिकारियों द्वारा हस्ताक्षरित आदेश को भी ‘व्यक्तिगत’ बताकर नकारा जा सकता है।
- सार्वजनिक उत्तरदायित्व का ह्रास: पारदर्शिता प्रभावित होती है क्योंकि पेंशन सूची या रोजगार अभिलेख जैसे आवश्यक दस्तावेज रोके जा सकते हैं।
- PIOs द्वारा अति-सावधानी: DPDP अधिनियम के अंतर्गत दंड के भय से अधिकारी नियमित रूप से सूचना देने से इनकार कर सकते हैं, बजाय इसके कि खुलासा करने का जोखिम लें।
- RTI के मौलिक सिद्धांतों से टकराव: DPDP अधिनियम की प्राथमिकता धारा कानूनी अस्पष्टता उत्पन्न करती है, जिससे अनुच्छेद-19(1)(a) के तहत नागरिकों के सूचना अधिकार निष्प्रभावी हो सकते हैं।
भारत में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बनाए रखने के उपाय
- कानूनी स्पष्टता: DPDP अधिनियम में संशोधन किया जाए ताकि सार्वजनिक हित के मामलों में यह RTI अधिनियम को ओवरलैप न कर सके।
- सार्वजनिक हित की प्राथमिकता: RTI की धारा 8(2) को सुदृढ़ और क्रियान्वित किया जाए, ताकि नागरिकों के लिए ‘बड़े सार्वजनिक हित’ प्रावधान का उपयोग करना आसान हो।
- PIOs की क्षमता निर्माण: अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाए ताकि वे वास्तविक व्यक्तिगत जानकारी और सार्वजनिक जाँच हेतु प्रासंगिक जानकारी में अंतर कर सकें।
- नागरिक एवं मीडिया सहभागिता: जागरूकता अभियान, मीडिया निगरानी और राजनीतिक उत्तरदायित्व को बढ़ावा दिया जाए ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
निष्कर्ष
DPDP अधिनियम 2023 व्यक्तिगत डेटा की रक्षा करता है, किंतु इसके कारण RTI “सूचना से वंचित करने के अधिकार” में बदलने का जोखिम है, जिससे पारदर्शिता प्रभावित होती है। इससे बचाव के लिए मजबूत सुरक्षा उपाय, सार्वजनिक हित तंत्र, क्षमता निर्माण और नागरिक सहभागिता आवश्यक हैं, ताकि इसके लोकतांत्रिक स्वरूप को संरक्षित रखा जा सके।
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