Q. शीत युद्धोत्तर ' पैक्स अमेरिकाना' (Pax Americana) एक लचीला, असममित बहुध्रुवीयता का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। चर्चा कीजिए कि यह परिवर्तन 'ग्लोबल साउथ' की एजेंसी और इसके प्रमुख संस्थागत वास्तुकार के रूप में भारत की उभरती भूमिका को कैसे नया रूप दे रहा है। (15 अंक 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • कैसे असममित बहुध्रुवीयता वैश्विक दक्षिण की एजेंसी को नया आकार देती है।
  • भारत वैश्विक दक्षिण के संस्थागत वास्तुकार के रूप में।

उत्तर

शीत युद्धोत्तर “पैक्स अमेरिकाना” (Pax Americana) के विघटन ने स्थिर द्विध्रुवीयता  को तरल, असमान बहुध्रुवीयता  में परिवर्तित कर दिया है। इस रणनीतिक शून्य में में ग्लोबल साउथ (Global South) अब निष्क्रिय अनुयायी नहीं, बल्कि सक्रिय नियामक बन रहा है  और इस परिवर्तन को सक्षम बनाने वाली संस्थाओं के निर्माण में भारत नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है।

कैसे असममित बहुध्रुवीयता  ग्लोबल साउथ की भूमिका को पुनर्परिभाषित करती है

  • नियम मानने वालों से नियम बनाने वालों तक: ग्लोबल साउथ अब पश्चिमी ढाँचों को स्वीकारने के बजाय वैश्विक एजेंडा तय कर रहा है।
    • उदाहरण: G20 दिल्ली शिखर सम्मेलन में अफ्रीकी संघ (African Union) को स्थायी सदस्य बनाया गया— जिससे विशिष्टता समाप्त हुई।
  • स्विंग-स्टेट (Swing-State) की शक्ति का उदय: अब शक्ति सैन्य गठबंधनों से नहीं, बल्कि भू-अर्थशास्त्र और जनसांख्यिकी से निकलती है।
    • उदाहरण: भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया जैसे देश अमेरिका, चीन और रूस के साथ हित-आधारित नीतियों से वार्ता करते हैं, न कि गुट-आधारित दृष्टिकोण से।
  • निर्भरता मॉडल का अस्वीकार: ग्लोबल साउथ अब शृंखलाबद्ध या दबावपूर्ण कनेक्टिविटी मॉडल को अस्वीकार कर रहा है।
    • उदाहरण: चीन की BRI ऋण-कूटनीति के विरुद्ध वैकल्पिक, समानता-आधारित मॉडल की खोज।
  • संस्थागत विविधीकरण:  नई संस्थाएँ पश्चिमी वित्तीय प्रभुत्व को चुनौती दे रही हैं।
    • उदाहरण: BRICS का विस्तार और न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) की IMF-जैसी शर्तों से मुक्त वित्तीय सहायता।
  • विकास-प्रथम भू-राजनीति:  अब वैचारिक गुटों से नहीं, बल्कि विकास मॉडल से अंतरराष्ट्रीय एजेंसी उत्पन्न हो रही है।
    • उदाहरण: डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI), इंटरनेशनल सोलर अलायंस, और क्लाइमेट फाइनेंस की माँगों पर केंद्रित नीति।

ग्लोबल साउथ के संस्थागत वास्तुकार के रूप में भारत

  • नई बहुपक्षीय संस्थाओं का प्रमुख डिजाइनर: भारत ग्लोबल साउथ की शिकायतों को संस्थागत समाधानों में परिवर्तित करता है।
    • उदाहरण: इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) और कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर (CDRI) की स्थापना में नेतृत्व।
  • प्रैग्मेटिक मल्टी-अलाइनमेंट, न कि “नॉन-अलाइनमेंट 2.0”:  भारत पश्चिम, रूस और ग्लोबल साउथ तीनों के साथ समानांतर संबंध बनाए रखता है।
    • उदाहरण: यूक्रेन युद्ध और गाजा संघर्ष पर विभिन्न लेकिन “वसुधैव कुटुंबकम्” से प्रेरित संतुलित नीति।
  • डिजिटल पब्लिक गुड्स मॉडल:  भारत अपनी प्रशासनिक तकनीकों को अन्य देशों के लिए निम्न-लागत, विस्तारयोग्य समाधान के रूप में प्रस्तुत करता है।
    • उदाहरण: UPI, CoWIN, और DPI मॉडल — अफ्रीका और दक्षिण–पूर्व एशिया में अपनाए जा रहे हैं।
  • चीन के BRI के विपरीत स्वायत्तता-आधारित मॉडल:  भारत निर्भरता नहीं, संप्रभुता निर्माण को प्रोत्साहित करता है।
    • उदाहरण: गलवान के बाद सक्रिय निवारण नीति QUAD और क्षेत्रीय डिजिटल साझेदारी के माध्यम से।
  • बहु-वित्तीय पारिस्थितिकी का निर्माण: भारत पश्चिम-प्रभुत्व वाले वित्तीय ढाँचे पर निर्भरता कम कर रहा है।
    • उदाहरण: स्थानीय मुद्रा में व्यापार और BRICS/NDB सुधारों की वकालत।

निष्कर्ष

भारत का नेतृत्व तभी विश्वसनीय होगा, जब उसकी क्षमता उसकी आकांक्षा से सुमेलित हो।
डिजिटल अवसंरचना, हरित प्रौद्योगिकी और समावेशी बहुपक्षवाद के विस्तार के माध्यम से भारत असमान बहुध्रुवीयता को संतुलित बहुकेंद्रिकता में परिवर्तित कर सकता है ताकि ग्लोबल साउथ इतिहास का सहभागी नहीं, बल्कि उसका रचयिता (Author) बन सके।

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