प्रश्न की मुख्य माँग
- परमाणु ऊर्जा के संदर्भ में शांति (SHANTI) विधेयक के लाभ।
- इससे जुड़े जोखिम।
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उत्तर
वर्तमान में भारत में परमाणु ऊर्जा का योगदान केवल लगभग 3% है। इस संदर्भ में, सतत् परमाणु ऊर्जा दोहन एवं विकास (शांति) विधेयक, 2025 का उद्देश्य ऑपरेटरों की संख्या बढ़ाकर और निवेश संबंधी बाधाओं को कम करके भारत के नागरिक परमाणु ढाँचे में सुधार करना है। यह विधेयक परमाणु ऊर्जा को भारत के स्वच्छ और शून्य-शून्य ऊर्जा लक्ष्य की ओर अग्रसर एक प्रमुख स्तंभ के रूप में स्थापित करता है।
शांति विधेयक के लाभ
- निवेश आधार का विस्तार: घरेलू निजी संस्थाओं और संयुक्त उद्यमों की लाइसेंस प्राप्त भागीदारी की अनुमति देता है, जिससे बड़े पैमाने पर परमाणु विस्तार के लिए पूँजी जुटाने का दायरा बढ़ता है।
- उदाहरण: सरकारी संस्थाओं के अलावा किसी अन्य कंपनी को परमाणु संयंत्र संचालित करने की अनुमति।
- स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन का समर्थन: नेट जीरो लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण कम कार्बन वाले आधारभूत बिजली उत्पादन को बढ़ाने में सक्षम बनाता है।
- उदाहरण: वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु क्षमता का सरकारी लक्ष्य, जिसमें SMR भी शामिल हैं।
- जोखिम साझाकरण को प्रोत्साहित करता है: निर्माण और वित्तीय जोखिमों को केवल सरकार के बजाय कई संचालकों में वितरित करता है।
- संवेदनशील ईंधन चक्रों की सुरक्षा: प्रसार-संवेदनशील गतिविधियों पर सरकारी नियंत्रण बनाए रखता है, साथ ही संयंत्र निर्माण और आपूर्ति शृंखलाओं में निजी भागीदारी की अनुमति देता है।
- नियामक अनिश्चितता को कम करता है: सुरक्षा, लाइसेंसिंग, देयता और विवाद समाधान को एक ही वैधानिक ढाँचे के भीतर समेकित करता है, जिससे लेन-देन लागत कम होती है।
- तेजी से तैनाती को सुगम बनाता है: सरलीकृत अनुमोदन प्रक्रिया से साइट क्लीयरेंस और कमीशनिंग की समय सीमा कम हो सकती है।
शांति विधेयक से जुड़े जोखिम
- संचालक की सीमित देयता: किसी बड़ी दुर्घटना के बाद पीड़ितों को मुआवजा देने और पर्यावरण सुधार के लिए ₹3,000 करोड़ की देयता सीमा अपर्याप्त हो सकती है।
- उदाहरण: केंद्र सरकार संचालक की सीमा से अधिक देयता वहन करती है।
- सार्वजनिक जोखिम का बोझ: सरकार जनहित में गैर-सरकारी प्रतिष्ठानों के लिए पूर्ण देयता वहन कर सकती है, जिससे जोखिम, करदाताओं पर स्थानांतरित हो जाता है।
- आपूर्तिकर्ता की असमान जवाबदेही: आपूर्तिकर्ता की देयता काफी हद तक संविदात्मक शर्तों पर निर्भर करती है, जिससे परियोजनाओं में जवाबदेही में असमानता उत्पन्न होती है।
- पारदर्शिता संबंधी चिंताएँ: सरकारी प्रतिष्ठानों को अनिवार्य बीमा से छूट मिलने से सार्वजनिक वित्तीय प्रकटीकरण का महत्त्व बढ़ जाता है।
- नियामक स्वतंत्रता की कमी: केंद्र और परमाणु ऊर्जा आयोग द्वारा नियुक्तियों पर महत्त्वपूर्ण नियंत्रण नियामक की स्वायत्तता को कमजोर कर सकता है।
- जन विश्वास संबंधी चुनौतियाँ: सत्ता का कथित केंद्रीकरण और सीमित निगरानी सामाजिक स्वीकृति और निवेशक विश्वास को प्रभावित कर सकती है।
निष्कर्ष
शांति विधेयक निवेश को बढ़ावा देकर, नियामक बाधाओं को कम करके और संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करके भारत की स्वच्छ ऊर्जा रणनीति में परमाणु ऊर्जा की भूमिका को मजबूत करता है। हालाँकि, देयता सीमाएँ, शासन का केंद्रीकरण और नियामक स्वतंत्रता प्रमुख चिंताएँ बनी हुई हैं। पैमाने, सुरक्षा और जवाबदेही के बीच संतुलन ही यह निर्धारित करेगा कि क्या परमाणु ऊर्जा भारत के नेट-जीरो लक्ष्यों को स्थायी रूप से पूरा कर सकती है।
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