Q. भारत में कॉलेज के छात्रों पर प्रौद्योगिकी-सुविधायुक्त यौन हिंसा (TFSV) के प्रभाव पर चर्चा कीजिए । इस मुद्दे से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए प्रमुख चुनौतियाँ और प्रस्तावित समाधान क्या हैं? (250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: प्रौद्योगिकी-सुविधायुक्त यौन हिंसा (Technology-Facilitated Sexual Violence-TFSV) की अवधारणा का परिचय दें। साथ ही भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों में युवा महिलाओं के बीच इसकी व्यापकता पर प्रकाश डालिए।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • बताएं कि टीएफएसवी क्या है। उन प्लेटफार्मों का उल्लेख करें जहां इससे जुड़े मामलों की संख्या अधिक है।
    • कॉलेज के छात्रों पर इसके प्रभाव पर चर्चा करें।
    • टीएफएसवी को संबोधित करने में आने वाली चुनौतियों को पहचानें और उनका उल्लेख करें।
    • टीएफएसवी से निपटने के लिए प्रस्तावित समाधानों की रूपरेखा तैयार करें। 
  • निष्कर्ष: भारत के युवाओं के लिए एक सुरक्षित ऑनलाइन स्थान की आवश्यकता पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकालें। 

परिचय:

टेक्नोलॉजी-फैसिलिटेटेड यौन हिंसा (टीएफएसवी) डिजिटल युग में एक गंभीर चिंता के रूप में उभरी है, विशेषकर उच्च शिक्षण संस्थानों में युवा महिलाओं के बीच। इसमें विकृत छवियों (morphed images-मॉफड इमेज एक ऐसी तस्वीर को कहा जाता है जिसमें इमेज एडिटर का प्रयोग कर बदलाव किया गया हो। आम बोलचाल में यह फेक तस्वीर के नाम से जानी जाती है।) से लेकर स्पष्ट धमकियों तक, मौजूदा सामाजिक-सांस्कृतिक असमानताओं को बढ़ाने वाला ऑनलाइन कदाचार शामिल है।

मुख्य विषयवस्तु:

 प्रौद्योगिकी-सुविधाजनक यौन हिंसा:

  • टीएफएसवी में विभिन्न डिजिटल दुरुपयोग जैसे विकृत छवियां, डिजिटल फ्लैशिंग, बलात्कार की धमकियां और अनचाही स्पष्ट टिप्पणियां और संदेश शामिल हैं।
  • इंस्टाग्राम, फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म इस तरह के व्यवहार के स्त्रोत बन गए हैं।
  • उदाहरण के लिए, एक कॉलेज छात्रा की छवि को दुर्भावनापूर्ण रूप से संपादित किया जा सकता है और सोशल मीडिया पर प्रसारित किया जा सकता है, जिससे उसकी प्रतिष्ठा धूमिल हो सकती है और उसे मनोवैज्ञानिक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है ।

कॉलेज के छात्रों पर टीएफएसवी का प्रभाव:

  • मानसिक और शारीरिक कल्याण:
    • कई जीवित बचे लोग अवसाद, चिंता,पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर( PTSD) से गुजरते हैं और यहां तक कि उनके मन में आत्महत्या के  विचार भी आते हैं।
    • उदाहरण के लिए, इंस्टाग्राम या फेसबुक पर बलात्कार की धमकियाँ मिलने के बाद एक छात्र, डिप्रेशन का शिकार हो सकती है।
  • शैक्षणिक और कैरियर बाधाएँ:
    • ऑनलाइन दुरुपयोग से किसी भी व्यक्ति विशेषकर महिलाओं के शैक्षणिक प्रदर्शन में कमी आ सकती है या वे नौकरी के अवसर खो सकती  हैं।
    • विकृत छवियों से ब्लैकमेल किया गया छात्र/छात्रा कक्षाओं में भाग लेने या परिसर की गतिविधियों में भाग लेने से परहेज कर सकता है।
  • सामाजिक परिणाम:
    • इसमें अलगाव, पारिवारिक बहिष्कार या यहां तक कि हिंसा भी शामिल है।
    • एक छात्र टीएफएसवी से “पीड़ित” होने के कारण साथियों या परिवार द्वारा शर्मिंदा की जा सकती है, जिससे वह सामाजिक अलगाव में पड़ सकती है।
  • दुर्व्यवहार करने वालों की गुमनामी:
    • अपराधी अक्सर ऑनलाइन गुमनामी के पर्दे के पीछे छिप जाते हैं, जिससे उनका पता लगाना या उनका सामना करना मुश्किल हो जाता है।

टीएफएसवी को संबोधित करने में चुनौतियाँ:

  • कानून  में अस्पष्टताएँ:
    • भारत के आईटी अधिनियम 2000 में टीएफएसवी के कुछ भागों  के खिलाफ प्रावधान हैं
    • हालाँकि, यह अकसर अस्पष्ट होता है, जो जीवित बचे लोगों को रिपोर्ट करने से रोकता है।
  • प्लेटफार्म सुरक्षा उपाय:
    • वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक फेसबुक उपयोगकर्ता होने के बावजूद भी  भारत में प्रौद्योगिकी दिग्गजों की ओर से लापरवाही देखने को मिलती है।
    • मेटा के सुरक्षा एल्गोरिदम, जो मुख्य रूप से अमेरिकी अंग्रेजी में कोडेड हैं, अक्सर भारतीय भाषाओं में अपमानजनक सामग्री को नजरअंदाज कर देते हैं।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता की कमी:
    • एआई सिस्टम अनजाने में भेदभाव को  बढ़ा सकता है।
  • शैक्षणिक संस्थानों में गैर-कार्यान्वयन:
    • उच्च शिक्षण संस्थानों में उत्पीड़न को संबोधित करने के लिए दिशानिर्देश और आंतरिक शिकायत समितियां (आईसीसी) हैं।
    • हालाँकि, उनका गठन, प्रशिक्षण और प्रबंधन चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
  • कम जागरूकता एवं रिपोर्टिंग:
    • कई छात्र टीएफएसवी की रिपोर्ट करने के अपने अधिकार से अनजान हैं।
    • डेटा से पता चलता है कि 44% लोग ये नहीं जानते थे  कि क्या वे अपने संस्थान को इस तरह के उत्पीड़न की रिपोर्ट भी कर सकते हैं।

प्रस्तावित समाधान:

  • नियामक उपायों को मजबूत बनाना:
    • आगामी डिजिटल इंडिया अधिनियम बेहतर जवाबदेही कोसुनिश्चित  करते हुए तकनीकी प्लेटफार्मों के लिए नियमों को कड़ा कर सकता है।
  • समग्र दृष्टिकोण:
    • जाति, धर्म और यौन अभिविन्यास सहित विभिन्न हाशिए पर पड़े लोगों की पहचानों पर टीएफएसवी के प्रभाव को समझने से  उनके लिए  कार्य करने में सहूलियत होगी।
  • छात्रों को सशक्त बनाना:
    • कुछ महत्वपूर्ण संस्थान गुमनाम हेल्पलाइन, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं स्थापित कर सकते हैं और सुरक्षा प्रशिक्षण कार्यशालाओं और सुगम चर्चा जैसे जमीनी स्तर के प्रयास शुरू कर सकते हैं।
  • जागरूकता बढ़ाना:
    • टीएफएसवी के इर्द-गिर्द खुली बातचीत व  पीड़ित पर दोषारोपण किए बिना, इस समस्या का महत्वपूर्ण समाधान कर सकती है।
  • सरकारी पहल:
    • महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराधों को लक्षित करने वाले आईटी अधिनियम में प्रावधान, और विशेष रूप से महिलाओं के बीच सुरक्षित इंटरनेट उपयोग को बढ़ावा देने के लिए “डिजिटल साक्षरता और ऑनलाइन सुरक्षा कार्यक्रम” सही दिशा में उठाए गए कदम हैं।

निष्कर्ष:

डिजिटल क्षेत्र सशक्तिकरण का स्थान होना चाहिए न की उत्पीड़न का। टीएफएसवी, विशेष रूप से कॉलेज के छात्रों को लक्षित करते हुए, उनकी क्षमता को कमजोर और प्रभावित करता है। ऐसे में जरूरी है कि सामंजस्यपूर्ण सरकारी नियमों, शैक्षणिक संस्थानों में सुधार और सामाजिक जागरूकता के साथ, भारत अपने युवाओं के लिए एक सुरक्षित ऑनलाइन स्थान सुनिश्चित कर सकता है।

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