उत्तर:
दृष्टिकोण:
- परिचय: खाद्य तेलों के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक के रूप में भारत की स्थिति और घरेलू मांग को पूरा करने के लिए आयात पर इसकी महत्वपूर्ण निर्भरता पर प्रकाश डालते हुए शुरुआत कीजिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- आयातित खाद्य तेलों पर निर्भरता के कारकों पर चर्चा कीजिए।
- भारत में खाद्य तेल उत्पादन बढ़ाने की रणनीतियों का उल्लेख कीजिए।
- नेशनल मिशन ऑन ऑयल सीड्स एंड ऑयल पाम(एनएमओओपी) और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि(पीएम-किसान) जैसी पहलों का उल्लेख कीजिए।
- निष्कर्ष: आयात निर्भरता को कम करने और खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए कृषि, तकनीकी और नीतिगत उपायों को मिलाकर एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकालें।
|
परिचय:
दुनिया में खाद्य तेलों के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक भारत को अपनी घरेलू मांग को पूरा करने में एक महत्वपूर्ण चुनौती का सामना करना पड़ता है। देश अपनी उपभोग संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए इस निर्भरता के पीछे के कारकों को समझना और स्थानीय उत्पादन को बढ़ाने के लिए रणनीतियों की खोज करना महत्वपूर्ण है।
मुख्य विषयवस्तु:
आयातित खाद्य तेलों पर निर्भरता के कारक:
- उच्च मांग बनाम सीमित उत्पादन: बढ़ती जनसंख्या और बदलते आहार पैटर्न के कारण खाद्य तेलों की मांग में वृद्धि हुई है, जिसे घरेलू उत्पादन सीमित खेती क्षेत्रों और कम पैदावार के कारण पूरा करने में असमर्थ है।
- जलवायु संबंधी बाधाएँ: तिलहनी फसलों की खेती काफी हद तक मौसम अनुकूल स्थितियों पर निर्भर करती है, जो भारत में अक्सर असंगत होती है, जिससे उपज और उत्पादन प्रभावित होता है।
- उच्च मूल्य वाली फसलों को प्राथमिकता: किसान अक्सर तिलहनों की तुलना में अधिक लाभदायक फसलों की खेती करना पसंद करते हैं, जिनमें आमतौर पर कम रिटर्न होता है।
- तकनीकी प्रगति का अभाव: भारत में तिलहन क्षेत्र खेती और प्रसंस्करण दोनों में आधुनिक तकनीक की कमी से ग्रस्त है, जिससे अक्षमताएं और फसलों की कम उत्पादकता होती है।
- आपूर्ति श्रृंखला और भंडारण के मुद्दे: अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं और एक अकुशल आपूर्ति श्रृंखला के कारण फसल के बाद नुकसान उठाना पड़ता है।
भारत में खाद्य तेल उत्पादन बढ़ाने की रणनीतियाँ:
- बीज किस्मों और खेती के तरीकों को बदलना: उच्च उपज व रोग-प्रतिरोधी बीज किस्मों को तैयार करना एवं आधुनिक कृषि तकनीकों को बढ़ावा देना उत्पादकता को काफी बढ़ा सकता है।
- सिंचाई और जलवायु-लचीला कृषि: परिवर्तनशील मौसम स्थितियों के प्रभाव को कम करने के लिए सिंचाई के बुनियादी ढांचे का विकास करना और जलवायु-लचीला कृषि पद्धतियों को अपनाना।
- तिलहन खेती को प्रोत्साहन: किसानों को तिलहन उगाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन और न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करने की आवश्यकता है।
- प्रसंस्करण में तकनीकी उन्नयन: दक्षता में सुधार और नुकसान को कम करने के लिए तिलहन प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी का आधुनिकीकरण करने की जरूरत है।
- एकीकृत कृषि प्रणालियाँ: एकीकृत कृषि प्रणालियों को प्रोत्साहित करना जो भूमि उपयोग को अनुकूलित करने और लाभप्रदता बढ़ाने के लिए अन्य फसलों या पशुधन के साथ तिलहन की खेती को जोड़ती है।
- आपूर्ति श्रृंखला और भंडारण सुविधाओं को सुदृढ़ करना: घाटे को कम करने और किसानों के लिए बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए रसद, भंडारण सुविधाओं और बाजार संबंधी ढांचों में सुधार करना।
राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-ऑयल पाम (National Edible Oil Mission-Oil Palm) के तहत भारत सरकार के हालिया प्रयास का उद्देश्य तिलहन और पाम तेल के क्षेत्र और उत्पादकता को बढ़ाना है। गौरतलब है कि इस मिशन में वर्ष 2025-26 तक पाम तेल की खेती के क्षेत्र को 10 लाख हेक्टेयर और वर्ष 2029-30 तक 16.7 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाना है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) जैसी पहल किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जो अप्रत्यक्ष रूप से तिलहन की खेती में सहायता कर सकती है।
निष्कर्ष:
आयातित खाद्य तेलों पर निर्भरता कम करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें कृषि, तकनीकी और नीतिगत हस्तक्षेप शामिल हैं। उपज बढ़ाने, बुनियादी ढांचे में सुधार और किसानों को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करने वाली रणनीतियों को लागू करके, भारत खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकता है। सरकार की हालिया पहल सही दिशा में एक कदम है, लेकिन इस क्षेत्र में दीर्घकालिक स्थिरता हासिल करने के लिए लगातार प्रयास और निवेश महत्वपूर्ण हैं।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments