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Q. सरकार ने हाल ही में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के एक गुट के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके आलोक में, विद्रोही समूहों के साथ शांति समझौते और पूर्व उग्रवादियों के पुनर्वास से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिये। दीर्घकालिक समाधान सुनिश्चित करने के लिए किन संस्थागत और कानूनी तंत्रों की आवश्यकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना:  भारत में उल्फा के साथ शांति समझौते की जटिलता को संबोधित कीजिए, साथ ही शांति वार्ता और पूर्व उग्रवादियों के पुनर्वास में चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित कीजिए।
  • मुख्य विषय-वस्तु :
    • संघर्ष क्षेत्रों में संदर्भ-आश्रित चुनौतियों और दोषारोपण संबंधी मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
    • उग्रवादियों की रिहाई और पुनर्वास के लिए सार्वभौमिक समाधानों की अनुपस्थिति पर प्रकाश डालिए।
    • टिकाऊ शांति पर विद्रोही समूह की गतिविधियों के सीमित प्रभाव और संक्रमणकालीन न्याय तंत्र की कमियों को संबोधित कीजिए।
    • मजबूत संक्रमणकालीन न्याय संबंधी ढाँचे, राजनीतिक प्रणालियों में विद्रोहियों का एकीकरण, युद्धकालीन वैधता पर नीतिगत संयम और गतिशील कार्यक्रम डिजाइन सहित संस्थागत और कानूनी तंत्र का सुझाव दीजिए।
  • निष्कर्ष: शांति वार्ता और पुनर्वास की प्रक्रियाओं में संदर्भ-विशिष्ट, लचीली रणनीतियों की आवश्यकता पर जोर दीजिए साथ ही दीर्घकालिक शांति और स्थिरता के लिए निरंतर मूल्यांकन और अनुकूलन के महत्व को रेखांकित कीजिए।

 

प्रस्तावना:

भारत में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के एक गुट के साथ हालिया शांति समझौता विद्रोही समूहों के साथ शांति समझौते पर बातचीत और उसके बाद पूर्व उग्रवादियों के पुनर्वास में शामिल चुनौतियों और जटिलताओं के बारे में गंभीर सवाल उठाता है। ये शांति प्रक्रियाएं न केवल तत्काल संघर्ष समाधान की मांग करती हैं बल्कि हिंसा की पुनरावृत्ति को रोकने और स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों की भी आवश्यकता होती है।

मुख्य विषयवस्तु:

विद्रोही समूहों के साथ शांति समझौते और पूर्व उग्रवादियों के पुनर्वास के मुद्दे

  • संदर्भ-आश्रित चुनौतियाँ: हिंसक चरमपंथी समूहों को छोड़ने वाले लोगों के समक्ष पुनर्वास संबंधी मुद्दे प्रकाश में आते हैं, विशेषकर संघर्ष या संघर्ष के बाद के क्षेत्रों में। ऐसी असुरक्षित स्थितियों में पुनर्वास कार्यक्रमों को संचालित करने में जटिलताएँ होती हैं।
  • दोषारोपण और कानूनी/नैतिक चिंताएँ: संघर्षरत क्षेत्रों में, पूर्व आतंकवादियों को अक्सर कलंक(stigmatization) का सामना करना पड़ता है, जो उनके पुनर्वास में एक महत्वपूर्ण बाधा उत्पन्न करता है। कानूनी और नैतिक मुद्दे, जैसे पूर्व संदिग्ध आतंकवादियों की कानूनी स्थिति, जिन पर कानूनी कार्यवाही नहीं हुई है, इन प्रयासों को और जटिल बनाते हैं।
  • उचित समाधानों का अभाव: हिंसक चरमपंथियों को अलग करने और उनके पुनर्वास के लिए कोई एक निश्चित समाधान नहीं है। प्रत्येक के मामले में लक्षित आबादी के लिए उपयुक्त विशिष्ट संदर्भ, परिणाम और तंत्र पर विचार करते हुए अनुरूप प्रतिक्रियाओं की आवश्यकता होती है।
  • टिकाऊ शांति (Durable Peace) पर विद्रोही समूह की गतिविधियों का सीमित प्रभाव: शांति समझौतों से पहले और बाद में विद्रोही समूहों की गतिविधियों का इन समझौतों की स्थिरता पर सीमित प्रभाव पड़ता है। संक्रमणकालीन न्याय तंत्र में अक्सर विशिष्टता, वित्त पोषण और निरीक्षण का अभाव होता है, जिससे आंशिक या कपटपूर्ण कार्यान्वयन होता है।

दीर्घकालिक समाधान के लिए संस्थागत और कानूनी तंत्र

  • ठोस संक्रमणकालीन न्यायिक ढाँचे: शांति समझौतों में विस्तृत संक्रमणकालीन न्याय तंत्र शामिल होना चाहिए, जिसमें जवाबदेही, सच्चाई बताना, क्षतिपूर्ति, संस्थागत सुधार और स्मरणोत्सव को संबोधित करना शामिल होना चाहिए। ये ढाँचे संघर्ष-प्रभावित समाजों, विशेष रूप से पीड़ितों, हाशिए पर रहने वाले समूहों और महिलाओं की जरूरतों के प्रति उत्तरदायी होने चाहिए।
  • राजनीतिक प्रणालियों में एकीकरण: जबरन भर्ती में शामिल लोगों सहित विद्रोही समूहों को शांति प्रक्रियाओं में मुख्यधारा में लाया जाना चाहिए, जिससे राजनीतिक दलों में उनके परिवर्तन की सुविधा मिल सके। यह एकीकरण दीर्घकालिक शांति और शांति समझौतों के प्रति प्रतिबद्धता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • युद्ध-काल की वैधता पर नीतिगत प्रतिबंध: एक विद्रोही समूह की कथित युद्ध-काल की वैधता पर अधिक जोर देने से बचना चाहिए। इसके बजाय, बातचीत के जरिये समाधानों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए जिसमें वैध राजनीतिक संस्थाओं में उनके परिवर्तन के प्रावधान शामिल हों, जिससे दीर्घकालिक शांति को बढ़ावा मिले।
  • गतिशील कार्यक्रम डिजाइन: नीति निर्माताओं को लक्ष्य समूह की बढ़ती समझ के अनुरूप लचीलेपन के साथ विघटन और पुनर्एकीकरण कार्यक्रमों को डिजाइन करना चाहिए। इसमें संदर्भ, स्थान और जनसंख्या से मेल खाने वाले तंत्र शामिल हैं।

निष्कर्ष:

विद्रोही समूहों के साथ शांति समझौते पर बातचीत और भारत में पूर्व आतंकवादियों के पुनर्वास, जैसा कि उल्फा समझौते से पता चलता है, एक बहुआयामी प्रक्रिया है जिसके लिए संदर्भ-विशिष्ट, लचीली और गहन प्रकार से सोची-समझी रणनीतियों की आवश्यकता होती है। संघर्ष के अंतर्निहित कारणों को संबोधित करना, मजबूत संक्रमणकालीन न्याय ढांचे को शामिल करना और पूर्व विद्रोहियों को राजनीतिक व्यवस्था में एकीकृत करना टिकाऊ शांति प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है। लंबी अवधि में उनकी प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए नीति निर्माताओं के लिए इन रणनीतियों के निरंतर मूल्यांकन और अनुकूलन में संलग्न होना अनिवार्य है।

 

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