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भारत में अनुसंधान एवं विकास हेतु निजी क्षेत्र का योगदान

Lokesh Pal September 06, 2024 05:30 121 0

संदर्भ :

बढ़ते सरकारी निवेश के बाद भी भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय अन्य देशों की तुलना में निम्न है। जैसा कि हाल ही में वित्त मंत्री ने कहा कि निजी क्षेत्र को अपने अनुसंधान एवं विकास व्यय को बढ़ाने की आवश्यकता है। अमेरिका जैसे विकसित देशों में, निजी क्षेत्र सरकारी योगदान की तुलना में इस क्षेत्र को वित्तपोषित करने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाता है, यह प्रवृत्ति भारत की वर्तमान स्थिति के विपरीत है।

अनुसंधान एवं विकास (आर. एंड डी.) 

  • अनुसंधान एवं विकास में नए उत्पादों और प्रौद्योगिकियों का आविष्कार तथा निर्माण करने की प्रक्रिया शामिल है। यह आवश्यकताओं या समस्याओं की पहचान करते हुए उनका समाधान करके नवाचार के इंजन के रूप में कार्य करता है।
  • उदाहरण के लिए, अगर लोग पाँच दिनों से ज़्यादा चलने वाली बैटरी वाला मोबाइल फ़ोन चाहते हैं, तो आरएंडडी टीमें इसे संभव बनाने के लिए नई सामग्रियों या प्रौद्योगिकियों की जाँच और विकास करेंगी।

भारत में वर्तमान अनुसंधान एवं विकास व्यय

  • तेजी से और अधिक प्रभावी प्रगति को बढ़ावा देने के लिए अधिक अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकता पर आम सहमति के बावजूद, भारत का अनुसंधान एवं विकास निवेश अन्य देशों की तुलना में कम है।
  • विश्व बैंक के आँकड़ों से पता चलता है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के हिस्से के रूप में भारत का अनुसंधान एवं विकास खर्च लगभग 0.65% है, जो ताइवान (3.6%), दक्षिण कोरिया (4.8%), चीन (2.4%) और ब्राजील (1.2%) की तुलना में काफी कम है।
  • आकांक्षाएं तथा वर्तमान स्थिति
    • उच्च प्रति व्यक्ति आय वाले देश आमतौर पर अनुसंधान एवं विकास में अधिक निवेश करते हैं। भारत की कम प्रति व्यक्ति आय को देखते हुए, इसका अनुसंधान एवं विकास व्यय इसकी आय स्तर के लिए वैश्विक औसत के अनुरूप है।
    • सरल शब्दों में, समान प्रति व्यक्ति आय वाले देशों की तुलना में, भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय तुलनीय है। हालाँकि, भारत की आकांक्षाएँ इसकी वर्तमान स्थिति से परे हैं।
    • इस प्रकार, समावेशी विकास के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण आर्थिक वृद्धि – संभावित रूप से अपने वर्तमान आकार से 20 से 30 गुना अधिक – प्राप्त करने के लक्ष्यों के साथ, अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है। वर्तमान स्थिति के बजाय भविष्य की आकांक्षाओं पर यह ध्यान नवाचार को बढ़ावा देने और दीर्घकालिक विकास का समर्थन करने के लिए अनुसंधान एवं विकास निवेश में वृद्धि की आवश्यकता को उजागर करता है।
  • सरकारी बनाम निजी क्षेत्र अनुसंधान एवं विकास व्यय
    • भारत सरकार ने अपने अनुसंधान एवं विकास व्यय में वृद्धि की है, जो अब देश में कुल अनुसंधान एवं विकास व्यय का 60% से अधिक है। हालाँकि यह वित्तपोषण मुख्य रूप से रक्षा, अंतरिक्ष, कृषि और परमाणु अनुसंधान पर केंद्रित है, जिसमें से महत्त्वपूर्ण हिस्सा शैक्षणिक संस्थानों को दिया जाता है। जिसमें निजी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कम है और निवेश बढ़ने के बजाय घट रहा है।
  •  निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास निवेश में गिरावट
    • भारत में कुल R&D व्यय में निजी क्षेत्र का योगदान 2012-13 में लगभग 45% से घटकर 2020-21 में 40% हो गया है।
    • यह गिरावट इस बात को लेकर चिंता पैदा करती है कि भारत की बाजार आधारित अर्थव्यवस्था होने के बाद भी भारतीय निजी क्षेत्र R&D में अधिक निवेश नहीं कर रहे हैं ।
    • निजी कंपनियाँ अक्सर अपने R&D प्रयासों को तत्काल बाजार की जरूरतों के आधार पर बनाती हैं, नवाचार पर काम करती हैं और ऐसे उत्पाद विकसित करती हैं जो मौजूदा मांगों के अनुरूप हों।

निजी क्षेत्र के कम निवेश हेतु उत्तरदायी कारक 

  • प्रोत्साहनों की कमी : विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के लिए R&D कर कटौती को अपर्याप्त माना जाता है। मौजूदा 100% R&D कर कटौती से MSME को उनके कम लाभ मार्जिन के कारण न्यूनतम लाभ मिलता है, जिसके परिणामस्वरूप R&D में निवेश करने के लिए बहुत कम प्रेरणा मिलती है।
  • बौद्धिक संपदा संरक्षण संबंधी मुद्दे : MSME को अपने नवाचारों की सुरक्षा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पेटेंट प्रक्रिया जटिल है और कानूनी विवाद लंबे समय तक चल सकते हैं, जिससे बड़ी कंपनियों के लिए MSME नवाचारों का लाभ उठाना आसान हो जाता है। यह MSME को R&D में निवेश करने से हतोत्साहित करता है।
  • प्रशासनिक बाधाएँ : कर प्रोत्साहन प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक कागजी कार्रवाई और प्रमाणन की आवश्यकता होती है, जो छोटी कंपनियों के लिए बोझिल हो सकता है। उच्च लेनदेन लागत और प्रशासनिक चुनौतियाँ अक्सर लाभों से अधिक होती हैं, जिससे R&D निवेश कम हो जाता है।
  • प्रतिस्पर्द्धा : कम R&D निवेश का एक महत्त्वपूर्ण कारण प्रतिस्पर्द्धी दबाव की कमी है। ऐसे माहौल में जहाँ घरेलू बाज़ार उच्च टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं द्वारा संरक्षित हैं, फर्मों को नवाचार करने के लिए बहुत कम प्रोत्साहन मिलता है| 
    • उदाहरण के लिए, यदि सरकार लैपटॉप पर 100% आयात शुल्क लगाती है, जिससे विदेशी लैपटॉप बहुत महंगे हो जाते हैं, तो घरेलू लैपटॉप कंपनियाँ विदेशों से प्रतिस्पर्द्धा का सामना किए बिना ही बाज़ार पर हावी हो जाएंगी। इस परिदृश्य में, घरेलू निर्माताओं के पास नवाचार करने के लिए प्रोत्साहन की कमी हो सकती है, क्योंकि उन्हें गारंटीकृत बाज़ार से लाभ होगा और उनके पास अपने उत्पादों को बेहतर बनाने का कोई दबाव नहीं होगा।
    • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के संपर्क में आने से कंपनियाँ प्रासंगिक और प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिए अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने के लिए प्रेरित होती हैं; ऐसे दबाव के बिना, वे पीछे छूट जाने और अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त खोने का जोखिम उठाती हैं।
  • आर्थिक संरचना और बाजार में उपस्थिति : भारतीय फर्म, विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र में अक्सर वैश्विक बाजारों में छोटे पैमाने पर काम करती हैं, जो व्यापक अनुसंधान एवं विकास की उनकी आवश्यकता को सीमित करता है। यहाँ तक ​​कि आईटी क्षेत्र में, जहाँ टीसीएस और इंफोसिस जैसी कंपनियों की वैश्विक उपस्थिति महत्त्वपूर्ण है, उत्पाद नवाचार के बजाय व्यावसायिक सेवाओं पर प्राथमिक ध्यान केंद्रित करने से इन-हाउस अनुसंधान एवं विकास के लाभ सीमित हो जाते हैं।

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र में निवेश केवल प्रति व्यक्ति आय से ही प्रभावित नहीं होता है, बल्कि आर्थिक संरचना और प्रतिस्पर्द्धा के संपर्क के संयोजन से भी प्रभावित होता है। वास्तव में इस क्षेत्र में सरकारी निवेश में वृद्धि हुई है और यह एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, फिर भी निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाने के लिए अधिक प्रतिस्पर्द्धी वातावरण बनाने एवं संरचनात्मक और सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता होगी। वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के संपर्क में वृद्धि और अधिक मजबूत प्रोत्साहन इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र के उच्च निवेश को बढ़ावा दे सकते हैं, जो अंततः भारत की दीर्घकालिक आर्थिक संवृद्धि तथा नवाचार में सहायक होगा।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न 

भारत का अनुसंधान एवं विकास पर व्यय दक्षिण कोरिया जैसे देशों की तुलना में काफी कम है। विशेष रूप से वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के संबंध में अनुसंधान एवं विकास पर कम व्यय के कारणों का विश्लेषण कीजिए ।

(10 अंक, 150 शब्द)

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