जनता का विश्वास बनाए रखना: कुछ मामलों की सुनवाई को प्राथमिकता देना और अन्य मामलों में देरी करना जनता के विश्वास को कम करता है। यदि न्यायपालिका केवल अमीर और संपन्न वर्गों के लिए काम करती है, तो यह वंचितों के प्रति पक्षपाती और अनुचित ठहराई जा सकती है।
न्यायिक नियुक्तियाँ: कॉलेजियम प्रणाली, जहाँ न्यायाधीश न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं, पारदर्शिता और संभावित पक्षपात के बारे में चिंताएँ पैदा करती है।
हितों का टकराव: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा कुछ मामलों में पक्ष लेना, मास्टर ऑफ़ द रोल से संबंधित मामलों का निर्णय लेना निष्पक्षता के बारे में सवाल उठाता है।
हालिया आरोप: न्यायमूर्ति रामास्वामी के खिलाफ भ्रष्टाचार के हालिया आरोप और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप न्यायपालिका के चरित्र पर सवाल उठाते हैं। भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच में बाहरी निकायों की भागीदारी पर न्यायपालिका का प्रतिबंध मामलों को और जटिल बनाता है।
न्यायिक सक्रियता: नागरिक शिकायतों को संबोधित करने में, अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर, न्यायपालिका द्वारा कार्यकारी और विधायी डोमेन पर अतिक्रमण करने की चिंताओं को जन्म दिया है।
जवाबदेही का अभाव: जवाबदेही के बिना, न्यायिक स्वतंत्रता का व्यक्तिगत लाभ के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है।
न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदम:
न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन: 1997 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनाया गया।
बंगलौर न्यायिक आचरण के सिद्धांत: 2002 में स्थापित किए गए थे।
न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक, 2010: इसके तहत वर्ष 2010 में एक राष्ट्रीय न्यायिक निरीक्षण समिति की स्थापना की गई।
न्यायालय की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित की गई।
मसौदा ज्ञापन प्रक्रिया, 2016: न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए मुख्य मानदंड के रूप में “योग्यता और ईमानदारी” को शामिल किया गया है।
एससी बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल मामला: आरटीआई अधिनियम के तहत भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक सार्वजनिक प्राधिकरण घोषित किया गया।
आगे की राह :
मीडिया जांच: मीडिया को अकादमिक रूप से निर्णयों का अध्ययन और टिप्पणी करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि न्यायाधीश सार्वजनिक और विद्वानों की निगरानी से अवगत हैं।
स्वतंत्र न्यायिक लोकपाल: न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों को संबोधित करने के लिए एक स्वतंत्र निकाय की स्थापना की जानी चाहिए।
व्यापक आचार संहिता: न्यायाधीशों के लिए एक विस्तृत आचार संहिता विकसित की जानी चाहिए।
द्वि-स्तरीय न्यायिक अनुशासन मॉडल:
प्रथम स्तर: जुर्माना या निलंबन।
दूसरा स्तर: निष्कासन।
विविधता के प्रति जागरूकता: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नियुक्त व्यक्ति देश की विविधता के प्रति संवेदनशील और जागरूक हों, तथा इस नियम को नियुक्ति प्रक्रिया में एक मानदंड बनाने में सहायक हों।
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