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प्लास्टिक के पहाड़ और हिमालयी राज्यों की समस्या

Lokesh Pal March 03, 2024 05:00 90 0

संदर्भ:

हाल ही में सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज़ (SDC) फाउंडेशन देहरादून द्वरा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट के अंतर्गत भारत के अधिकांश पर्वतीय राज्यों में प्लास्टिक कचरे से संबंधित चुनौती पर प्रकाश डाला गया है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: प्लास्टिक प्रदूषण, माइक्रोप्लास्टिक्स, एकल उपयोग प्लास्टिक, प्लास्टिक ओवरशूट दिवस इत्यादि के बारे में ।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: संरक्षण, पर्यावरण क्षरण और प्रदूषण के विषय में ।

माइक्रोप्लास्टिक से संबंधित मुद्दे:

  • सर्वव्यापी उपस्थिति: माइक्रोप्लास्टिक्स का निर्माण अनुचित तरीके से निपटान किए गए बड़े प्लास्टिक के टुकड़ों के क्षरण और विखंडन से होता है।
    • ये माइक्रोप्लास्टिक हिमालय के पहाड़ों, नदियों, झीलों और झरनों इत्यादि में पाए जाते हैं।
  • मृदा और जल प्रदूषण: अवैज्ञानिक तरीके से किए गए प्लास्टिक के निपटान से भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में मृदा और जल प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो रही है और इसका वहाँ की जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
    • हिमालयी राज्यों की पारिस्थितिकी तंत्र में शामिल होकर ये प्लास्टिक कण वहाँ के ताजे जल के स्रोतों को प्रदूषित कर रहे हैं।
      • ध्यातव्य है कि इन प्राकृतिक जल के स्रोतों पर निचले स्तर के समुदाय निर्भर रहते हैं।
    • माइक्रोप्लास्टिक लंबे समय तक भारतीय हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों में उपस्थित रह सकता है और बर्फ पिघलने के साथ-साथ यह वहाँ की नदियों में मिल जाता है जिसकी वजह से जल प्रदूषित हो जाता है।

  • भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए नियामक ढाँचा: ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम (SWM) 2016, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (PWM) नियम, 2016 और विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (EPR), 2022 (देश स्तर पर)।
  • उत्पादन और प्रबंधन में अंतर: भारत दुनिया में (केन्या, नाइजीरिया और मोज़ाम्बिक के बाद) 98.55% के साथ प्लास्टिक प्रबंधन के मामले में सबसे अधिक कुप्रबंधित अपशिष्ट सूचकांक (MWI) वाले राज्यों में से एक है ।
    • यह अपशिष्ट प्रबंधन की क्षमता और प्लास्टिक की खपत में अंतर को स्पष्ट करता है।

हिमालय क्षेत्र में प्लास्टिक अपशिष्ट संकट का कारण:

  • अनियोजित शहरीकरण: बदलते उत्पादन और उपभोग पैटर्न भारतीय हिमालयी क्षेत्र में प्लास्टिक अपशिष्ट संकट के लिए महत्त्वपूर्ण जिम्मेवार कारकों में से एक हैं।
  • अस्थिर पर्यटन: अपशिष्ट डंपिंग और उसके पुनर्चक्रण का मुद्दा।
  • खाद्य श्रृंखला प्रभावित: असम के दीपोर बील (Deepor Beel) के रामसर स्थल लैंडफिल में प्लास्टिक कचरे के निष्तारण की समस्या देखि जा सकती है।
  • प्लास्टिक ओवरशूट दिवस: इसे वर्ष में एक दिन के लिए मनाया जाता है, यह प्लास्टिक कचरे की मात्रा और उसे प्रबंधित करने के लिए अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों की क्षमता में अंतर को निरुपित करता है।
    • 2023 में, भारत 6 जनवरी को अपने प्लास्टिक ओवरशूट दिवस के करीब पहुँच गया था।
  • पहाड़ी क्षेत्रों की विशेष जरूरतों को ध्यान में नहीं रखा गया: स्थानीय निकायों एवं उत्पादकों तथा आयातकों और ब्रांड मालिकों (PIBO) दोनों के लिए जनादेश बनाते समय इन हिमालयी क्षेत्र की विशेष जरूरतों को ध्यान में नहीं रखा गया, इसके अलावा पीडब्लूएम और ईपीआर ने पहाड़ियों की विशेष जरूरतों को भी मान्यता नहीं दी है।
  • स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण: लैंडफिल में मिश्रित अपशिष्ट की उपस्थिति होती है।
    • मिश्रित कचरे से निकलने वाला लीचेट मिट्टी भूजल प्रदूषण का कारण बनता है जबकि ऐसे मिश्रित कचरे से निकलने वाला धुआं वायु प्रदूषण का कारण बनता है।
  • कम पुनर्चक्रण दर: भारत अपने प्लास्टिक कचरे का केवल 12% (यांत्रिक पुनर्चक्रण के माध्यम से) पुनर्चक्रण कर रहा है।
  • कमजोर स्थानीय निकाय: स्थानीय निकाय देश में अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली की धुरी हैं, किन्तु उनकी सहभागिता अपर्याप्त है।
    • जब भारतीय हिमालयी क्षेत्र (पूर्वोत्तर के कई राज्यों में प्रचलित) की बात आती है तो पारंपरिक संस्थानों को स्थानीय निकायों की परिभाषा में शामिल करने की आवश्यकता है।

हिमालयी राज्यों द्वारा पहल:

  • हिमाचल प्रदेश: हिमाचल प्रदेश में 2019 से गैर-पुनर्चक्रण योग्य और एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक कचरे के लिए बाय बैक नीति है, लेकिन अभी भी बड़े पैमाने पर प्लास्टिक कचरे का निष्तारण नहीं किया जा सका है।
  • सिक्किम: जनवरी 2022 से पैकेज्ड मिनरल वाटर के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और इसमें काफी मजबूत नियामक प्रणाली तैयार की गई है, लेकिन प्लास्टिक कचरे को संभालने के लिए उचित बुनियादी ढाँचे के अभाव में, राज्य अभी भी इस मुद्दे से जूझ रहा है।
  • त्रिपुरा: ने एकल उपयोग प्लास्टिक को खत्म करने के लिए नीति में बदलाव किए हैं, नगरपालिका उपनियम बनाए हैं और राज्य स्तरीय टास्क फोर्स का गठन किया है, हालाँकि परिणाम अभी उतने प्रभावकारी नहीं रहे हैं।

आगे की राह :

  • संसाधन आवंटन: इस उद्देश्य के लिए परोपकारी योगदान और कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी निधि के चैनलाइजेशन की सुविधा के लिए स्थापित स्वच्छ भारत कोष ट्रस्ट का उपयोग संसाधनों को बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है।
  • डेटा अंतराल को समाप्त करना: भारतीय हिमालयी क्षेत्र के राज्यों में उत्पन्न होने वाले कचरे की मात्रा और गुणवत्ता के संदर्भ में डेटा अंतराल को दूर किया जाना चाहिए।
  • मौजूदा योजनाओं में अभिसरण: कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (अमृत) और स्मार्ट सिटी योजना, जिसके तहत भारतीय हिमालयी क्षेत्र के कई शहरों का चयन किया गया है, वैज्ञानिक अपशिष्ट प्रबंधन और भारत में शहर बनाने के मुद्दे पर भी अभिसरण में काम कर सकते हैं जिससे हिमालय क्षेत्र को प्लास्टिक से मुक्त किया जा सकता है।

News Source: The Hindu

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