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भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी के 25 वर्ष

Lokesh Pal October 08, 2025 02:40 9 0

संदर्भ

हाल ही में भारत और रूस ने अपनी सामरिक साझेदारी की 25वीं वर्षगाँठ मनाई।

भारत-रूस सामरिक साझेदारी की उत्पत्ति एवं विकास

  • ऐतिहासिक उपलब्धि (2000): 3 अक्टूबर, 2000 को, भारत और रूस ने भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी पर घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए, जो पारंपरिक मैत्री से शीत युद्धोत्तर व्यापक रणनीतिक संबंध की ओर एक ऐतिहासिक परिवर्तन का प्रतीक था।
  • रणनीतिक उन्नयन (2010): वर्ष 2010 में, इस साझेदारी को ‘विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ के रूप में उन्नत किया गया, जो दोनों देशों के पारंपरिक क्षेत्रों से परे सहयोग का विस्तार करने के उद्देश्य को दर्शाता है।
  • निरंतरता और लचीलापन (2025): वर्ष 2025 में इस साझेदारी के 25 वर्ष पूरे होने पर, यह रणनीतिक सहनशक्ति और अनुकूलनशीलता के एक आदर्श के रूप में स्थापित होगी।

संस्थागत ढाँचा और रणनीतिक संवाद तंत्र

  • अंतर-सरकारी आयोग: भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग (India–Russia Intergovernmental Commission- IRIGC) संबंधों की परिचालन आधारभूत रूप में कार्य करता है, जो दो प्रमुख कार्यक्षेत्रों के माध्यम से कार्य करता है:-
    • व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग (IRIGC–TEC): भारत के विदेश मंत्री और रूस के प्रथम उप-प्रधानमंत्री की सह-अध्यक्षता में, यह व्यापार, प्रौद्योगिकी और नवाचार-संचालित सहयोग का प्रबंधन करता है।
    • सैन्य और सैन्य-तकनीकी सहयोग पर अंतर-सरकारी आयोग (IRIGC–M&MTC): दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों की सह-अध्यक्षता में, यह रक्षा उत्पादन, आधुनिकीकरण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में सहयोग को आगे बढ़ाता है।
  • वार्षिक शिखर सम्मेलन-शीर्षस्तरीय वार्ता: वार्षिक शिखर सम्मेलन राजनीतिक दिशा और रणनीतिक मार्गदर्शन के लिए सर्वोच्च-स्तरीय तंत्र बना हुआ है।
    • अब तक 22 शिखर सम्मेलन आयोजित किए जा चुके हैं, और वर्ष 2024 के मास्को शिखर सम्मेलन में ’भारत-रूस: स्थायी और विस्तारित साझेदारी’ संयुक्त वक्तव्य को दोहराया गया है।
  • 2+2 मंत्रिस्तरीय संवाद: वर्ष 2021 में शुरू किया गया 2+2 प्रारूप दोनों पक्षों के विदेश और रक्षा मंत्रियों को रणनीतिक प्राथमिकताओं में समन्वय स्थापित करने तथा साझेदारी के कूटनीतिक एवं सुरक्षा आयामों को जोड़ने में सक्षम बनाता है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा और संसदीय संबंध: नियमित राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) संवाद, मंत्रिस्तरीय दौरे और अंतर-संसदीय आयोग कई स्तरों पर समन्वय बनाए रखते हैं। 

सहयोग के स्तंभ

  • रक्षा और सामरिक सुरक्षा: रक्षा भारत-रूस विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्त सामरिक साझेदारी की आधारशिला बनी हुई है।
    • भारत के आयात का सबसे बड़ा हिस्सा रूस (36%) से आया; हालाँकि, यह वर्ष 2015-19 (55 प्रतिशत) और वर्ष 2010-14 (72 प्रतिशत) की तुलना में अत्यधिक कम था।
    • प्रमुख पहलों में शामिल हैं:-
      • भारत में S-400 ट्रायंफ मिसाइल प्रणाली, T-90 टैंक, Su-30MKI विमान और MiG-29 लड़ाकू विमानों के साथ-साथ AK-203 असॉल्ट राइफल का उत्पादन।
      • ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना, भारत-रूस तकनीकी सामंजस्य का प्रतीक है, जिसको मित्र देशों को निर्यात करने की योजना है।
      • INDRA जैसे नियमित संयुक्त सैन्य अभ्यास, और रक्षा आधुनिकीकरण, साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष-आधारित सुरक्षा प्रणालियों में सहयोग।
  • ऊर्जा सहयोग – रणनीतिक जीवनरेखा: ऊर्जा, सहयोग का दूसरा स्तंभ है, जिसमें रूस कच्चे तेल, कोयला और परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है।
    • कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना (तमिलनाडु): भारत का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा सहयोग- असैन्य परमाणु साझेदारी का प्रतीक है।
    • रूसी तेल और गैस क्षेत्रों में भारत के निवेश और रियायती कच्चे तेल के आयात ने इसकी ऊर्जा सुरक्षा और विविधीकरण को बढ़ाया है।
    • दोनों पक्ष भारत के ऊर्जा परिवर्तन लक्ष्यों के अनुरूप, तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG), आर्कटिक ऊर्जा अन्वेषण और नवीकरणीय क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार कर रहे हैं।
    • भारत अपनी कुल कच्चे तेल की खपत का 35-40% रूस से आयात करता है।
  • व्यापार और आर्थिक साझेदारी: दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ा है, जिससे रूस भारत के शीर्ष पाँच व्यापारिक साझेदारों में से एक बन गया है।
    • तेल आयात और उर्वरक व्यापार के बल पर, वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार रिकॉर्ड 65.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचना है।
    • भारत के प्रमुख निर्यातों में दवाइयाँ, इंजीनियरिंग उत्पाद और रसायन शामिल हैं, जबकि आयात में ऊर्जा, उर्वरक और कीमती धातुओं का प्रभुत्व है।
    • दोनों देश व्यापार विस्तार को संस्थागत बनाने के लिए भारत और यूरेशियन आर्थिक संघ (EAEU) के बीच एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर कार्य कर रहे हैं।
    • अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (International North–South Transport Corridor – INSTC) और चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारे जैसे नए व्यापार मार्गों का उद्देश्य रसद संपर्क को बढ़ाना और पारगमन लागत को कम करना है।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार संबंध: सहयोग के उभरते क्षेत्रों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), क्वांटम कंप्यूटिंग, जहाज निर्माण और रेलवे आधुनिकीकरण शामिल हैं।
    • अटल नवाचार मिशन और रूस के सीरियस एजुकेशनल फाउंडेशन (Sirius Educational Foundation) के अंतर्गत पहल युवाओं के बीच संयुक्त अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देती है।

बहुपक्षीय अभिसरण

  • भारत और रूस संयुक्त राष्ट्र (UN), G20, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और ब्रिक्स जैसे वैश्विक और क्षेत्रीय मंचों पर घनिष्ठ समन्वय बनाए रखते हैं। रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता के लिए भारत के दावे का समर्थन करता रहेगा।
  • दोनों देश एक बहुध्रुवीय, नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था को बनाए रखते हैं, आतंकवाद-निरोध, अफगानिस्तान की स्थिरता, समुद्री सुरक्षा और ग्लोबल साउथ की विकास प्राथमिकताओं पर सहयोग पर बल देते हैं। ब्रिक्स और SCO के अंतर्गत उनका समन्वय, वैश्विक शासन में सुधार के लिए सामूहिक समर्थन को मजबूत करता है।

25 वर्षों में उपलब्धियाँ

  • प्रतिबंधों के तहत व्यापार अनुकूलन: वैश्विक प्रतिबंधों और आपूर्ति बाधाओं के बावजूद, भारत-रूस व्यापार लगातार बढ़ा है, जो उनकी आर्थिक साझेदारी के अनुकूलन को दर्शाता है।
    • उदाहरण: रुपये में भुगतान और रुपये के अधिशेष को प्रबंधित करने की व्यवस्था के साथ, वित्तीय प्रतिबंधों के बावजूद निरंतरता सुनिश्चित करते हुए, द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2023 में लगभग दोगुना होकर 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
  • रक्षा आधुनिकीकरण और स्वदेशीकरण: रणनीतिक रक्षा सहयोग आयात से संयुक्त उत्पादन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की ओर स्थानांतरित हो गया है, जिससे भारत के आत्मनिर्भर भारत लक्ष्यों को बल मिला है।
    • उदाहरण: भारत ने आर्मर्ड व्हीकल निगम लिमिटेड को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ उन्नत T-72 टैंक इंजनों के लिए रूस के साथ 248 मिलियन अमेरिकी डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए; ब्रह्मोस और S-400 मिसाइल प्रणालियों पर प्रगति जारी है।
  • ऊर्जा सुरक्षा सहयोग: रूस एक महत्त्वपूर्ण ऊर्जा भागीदार बना हुआ है, जो वैश्विक अस्थिरता के बीच भारत को सस्ती तेल आपूर्ति और ऊर्जा विविधीकरण सुनिश्चित करने में मदद कर रहा है।
    • उदाहरण: वर्ष 2022 से रूस से भारत का कच्चा तेल आयात 15 गुना से अधिक बढ़ गया है, जिससे वर्ष 2024 तक रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन जाएगा।
  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष सहयोग: यह साझेदारी उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में भी विस्तारित हुई है, जिससे अनुसंधान और नवाचार संबंधों को मजबूती मिली है।
    • उदाहरण: अंतरिक्ष डेटा प्रणालियों पर एक भारत-रूस ‘मिरर लैबोरेटरी’ की स्थापना और भारत के गगनयान मिशन के लिए सोकोल सूट एवं अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण हेतु रूसी सहायता।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध: शैक्षिक आदान-प्रदान, पर्यटन और सांस्कृतिक संबंधों ने लोगों के बीच संबंधों को मजबूत किया है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ है कि ये संबंध व्यापक बने रहें।
    • उदाहरण: ई-वीजा सुविधाओं का विस्तार, छात्र आदान-प्रदान और भारत में रूसी संस्कृति दिवस और रूस में नमस्ते इंडिया जैसे सांस्कृतिक उत्सव।

प्रमुख चुनौतियाँ

  • प्रतिबंध और भुगतान प्रतिबंध: पश्चिमी प्रतिबंधों ने वित्तीय समझौतों को जटिल बना दिया है, जिससे व्यापार और निवेश का सुचारू प्रवाह सीमित हो गया है।
    • उदाहरण: भारतीय बैंकों को रुपया-रूबल लेन-देन संसाधित करने में सावधानी बरतनी पड़ रही है, जिससे सरकारी सुविधा उपायों के बावजूद व्यापार धीमा हो रहा है।
  • व्यापार असंतुलन: भारत का तेल, कोयला और उर्वरकों का आयात उसके निर्यात से कहीं अधिक है, जिससे व्यापार घाटा और निर्भरता बढ़ रही है।
    • उदाहरण: वित्त वर्ष 2024 में, आयात निर्यात से 50 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया, जिससे फार्मास्यूटिकल्स, मशीनरी और IT सेवाओं में निर्यात विविधीकरण की आवश्यकता पर बल मिलता है।
  • रक्षा आपूर्ति में देरी: प्रतिबंधों और आपूर्ति शृंखला संबंधी समस्याओं के कारण प्रमुख रक्षा परियोजनाओं में देरी हुई है, जिससे समय सीमा प्रभावित हुई है।
    • उदाहरण: S-400 वायु रक्षा प्रणाली की आपूर्ति में देरी हो रही है और अब अंतिम खेप वर्ष 2024 के स्थान पर वर्ष 2026-2027 तक आने की उम्मीद है।
  • चीन कारक: रूस की चीन के साथ बढ़ती निकटता के लिए भारत को आपसी विश्वास बनाए रखते हुए सामरिक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।
    • उदाहरण: जापान सागर में संयुक्त रूस-चीन सैन्य अभ्यास और आर्कटिक सहयोग रूस की समानांतर रणनीतिक प्राथमिकताओं को उजागर करते हैं।
  • प्रौद्योगिकी और दोहरे उपयोग वाले निर्यात की जाँच: रूस को प्रतिबंधित तकनीक के आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की बढ़ती भूमिका पश्चिमी देशों की जाँच का विषय रही है।
    • उदाहरण: कथित तौर पर रूस से जुड़े शिपमेंट के लिए बंगलूरू स्थित एक तकनीकी कंपनी पर जापानी प्रतिबंध बढ़ते अनुपालन दबाव को दर्शाते हैं।
  • लॉजिस्टिक अंतराल: अकुशल परिवहन मार्ग और सीमित वित्तीय अवसंरचना इष्टतम व्यापार विस्तार में बाधा डालते हैं।
    • उदाहरण: अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) और चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारा (CVMC) का धीमा संचालन कनेक्टिविटी लाभ को प्रभावित करता है।

भारत-रूस संबंधों का ऐतिहासिक विकास

  • प्रारंभिक राजनयिक शुरुआत: भारत और सोवियत संघ ने वर्ष 1947 में राजनयिक संबंध स्थापित किए, जिससे विश्वास और पारस्परिक सम्मान पर आधारित एक दीर्घकालिक साझेदारी की नींव रखी गई।
  • औद्योगीकरण के लिए सोवियत समर्थन: 1950-60 के दशक में, सोवियत संघ ने भिलाई इस्पात संयंत्र, बोकारो और रांची के भारी मशीन निर्माण संयंत्र जैसी परियोजनाओं के माध्यम से भारत के औद्योगिक आधार के निर्माण में सहायता की।
  • वर्ष 1971 का सामरिक सहयोग: भारत-सोवियत शांति, मैत्री और सहयोग संधि (1971) ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान भारत को महत्त्वपूर्ण राजनयिक और सैन्य समर्थन प्रदान किया।
  • सोवियत संघ के बाद की पुनर्परिभाषा: वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, नई वैश्विक वास्तविकताओं के अनुरूप लोकतांत्रिक और बाजार सिद्धांतों के आधार पर संबंधों का पुनर्गठन किया गया।
  • संस्थागत साझेदारी: वर्ष 2000 में, इस संबंध को रणनीतिक साझेदारी में उन्नत किया गया और वर्ष 2010 में इसे विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी में परिवर्तित किया गया, जो वैश्विक स्तर पर भारत के ऐसे कुछ संबंधों में से एक है।

आगे की राह

  • मुक्त व्यापार समझौते का समापन और व्यापार विविधीकरण: भारत-यूरेशियन आर्थिक संघ (EAEU) मुक्त व्यापार समझौते, जिसमें रूस सबसे बड़ा सदस्य और प्राथमिक भागीदार है, के शीघ्र पूरा होने से भारत-रूस व्यापार की मात्रा बढ़ाने, शुल्क कम करने और व्यापार असंतुलन को दूर करने में मदद मिलेगी।
    • उदाहरण: एक बार अंतिम रूप दिए जाने के बाद, मुक्त व्यापार समझौते से वर्ष 2030 तक रूस और अन्य EAEU सदस्यों के साथ द्विपक्षीय व्यापार 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो जाने की उम्मीद है, जिससे भारतीय फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र और इंजीनियरिंग वस्तुओं के लिए बाजार पहुँच बढ़ेगी।
  • संयुक्त अनुसंधान एवं विकास और सह-विनिर्माण विस्तार: AI, हरित हाइड्रोजन, सेमीकंडक्टर और एयरोस्पेस जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में सहयोग को मजबूत करने से औद्योगिक संबंधों का आधुनिकीकरण होगा।
    • उदाहरण: स्कोल्कोवो इनोवेशन सेंटर के तहत प्रस्तावित भारत-रूस प्रौद्योगिकी नवाचार कोष और सहयोग का उद्देश्य संयुक्त अनुसंधान और औद्योगिक नवाचार में तेजी लाना है।
  • वित्तीय अवसंरचना और निपटान: रुपया-रूबल व्यापार तंत्र, डिजिटल भुगतान प्रणाली और बैंकिंग संपर्क को बेहतर बनाने से वित्तीय लेन-देन सुगम होंगे।
    • उदाहरण: भारत की एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) का विस्तार करने और इसे रूस की MIR प्रणाली के साथ एकीकृत करने की योजना से लेन-देन लागत और मुद्रा जोखिम कम होगा।
  • संपर्क गलियारे और रसद: प्रमुख गलियारों के संचालन से आपूर्ति शृंखलाएँ मजबूत होंगी और दक्षिण एशिया, मध्य एशिया एवं यूरोप के बीच रणनीतिक संपर्क बढ़ेगा।
    • उदाहरण: अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) और चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारे (CVMC) से माल ढुलाई लागत में लगभग 30% की कमी आ सकती है और डिलीवरी की समय-सीमा में सुधार हो सकता है।
  • सुदूर पूर्व और आर्कटिक जुड़ाव: रूसी सुदूर पूर्व और आर्कटिक में सहयोग को गहरा करने से संसाधनों तक पहुँच और आर्थिक साझेदारी के नए रास्ते खुलेंगे।
    • उदाहरण: पूर्वी आर्थिक मंच (2024) में भारत की भागीदारी और सुदूर पूर्व में भारतीय कार्यबल गलियारे की स्थापना, बढ़ती हुई भागीदारी को दर्शाती है।
  • जन-केंद्रित और शैक्षिक कूटनीति: छात्र आदान-प्रदान, व्यावसायिक प्रशिक्षण और सांस्कृतिक सहयोग का विस्तार द्विपक्षीय संबंधों के सामाजिक आयाम को बनाए रखेगा।
    • उदाहरण: रूस में एक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) परिसर स्थापित करने और शैक्षणिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों को पुनर्जीवित करने की योजनाएँ जन-प्रथम दृष्टिकोण को रेखांकित करती हैं।
  • संतुलित रणनीतिक स्वायत्तता: भारत को रूस के साथ मजबूत संबंध बनाए रखते हुए और पश्चिमी तथा हिंद-प्रशांत भागीदारों के साथ संबंधों को संतुलित करते हुए स्वतंत्र विदेश नीति का पालन जारी रखना चाहिए।
    • उदाहरण: रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत का रुख, जहाँ उसने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए संवाद और कूटनीति का आह्वान किया, इस संतुलित स्वायत्तता को दर्शाता है।

निष्कर्ष

भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी की 25वीं वर्षगाँठ विश्वास और दूरदर्शी सहयोग की विरासत को रेखांकित करती है। भारत की संप्रभुता और आत्मनिर्भरता के संवैधानिक मूल्यों को अक्षुण्ण रखते हुए, यह रणनीतिक स्वायत्तता, ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक स्थिरता को सुदृढ़ करती है।

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