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भारत में ‘प्रेसिशन मेडिसिन’ को बढ़ावा देने के लिए बायोबैंक कानून

Lokesh Pal October 16, 2024 03:18 50 0

संदर्भ 

प्रेसिशन मेडिसिन’ (Precision Medicine) व्यक्तिगत स्वास्थ्य सेवा के एक नए युग की शुरुआत कर रही है। इस क्षेत्र ने तब प्रभावी आकार लेना शुरू किया, जब वैज्ञानिक ‘ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट’ (Human Genome Project) को पूरा कर रहे थे। तब से, जीनोमिक्स ने विभिन्न कैंसर, पुरानी बीमारियों और प्रतिरक्षा, हृदय तथा यकृत रोगों के निदान एवं उपचार में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। यह लेख ‘प्रेसिशन मेडिसिन’ (Precision Medicine) के संदर्भ में बायोबैंक और इसके विकास पर प्रकाश डालता है।

संबंधित तथ्य

  • प्रेसिशन मेडिसिन जीनोमिक्स, जीन-एडिटिंग और mRNA चिकित्सा विज्ञान जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों पर निर्भर करते हुए, व्यक्तिगत स्वास्थ्य सेवा में परिवर्तन ला रही है।

भारत में ‘प्रेसिशन मेडिसिन’ का विकास एवं स्थिति

  • परिचय: ‘प्रेसिशन मेडिसिन’ व्यक्तिगत स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान केंद्रित करती है और ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट के बाद से इसमें तेजी से वृद्धि हुई है।
  • भारत में प्रेसिशन मेडिसिन का विकास
    • भारत में ‘प्रेसिशन मेडिसिन’ बाजार 16% CAGR की दर से बढ़ने और वर्ष 2030 तक 5 बिलियन डॉलर को पार करने की उम्मीद है।
    • यह कैंसर उपचार, जीन संपादन और जीव विज्ञान में प्रगति के साथ भारत की जैव अर्थव्यवस्था में 36% योगदान देता है।
  • प्रेसिशन मेडिसिन में प्रमुख विकास
    • नेक्सकार19 (NexCAR 19): भारत की पहली घरेलू रूप से विकसित CAR-T सेल थेरेपी को वर्ष 2023 में मंजूरी दी गई।
      • CAR-T कोशिका थेरेपी का उपयोग कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है।
    • AI सहयोग: सीमेंस हेल्थिनियर्स और भारतीय विज्ञान संस्थान के बीच की साझेदारियाँ कैंसर के उपचार के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग और ‘प्रेसिशन मेडिसिन’ को आगे बढ़ाने पर केंद्रित हैं।

बायोबैंक (Biobanks) के बारे में

  • बायोबैंक एक भंडार है, जो अनुसंधान प्रयोजनों के लिए जैविक नमूनों, जैसे रक्त, DNA, कोशिकाओं, ऊतकों और अंगों को संगृहीत करता है।
  • ये रोगों के अध्ययन और लक्षित उपचार विकसित करने के लिए बहुमूल्य जानकारी प्रदान करके ‘प्रेसिशन मेडिसिन’ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

बायोबैंक का महत्त्व

  • बड़े पैमाने पर अनुसंधान: बायोबैंक शोधकर्ताओं को नमूनों के विशाल संग्रह तक पहुँच प्रदान करते हैं, जिससे वे बड़े पैमाने पर अध्ययन करने में सक्षम होते हैं, जो छोटे नमूना आकारों के साथ मुश्किल या असंभव होगा। 
  • जीनोमिक्स और व्यक्तिगत चिकित्सा: बायोबैंक जीनोमिक्स अनुसंधान के लिए आवश्यक हैं, जिसका उद्देश्य रोगों के आनुवंशिक आधार को समझना है।
    • इस ज्ञान से व्यक्तिगत रोगियों की आनुवंशिक संरचना के अनुरूप वैयक्तिकृत उपचारों का विकास किया जा सकता है।
  • डिजीज बायोमार्कर (Disease Biomarkers): लोगों के बड़े समूहों के नमूनों का विश्लेषण करके, शोधकर्ता विशिष्ट रोगों से जुड़ी आनुवंशिक विविधताओं की पहचान कर सकते हैं।
    • ये विविधताएँ शीघ्र निदान और लक्षित उपचार के लिए बायोमार्कर के रूप में कार्य कर सकती हैं।

  • जीनोम इंडिया (Genome India)
    • यह एक राष्ट्रीय परियोजना है, जिसे जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्तपोषित किया गया है।
      • इसे वर्ष 2020 में लॉन्च किया गया था।
    • उद्देश्य: इसका लक्ष्य पूरे भारत में स्वस्थ व्यक्तियों से 10,000 जीनोम अनुक्रमित करना है।
  • फेनोम इंडिया (Phenome India)
    • यह वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की पहल है।
    • लॉन्च तिथि: वर्ष 2023 (दिसंबर)।
    • उद्देश्य: इस परियोजना का उद्देश्य यकृत रोग और हृदय संबंधी स्थितियों जैसी बीमारियों के लिए भारत-विशिष्ट जोखिम पूर्वानुमान मॉडल विकसित करना है।
  • बाल चिकित्सा दुर्लभ आनुवंशिक विकार (Pediatric Rare Genetic Disorders-PRaGeD) मिशन
    • यह एक अखिल भारतीय पहल है।
    • वित्तपोषित: जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT), विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (भारत सरकार)।
    • उद्देश्य: बाल चिकित्सा दुर्लभ आनुवंशिक रोगों का अध्ययन करने के लिए सुविधा तंत्र विकसित करना।

भारत में बायोबैंक विनियमन

  • भारत में वर्तमान में 19 बायोबैंक हैं और जीनोम इंडिया तथा फेनोम इंडिया जैसी पहलों का उद्देश्य रोग की भविष्यवाणी और उपचार में सुधार करना है।
  • विनियामक चुनौतियाँ
    • हालाँकि, भारत में व्यापक बायोबैंक विनियमन का अभाव है, जिसके कारण निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं:-
      • सूचित सहमति: प्रतिभागियों को यह निश्चित नहीं होता कि उनके डेटा का उपयोग कैसे किया जाएगा।
      • गोपनीयता जोखिम: आनुवंशिक डेटा भेदभाव का कारण बन सकता है।
      • नियामक अंतराल: बायोबैंक को विनियमित करने के लिए कोई एकल प्राधिकरण नहीं है और कदाचार की संभावना बनी रहती है।
    • नैतिक चिंताएँ: आनुवंशिक जानकारी के आधार पर शोषण, सामाजिक कलंक और भेदभाव जैसे मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है।
    • नमूने की गुणवत्ता और अखंडता: जैविक नमूनों की गुणवत्ता और अखंडता का रखरखाव समय के साथ आवश्यक है।
      • इसे क्षरण और संदूषण से बचाने के लिए आवश्यक प्रोटोकॉल और इष्टतम भंडारण स्थितियों की आवश्यकता होती है।
  • भारत में बायोबैंक को नियंत्रित करने वाला कानूनी ढाँचा
    • व्यापक कानून का अभाव
      • भारत में बायोबैंक के लिए कोई विशेष कानून नहीं है।
      • मौजूदा दिशा-निर्देश लागू करने योग्य नहीं हैं, जिससे विनियामक अंतराल उत्पन्न हो रहे हैं।
    • ICMR द्वारा राष्ट्रीय नैतिक दिशा-निर्देश (National Ethical Guidelines)
      • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने मानव से संबंधित जैव-चिकित्सा अनुसंधान के लिए नैतिक दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
        • ये दिशा-निर्देश कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं और बायोबैंक के लिए दीर्घकालिक भंडारण या डेटा साझाकरण को पूरी तरह से संबोधित नहीं करते हैं।
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) मानक
      • जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने डेटा भंडारण और विश्लेषण के लिए अभ्यास निर्धारित किए हैं।
        • हालाँकि, ये लागू करने योग्य नहीं हैं और सूचित सहमति तथा गोपनीयता जैसे मुद्दों को पर्याप्त रूप से कवर नहीं करते हैं।
    • एकल विनियामक प्राधिकरण का अभाव
      • भारत में बायोबैंक के लिए समर्पित नियामक प्राधिकरण का अभाव है।
        • इसके परिणामस्वरूप बायोबैंकिंग गतिविधियों में असंगतताएँ और सीमित निगरानी होती है।

वैश्विक मानक और भारत की आगे की राह

  • संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और जापान जैसे देशों में डेटा सुरक्षा, सहमति और गोपनीयता को कवर करने वाले कड़े बायोबैंक कानून हैं।
  • प्रतिभागियों के अधिकारों की रक्षा और नैतिक शोध प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिए भारत को भी इसी तरह के कानूनों की आवश्यकता है।

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