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राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता समझौता

Lokesh Pal November 28, 2024 05:34 5 0

संदर्भ

भारत द्वारा हाल ही में राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (Biodiversity Beyond National Jurisdiction- BBNJ) समझौते पर हस्ताक्षर  किए गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS)

  • संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) वर्ष 1982 में अपनाई गई एक अंतरराष्ट्रीय संधि है और वर्ष 1994 में लागू हुई।
  • हस्ताक्षरकर्ता: 168 से अधिक देशों ने UNCLOS की पुष्टि की है।
  • उद्देश्य: नौवहन, मछली पालन, खनिज संसाधनों और पर्यावरण संरक्षण सहित सभी समुद्री गतिविधियों के लिए एक व्यापक कानूनी ढाँचा स्थापित करना।

उद्देश्य

  • महासागरों और उनके संसाधनों के उपयोग और संरक्षण के लिए एक कानूनी ढाँचा स्थापित करना
  • समुद्रों और महासागरों के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना
  • समुद्री पर्यावरण की रक्षा करना।

प्रमुख पहल

  • समुद्री क्षेत्र प्रभाग
    • प्रादेशिक समुद्री सीमा (Territorial Sea): आधार रेखा से समुद्र में 12 समुद्री मील तक प्रादेशिक समुद्री सीमा है।
    • अविच्छिन्न मंडल या संलग्न क्षेत्र (Contiguous Zone):  आधार रेखा से समुद्र में 24 समुद्री मील तक अविच्छिन्न मंडल सीमा है। जो राज्यों को सीमा शुल्क, राजकोषीय, आव्रजन और स्वच्छता संबंधी कानूनों को लागू करने का अधिकार देता है।
    • अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ): आधार रेखा से 200 समुद्री मील तक फैला हुआ है, जो राज्यों को मछली, तेल और गैस सहित संसाधनों पर संप्रभु अधिकार देता है।
    • महाद्वीपीय शेल्फ (Continental Shelf): प्रादेशिक समुद्र से परे समुद्र तल और उप-भूमि को शामिल करता है, जो भू-वैज्ञानिक कारकों के आधार पर 200 समुद्री मील या उससे आगे तक फैला हुआ है।
    • उच्च सागर (हाई सी): महासागर के वे क्षेत्र, जो किसी भी राज्य के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते, तथा जो नौवहन, मछली पकड़ने और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्वतंत्रता के सिद्धांतों द्वारा शासित होते हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (International Seabed Authority): अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल क्षेत्र में खनन गतिविधियों को विनियमित करने के लिए जिम्मेदार एक अंतरराष्ट्रीय संगठन।
  • समुद्री संस्तर में खनन (Seabed Mining): अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल क्षेत्र में खनिज संसाधनों की खोज और दोहन को नियंत्रित करता है।
  • समुद्री प्रदूषण (Marine Pollution): समुद्री प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के लिए मानक निर्धारित करता है।
  • समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान (Marine Scientific Research): समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है।

UNCLOS में भारत की स्थिति

  • भारत संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) का एक हस्ताक्षरकर्ता और पक्षकार देश है।
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) के विकास और कार्यान्वयन में सक्रिय रूप से भाग लिया है।
  • भारत को संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) से लाभ हुआ है, विशेष रूप से अपनी समुद्री सीमाओं और हिंद महासागर में संसाधन दावों के संदर्भ में।

राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (BBNJ) समझौते के बारे में

  • राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (BBNJ) संधि संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) के तहत तीसरा कार्यान्वयन समझौता है।
    • अन्य दो समझौते वर्ष 1994 भाग XI कार्यान्वयन समझौता (अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्रों में खनन को विनियमित करना) और वर्ष 1995 संयुक्त राष्ट्र मछली स्टॉक समझौता (मछली स्टॉक का संरक्षण और प्रबंधन) हैं।
  • यह तीन मुख्य उद्देश्यों पर केंद्रित है:
    • समुद्री जैव विविधता का संरक्षण: पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Areas-MPA) जैसे तंत्रों की स्थापना करना।

    • समुद्री आनुवंशिक संसाधनों का न्यायसंगत बँटवारा: यह सुनिश्चित करना कि इन संसाधनों से होने वाले लाभ से वैश्विक कोष के माध्यम से सभी देशों को लाभ मिले।
    • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA): समुद्री पर्यावरण पर संभावित हानिकारक प्रभाव वाली गतिविधियों के लिए मूल्यांकन को अनिवार्य बनाना।

राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (BBNJ) समझौते के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • अनुसमर्थन और आम सहमति: 104 हस्ताक्षरकर्ताओं में से केवल 14 ने ही समझौते की पुष्टि की है, इसलिए यह लागू होने के लिए आवश्यक 60 अनुसमर्थनों की सीमा से बहुत दूर है।
    • दक्षिण चीन सागर जैसे समुद्री क्षेत्रीय विवाद, समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA) बनाने पर आम सहमति को जटिल बनाते हैं। कई देशों को डर है कि ऐसे उपाय उनके आर्थिक अवसरों या क्षेत्रीय दावों का उल्लंघन कर सकते हैं।
    • क्षेत्रीय आशंकाएँ, विशेष रूप से बंगाल की खाड़ी जैसे क्षेत्रों में, इस बात की चिंता को उजागर करती हैं कि समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA) आजीविका और समुद्री संसाधनों तक पहुँच को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।
  • समुद्री आनुवंशिक संसाधन (Marine Genetic Resources): संधि समुद्री आनुवंशिक संसाधन दोहन से लाभ-साझाकरण को अनिवार्य बनाती है।
    • कमजोर जवाबदेही तंत्र के कारण गतिविधियों की कम रिपोर्टिंग करके धनी राष्ट्र संभावित रूप से इस प्रावधान को कमजोर कर सकते हैं।
    • जैविक विविधता पर कन्वेंशन जैसी अन्य व्यवस्थाओं के साथ ओवरलैप, छोटे देशों के लिए नुकसान का जोखिम उत्पन्न करते है।
  • क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: यद्यपि संधि महासागर विज्ञान में समान साझेदारी पर जोर देती है, लेकिन इसमें क्षमता निर्माण सुनिश्चित करने के लिए प्रवर्तनीय तंत्र का अभाव है।
    • इस विषमता के कारण निम्न और मध्यम आय वाले देशों को दरकिनार कर दिए जाने का खतरा है तथा अनुसंधान और प्रशासन में असमानताएँ बनी रहेंगी।
  • उच्च-समुद्र और अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) अंतरसंबंध: उच्च-समुद्र शासन पर संधि का ध्यान समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों की परस्पर जुड़ी प्रकृति को नजरअंदाज करता है।
    • अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में प्रदूषण, अत्यधिक मछली पालन और आवास विनाश अक्सर अंतरराष्ट्रीय जल में फैल जाते हैं।
    • तटीय राज्यों द्वारा अपने जल के भीतर गतिविधियों को संबोधित करने की अनिच्छा संधि के प्रवर्तन ढाँचे को और कमजोर करती है।
  • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA): संधि में अंतरराष्ट्रीय जल में नियोजित गतिविधियों के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) की आवश्यकता होती है, लेकिन तेल और गैस अन्वेषण जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों को शामिल नहीं किया जाता है, जो कई राज्यों के लिए महत्त्वपूर्ण आर्थिक हित बने हुए हैं।
    • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) की अंतरराष्ट्रीय समीक्षा का विरोध किया जाता है, विशेष रूप से सीमित संस्थागत क्षमता और परस्पर विरोधी कानूनी मानकों वाले क्षेत्रों में।

आगे की राह 

  • तटीय और उच्च-समुद्री शासन का एकीकरण: एक सुसंगत ढाँचा स्थापित करना, जो तटीय गतिविधियों के साथ उच्च-समुद्री विनियमों को संरेखित करता है।
  • तटीय राज्यों के लिए प्रोत्साहन: वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करके वैश्विक दक्षिण देशों को घरेलू कानूनों को अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के साथ संरेखित करने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • धनी राष्ट्रों की प्रतिबद्धता: क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए निरंतर समर्थन के माध्यम से संधि लाभों का न्यायसंगत बँटवारा सुनिश्चित करना।
  • स्पष्ट कार्यान्वयन रोडमैप: संधि की संरचनात्मक सीमाओं को संबोधित करने के लिए लागू करने योग्य तंत्रों को परिभाषित करना और राजनीतिक आम सहमति को बढ़ावा देना।

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