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धर्म के नाम पर चुनावों में प्रचार

Lokesh Pal March 27, 2024 05:45 241 0

संदर्भ

हाल ही में एक राजनीतिक दल ने ‘शक्ति’ पर अपनी टिप्पणी से हिंदू भावनाओं को आहत करने के लिए एक प्रमुख विपक्षी नेता के खिलाफ भारत के चुनाव आयोग (Election Commission of India- ECI) में शिकायत दर्ज कराई।

चुनावों में अपील के संबंध में कानूनी प्रावधान

  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 123(3): इसमें प्रावधान है कि किसी उम्मीदवार या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उसके धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर वोट देने या वोट देने से परहेज करने की अपील एक भ्रष्ट चुनावी प्रथा है।
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 123(3A): यह चुनाव के दौरान इन आधारों पर नागरिकों के बीच शत्रुता या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देने के उम्मीदवार द्वारा किसी भी प्रयास की निंदा करती है।
  • इन प्रावधानों का उल्लंघन: इन नियमों के उल्लंघन के परिणामस्वरूप किसी उम्मीदवार को छह वर्ष तक चुनाव में भाग लेने से रोका जा सकता है।

धर्म के बारे में आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct- MCC)

  • राजनीतिक दलों के लिए दिशा-निर्देश: MCC, राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों के लिए दिशा-निर्देशों का एक सेट, ऐसे कार्यों को रोकता है, जो मौजूदा सामाजिक विभाजन को बढ़ाते हैं या समूहों के बीच दुश्मनी पैदा करते हैं।
  • जाति एवं सांप्रदायिक आधार पर वोट हासिल करने पर रोक: इसमें आगे कहा गया है कि वोट पाने के लिए जाति या सांप्रदायिकता संबंधी अपील नहीं की जाएगी।
    • मस्जिदों, चर्चों, मंदिरों एवं अन्य पूजा घरों का उपयोग चुनाव प्रचार के लिए मंच के रूप में नहीं किया जाएगा।
  • वैधानिक समर्थन का अभाव: हालाँकि MCC के पास वैधानिक समर्थन का अभाव है, लेकिन 1990 के दशक में अपनी स्थापना के बाद से ECI के गंभीर प्रवर्तन के कारण इसकी क्षमता में विकास हुआ है।

ऐतिहासिक संदर्भ एवं संशोधन

  • भ्रष्ट चुनावी आचरण: वर्ष 1961 से पहले, ‘प्रणालीगत’ शब्द का इस्तेमाल जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123(3) में किया जाता था, जिसका अर्थ है कि धार्मिक, नस्लीय, जाति या सांप्रदायिक आधार पर अपील को भ्रष्ट चुनाव आचरण माना जाएगा।
  • वर्ष 1961 में संशोधन: हालाँकि, सांप्रदायिक, विभाजनकारी एवं अलगाववादी प्रवृत्तियों से निपटने के लिए, वर्ष 1961 में ‘प्रणालीगत’ शब्द हटा दिया गया था।
    • संशोधन का प्रभाव: इसका अर्थ यह हुआ कि धर्म या प्रतिबंधित सांप्रदायिक संबंध के आधार पर चुनावी सफलता के लिए एक छिटपुट आह्वान को भी कानून द्वारा नकारात्मक रूप से माना जाएगा।
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत कार्यवाही: ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें विभिन्न राजनीतिक दलों के राजनेताओं ने धार्मिक आधार पर वोट की अपील की है, जिसके परिणामस्वरूप जनप्रतिनिधित्व अधिनियम एवं भारतीय दंड संहिता के तहत कार्यवाही हुई है।
    • इस भ्रष्ट चुनाव प्रथा के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए गए एकमात्र उल्लेखनीय नेता वर्ष 1995 में शिव सेना के बाल ठाकरे थे।
  • चुनाव प्रचार पर रोक: ECI अक्सर MCC के उल्लंघन के कारण नेताओं को दो से तीन दिनों के लिए चुनाव प्रचार करने से रोकता है।

उच्चतम न्यायालय के निर्णय

  • अभिराम सिंह बनाम सी. डी. कॉमाचेन (2017): अभिराम सिंह बनाम सी. डी. कॉमाचेन (2017) में बहुमत के निर्णय में धारा 123(3) को उद्देश्यपूर्ण तरीके से विश्लेषित किया गया, जो उम्मीदवारों एवं मतदाताओं दोनों की धार्मिक मान्यताओं के आधार पर वोट देने पर रोक लगाता है।
  • रमेश यशवंत प्रभु (डॉ.) बनाम प्रभाकर काशीनाथ कुंटे: न्यायालय ने कहा कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को केवल उसके धर्म के कारण वोट न मिले एवं किसी भी उम्मीदवार को उसके धर्म के आधार पर वोट देने से इनकार न किया जाए।

धर्मनिरपेक्षता सुनिश्चित करने के लिए सिफारिशें

  • वैध चिंताओं को संबोधित करना: राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों को देश की धर्मनिरपेक्ष संरचना को बनाए रखते हुए नागरिकों की वास्तविक चिंताओं को संबोधित करना चाहिए।
  • धार्मिक अपीलों से बचना: धार्मिक अपीलों से बचने से समाज में ध्रुवीकरण को रोकने में मदद मिल सकती है।
  • अभियानों के लिए धर्म स्थलों का उपयोग करने से बचना: राजनीतिक अभियानों के लिए धर्मस्थलों के उपयोग से बचना चाहिए।
  • शीघ्र निवारण तंत्र: ECI एवं अदालतों को धार्मिक अपील नियमों के उल्लंघन के निवारण के लिए त्वरित प्रक्रियाएँ प्रदान करनी चाहिए।
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