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भारत में प्राकृतिक आपदाओं की लागत

Lokesh Pal January 18, 2025 04:00 167 0

संदर्भ

स्विस री (Swiss Re) रिपोर्ट के अनुसार, कैलेंडर वर्ष 2023 में भारत में प्राकृतिक आपदाओं के कारण 12 बिलियन डॉलर (1 लाख करोड़ रुपये से अधिक) की भारी हानि हुई।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • वर्ष 2023 में आर्थिक हानि
    • प्राकृतिक आपदाओं के कारण भारत को वर्ष 2023 में कुल 12 बिलियन डॉलर (₹1 लाख करोड़ से अधिक) का आर्थिक नुकसान हुआ।
    • ये नुकसान 10 वर्ष के औसत 8 बिलियन डॉलर (वर्ष 2013-2022) से काफी अधिक थे।
    • इन हानियों का मुख्य कारण उत्तरी भारत और सिक्किम में बाढ़ के साथ-साथ उष्णकटिबंधीय चक्रवात बिपरजॉय (Biparjoy) और मिचौंग (Michaung) थे।
  • आर्थिक हानियों के प्रमुख कारण
    • बाढ़ हानि का एक प्रमुख कारण
      • भारत में होने वाले वार्षिक आर्थिक नुकसान में बाढ़ का योगदान लगभग 63% है।
      • प्रमुख बाढ़ की घटनाओं में शामिल हैं:
        • वर्ष 2005 में आई मुंबई की बाढ़, जिससे 5.3 बिलियन डॉलर (वर्ष 2024 की कीमतों में) का आर्थिक नुकसान हुआ।
        • वर्ष 2013 में उत्तराखंड बाढ़, वर्ष 2014 में जम्मू और कश्मीर बाढ़, वर्ष 2018 में केरल बाढ़ और वर्ष 2023 में उत्तरी भारत बाढ़।
        • वर्ष 2015 की चेन्नई बाढ़, जिससे 6.6 बिलियन डॉलर (वर्ष 2024 की लागत में) का आर्थिक नुकसान हुआ।
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवात और सुनामी
      • उष्णकटिबंधीय चक्रवात
        • चक्रवात बिपरजॉय (2023): गुजरात में आया, बंदरगाहों (जैसे, मुंद्रा, कांडला) को बंद कर दिया और महाराष्ट्र तथा राजस्थान में व्यापक क्षति पहुँचाई।
        • चक्रवात मिचौंग (2023): चेन्नई में अत्यधिक वर्षा और महत्वपूर्ण नुकसान हुआ।
      • सुनामी: तटीय क्षेत्र, विशेष रूप से पूर्वी तट पर, सुनामी आने की आशंका रहती है।
        • वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी ने तमिलनाडु और अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में व्यापक विनाश किया था।
      • भेद्यता: भारत की 5,700 किलोमीटर लंबी तटरेखा चक्रवातों और सुनामी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है, जिसका शहरी केंद्रों, बंदरगाहों और उद्योगों पर प्रभाव पड़ता है।
    • भूकंप की संवेदनशीलता: भारत का 58.6% भू-भाग मध्यम से उच्च तीव्रता वाले भूकंपों के प्रति संवेदनशील है।
      • नई दिल्ली और अहमदाबाद विशेष रूप से भूकंप के जोखिम के प्रति संवेदनशील हैं।
      • संभावित भूकंप केंद्रों में हिमालय शामिल है, जो दिल्ली और मुंबई जैसे शहरी केंद्रों के पास के क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है।
      • वर्ष 2001 के भुज भूकंप जैसा भूकंप आज ​​संपत्ति के बढ़ते संकेंद्रण के कारण अत्यधिक नुकसान पहुँचा सकता है।

प्राकृतिक आपदाएँ

  • प्राकृतिक आपदा एक अप्रत्याशित घटना है, जो प्राकृतिक कारणों से घटित होती है, जैसे भूकंप या बाढ़, जिसमें बहुत अधिक पीड़ा, क्षति अथवा मृत्यु होती है।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव

  • आर्थिक प्रभाव
    • प्रत्यक्ष नुकसान: प्रत्यक्ष नुकसान में बुनियादी ढाँचे, उद्योगों, घरों और कृषि भूमि को होने वाला नुकसान शामिल है। उदाहरण के लिए, बाढ़ और चक्रवातों के कारण वर्ष 2023 में ₹1 लाख करोड़ (USD 12 बिलियन) का आर्थिक नुकसान दर्ज किया गया।
    • अप्रत्यक्ष नुकसान: अप्रत्यक्ष नुकसान औद्योगिक एवं आर्थिक गतिविधियों में व्यवधान के कारण होता है, जैसे कि गुजरात में चक्रवात बिपरजॉय के दौरान बंदरगाहों और आपूर्ति शृंखलाओं का बंद होना और सूखे और बाढ़ के कारण कृषि उत्पादकता में गिरावट।
    • बीमा अंतराल: भारत में प्राकृतिक आपदा से संबंधित 90% से अधिक नुकसान बीमाकृत नहीं होते हैं, जिससे घरों एवं व्यवसायों पर वित्तीय दबाव बढ़ता है।
  • मानवीय प्रभाव
    • जीवन और आजीविका की हानि: प्राकृतिक आपदाओं से जीवन और आजीविका का बहुत नुकसान होता है।
      • उदाहरण के लिए, वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी और उत्तरी भारत में आई बाढ़ (2023) के कारण बहुत अधिक लोग हताहत हुए तथा लोगों को विस्थापित होना पड़ा।
    • स्वास्थ्य और संवेदनशील समूह: ये आपदाएँ जलजनित बीमारियों के जोखिम को भी बढ़ाती हैं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों, महिलाओं, बच्चों और दिव्यांग व्यक्तियों सहित संवेदनशील समूहों को असमान रूप से प्रभावित करती हैं।
    • विस्थापन: जिनेवा स्थित आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2022 में भारत में प्राकृतिक आपदाओं, विशेष रूप से बाढ़ एवं चक्रवातों के कारण 2.5 मिलियन से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव
    • पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण: प्राकृतिक आपदाएँ पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करती हैं, जिससे जैव विविधता की हानि होती है और वनों, आर्द्रभूमि तथा तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है।
    • मृदा एवं तट बंधों का क्षरण: मृदा अपरदन और नदी के किनारों का अस्थिर होना बाढ़ के सामान्य परिणाम हैं।
    • जलवायु परिवर्तन प्रतिक्रिया: जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक आपदाओं को तीव्र करता है, जिससे विनाश और पुनर्प्राप्ति लागत का एक प्रतिक्रिया चक्र बनता है।
  • सामाजिक प्रभाव
    • विस्थापन और पलायन: विस्थापन एवं पलायन सामान्य बात है, क्योंकि आपदा प्रभावित क्षेत्रों में लोग अपने घर एवं आजीविका खो देते हैं।
      • उदाहरण के लिए, पहाड़ी क्षेत्रों के कई निवासी भूस्खलन एवं बाढ़ के कारण पलायन करने को मजबूर हैं।
    • सांस्कृतिक विरासत को नुकसान: भूकंप एवं बाढ़ जैसी आपदाओं का एक और महत्त्वपूर्ण प्रभाव ऐतिहासिक स्मारकों और मंदिरों सहित सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुँचाना है।
  • विकासात्मक प्रभाव
    • प्रगति में बाधा: प्राकृतिक आपदाएँ बुनियादी ढाँचे और संपत्तियों को नष्ट करके विकासात्मक प्रगति में बाधा डालती हैं।
      • उदाहरण के लिए, गुजरात, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे क्षेत्रों को बड़ी आपदाओं के बाद गंभीर आर्थिक तनाव का सामना करना पड़ता है।
    • गरीबी में वृद्धि: आर्थिक नुकसान कम आय वाले परिवारों को असमान रूप से प्रभावित करते हैं, जिससे गरीबी का स्तर और असमानता बढ़ती है।
  • नीति और शासन प्रभाव
    • राजकोषीय तनाव: प्राकृतिक आपदाएँ सरकारों पर राजकोषीय तनाव डालती हैं, क्योंकि वे आपदा राहत और पुनर्प्राप्ति प्रयासों पर व्यय बढ़ा देती हैं।
      • इससे प्रायः विकास कार्यक्रमों से धन की कमी कर दी जाती है।
    • नीति सुधार: ये घटनाएँ आपदा जोखिम न्यूनीकरण नीतियों में सुधार लाती हैं और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) जैसी संस्थाओं की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करती हैं।

प्राकृतिक आपदा के प्रति भारत की संवेदनशीलता

  • भौगोलिक स्थिति
    • हिमालयी क्षेत्र: भूकंप, भूस्खलन और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) की आशंका रहती है।
    • तटीय क्षेत्र: चक्रवात, सुनामी और तूफानी लहरों से प्रभावित 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा, शहरी केंद्रों और उद्योगों को प्रभावित करती है।
    • नदी बेसिन: गंगा, ब्रह्मपुत्र और गोदावरी जैसे क्षेत्रों में बाढ़ आना, खास तौर पर मानसून के दौरान, सामान्य बात है।
  • जलवायु परिस्थितियाँ: भारत की कृषि मानसून पर बहुत अधिक निर्भर करती है, जिससे अनियमित वर्षा खाद्य और जल सुरक्षा के लिए खतरा बन जाती है।
    • कई क्षेत्र, विशेष रूप से पश्चिमी और मध्य भागों में, सूखे के कारण जल की उपलब्धता में कमी और फसल की बर्बादी से पीड़ित हैं।
  • जनसंख्या का उच्च घनत्व: खतरे की आशंका वाले क्षेत्रों में, विशेष रूप से अनौपचारिक बस्तियों में, तेजी से जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण, बाढ़, भूकंप तथा भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाता है।
    • वर्ष 2015 में, जल निकायों पर अनियंत्रित अतिक्रमण के कारण चेन्नई की जल निकासी प्रणाली बाढ़ से अवरुद्ध हो गई थी।
  • सामाजिक-आर्थिक कारक: गरीबी में रहने वाले समुदाय आपदाओं के लिए तैयार होने और उनसे उबरने के लिए कम क्षमतावान हैं, जिससे इसका प्रभाव और भी बढ़ जाता है।
    • वर्ष 2013 की उत्तराखंड बाढ़ के दौरान, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और तैयारियों के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में ग्रामीण तथा गरीब समुदाय असमान रूप से प्रभावित हुए थे।
  • वनों की कटाई और पर्यावरण क्षरण: वनों की कटाई भूस्खलन, बाढ़ और तूफानी लहरों के प्रभाव को कम करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र की क्षमता को कम करती है।
    • अनियंत्रित कृषि पद्धतियाँ और अत्यधिक चराई से मिट्टी का कटाव होता है, विशेषकर शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में।
  • औद्योगीकरण और बुनियादी ढाँचा: आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचे के बिना तेजी से विकास और आबादी वाले क्षेत्रों के लिए खतरनाक उद्योगों की निकटता प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भेद्यता को बढ़ाती है।
  • कमजोर आपदा प्रबंधन प्रणाली: भारत में विभिन्न आपदाओं के लिए कई नोडल प्राधिकरणों की उपस्थिति, जैसे कि भूकंप के लिए राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र और खनन आपदाओं के लिए खान विभाग, जिम्मेदारियों का अतिव्यापन और केंद्रीय निर्णयन केंद्र की कमी के कारण समन्वय में देरी उत्पन्न करते हैं।

भारत में आपदा प्रबंधन के लिए नीति ढाँचा

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम वर्ष 2005 में लागू किया गया, जिसने आपदा प्रबंधन के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव लाया।
    • पूर्व प्रतिक्रिया और राहत केंद्रित दृष्टिकोण से हटकर तैयारी, रोकथाम एवं योजना बनाने की ओर दृष्टिकोण में बदलाव आया।
    • संस्थागत ढाँचा
      • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority-NDMA): प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च संस्था, जो राष्ट्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन प्रयासों का समन्वय करती है।
      • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (State Disaster Management Authorities- SDMAs): मुख्यमंत्रियों की अध्यक्षता में, राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन नीतियों और योजनाओं को लागू करते हैं।
      • जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (District Disaster Management Authorities-DDMAs): जिला कलेक्टरों के नेतृत्व में; स्थानीय आपदा प्रतिक्रियाओं का प्रबंधन करना और जिला स्तर पर राष्ट्रीय एवं राज्य नीतियों को लागू करना।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति (National Policy on Disaster Management- NPDM): भारत में आपदा प्रबंधन के लिए एक व्यापक ढाँचा प्रदान करने के लिए इसे वर्ष 2009 में बनाया गया था।
    • इसका उद्देश्य राहत और प्रतिक्रिया से हटकर रोकथाम, शमन और तैयारी पर जोर देने वाली सक्रिय रणनीति पर ध्यान केंद्रित करना है।
    • विजन: एक समग्र, बहु-आपदा-उन्मुख दृष्टिकोण के माध्यम से एक सुरक्षित और आपदा-प्रतिरोधी भारत का निर्माण करना।
    • NPDM के मुख्य उद्देश्य
      • रोकथाम और तैयारी को बढ़ावा देना: समाज के सभी स्तरों पर रोकथाम, तैयारी और लचीलेपन की संस्कृति को बढ़ावा देना।
      • विकासात्मक नियोजन में एकीकरण: आपदा प्रबंधन रणनीतियों को विकासात्मक नियोजन प्रक्रिया में एकीकृत करना।
      • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: प्रभावी संचार नेटवर्क द्वारा समर्थित अत्याधुनिक पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करना।
      • सामुदायिक भागीदारी: आपदा प्रबंधन में अंतिम छोर तक संपर्क सुनिश्चित करने के लिए सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाना।
      • आपदा-प्रतिरोधी अवसंरचना: आपदा-प्रतिरोधी अवसंरचना का विकास करना और संधारणीय प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (National Disaster Management Plan- NDMP), 2016
    • वर्ष 2016 में स्थापित राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP), आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (Sendai Framework for Disaster Risk Reduction- SFDRR) के साथ संरेखित है, जो केवल प्रतिक्रिया के बजाय सक्रिय आपदा प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करती है।
    • इसे भारत की आपदा प्रबंधन रणनीति के हिस्से के रूप में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा बनाया गया था।
    • NDMP की मुख्य विशेषताएँ
      • जोखिम न्यूनीकरण और तैयारी: आपदा जोखिमों को रोकने और कम करने, सरकारी स्तरों तथा समाज में लचीलापन लाने पर जोर देता है।
      • चार प्राथमिकता वाली कार्रवाइयाँ (SFDRR के साथ संरेखित)
        • आपदा जोखिम को समझना: जोखिम जागरूकता, डेटाबेस और सामुदायिक सहभागिता में सुधार करना।
        • आपदा जोखिम शासन को मजबूत करना: राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर प्रभावी शासन संरचनाएँ बनाना।
        • लचीलेपन में निवेश: बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना और सुभेद्यताओं को कम करना।
        • आपदा की तैयारी को बढ़ाना: पूर्व चेतावनी प्रणाली, निकासी योजनाओं और क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना।
      • प्रमुख हितधारकों की भूमिका: आपदा प्रबंधन में केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों और समुदाय आधारित संगठनों को शामिल किया जाता है।
  • आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI) 
    • यह एक वैश्विक साझेदारी है, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और आपदाओं के प्रति बुनियादी ढाँचे को अधिक लचीला बनाना है।
    • CDRI को भारत द्वारा वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में लॉन्च किया गया था।
    • CDRI में शामिल: विभिन्न राष्ट्रों की सरकारें, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियाँ और कार्यक्रम, बहुपक्षीय विकास बैंक, निजी क्षेत्र और शैक्षणिक संस्थान।
    • लक्ष्य
      • सतत् विकास का समर्थन करना। 
      • बुनियादी सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना। 
      • कुशल और उचित कार्य को सक्षम करना। 
      • आर्थिक नुकसान को कम करना।
    • सचिवालय: नई दिल्ली, भारत।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (Sendai Framework for Disaster Risk Reduction- SFDRR)

  • यह आपदा जोखिमों को कम करने और लचीलापन बनाने के लिए वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाई गई एक वैश्विक रणनीति है।
  • इसे जापान के सेंडाई में आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन के दौरान स्थापित किया गया था।

SFDRR की प्रमुख प्राथमिकताएँ

  • आपदा जोखिम को समझना: बेहतर जोखिम प्रबंधन के लिए आपदा जोखिम और कमजोरियों पर डेटा एकत्र करना तथा उसका विश्लेषण करना।
  • आपदा जोखिम शासन को मजबूत बनाना: सरकार के सभी क्षेत्रों और स्तरों पर समन्वित शासन तथा जवाबदेही सुनिश्चित करना।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण में निवेश करना: आपदा जोखिमों को कम करने के लिए बुनियादी ढाँचे, शहरी नियोजन और पर्यावरण प्रबंधन को मजबूत बनाने पर ध्यान देना।
  • आपदा तैयारी को बढ़ाना: पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करना और प्रतिक्रिया तथा पुनर्प्राप्ति रणनीतियों में सुधार करना।

प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों को कम करने के लिए सिफारिशें

  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR): प्रशिक्षण के माध्यम से सामुदायिक सहभागिता को मजबूत करना तथा अधिक प्रभावी प्रतिक्रियाओं के लिए राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय अधिकारियों के बीच समन्वय को बढ़ाकर आपदा प्रबंधन प्रणालियों में सुधार करना।
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन: जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देना, संधारणीय जल प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का पुनर्स्थापन करना।
  • लचीला बुनियादी ढाँचा: आपदा लचीले भवनों और सड़कों का निर्माण सुनिश्चित करना तथा तटबंधों एवं जल निकासी प्रणालियों जैसे बाढ़ सुरक्षा बुनियादी ढाँचे को उन्नत करना।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली: सुधारित पूर्वानुमान प्रौद्योगिकियों में निवेश करना तथा समुदायों के भीतर क्षमता का निर्माण करना ताकि पूर्व चेतावनी प्रणाली एवं तैयारी योजनाओं का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सके।
  • बीमा और वित्तीय सुरक्षा: व्यक्तियों और व्यवसायों के लिए आपदा बीमा तक पहुँच का विस्तार करना तथा तेजी से रिकवरी के लिए आपदा बॉण्ड जैसे वित्तीय तंत्र विकसित करना।
  • पारिस्थितिकी तंत्र आधारित लचीलापन: क्षरण को कम करने के लिए वनरोपण और पुनर्वनीकरण कार्यक्रमों को लागू करना तथा आपदाओं के विरुद्ध प्राकृतिक अवरोधों के रूप में आर्द्रभूमि और मैंग्रोव की रक्षा करना।
  • सतत् शहरी विकास: जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन करने और शहरी बाढ़ को कम करने के लिए हरित अवसंरचना में निवेश करना तथा उच्च जोखिम वाले आपदा क्षेत्रों में निर्माण को रोकने के लिए जोनिंग विनियमन लागू करना।
    • बाढ़ प्रबंधन में G-Cans परियोजना टोक्यो में क्रियान्वित की जा रही है, जो बाढ़ से बचने के लिए सुरंगों के माध्यम से अधिशेष जल को बाहर निकालती है।
  • शासन और नीति को सुदृढ़ बनाना: राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय नियोजन में आपदा जोखिम न्यूनीकरण और जलवायु तन्यकता को एकीकृत करना तथा तन्यता निर्माण प्रयासों का नेतृत्व करने में स्थानीय सरकारों को सशक्त बनाने के लिए निर्णय लेने को विकेंद्रीकृत करना।
    • डेनमार्क में, राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद का 36.5% सामाजिक सेवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर खर्च किया जाता है, जिससे स्थानीय निकायों को जमीनी वास्तविकता के अनुसार समाधान तैयार करने और नवीन दृष्टिकोणों के साथ प्रयोग करने का अवसर मिलता है।

निष्कर्ष 

भारत में प्राकृतिक आपदाएँ महत्त्वपूर्ण आर्थिक, सामाजिक और विकासात्मक लागत का वहन करती हैं। इन प्रभावों को कम करने के लिए बुनियादी ढाँचे की लचीलापन, वित्तीय सुरक्षा, सामुदायिक भागीदारी और जलवायु अनुकूलन को शामिल करने वाली एक व्यापक रणनीति महत्त्वपूर्ण है।

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