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कानून एवं व्यवस्था के नाम पर हिरासत का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता: उच्चतम न्यायालय

Lokesh Pal March 29, 2024 05:55 138 0

संदर्भ 

हाल ही में ‘नेनावथ बुज्जी बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य’ मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि कानून और व्यवस्था की स्थिति से निपटने हेतु राज्य पुलिस हिरासत की शक्ति का दुरुपयोग नहीं कर सकती है।

संबंधित तथ्य 

  • तेलंगाना राज्य के ‘खतरनाक गतिविधियों के रोकथाम अधिनियम,  1986’ पर अवलोकन: उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि डकैती आदि जैसे कथित अपराधों के लिए दर्ज केवल दो FIR के आधार पर इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत व्यक्ति को हिरासत में नहीं रखा जा सकता है।
  • सलाहकार बोर्ड द्वारा विचार: भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ ने आगे कहा है कि ‘सलाहकार समिति को इस बात पर विचार करना चाहिए कि हिरासत न केवल गिरफ्तार करने वाले प्राधिकारी की नजर में बल्कि कानून की दृष्टि में भी आवश्यक होना चाहिए।’
  • अमीना बेगम बनाम तेलंगाना राज्य एवं अन्य: इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कई सिद्धांत स्थापित किए हैं जिसका पालन न्यायालयों द्वारा आदेशों की वैधता का मूल्यांकन करते समय किया जाना चाहिए।

निवारक हिरासत (Preventive Detention)

  • इसका सामान्य अर्थ है कि किसी व्यक्ति को सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरनाक बताकर संदेह के आधार पर उचित न्यायिक प्रक्रिया जैसे ट्रायल और आरोपसिद्धि के बिना हिरासत में रखना

आँकड़े 

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों से स्पष्ट है कि वर्ष 2021 में की गई कुल 1,48,20,298 गिरफ्तारियों में से 89,00,174 (60.5%) CrPC की धारा 151 (अब BNSS की धारा 170) के निवारक हिरासत प्रावधानों के तहत की गईं।

  • भारत में निवारक हिरासत को विभिन्न कानूनों और न्यायिक प्रक्रियाओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो सरकारी संस्थाओं को व्यक्तियों को हिरासत में रखने का अधिकार प्रदान करता है।
  • संसद और राज्य विधानमंडल दोनों को निवारक हिरासत संबंधी कानून बनाने का अधिकार है।

निवारक हिरासत 

(Preventive Detention)

दंडात्मक हिरासत 

(Punitive Detention)

बंदी (Detainee) को उसकी हिरासत के कारणों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए। बावजूद इसके, सार्वजनिक हित के लिए नुकसानदेह और संवेदनशील जानकारी को प्रकट करने की आवश्यकता नहीं है।

गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार
हिरासत में लिए गए व्यक्ति को इस गिरफ्तारी आदेश के विरुद्ध अपना मामला पेश करने का मौका दिया जाना चाहिए। किसी कानूनी विशेषज्ञ से परामर्श लेने और बचाव करने का अधिकार।
इस प्रावधान से संबंधित सुरक्षा उपाय नागरिकों और विदेशियों दोनों के लिए उपलब्ध हैं।

देश के लिए खतरनाक विदेशी नागरिकों के लिए सुरक्षा उपाय उपलब्ध नहीं हैं।

  • राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा और विदेशी मामलों पर कानून बनाने का विशेष अधिकार संसद के पास होता है, जबकि संसद और राज्य विधायिका दोनों राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव के लिए कानून बना सकते हैं।
  • निवारक हिरासत के लिए संसद द्वारा बनाए गए कानून-
    • राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (National Security Act- NSA), 1980
    • गैर-कानूनी गतिविधियाँ रोकथाम संशोधन अधिनियम (Unlawful Activities (Prevention Amendment Act- UAPA), 2019
    • राज्य के परिपेक्ष्य में विशेष कानून: कुछ राज्यों में आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (Maintenance of Internal Security Act- MISA) और सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (Public Safety Acts- PSA) की मौजूदगी।
  • अद्वितीय संवैधानिक प्रावधान: दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश में निवारक हिरासत को संविधान के अभिन्न प्रावधान के रूप में मान्यता नहीं मिली है जबकि भारत में यह प्रावधान उपलब्ध है।
    • अनुच्छेद-22(3)(B): यह अनुच्छेद सार्वजनिक व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा बनाए रखने के लिए निवारक हिरासत की अनुमति देता है।
    • अनुच्छेद-22(4): किसी भी व्यक्ति को 3 महीने से अधिक समय तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता है जब तक कि सलाहकार समिति हिरासत की अवधि में विस्तार के लिए पर्याप्त कारण प्रदान नहीं करती।
      • सलाहकार समिति के सदस्य के रूप में उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या उच्च न्यायालय में नियुक्त होने योग्य न्यायिक विशेषज्ञ शामिल हो सकते हैं।
    • विस्तारित निवारक हिरासत: अनुच्छेद-22(7) के अनुसार, संसद को उन परिस्थितियों और मामलों की श्रेणियों को निर्धारित करने का अधिकार है, जिसके तहत सलाहकार समिति की सलाह के बिना किसी व्यक्ति को निवारक हिरासत कानून के तहत तीन महीने से अधिक समय तक जेल में रखा जा सकता है।
      • इस अनुच्छेद के आधार पर किसी व्यक्ति को निवारक हिरासत कानून के तहत जेल में रखने संबंधी अधिकतम अवधि का निर्धारण।
      • सलाहकार समिति द्वारा पालन की जाने वाली प्रक्रिया।

निवारक हिरासत से संबंधित न्यायिक निर्णय

  • ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1950): उच्चतम न्यायालय ने निवारक हिरासत अधिनियम, 1950 को मंजूरी दी थी तथा न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद-22 निवारक हिरासत के संबंध में पूर्ण प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय प्रदान करता है।
  • खुदीराम दास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1975): उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हिरासत का अधिकार स्पष्ट रूप से एक निवारक उपाय है, जिसे किसी भी स्थिति में सजा की तरह नहीं देखा जाना चाहिए।
  • अंकुल चंद्र प्रधान बनाम भारत सरकार: निवारक हिरासत का उद्देश्य सजा देना नहीं है बल्कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति को देश की प्रतिकूल गतिविधियों में शामिल होने से रोकना है।
  • अमेद नूर मोहम्मद भट्टी बनाम गुजरात राज्य, 2005: यह निवारक निरोध अधिनियम कार्यपालिका के हाथों में एक आवश्यक उपकरण है जो उन्हें किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए अधिकृत करता है जिसके बारे में उचित संदेह उत्पन्न होता है कि वह कोई संज्ञेय अपराध कर सकता है या उसकी गतिविधियाँ कानून और व्यवस्था के लिए प्रतिकूल हैं और पुलिस उस व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है।
  • शेख नाजनीन बनाम तेलंगाना राज्य, 2022: इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि निवारक हिरासत का उपयोग सामान्य कानून और व्यवस्था स्थितियों का मुकाबला करने के लिए नहीं किया जा सकता है। यह केंद्र या राज्य सरकारों को प्राप्त एक ‘असाधारण शक्ति’ है, जो नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित करती है।

निवारक हिरासत के संबंध में चिंताएँ

  • मानवाधिकार का उल्लंघन: यह कानून बंदियों की यातना और भेदभावपूर्ण व्यवहार के प्रति संवेदनशीलता को कम करता है तथा साथ ही निवारक हिरासत जैसी कानूनी प्रक्रिया का लाभ राजनीतिक या गैर-संवैधानिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
  • अनियंत्रित दुरुपयोग: सरकारें कभी-कभी न्यायिक निरीक्षण के दायरे से बाहर जाकर इन कानूनों का दुरुपयोग करती हैं, फलस्वरूप हिरासत की अनियंत्रित प्रकृति के संबंध में निरंतर आशंका बनी हुई है।
  • कानूनी अधिकारों के विपरीत: आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 50 के अनुसार, गिरफ्तारी के बाद किसी भी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए एवं जमानत का अवसर दिया जाना चाहिए।
  • अन्य लोकतांत्रिक देशों में निवारक हिरासत जैसे कानूनों का प्रावधान नहीं है क्योंकि यह नागरिक और राजनीतिक अधिकार पर अंतरराष्ट्रीय अनुबंधों के खिलाफ है तथा यह कानून व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करता है।

आगे की राह

  • प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को लागू करना: उच्चतम न्यायालय ने निवारक हिरासत कानून से संबंधित दुरुपयोग को रोकने के लिए कठोर जाँच की आवश्यकता पर जोर दिया है।

तेलंगाना अधिनियम, 1986

इस अधिनियम की धारा 9 के तहत सलाहकार समिति की स्थापना-

  • इस अधिनियम के अनुसार, आवश्यकता के आधार पर सरकार एक या इससे अधिक सलाहकार समिति की स्थापना कर सकती है।
  • प्रत्येक समिति में अध्यक्ष के अलावा दो अतिरिक्त सदस्य शामिल होंगे, जो वर्तमान में उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्यरत हों अथवा जिनके पास पूर्व न्यायिक अनुभव हो या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए योग्य हों।

  • सुरक्षा और मानवाधिकारों में संतुलन: सामाजिक सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच नाजुक संतुलन पर सावधानीपूर्वक विचार करते हुए निवारक हिरासत का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • हिरासत में लिए गए लोगों का अधिकार सुनिश्चित करना और हिरासत का कारण बताना: न्यायपालिका द्वारा निर्धारित प्रक्रियात्मक दिशा-निर्देशों को लागू किया जाना चाहिए ताकि बंदी (Detainee) अपने व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा कर सके।
  • पारदर्शी जाँच और पर्याप्त मुआवजे का प्रावधान लागू किया जाना चाहिए।

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