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मन्नार की खाड़ी के गहरे समुद्री क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन अन्वेषण

Lokesh Pal March 03, 2025 03:13 13 0

संदर्भ

केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने अपने नवीनतम हाइड्रोकार्बन अन्वेषण निविदा में मन्नार की खाड़ी के गहरे समुद्र क्षेत्र को शामिल किया है।

संबंधित तथ्य

  • यह निर्णय ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (Open Acreage Licensing Policy-OALP) के 10वें दौर का हिस्सा है।
  • भारत सरकार ने निविदा में अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के पास चार गहरे समुद्री ब्लॉक भी शामिल किए हैं।
  • पर्यावरणविदों और स्थानीय समुदायों ने इस संवेदनशील क्षेत्र में तेल एवं गैस की खोज के संभावित पारिस्थितिकी एवं आर्थिक प्रभावों के संबंध में चिंता जताई है।

ओपन एकरेज लाइसेंसिंग नीति (OALP)

  • ‘ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी’ (OALP) भारत की हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी (HELP) के तहत एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
  • इसे लाइसेंसिंग प्रक्रिया को अधिक लचीला और निवेशक-अनुकूल बनाकर तेल तथा गैस अन्वेषण को बढ़ावा देने के लिए प्रस्तुत किया गया था।

OALP की मुख्य विशेषताएँ

  • निवेशक-संचालित ब्लॉक चयन: कंपनियाँ सरकार द्वारा प्रस्तावित ब्लॉकों की प्रतीक्षा करने के बजाय राष्ट्रीय डेटा रिपॉजिटरी (NDR) से भू-वैज्ञानिक डेटा के आधार पर रुचि के अन्वेषण क्षेत्रों का चयन कर सकती हैं।
  • राष्ट्रीय डेटा रिपॉजिटरी (NDR) तक पहुँच: NDR कंपनियों को विस्तृत भूकंपीय जानकारी, कुओं की स्थिति और भूमिगत डेटा प्रदान करता है, जिससे उन्हें सूचित निवेश निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
  • राजस्व साझाकरण मॉडल: पुराने लाभ-साझाकरण मॉडल के बजाय, OALP एक राजस्व-साझाकरण तंत्र का पालन करता है, जहाँ कंपनियाँ उत्पादन राजस्व का एक हिस्सा सरकार को देती हैं।
  • निरंतर बोली प्रक्रिया: पारंपरिक लाइसेंसिंग दौरों के विपरीत, जहाँ कंपनियों को सरकारी नीलामी का इंतजार करना पड़ता था, OALP पूरे वर्ष EoI जमा करने की अनुमति देता है, जिससे ब्लॉकों का तीव्र आवंटन सुनिश्चित होता है।

मन्नार खाड़ी बायोस्फीयर रिजर्व

  • तमिलनाडु के तट पर स्थित मन्नार की खाड़ी एक बायोस्फीयर रिजर्व है, जो दुर्लभ एवं लुप्तप्राय समुद्री प्रजातियों का क्षेत्र है।
  • यह भारत के सबसे पारिस्थितिकी रूप से महत्त्वपूर्ण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक है।
  • यह तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट और श्रीलंका के पश्चिमी तट के बीच स्थित है, जो 10,500 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में विस्तृत हुआ है।
  • इस रिजर्व को वर्ष 1989 में बायोस्फीयर रिजर्व घोषित किया गया था और यह भारत का पहला समुद्री बायोस्फीयर रिजर्व है।

जैव विविधता

  • मन्नार की खाड़ी वनस्पतियों एवं जीवों की 4,000 से अधिक प्रजातियों का क्षेत्र है, जिनमें शामिल हैं:-
    • समुद्री टर्टल : ग्रीन, हॉक्सबिल, ऑलिव रिडले और लेदरबैक टर्टल।
    • डॉल्फिन एवं व्हेल: समुद्री स्तनधारियों की कई प्रजातियाँ।
    • प्रवाल भित्तियाँ: प्रवाल की लगभग 117 प्रजातियाँ, जो इसे भारत के सबसे विविध प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक बनाती हैं।
    • समुद्री घास संस्तर (Seagrass Beds): समुद्री प्रजातियों के लिए प्रजनन एवं भोजन के क्षेत्र प्रदान करते हैं।
    • मैंग्रोव: तटीय संरक्षण में सहायता करते हैं और मछलियों के लिए नर्सरी के रूप में कार्य करते हैं।

मन्नार खाड़ी बायोस्फीयर रिजर्व का पारिस्थितिक महत्त्व

  • समुद्री जैव विविधता को बढ़ावा देता है: यह कई समुद्री प्रजातियों के लिए प्रजनन एवं भोजन स्थल के रूप में कार्य करता है।
  • तटरेखाओं की रक्षा करता है: बायोस्फीयर रिजर्व में प्रवाल भित्तियाँ और मैंग्रोव तटीय कटाव को रोकने में सहायता करते हैं।
  • मत्स्यपालन को बढ़ावा देता है: तमिलनाडु में 1,00,000 से अधिक मछुआरों को आजीविका प्रदान करता है।
  • कार्बन सिंक: समुद्री घास के संस्तर और मैंग्रोव, कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद मिलती है।

तेल एवं गैस अन्वेषण का प्रभाव

  • भूकंपीय सर्वेक्षण: तेल एवं गैस भंडारों के मानचित्रण के लिए उपयोग किए जाने वाले विस्फोटकों से समुद्री जीवन प्रभावित हो सकता है।
  • रासायनिक अपशिष्ट: निष्कर्षण से निकलने वाला अपशिष्ट जल को दूषित कर सकता है और मछलियों की आबादी पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जिससे स्थानीय मत्स्यपालन प्रभावित हो सकता है।
  • आवास विखंडन: तेल रिसाव और औद्योगिक गतिविधियों से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है।

निष्कर्ष

हालाँकि सरकार के इस निर्णय का उद्देश्य हाइड्रोकार्बन अन्वेषण एवं ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना है, लेकिन इसने पर्यावरणविदों और स्थानीय समुदायों के बीच महत्त्वपूर्ण चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं। मन्नार की खाड़ी और अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र हैं और किसी भी अन्वेषण गतिविधियों के समुद्री जैव विविधता और तटीय समुदायों की आजीविका पर दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। साथ ही आर्थिक विकास को पर्यावरण संरक्षण के साथ संतुलित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।

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