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खाद्य पदार्थों की कीमतों से खुदरा मुद्रास्फीति अक्टूबर में 6.2% पर पहुँची

Lokesh Pal November 14, 2024 04:04 25 0

संदर्भ

खाद्य कीमतों में 10.9% की वृद्धि के कारण खुदरा मुद्रास्फीति अक्टूबर में 14 महीने के उच्चतम स्तर 6.2% पर पहुँच गई, जो सितंबर में 5.5% थी।

  • यह स्तर RBI की मुद्रास्फीति के लिए ऊपरी वहनीय सीमा का उल्लंघन है, जिसमें ग्रामीण मुद्रास्फीति 6.7% है, जबकि शहरी मुद्रास्फीति 5.6% है।

मुद्रास्फीति की मुख्य विशेषताएँ

  • खाद्य मूल्य में परिवर्तन: अक्टूबर में खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि सब्जियों (42.2%), खाद्य तेलों (9.5%) और फलों (8.4%) जैसी प्रमुख वस्तुओं में महत्त्वपूर्ण थी।
    • दक्षिण-पूर्व एशिया में वैश्विक आपूर्ति में व्यवधान के कारण खाद्य तेल की कीमतों में 27% की वृद्धि हुई, जिससे घरेलू मुद्रास्फीति में तीव्र वृद्धि हुई।
    • दालों के मामले में मुद्रास्फीति घटकर 7.4% रह गई, जिससे 17 महीने से जारी दोहरे अंकों की वृद्धि समाप्त हो गई।
    • मसालों की कीमतों में 7% की गिरावट देखी गई।
  • कोर मुद्रास्फीति मध्यम स्थिति में बनी हुई है: कोर मुद्रास्फीति (खाद्य एवं ऊर्जा को छोड़कर) लगातार 11वें महीने 4% से नीचे स्थिर रही, जो कि सितंबर के बाद 9 महीने के उच्चतम स्तर 3.8% से मामूली वृद्धि है। 
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) में परिवर्तन: सितंबर 2024 से समग्र CPI में 1.3% की वृद्धि हुई, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 1.42% की थोड़ी अधिक वृद्धि देखी गई।
  • उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (Consumer Food Price Index- CFPI) में परिवर्तन: खाद्य मुद्रास्फीति को ट्रैक करने वाला CFPI ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समान प्रभाव के साथ 2.6% बढ़ा।
  • RBI के मुद्रास्फीति अनुमान: RBI ने वित्त वर्ष 2024-25 की तीसरी तिमाही के लिए औसत मुद्रास्फीति 4.8% रहने का अनुमान लगाया था, जो चौथी तिमाही में घटकर 4.2% रह गई।
    • हालाँकि, इन अनुमानों को पूरा करने के लिए, नवंबर 2024 और दिसंबर 2024 में मुद्रास्फीति को काफी कम करके लगभग 4.1% तक लाना होगा।
  • मौद्रिक नीति पर प्रभाव: अर्थशास्त्रियों का सुझाव है कि मुद्रास्फीति में तीव्र वृद्धि के कारण RBI की दिसंबर मौद्रिक नीति समीक्षा में ब्याज दर में कटौती की कोई संभावना नहीं है।

मुद्रास्फीति के बारे में

  • मुद्रास्फीति से तात्पर्य दैनिक या आम उपयोग की अधिकांश वस्तुओं एवं सेवाओं, जैसे कि भोजन, कपड़े, आवास, मनोरंजन, परिवहन, उपभोक्ता स्टेपल आदि की कीमतों में वृद्धि से है।
  • यह समय के साथ वस्तुओं एवं सेवाओं की एक टोकरी में औसत मूल्य परिवर्तन को मापता है।
  • मुद्रास्फीति किसी देश की मुद्रा की एक इकाई की क्रय शक्ति में कमी का संकेत है। इसे प्रतिशत में मापा जाता है।
  • महत्त्व: अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के एक निश्चित स्तर की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि व्यय को बढ़ावा दिया जाए और बचत के माध्यम से धन संचय करने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया जाए।

मुद्रास्फीति के प्रकार

  • हेडलाइन मुद्रास्फीति (Headline Inflation): हेडलाइन मुद्रास्फीति किसी अर्थव्यवस्था के भीतर कुल मुद्रास्फीति का माप है, जिसमें खाद्य और ऊर्जा की कीमतें (जैसे- तेल एवं गैस) जैसी वस्तुएँ शामिल हैं, जो बहुत अधिक अस्थिर होती हैं और मुद्रास्फीति के बढ़ने की संभावना होती है।
    • भारत में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) को हेडलाइन मुद्रास्फीति के रूप में जाना जाता है।
  • कोर मुद्रास्फीति (Core Inflation): कोर मुद्रास्फीति वस्तुओं एवं सेवाओं की लागत में परिवर्तन है, लेकिन इसमें खाद्य और ऊर्जा क्षेत्रों से आने वाली मुद्रास्फीति शामिल नहीं है। 
    • मुद्रास्फीति के इस माप में इन वस्तुओं को शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि उनकी कीमतें बहुत अधिक अस्थिर होती हैं। 
  • अवस्फीति (Disinflation): अवस्फीति मुद्रास्फीति की दर में कमी को संदर्भित करता है, जिसका अर्थ है कि कीमतें अभी भी बढ़ रही हैं लेकिन धीमी गति से। 
  • स्टैगफ्लेशन (Stagflation): स्टैगफ्लेशन उच्च मुद्रास्फीति और स्थिर आर्थिक विकास का एक अनूठा संयोजन है, जिसके साथ उच्च बेरोजगारी भी होती है।

मुद्रास्फीति कैसे मापी जाती है?

भारत में, मुद्रास्फीति को मुख्य रूप से दो मुख्य सूचकांकों WPI (थोक मूल्य सूचकांक) और CPI (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) द्वारा मापा जाता है, जो क्रमशः थोक और खुदरा स्तर के मूल्य परिवर्तनों को मापते हैं।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)- खुदरा मुद्रास्फीति के बारे में

  • CPI किसी आधार वर्ष के संदर्भ में वस्तुओं और सेवाओं की खुदरा कीमतों में परिवर्तन को मापता है।
  • संकलित: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistics Office- NSO), केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI)।
  • CPI के प्रकार
    • औद्योगिक श्रमिकों के लिए CPI (CPI-IW)
      • श्रम ब्यूरो द्वारा संकलित।
      • आधार वर्ष: 2016
    • ग्रामीण मजदूरों और कृषि मजदूरों के लिए सीपीआई (CPI-AL और CPI-RL)
      • श्रम ब्यूरो द्वारा संकलित।
      • आधार वर्ष: 1986-87
    • नया CPI (ग्रामीण, शहरी और संयुक्त)
      • आधार वर्ष: 2012
      • अखिल भारतीय स्तर के लिए केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation- CSO) द्वारा संकलित एवं प्रकाशित।

उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (Consumer Food Price Index- CFPI)

  • CFPI: यह CPI का एक उप-घटक है, जो आबादी द्वारा उपभोग किए जाने वाले खाद्य पदार्थों की खुदरा कीमतों में परिवर्तन को मापता है।
  • फोकस: अनाज, सब्जियाँ, फल, डेयरी, मांस आदि जैसे खाद्य पदार्थों के मूल्य परिवर्तनों को ट्रैक करता है।
  • संकलित: केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO), केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) (मई 2014 से), अब NSO (वर्ष 2019 में गठित) के अंतर्गत संकलित किया जाता है।
  • आधार वर्ष: 2012
  • पद्धति: CPI के समान पद्धति का उपयोग करके मासिक गणना की जाती है।

थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI)

  • WPI: यह खुदरा स्तर से पहले थोक मूल्यों में औसत परिवर्तन को मापता है।
  • कवरेज: इसमें केवल सामान शामिल हैं, सेवाएँ शामिल नहीं हैं।
  • द्वारा संकलित: केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार कार्यालय (मासिक आधार पर)।
  • आधार वर्ष: 2011-12
  • भारांक: वस्तुओं को दिए गए भारांक शुद्ध आयात के लिए समायोजित उत्पादन मूल्य पर आधारित हैं।

खाद्य मुद्रास्फीति का प्रभाव

  • मनोवैज्ञानिक तनाव: बढ़ती कीमतें, विशेषकर सब्जियों और फलों जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिए, उपभोक्ताओं के बीच महत्त्वपूर्ण तनाव और चिंता उत्पन्न कर सकती हैं।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें खाद्य उपभोग को कम कर सकती हैं, विशेषकर संवेदनशील आबादी के बीच, जिससे पोषण सेवन और समग्र स्वास्थ्य प्रभावित होता है
  • अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: खाद्य मुद्रास्फीति RBI के समग्र मुद्रास्फीति लक्ष्य को विकृत करती है, जिससे मौद्रिक उपायों का उपयोग करने की उसकी क्षमता सीमित हो जाती है।

खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए सरकारी उपाय 

  • सब्सिडी आधारित बिक्री: कीमतों को नियंत्रित करने के लिए प्याज, टमाटर, गेहूँ और चीनी जैसी आवश्यक वस्तुओं की बिक्री पर सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाती है।
  • आयात शुल्क में कमी: घरेलू आपूर्ति बढ़ाने के लिए दालों पर आयात शुल्क कम करना।
  • निर्यात प्रतिबंध: घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गेहूँ और टूटे चावल के निर्यात पर अस्थायी प्रतिबंध।
  • भंडारण प्रतिबंध: जमाखोरी को रोकने के लिए व्यापारियों द्वारा भंडारण पर सीमाएँ।
  • ऑपरेशन ग्रीन्स (Operation Greens): टमाटर, प्याज और आलू की आपूर्ति और कीमतों को स्थिर करने के लिए एक सरकारी पहल।
  • न्यूनतम निर्यात मूल्य: निर्यात को रोकने और घरेलू आपूर्ति को बनाए रखने के लिए खाद्य वस्तुओं पर न्यूनतम निर्यात मूल्य लगाना।

मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति उपाय

  • ब्याज दरों में वृद्धि: इससे उधारी और खर्च में कमी आती है, जिससे माँग कम होती है।
  • नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में वृद्धि: बैंकों को केंद्रीय बैंक के पास अधिक धनराशि रखने की आवश्यकता होती है, जिससे उधार देने की क्षमता कम हो जाती है।
  • खुले बाजार परिचालन (Open Market Operations- OMO): अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करने के लिए सरकारी प्रतिभूतियों को बेचना।

मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए राजकोषीय नीति उपाय

  • सरकारी खर्च में कमी: कुल माँग को कम करने के लिए सार्वजनिक व्यय में कटौती करना।
  • करों में वृद्धि: प्रयोज्य आय और खपत को कम करने के लिए करों में वृद्धि करना।
  • आपूर्ति-पक्ष उपाय: घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना, बुनियादी ढाँचे में सुधार करना और आपूर्ति को बढ़ावा देने तथा मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने के लिए विनियमों को सुव्यवस्थित करना।

आगे की राह

  • कृषि में निवेश: खाद्य उत्पादन में सुधार और मूल्य अस्थिरता को कम करने के लिए बुनियादी ढाँचे, बाजारों और आपूर्ति शृंखलाओं में निवेश करना।
  • जोखिम प्रबंधन उपकरण: किसानों, व्यापारियों और उपभोक्ताओं को मूल्य में उतार-चढ़ाव और जलवायु संबंधी जोखिमों से बचाने के लिए प्रभावी जोखिम प्रबंधन रणनीतियों को लागू करना।
  • जलवायु-स्मार्ट कृषि: खाद्य उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाना।
  • संस्थागत पूर्वानुमान: किसानों और नीति-निर्माताओं को सटीक जानकारी प्रदान करने के लिए एक मजबूत पूर्वानुमान तंत्र की स्थापना करना।
  • आपूर्ति-पक्ष में सुधार करना: उत्पादकता और दक्षता में सुधार के लिए कृषि क्षेत्र में संरचनात्मक मुद्दों को संबोधित करना।

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