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लैंगिक समानता और सशक्तीकरण

Lokesh Pal November 21, 2024 04:42 142 0

संदर्भ

“लैंगिक समानता और सशक्तीकरण के लिए नए मार्ग तैयार करना: बीजिंग+30 समीक्षा पर एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय रिपोर्ट” शीर्षक वाली रिपोर्ट को थाईलैंड के बैंकॉक में आयोजित महिला सशक्तीकरण पर संयुक्त राष्ट्र मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में ESCAP और ‘यूएन वूमेन’ द्वारा लॉन्च किया गया।

  • इसमें बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन (BPfA) के कार्यान्वयन में हुई प्रगति और सामने आई चुनौतियों का विश्लेषण किया गया है।

पृष्ठभूमि

  • बीजिंग+30 और 2030 एजेंडा: वर्ष 2025 में, वैश्विक समुदाय निम्नलिखित को चिह्नित करेगा:
    • महिलाओं पर चौथे विश्व सम्मेलन की 30वीं वर्षगाँठ,
    • बीजिंग घोषणा-पत्र एवं कार्रवाई मंच (1995) को अपनाना,
    • सतत् विकास के लिए 2030 एजेंडा और सतत् विकास लक्ष्यों के 10 वर्ष

बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन (BPfA)

  • BPfA को अपनाना: बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन को वर्ष 1995 में बीजिंग, चीन में महिलाओं पर आयोजित चौथे विश्व सम्मेलन में 189 देशों द्वारा सर्वसम्मति से अपनाया गया था।
    • यह लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण को आगे बढ़ाने के लिए एक ऐतिहासिक वैश्विक रूपरेखा और प्रमुख नीति दस्तावेज है।
  • प्रमुख केंद्रीय क्षेत्र: रिपोर्ट में महिलाओं को प्रभावित करने वाले 12 प्रमुख क्षेत्रों को शामिल किया गया है: गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, हिंसा, सशस्त्र संघर्ष, आर्थिक भागीदारी, नेतृत्व, संस्थागत समर्थन, मानवाधिकार, मीडिया प्रतिनिधित्व, पर्यावरणीय भूमिकाएँ और बालिकाएँ। 
  • समीक्षा तंत्र: वर्ष 1995 से प्रत्येक पाँच वर्ष में BPfA की समीक्षा, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर की जाती रही है, ताकि इसके कार्यान्वयन पर नजर रखी जा सके।
    • बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन की 30 वर्षीय समीक्षा और मूल्यांकन, मार्च 2025 में आयोजित होने वाले महिलाओं की स्थिति पर आयोग के 69वें सत्र के दौरान किया जाएगा।
  • एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय समीक्षा: एशिया और प्रशांत के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (ESCAP) ‘यूएन वूमेन’ के सहयोग से तथा प्रमुख हितधारकों के परामर्श से BPfA ​​कार्यान्वयन की क्षेत्रीय समीक्षा का नेतृत्व करता है।
    • एशिया और प्रशांत के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (ESCAP) संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक) के अधिकार क्षेत्र के तहत पाँच क्षेत्रीय आयोगों में से एक है।

महिलाओं पर विश्व सम्मेलन (World Conferences on Women)

  • संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओं पर चार विश्व सम्मेलन आयोजित किए हैं। ये सम्मेलन निम्नलिखित स्थानों पर आयोजित हुए:
    • वर्ष 1975 में मैक्सिको सिटी: सम्मेलन ने वर्ष 1985 तक महिलाओं की उन्नति का मार्गदर्शन करने के लिए एक विश्व कार्य योजना की रूपरेखा तैयार की। 
    • वर्ष 1980 में कोपेनहेगन: इसका उद्देश्य रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्रथम विश्व सम्मेलन के लक्ष्यों को लागू करने में प्रगति की समीक्षा करना था।
    • वर्ष 1985 में नैरोबी: महिलाओं के लिए संयुक्त राष्ट्र दशक की उपलब्धियों की समीक्षा और मूल्यांकन करने के लिए विश्व सम्मेलन नैरोबी में हुआ।
    • वर्ष 1995 में बीजिंग: ‘बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन’ को सर्वसम्मति से अपनाया गया।
      • इसमें महिलाओं की उन्नति और 12 महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में लैंगिक समानता की प्राप्ति के लिए रणनीतिक उद्देश्य और कार्य निर्धारित किए गए हैं।

बीजिंग+30 समीक्षा पर एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय रिपोर्ट

  • बीजिंग+30 पर एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय रिपोर्ट में वर्ष 1995 में बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन को अपनाने के बाद से लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण में हुई प्रगति का आकलन किया गया है।
    • BPfA ​​की 30 वर्षीय समीक्षा प्रक्रिया के भाग के रूप में, यह रिपोर्ट पूरे क्षेत्र की उपलब्धियों, सतत् चुनौतियों और उभरती प्राथमिकताओं पर प्रकाश डालती है।

बीजिंग+30 समीक्षा पर एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ

  • एशिया और प्रशांत क्षेत्र में लैंगिक समानता और महिलाओं तथा लड़कियों के सशक्तीकरण की स्थिति: BPfA के बाद से 30 वर्षों में, एशिया-प्रशांत क्षेत्र ने प्रगति की है, लेकिन महिलाओं और लड़कियों को अभी भी महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण: 
    • वर्ष 2015 से यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं के कवरेज का विस्तार करने की दिशा में सीमित प्रगति हुई है और यह क्षेत्र एसडीजी लक्ष्य 3.1 को पूरा करने के लिए सही रास्ते पर नहीं है। 
      • एसडीजी लक्ष्य 3.1: वैश्विक मातृ मृत्यु दर को 1,00,000 जीवित जन्मों पर 70 से कम करना। 
    • लिंग आधारित हिंसा: महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का उच्च प्रचलन एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। 
    • आर्थिक असमानता: महिलाओं के लिए लगातार वेतन अंतर और ऋण और संपत्ति तक सीमित पहुँच।
      • श्रम बल भागीदारी में लैंगिक अंतर: एशिया और प्रशांत क्षेत्र में अत्यधिक सीमा तक बढ़ गया है। 
      • यह प्रजनन और अवैतनिक देखभाल जिम्मेदारियों के कारण श्रम बाजार में महिलाओं की कमजोरियों को दर्शाता है, जो लगातार पक्षपाती लैंगिक सामाजिक मानदंडों द्वारा कायम रखा जाता है।
  • क्षेत्र में युवा NEET (रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण में नहीं)
    • इस क्षेत्र में कई युवा महिलाएँ और पुरुष रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण (NEET) में नहीं हैं।
    • कृषि से विनिर्माण और सेवाओं तक क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं के संरचनात्मक परिवर्तन से महिलाओं को कम लाभ मिल रहा है।
    • उन्हें प्रायः अनौपचारिक, कम-कुशल, अनिश्चित नौकरियों तक ही सीमित रखा जाता है और STEM क्षेत्रों से बाहर रखा जाता है।
      • उदाहरण के लिए, एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 20 देशों में से 12 में STEM कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी 40% से भी कम है, जिससे उच्च विकास वाले उद्योगों में उनकी भागीदारी सीमित हो जाती है।
  • राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व: एशिया-प्रशांत क्षेत्र में महिलाओं के पास 20.8% संसदीय सीटें हैं, जो वैश्विक औसत 26.5% से कम है।
  • उपक्षेत्रों में असमान प्रगति: उदाहरण
    • दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम एशिया: लैंगिक गरीबी अंतराल, श्रम शक्ति भागीदारी, स्वास्थ्य कवरेज, शिक्षा, बाल विवाह, सुरक्षित जल और स्वच्छ ईंधन तक पहुँच आदि को संबोधित करने के लिए महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है। 
    • दक्षिण-पूर्व एशिया: पेंशन कवरेज, मातृ मृत्यु दर, किशोर प्रजनन आदि में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • अंतर्विभागीय भेदभाव: कई महिलाओं को अपनी जाति, भाषा, जातीयता, संस्कृति, धर्म, दिव्यांगता या सामाजिक-आर्थिक वर्ग या मूलनिवासी, प्रवासी, विस्थापित महिलाएँ या शरणार्थी होने के कारण अपने मानवाधिकारों का लाभ उठाने में अतिरिक्त बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • एशिया और प्रशांत क्षेत्र में महिलाओं के लिए संरचनात्मक बाधाएँ: 
    • भूमि/परिसंपत्ति स्वामित्व का अभाव; महिलाओं पर अवैतनिक देखभाल का असंगत बोझ।
      • उदाहरण: महिलाएँ, पुरुषों की तुलना में पाँच गुना अधिक देखभाल संबंधी कार्य करती हैं, जिससे औपचारिक रोजगार में संलग्न होने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
    • विधायी ढाँचे काफी हद तक अपर्याप्त हैं: लैंगिक समानता के लिए कानूनी ढाँचे ESCAP सदस्य देशों (क्षेत्रीय आधार पर) के आधे से भी कम में मौजूद हैं। 
    • पक्षपातपूर्ण लैंगिक मानदंड: इस क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं दोनों में शारीरिक अखंडता, राजनीतिक आयाम, आर्थिक आयाम और शैक्षिक आयाम के बारे में पक्षपातपूर्ण लैंगिक मानदंड हैं।
  • एशिया-प्रशांत में जनसांख्यिकीय बदलाव
    • एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तेजी से वृद्धावस्था बढ़ रही है, अनुमानों से पता चलता है कि वर्ष 2050 तक, चार में से एक व्यक्ति 60 वर्ष या उससे अधिक आयु का होगा। 
    • वर्ष 2023 में, 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों की हिस्सेदारी 18% थी। 
    • पूर्व और उत्तर-पूर्व एशिया सबसे तेजी से वृद्धों की संख्या बढ़ रही है, हालाँकि यह प्रवृत्ति सभी उप-क्षेत्रों में देखी जाती है। 
    • इस क्षेत्र की वृद्ध आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी 54% है, जिसका मुख्य कारण पुरुषों की तुलना में उनकी लंबी जीवन प्रत्याशा है।

बीजिंग +30 समीक्षा पर एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय रिपोर्ट: भारत की जेंडर बजटिंग

  • एशिया-प्रशांत में जेंडर बजटिंग: भारत और फिलीपींस जैसे एशिया-प्रशांत देशों द्वारा लिंग-संवेदनशील बजट (GRB) को अपनाना, महिलाओं और लड़कियों की पहचान की गई आवश्यकताओं के आधार पर संसाधनों के कुशल आवंटन को सुनिश्चित करने के लिए उनकी मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • जेंडर बजटिंग में भारत की उपलब्धियाँ
    • जेंडर बजटिंग में 218% की वृद्धि: भारत ने जेंडर बजटिंग में दशकीय वृद्धि में 218% की वृद्धि का अनुभव किया है।
    • वर्तमान वित्तीय वर्ष का आवंटन: वर्तमान वित्तीय वर्ष में, भारत ने जेंडर बजटिंग के लिए $37 मिलियन का आवंटन किया है।
    • शासन में महिला नेतृत्व: भारत ने एशिया प्रशांत मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में “महिलाओं के नेतृत्व वाले” विकास के अपने मॉडल का प्रदर्शन किया, विशेष रूप से पंचायती राज संस्थानों (PRI) और शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) में महिलाओं के नेतृत्व के माध्यम से, जो 33% आरक्षण द्वारा संचालित है।
    • स्वयं सहायता समूहों (SHG) के माध्यम से सशक्तीकरण: महिला समूहों और एसएचजी ने महिलाओं के वित्तीय सशक्तीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो लैंगिक समानता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • चुनौतियाँ: प्रगति के बावजूद, भारत को लिंग-विभाजित डेटा की कमी और महिलाओं को लाभ पहुँचाने वाले प्रमुख कार्यक्रमों के बहिष्कार के कारण GRB को लागू करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 
  • भारत ने महिलाओं की “समय की कमी” को कम करने के लिए खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन, नल के पानी के कनेक्शन और शौचालयों के निर्माण जैसे लिंग-उत्तरदायी समाधानों पर काम किया है।
    • समय की कमी से तात्पर्य आवश्यकताओं को पूरा करने तथा स्वास्थ्य को बेहतर बनाने वाली गतिविधियों में संलग्न होने के लिए पर्याप्त समय की कमी से है, जो प्रायः अत्यधिक कार्य या देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों के कारण होता है।

लैंगिक समानता और सशक्तीकरण

  • लैंगिक समानता: सभी के लिए समान अधिकार, जिम्मेदारियाँ और अवसर सुनिश्चित करना, लैंगिक भेदभाव को समाप्त करना और संसाधनों और निर्णय लेने तक उचित पहुँच सुनिश्चित करना। 
  • लैंगिक सशक्तीकरण: व्यक्तियों, विशेष रूप से महिलाओं को चुनाव करने, अपने जीवन को नियंत्रित करने और राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में समान रूप से भाग लेने में सक्षम बनाकर उन पर ध्यान केंद्रित करता है।

भारत में लैंगिक समानता को प्रभावित करने वाले कारक:

  • स्थापित सामाजिक मानदंड: पितृसत्तात्मक मानसिकता और पुत्र को वरीयता देने से गतिशीलता, शिक्षा और अवसर सीमित हो जाते हैं, जिससे हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में लिंगानुपात में विषमता आती है।
  • अवैतनिक देखभाल कार्य: महिलाएँ, पुरुषों की तुलना में अवैतनिक घरेलू कामों में लगभग पाँच गुना अधिक समय बिताती हैं (यूएन वूमेन), जिससे उनकी शिक्षा और सवेतन रोजगार तक पहुँच सीमित हो जाती है।
  • लिंग वेतन अंतर: वेतन में उल्लेखनीय असमानताएँ मौजूद हैं, भारत आर्थिक भागीदारी में केवल 36.7% समानता प्राप्त कर पाया है (वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक 2023)।
  • संपत्ति स्वामित्व: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) से पता चलता है कि महिलाओं की तुलना में अधिक पुरुषों के पास संपत्ति है।
    • कुल मिलाकर, 42.3% महिलाओं और 62.5% पुरुषों के पास घर है। 
    • 31.7% महिलाओं और 43.9% पुरुषों के पास अकेले या किसी और के साथ संयुक्त रूप से भूमि अधिकार है।
  • महिलाओं के खिलाफ हिंसा: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार:
    • 18-49 वर्ष की आयु के बीच की 29.3% विवाहित भारतीय महिलाओं को घरेलू हिंसा/या यौन हिंसा का सामना करना पड़ा है।
    • 18-49 वर्ष की आयु के बीच की 3.1% गर्भवती महिलाओं ने किसी भी गर्भावस्था के दौरान शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है।
  • शिक्षा अंतराल: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, कुल जनसंख्या में केवल 63 प्रतिशत महिलाएँ साक्षर हैं, जो पुरुष साक्षरता दर 80 प्रतिशत से काफी कम है।
    • विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा वर्ष 2024 के लिए जारी वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक में भारत को 146 अर्थव्यवस्थाओं में से 129वें स्थान पर रखा गया है।
      • पुरुषों और महिलाओं के बीच साक्षरता दर में 17 प्रतिशत का अंतर है।
  • राजनीतिक अल्प प्रतिनिधित्व: अप्रैल 2024 तक, राष्ट्रीय संसदों के लिए एक वैश्विक संगठन, अंतर-संसदीय संघ द्वारा प्रकाशित ‘राष्ट्रीय संसदों में महिलाओं की मासिक रैंकिंग’ में देशों की सूची में भारत 143वें स्थान पर है।
    • भारत की लोकसभा, 2024: इसमें 74 महिला सांसद शामिल हैं, जो निम्न सदन का केवल 13.63% है, जो अगले परिसीमन अभ्यास के बाद कार्यान्वयन के लिए निर्धारित 33% आरक्षण लक्ष्य से बहुत कम है।

भारत में लैंगिक समानता में सुधार के लिए उठाए गए कदम 

  • कानूनी सुधार
    • नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण प्रदान करता है (कार्यान्वयन लंबित है)।
    • हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005: इसके तहत समान संपत्ति उत्तराधिकार अधिकारों का प्रावधान।
  • महिला केंद्रित योजनाएँ
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ: इसका उद्देश्य बाल लिंगानुपात में सुधार करना और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना है।
    • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना: मातृत्व देखभाल के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है।
    • सुकन्या समृद्धि योजना: लड़कियों की शिक्षा और विवाह के लिए बचत को प्रोत्साहित करती है।
  • आर्थिक सशक्तीकरण
    • स्टैंड-अप इंडिया योजना: स्टैंड-अप इंडिया योजना एक सरकारी पहल है, जो अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) उधारकर्ताओं और महिला उधारकर्ताओं को ‘ग्रीनफील्ड’ उद्यम स्थापित करने के लिए 10 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये के बीच बैंक ऋण की सुविधा प्रदान करती है।
      • इस संदर्भ में ग्रीन फील्ड का तात्पर्य लाभार्थी द्वारा विनिर्माण, सेवा या व्यापार क्षेत्र और कृषि से संबद्ध गतिविधियों में पहली बार किए गए उद्यम से है।
    • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के तहत स्वयं सहायता समूहों में भागीदारी बढ़ाना। 
    • स्किल इंडिया और महिला ई-हाट प्लेटफॉर्म जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं को कौशल प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • लिंग आधारित हिंसा पर ध्यान देना
    • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 और कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 जैसे कानूनों का अधिनियमन। 
    • वन-स्टॉप सेंटर (OSC’s) महिलाओं के खिलाफ हिंसा की समस्या के समाधान के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
  • स्वास्थ्य और पोषण
    • जननी सुरक्षा योजना और पोषण अभियान: मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सुनिश्चित करना और कुपोषण से मुकाबला करना।
  • शिक्षा
    • कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय जैसी योजनाओं के तहत लड़कियों के लिए मुफ्त या रियायती शिक्षा। 
    • डिजिटल साक्षरता अभियान: महिलाओं में डिजिटल साक्षरता को बढ़ाता है।
  • जागरूकता और समर्थन: महिला शक्ति केंद्र जैसी पहल लैंगिक समानता के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देती है और जमीनी स्तर पर महिलाओं को सशक्त बनाती है।

लैंगिक समानता प्राप्त करने के अंतरराष्ट्रीय प्रयास

  • मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948): लैंगिक समानता को एक मौलिक मानव अधिकार के रूप में स्थापित किया गया।
  • महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW, 1979): प्रायः “महिलाओं के अधिकारों के विधेयक” के रूप में संदर्भित, यह संयुक्त राष्ट्र संधि वैश्विक स्तर पर लैंगिक आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए व्यापक उपायों की रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
  • सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी, 2015) का लक्ष्य 5: लक्ष्य 5 लैंगिक समानता पर स्पष्ट रूप से ध्यान केंद्रित करता है, जिसका उद्देश्य भेदभाव को समाप्त करना, हिंसा को समाप्त करना और नेतृत्व और निर्णय लेने में समान भागीदारी सुनिश्चित करना है।
  • अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च): महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाता है और वैश्विक स्तर पर चल रही लैंगिक चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाता है।
  • संयुक्त राष्ट्र महिला (2010): लैंगिक समानता के लिए एक वैश्विक अधिवक्ता के रूप में कार्य करता है, आर्थिक सशक्तीकरण, राजनीतिक भागीदारी और लैंगिक आधारित हिंसा को समाप्त करने से संबंधित कार्यक्रमों पर कार्य करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संकल्प 1325 (2000): शांति स्थापना, संघर्ष समाधान और संघर्ष के बाद की स्थिति से उबरने में महिलाओं की भूमिका पर जोर देता है।

आगे की राह

  • नीति और कानूनी सुधार: लैंगिक रूप से संवेदनशील कानूनों और उनके प्रवर्तन को मजबूत करना।
  • सामाजिक बुनियादी ढाँचे में निवेश: स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों के लिए वित्त में वृद्धि करना।
  • डेटा और जवाबदेही: प्रगति की प्रभावी निगरानी के लिए लैंगिक रूप से विभाजित डेटा संग्रह को बढ़ाएँ।
  • सामाजिक दृष्टिकोण को बदलना: उदाहरण: अवैतनिक देखभाल कार्य के बोझ को कम करने के लिए घरेलू जिम्मेदारियों में पुरुषों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • कानूनी और नीतिगत ढाँचों को मजबूत करना: संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण के कार्यान्वयन में तेजी लाएँ।
  • डिजिटल सशक्तीकरण: प्रौद्योगिकी और डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों तक समान पहुँच सुनिश्चित करके लिंग डिजिटल विभाजन को संबोधित करना।
  • लैंगिक रूप से संवेदनशील शिक्षा को बढ़ावा देना: पाठ्यक्रम में लैंगिक समानता को शामिल करके, पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित करके और सभी छात्रों को समान रूप से सशक्त बनाने के लिए सुरक्षित, समावेशी शिक्षण स्थान की स्थापना करना।

निष्कर्ष

लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिए कानूनी, सामाजिक और आर्थिक मोर्चों पर निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है ताकि एक समावेशी समाज बनाया जा सके, जहाँ हर कोई अपनी पूरी क्षमता का उपयोग कर सके।

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