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चरागाह और रेंजलैंड्स पर वैश्विक भूमि आउटलुक रिपोर्ट

Lokesh Pal May 23, 2024 01:04 130 0

संदर्भ

‘चरागाह और रेंजलैंड्स पर वैश्विक भूमि आउटलुक’ नामक रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (UNCCD) द्वारा प्रकाशित की गई है।

संबंधित तथ्य 

  • यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑन कॉम्बैटिंग डेजर्टिफिकेशन (UNCCD) द्वारा तैयार और प्रकाशित की गई है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2026 को ‘चरागाह और रेंजलैंड्स का अंतरराष्ट्रीय वर्ष’ (International Year of Rangelands and Pastoralists- IYRP) के रूप में घोषित किया गया है।

रेंजलैंड (Rangeland)

  • क्षेत्रफल: रेंजलैंड का विस्तार लगभग 80 मिलियन वर्ग किमी. है, जो पृथ्वी की कुल भूमि का 54% है।
    • दुनिया भर में केवल 12% या 9.5 मिलियन वर्ग किमी. को संरक्षित रेंजलैंड के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • महत्त्व
    • वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट का 33% भाग रेंजलैंड्स क्षेत्र में पाया जाता है।
    • विश्व की 24% भाषाएँ रेंजलैंड्स क्षेत्र में बोली जाती हैं।
  • वनस्पति की प्रकृति: रेंजलैंड्स में कम वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। इस क्षेत्र में घास के मैदान, स्टेपीज (छोटी घास के मैदान), रेगिस्तानी झाड़ियाँ, झाड़ीदार जंगल, सवाना, चैपरल, पहाड़ी चरागाह, पठार और टुंड्रा शामिल हैं।
  • रेंजलैंड्स और चरागाह के बीच अंतर होता है। रेंजलैंड्स में प्राकृतिक वनस्पति उपस्थित होती हैं, जबकि चरागाह का उपयोग खेती और पशुपालन के लिए किया जाता है।
    • आम तौर पर, वे सीमांत कृषि भूमि या उन क्षेत्रों तक ही सीमित हैं, जो स्थायी खेती के लिए पूरी तरह से अनुपयुक्त हैं।
  • विकास: रेंजलैंड्स का विकास निम्न स्थितियों के तहत किया जाता है। उदाहरण के लिए, सूखा, आग, चराई, खरपतवार, कीटों का प्रकोप, बीमारी और मानवीय गतिविधियाँ।
    • सामान्य रूप से, ऐसी परिस्थितियाँ रेंजलैंड पारिस्थितिकी तंत्र की जैविक विविधता और मिट्टी के स्वास्थ्य को लंबे समय तक अनुरक्षित करने में सहायता करती हैं।

रिपोर्ट के निष्कर्ष

  • रेंजलैंड्स का क्षरण: दुनिया की लगभग आधी रेंजलैंड्स का निरंतर क्षरण हो रहा है। इन रेंजलैंड्स में वैश्विक खाद्य उत्पादन का छठा हिस्सा उत्पादित होता है और पृथ्वी के कार्बन भंडार का लगभग एक-तिहाई भाग रेंजलैंड्स क्षेत्र में उपस्थित है।
    • क्षरण के लक्षण: मिट्टी की उर्वरता और पोषक तत्त्वों में कमी, कटाव, लवणीकरण, क्षारीकरण और मृदा संचयन के कारण पौधों की वृद्धि बाधित होती है, परिणामस्वरूप सूखा, वर्षा में उतार-चढ़ाव, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में समस्या, जैव विविधता का नुकसान आदि प्राकृतिक घटनाएँ होती हैं।
    • क्षरण का कारण
      • यह क्षरण जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि, अत्यधिक चराई, चरवाहों द्वारा रखरखाव में कमी और बढ़ती कृषि भूमि के कारण हो रहा है।
      • भूमि के उपयोग में परिवर्तन: जनसंख्या वृद्धि, शहरी विस्तार, भोजन, फाइबर और ईंधन की बढ़ती माँग के कारण चरागाहों को फसल भूमि और अन्य उपयोगों के लिए परिवर्तित किया जा रहा है।
      • खराब प्रशासन: अनियंत्रित नीतियों और विनियमों के कारण सतत् उत्पादन मॉडल में निवेश कम हुआ है, फलस्वरूप रेंजलैंड का अत्यधिक दोहन हुआ है।
      • वन क्षेत्र की समस्या: वनरोपण और नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन जैसी हरित गतिविधियों के लिए आम तौर पर रेंजलैंड का उपयोग किया जाता है।
        • भारत में 5 प्रतिशत से भी कम घास के मैदान संरक्षित क्षेत्रों में अंतर्गत आते हैं तथा घास के कुल मैदान का क्षेत्र वर्ष 2005 में 18 मिलियन हेक्टेयर से घटकर वर्ष 2015 में 12 मिलियन हेक्टेयर हो गया है।
        • उदाहरण के रूप में, भारत में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के प्राकृतिक आवास क्षेत्र में पवन ऊर्जा और सौर संयंत्र की स्थापना की गई है।
  • भारत में पशुचारण (Pastoralism in India)
    • भारत में लगभग 46 चरवाहा समूहों की पहचान की गई है।
    • वे अपने मवेशियों के झुंडों का उपयोग ‘अपशिष्ट’ बायोमास के उपयोग, जंगल या कटे हुए खेतों की चराई के लिए करते हैं। 
      • इन क्षेत्रों में मौसमी प्रवास (निचले इलाकों और पहाड़ों के बीच), खानाबदोश और अर्द्ध-खानाबदोश और गाँव आधारित पशुपालन होता है। 
    • पशुचारण की अर्थव्यवस्था: वे लोग पशुधन पालन और दूध उत्पादन के माध्यम से अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं। पशुधन क्षेत्र देश के राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में 4 प्रतिशत और कृषि सकल घरेलू उत्पाद में 26 प्रतिशत का योगदान करता है। 
      • विश्व की 20 प्रतिशत पशुधन आबादी भारत में है।
    • समुदाय: एक अनुमान के अनुसार, उनकी जनसंख्या लगभग 20 मिलियन से अधिक है, जो भारत की कुल आबादी का 1% है। इस समुदाय में मालधारी, वन गुज्जर, रबारी आदि जैसे प्रमुख समूह शामिल हैं।
    • पिछड़ा समूह: भारत में चरवाहा समूहों को हाशिए पर रहने वाला समुदाय माना जाता है, जिनका नीतिगत निर्णयों पर बहुत कम प्रभाव है, इसलिए उनके अधिकारों की बेहतर पहचान और बाजारों तक उनकी पहुँच को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। 
    • अधिकार और कल्याण पहल
      • वन अधिकार अधिनियम, 2006: इसने देश के सभी राज्यों में चरवाहों को चराने का अधिकार दिया है।
      • कानूनी अधिकार: उच्च न्यायालय के फैसले के बाद वन गुज्जर समुदाय को चराई का अधिकार मिला है और राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में भूमि का स्वामित्व प्राप्त हुआ है।
      • कल्याणकारी योजनाएँ: सरकार द्वारा पशुपालकों को उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए राष्ट्रीय पशुधन मिशन, पशुपालन अवसंरचना विकास निधि और स्थायी डेयरी उत्पादन पर राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत सहायता प्रदान करने वाली योजनाओं की शुरुआत की गई है।
  • मुख्य सिफारिशें
    • एकीकृत प्रबंधन योजनाएँ: जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन रणनीतियों को सतत् रेंजलैंड प्रबंधन योजनाओं के साथ जोड़ा जाना चाहिए, ताकि चरवाहे एवं रेंजलैंड समुदायों के हितों की रक्षा की जा सके।
    • भूमि उपयोग में बदलाव को सीमित करना: रेंजलैंड और अन्य प्रकार की भूमि उपयोग में बदलाव को कम करने की आवश्यकता है, ताकि भूमि की विविधता को संरक्षित किया जा सके।
    • संरक्षण के उपाय: जैव विविधता का समर्थन करने, व्यापक पशुधन उत्पादन प्रणालियों के स्वास्थ्य, उत्पादकता और लचीलेपन में सुधार करने तथा संरक्षित क्षेत्रों के भीतर एवं बाहर रेंजलैंड संरक्षण उपायों को अपनाने की आवश्यकता है।
    • पशुचारण: रेंजलैंड में नुकसान को कम करने के लिए पशुचारण आधारित रणनीतियों और प्रथाओं को अपनाना एवं समर्थन करना।
    • नीतिगत हस्तक्षेप: रेंजलैंड और पशुपालक सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए सहायक नीतियों, स्थानीय लोगों की भागीदारी और लचीले प्रबंधन तथा शासन प्रणाली को बढ़ावा देना।

मरुस्थलीकरण से निपटने हेतु संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD)  

  • स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1994 में भूमि प्रबंधन पर  अंतरराष्ट्रीय समझौता के रूप में की गई थी, जो भूमि की रक्षा और पुनर्स्थापन, सुरक्षित, न्यायपूर्ण और सतत् भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए कार्य करता है।  
  • उद्देश्य: UNCCD मरुस्थलीकरण और सूखे के प्रभावों को संबोधित करने के लिए स्थापित एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी ढाँचा है, जो भूमि क्षरण को रोकने एवं कम करने वाली प्रथाओं को बढ़ावा देता है। सतत् विकास लक्ष्य संख्या-15 और भूमि क्षरण तटस्थता जैसे उद्देश्यों के लिए यह संस्था प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य कर रही है।
  • सदस्यता: इसमें 197 सदस्य देश शामिल हैं।
  • स्थायी सचिवालय: सचिवालय बॉन, जर्मनी में स्थित है। 
  • सिद्धांत: सम्मेलन भागीदारी, साझेदारी और विकेंद्रीकरण के सिद्धांतों पर आधारित है। 
  • प्रमुख पहल
    • UNCCD का रणनीतिक ढाँचा, 2018-2030: यह भूमि क्षरण तटस्थता (Land Degradation Neutrality- LDN) प्राप्त करने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रतिबद्ध है, जिसमें 129 देशों ने पहले से ही अपना स्वैच्छिक राष्ट्रीय LDN लक्ष्य निर्धारित किया है।
    • सूखा पहल वर्ष 2018 में शुरू की गई थी।

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