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पात्र दोषियों की सजा में छूट पर विचार करने से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

Lokesh Pal February 21, 2025 03:33 21 0

संदर्भ 

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय दिया गया, कि उपयुक्त सरकारों को पात्र दोषियों की शीघ्र रिहाई पर उनके स्वयं के द्वारा या उनके रिश्तेदारों द्वारा छूट के लिए आवेदन किए जाने का इंतजार किए बिना विचार करना चाहिए।

किसी अपराधी की समयपूर्व रिहाई क्या है?

  • दोषियों की समयपूर्व रिहाई से तात्पर्य कैदियों को उनकी सजा पूर्ण होने से पूर्व ही रिहा कर दिया जाना है।
  • यह विभिन्न कारणों से हो हो सकती है, जैसे अच्छा व्यवहार, पुनर्वास प्रयास या कानून में बदलाव।

अनुच्छेद-72: राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-72 राष्ट्रपति को कुछ मामलों में क्षमादान, स्थगन, राहत, सजा में छूट या छूट देने का अधिकार प्रदान करता है। 
    • राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित स्थितियों में इन शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है:
      • कोर्ट मार्शल द्वारा सजा
      • संघ की कार्यकारी शक्ति के अंतर्गत अपराध
      • मृत्युदंड के मामले

अनुच्छेद-161: क्षमादान देने की राज्यपाल की शक्ति

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-161 राज्य के राज्यपाल को क्षमादान, स्थगन, राहत, छूट या सजा में छूट देने का अधिकार देता है।
    • राज्यपाल की शक्ति की सीमाएँ
      • केवल राज्य कानूनों के तहत दोषसिद्धि पर लागू।
      • कोर्ट-मार्शल (सैन्य न्यायालय) के मामलों में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता।
      • संघ की कार्यकारी शक्ति (अनुच्छेद-72 के तहत राष्ट्रपति द्वारा नियंत्रित) के तहत अपराधों तक विस्तारित नहीं होता है।

भारत में क्षमादान से संबंधित प्रमुख मामले 

  • मारू राम बनाम भारत संघ (वर्ष 1980): इस मामले में धारा 433A को बरकरार रखा गया कि क्षमा एक अधिकार नहीं है और इसे सुपरिभाषित नियमों के आधार पर दिया जाना चाहिए।
    • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि राष्ट्रपति और राज्यपालों की क्षमादान की शक्ति (अनुच्छेद-72 और 161) का प्रयोग नहीं किया जा सकता है, जो इस प्रावधान को समाप्त करता है।
  • लक्ष्मण नस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (वर्ष 2000): इस मामले में आजीवन कारावास की सजा प्राप्त दोषियों को सजा में छूट देने के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए थे।
    • छूट के लिए मुख्य विचार
      • क्या अपराधी रिहाई के बाद समाज के लिए खतरा उत्पन्न होता है?
      • क्या अपराध असाधारण परिस्थितियों में किया गया था?
      • कैदियों की आयु और स्वास्थ्य।
      • क्या कैदी की रिहाई सार्वजनिक हित में होगी?
      • कैद के दौरान कैदी का आचरण।
  • भारत संघ बनाम वी. श्रीहरन (वर्ष 2015): इस मामले में, न्यायालय ने कहा कि राज्य धारा 302 IPC (हत्या) या अन्य केंद्रीय कानूनों के तहत सजा पाए दोषियों को केंद्रीय मंजूरी के बिना एकतरफा छूट नहीं दे सकते।
    • इसने स्पष्ट सीमाएँ निर्धारित की और स्थापित किया कि आतंकवाद जैसे गंभीर अपराध से निपटने के दौरान छूट पर कुछ प्रतिबंध हैं।

निर्णय के मुख्य बिंदु

  • निष्पक्ष छूट नीतियाँ सुनिश्चित करना सरकार का कर्तव्य है।
    • छूट देने की शक्ति का प्रयोग निष्पक्ष और उचित तरीके से किया जाना चाहिए।
    • भेदभाव और मनमानी को रोकने के लिए एक समान दृष्टिकोण आवश्यक है।
    • राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अस्पष्टता को दूर करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश तैयार करने चाहिए।
  • छूट के लिए कानूनी आधार
    • CrPC की धारा 432 (जिसे अब BNSS की धारा 473 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है) राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और केंद्र सरकार को समय पूर्व दोषियों को रिहा करने का अधिकार प्रदान करती है।
    • हालाँकि, मृत्युदंड की सजा वाले अपराधों में आजीवन कारावास की सजा प्राप्त दोषियों को छूट के लिए पात्र होने से पूर्व कम से कम 14 वर्ष की सजा पूर्ण करनी होगी।
  • छूट नीति का अनिवार्य निर्माण
    • सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दो माह के अंतर्गत छूट नीति बनानी होगी, अगर उनके पास पहले से कोई नीति नहीं है।
    • नीतियों में यह होना चाहिए:
      • पात्रता मानदंड निर्धारित करना।
      • राजनीतिक या मनमाने निर्णय लेने से रोकना।
      • सभी मामलों में छूट हेतु कानूनों का समान अनुप्रयोग सुनिश्चित करना।
  • छूट में राजनीतिक हस्तक्षेप का उन्मूलन
    • न्यायालय ने पूर्व विवादास्पद छूट मामलों पर प्रकाश डाला, जिनमें शामिल हैं:
      • बिलकिस बानो केस (वर्ष 2002 गुजरात दंगे): अनुचित सरकारी हस्तक्षेप के कारण 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई रद्द कर दी गई।
      • आनंद मोहन केस (बिहार, 2023): एक राजनीतिक निर्णय के कारण उनकी रिहाई के लिए जेल नियमों में संशोधन किया गया।
        • मामला अभी भी न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
  • छूट में निष्पक्षता और पारदर्शिता को सुनिश्चित करना
    • सभी पात्र दोषियों पर विचार करने का दायित्व
      • यदि कोई छूट नीति मौजूद है, तो सरकार को सभी पात्र मामलों की स्वतः समीक्षा करनी चाहिए।
      • दोषियों या उनके परिवारों को छूट के लिए आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।
      • मनमाना निर्णय लेना अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
    • छूट देने या न देने का औचित्य
      • निर्णय स्पष्ट कारणों से समर्थित होने चाहिए और दोषी को तुरंत सूचित किया जाना चाहिए।
      • माफी से इनकार करने से दोषी की स्वतंत्रता प्रभावित होती है (अनुच्छेद-21), इसलिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत लागू होने चाहिए।
    • सशर्त छूट और इसके प्रतिबंध
      • छूट के लिए निम्नलिखित शर्तें होनी चाहिए।
        • आपराधिक प्रवृत्तियों को रोकना।
        • सफल पुनर्वास को सुनिश्चित करना।
        • अत्यधिक कठोर या अस्पष्ट न हों, जिससे दोषियों के लिए लाभ प्राप्त करना असंभव हो जाए।
    • विचारणीय कारक
      • अपराध की प्रकृति।
      • आपराधिक इतिहास।
      • पीड़ितों और सार्वजनिक सुरक्षा पर प्रभाव।
  • कार्यान्वयन और निगरानी तंत्र
    • कानूनी सेवा प्राधिकरण की भूमिका
      • जेल अधिकारियों द्वारा दोषियों को अस्वीकृति की चुनौती देने के उनके अधिकार के बारे में सूचित करना चाहिए।
      • जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) निम्नलिखित कार्य करेंगे:
        • पात्र दोषियों का रिकॉर्ड बनाए रखेंगे।
        • सुनिश्चित करेंगे कि राज्य की नीतियों का पालन किया जाए।
      • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA)
        • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के विधिक निकायों के साथ साझा करना होगा।
    • पारदर्शिता के लिए डिजिटल ट्रैकिंग
      • छूट के मामलों की निगरानी करने के लिए एक रियल टाइम डिजिटल पोर्टल बनाया जाएगा।
      • इससे पारदर्शिता सुनिश्चित होगी और विलंब की स्थिति से बचा जा सकेगा।
    • छूट को मनमाने ढंग से रद्द करने के विरुद्ध संरक्षण
      • एक बार छूट दिए जाने के बाद, इसे उचित प्रक्रिया के बिना रद्द नहीं किया जा सकता।
      • अगर कोई दोषी छूट की शर्तों का उल्लंघन करता है, तो उसे रद्द करने से पूर्व सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।
      • रद्द करने के आदेश में स्पष्ट कारण शामिल होने चाहिए।
    • छूट से संबंधित मामलों के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SoP)
      • सर्वोच्च न्यायालय ने नालसा द्वारा बनाए गए SoP का समर्थन किया।
      • SoP के पूर्ण कार्यान्वयन का निर्देश दिया, जिसमें निम्नलिखित प्रावधान शामिल हैं:
        • सुनिश्चित करें कि दोषियों को अस्वीकृति की चुनौती देने के उनके अधिकार के बारे में जानकारी दी जाए।
        • छूट पर ट्रायल जज की राय लेने की प्रक्रिया में तीव्रता लाई जाए।

छूट देने में समस्याएँ

कैदियों को क्षमा प्रदान करने में कानूनी, नैतिक और प्रशासनिक जैसी विभिन्न चुनौतियाँ शामिल होती हैं।

  • समान मानदंडों का अभाव: अलग-अलग राज्य कैदियों को छूट देने के लिए अलग-अलग नियमों का पालन करते हैं, जिससे निर्णय लेने में असंगति उत्पन्न होती है।
  • राजनीतिक और कार्यकारी हस्तक्षेप: योग्यता के बजाय राजनीतिक विचार छूट को प्रभावित करते हैं।
    • हाई प्रोफाइल मामलों को अक्सर राजनीतिक विचार और सार्वजनिक राय का सामना करना पड़ता है।
  • सार्वजनिक सुरक्षा: गंभीर अपराधियों द्वारा पुनः अपराध करने या उनके द्वारा अपराध करने का हमेशा उच्च जोखिम रहता है।
    • राजनीतिक और कार्यकारी हस्तक्षेप जैसे जघन्य अपराध सार्वजनिक सुरक्षा के समक्ष चिंताएँ उत्पन्न  करते हैं।
  • पारदर्शिता का अभाव: छूट संबंधी अधिकांश निर्णय गुप्त रूप से लिए जाते है या उन्हें लेते समय एक पारदर्शी प्रक्रिया को नहीं  अपनाया जाता है।
    • ऐसी निर्णय लेने की प्रक्रिया में पीड़ित और आम जनता की न्यूनतम भूमिका होती है।

सजा में छूट: पक्ष और विपक्ष

छूट का अर्थ है अच्छे व्यवहार, पुनर्वास या अन्य कारणों से दोषी की सजा को कम करना। हालाँकि इसके कई लाभ  हैं, लेकिन इससे न्याय और सुरक्षा के संबंध में चिंताएँ भी उत्पन्न होती हैं।

  • छूट के पक्ष में तर्क
    • पुनर्वास और पुनः एकीकरण: अच्छे व्यवहार को प्रोत्साहित करता है, दोषियों को जिम्मेदार नागरिक के रूप में समाज में पुनः एकीकृत होने में मदद करता है।
    • जेलों में भीड़ का कम करना: जेलों में भीड़-भाड़ का कम करना, शेष कैदियों के लिए रहने की स्थिति में सुधार होता है।
    • दूसरा अवसर: सुधारे हुए व्यक्तियों को एक बेहतर जीवन जीने का अवसर प्रदान करता है।
    • मानवीय विचार: उन लोगों को राहत प्रदान करता है, जिनमें वास्तविक पश्चाताप और व्यक्तिगत सुधार देखा जाता है।
  • छूट के विरुद्ध तर्क
    • अपराध की पुनरावृत्ति का जोखिम: कुछ अपराधी पुनः अपराध कर सकते हैं, जिससे सार्वजनिक सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो सकता है।
    • पीड़ितों के अधिकार: समय पूर्ण रिहाई से पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए न्याय प्रणाली क्षीण हो सकती है।
    • विवेकाधिकार का दुरुपयोग: अधिकारी छूट शक्तियों का दुरुपयोग कर सकते हैं, जिससे पक्षपात और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
    • सार्वजनिक धारणा: यदि छूट प्राप्ति को सरल माना जाए, तो यह  न्याय प्रणाली में लोगों के विश्वास को कम कर सकती है।

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