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भारत-ऑस्ट्रेलिया ने हिंद-प्रशांत पहल में समुद्री पारिस्थितिकी को बढ़ावा दिया

Lokesh Pal August 17, 2024 04:41 74 0

संदर्भ

हाल ही में छठवीं भारत-ऑस्ट्रेलिया समुद्री सुरक्षा वार्ता कैनबरा में आयोजित की गई। बैठक में सुरक्षित समुद्री पर्यावरण सुनिश्चित करने तथा हिंद-प्रशांत महासागर पहल के समुद्री पारिस्थितिकी भाग पर मिलकर कार्य करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।

संबंधित तथ्य

  • समुद्री सुरक्षा: समावेशी विकास और वैश्विक कल्याण के लिए सुरक्षित समुद्री पारिस्थितिकी बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित किया गया। 
  • विषय
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा
    • समुद्री डोमेन जागरूकता: इसमें समुद्री गतिविधियों की निगरानी और समझ शामिल है। 
    • मानवीय सहायता और आपदा राहत (Humanitarian Assistance and Disaster Relief- HADR): आपात स्थितियों के लिए समन्वय और प्रतिक्रिया प्रयास।
    • क्षेत्रीय एवं बहुपक्षीय सहभागिताएँ (Regional and multilateral engagements): अन्य देशों एवं संगठनों के साथ सहयोग करना। 
    • समुद्री संसाधनों का सतत् उपयोग

  • सहयोग के प्रमुख क्षेत्र
    • खोज एवं बचाव: समुद्र में आपातकालीन स्थितियों में सहायता के लिए संयुक्त प्रयास।
    • प्रदूषण प्रतिक्रिया: समुद्री प्रदूषण से निपटने के लिए मिलकर कार्य करना। 
    • नीली अर्थव्यवस्था: समुद्री संसाधनों के सतत आर्थिक उपयोग को बढ़ावा देना। 
    • बंदरगाह स्टेट नियंत्रण : यह सुनिश्चित करना, कि जहाज सुरक्षा और पर्यावरण मानकों को पूर्ण करें।

इंडो-पैसिफिक महासागर पहल (Indo-Pacific Oceans Initiative-IPOI)

  • IPOI देशों के लिए साझा क्षेत्रीय चुनौतियों का मिलकर समाधान करने हेतु एक खुली, गैर-संधि पहल है। 
  • क्षेत्र: यह हिंद और प्रशांत महासागर को कवर करता है। 
  • उद्देश्य: क्षेत्र में वैश्विक सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों पर ध्यान देना। 
  • उत्पत्ति: भारत की ‘सागर’ पहल (वर्ष 2015) से विस्तारित। 
  • प्रस्ताव: 14वें पूर्वी एशियाई शिखर सम्मेलन (4 नवंबर, 2019) में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रस्तुत किया गया। 

उद्देश्य

  • समुद्री सीमाओं को मजबूत करना: क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा में सुधार करना।
  • मुक्त व्यापार और सतत् उपयोग को बढ़ावा देना: मुक्त व्यापार और संसाधन प्रबंधन का समर्थन करना। 
  • लोकतांत्रिक शासन को बढ़ावा देना: आर्थिक विकास के लिए नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देना। 
  • सहयोगात्मक तंत्र विकसित करना: समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग करना।

सात स्तंभ

  • समुद्री सुरक्षा: समुद्र में सुरक्षा सुनिश्चित करना। 
  • समुद्री पारिस्थितिकी: समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा।
  • समुद्री संसाधन: समुद्री संसाधनों का सतत् उपयोग। 
  • क्षमता निर्माण और संसाधन साझाकरण: कौशल बढ़ाना और संसाधन साझा करना। 
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण एवं प्रबंधन (Disaster Risk Reduction and Management): समुद्री आपदाओं का प्रबंधन। 
  • व्यापार संपर्क और समुद्री परिवहन: व्यापार मार्गों और परिवहन में सुधार। 
  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शैक्षणिक सहयोग: अनुसंधान और साझेदारी को बढ़ावा देना।

छठी भारत-ऑस्ट्रेलिया समुद्री सुरक्षा वार्ता का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • सुरक्षित समुद्री व्यापार को बढ़ावा
    • सुरक्षित व्यापार मार्ग: भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए सुरक्षित समुद्री पारिस्थितिकी महत्त्वपूर्ण है। 
      • एक साथ मिलकर कार्य करते हुए भारत और ऑस्ट्रेलिया का लक्ष्य नौवहन मार्गों की सुरक्षा करना तथा भारतीय व्यवसायों के लिए जोखिम और लागत को कम करना है।
    • निर्यात में वृद्धि: सुरक्षित और कुशल समुद्री मार्ग वैश्विक बाजारों में भारत के वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा दे सकते हैं। 

  • नीली अर्थव्यवस्था की संभावना
    • समुद्री संसाधनों का दोहन: भारत अपनी नीली अर्थव्यवस्था को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। मत्स्य पालन, जलीय कृषि और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में ऑस्ट्रेलिया के साथ सहयोग इस विकास में योगदान दे सकता है। 
      • रोजगार सृजन: नीली अर्थव्यवस्था में भारत में असीमित रोजगार सृजन की क्षमता है, जो आर्थिक वृद्धि और विकास में योगदान दे सकती है। 
  • आपदा प्रबंधन और लचीलापन
    • बेहतर आपदा प्रतिक्रिया: आपदा प्रबंधन में बेहतर सहयोग से भारत को चक्रवात और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए बेहतर तैयारी करने और उनका सामना करने में मदद मिलेगी। 
    • तटीय अवसंरचना की सुरक्षा: मजबूत आपदा लचीलापन, बंदरगाहों और उद्योगों सहित भारत की महत्त्वपूर्ण तटीय अवसंरचना को क्षति से बचाता है 
  • समग्र आर्थिक विकास
    • निवेश आकर्षित करना: सुरक्षित समुद्री वातावरण और नीली अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने से भारत के समुद्री क्षेत्र में विदेशी निवेश आकर्षित हो सकता है। 
    • सतत् विकास: समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग के प्रति भारत की प्रतिबद्धता वैश्विक प्रवृत्तियों के अनुरूप है और इससे दीर्घकालिक आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है।

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