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भारत ने समुद्री जैव विविधता की रक्षा के लिए BBNJ समझौते पर हस्ताक्षर किए

Lokesh Pal September 30, 2024 03:07 35 0

संदर्भ 

भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (Biodiversity Beyond National Jurisdiction- BBNJ) समझौते पर हस्ताक्षर किए है।

BBNJ समझौता

  • BBNJ समझौता, जिसे ‘हाई सीज ट्रीटी’ (High Seas Treaty) के रूप में भी जाना जाता है, संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) के तहत विकसित एक अंतरराष्ट्रीय संधि है।
  •  यह UNCLOS के तहत तीसरा कार्यान्वयन समझौता है, शेष दो समझौते हैं:-
    • 1994 भाग XI कार्यान्वयन समझौता- अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में खनिज संसाधनों की खोज एवं निष्कर्षण को संबोधित करना।
    • 1995 संयुक्त राष्ट्र मत्स्य स्टॉक समझौता- यह समझौता स्ट्रैडलिंग और प्रवासी मछली स्टॉक के संरक्षण और प्रबंधन से संबंधित है।
  • BBNJ समझौता एक समावेशी, पारिस्थितिकी तंत्र-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाता है, जो पारंपरिक ज्ञान एवं सर्वोत्तम उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारी दोनों को बढ़ावा देता है।

अपनाने और अनुसमर्थन की समय सीमा

  • अंगीकरण: BBNJ समझौते को 19 जून, 2023 को न्यूयॉर्क में 5वें अंतरसरकारी सम्मेलन में सर्वसम्मति से अपनाया गया था।
  • हस्ताक्षर: सदस्य देश सितंबर 2023 से दो वर्ष तक  समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं।
  • लागू: यह संधि 60 देशों के अनुसमर्थन के 120 दिन बाद लागू होगी।
  • हस्ताक्षरकर्ता: सितंबर 2024 तक, लगभग 100 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं एवं उनमें से आठ देशों ने इसकी पुष्टि की है।
  • समापन तिथि: समझौते पर हस्ताक्षर 20 सितंबर, 2025 को बंद हो जाएँगे, जिसके बाद ही देश संधि में शामिल हो सकेंगे।

BBNJ समझौते के उद्देश्य

BBNJ समझौते का उद्देश्य तटीय देशों के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों (EEZs) के अलावा विभिन्न समुद्री क्षेत्रों में समुद्री जैव विविधता के दीर्घकालिक संरक्षण पर बढ़ती चिंताओं का समाधान करना है।

  • समुद्री पारिस्थितिकी का संरक्षण एवं संवर्द्धन।
  • समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से लाभ का उचित एवं न्यायसंगत बँटवारा।
  • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए संभावित रूप से हानिकारक गतिविधियों के लिए पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन (EIA) करना।

BBNJ  समझौते की मुख्य विशेषताएँ

  • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA): अंतरराष्ट्रीय जल में उन गतिविधियों के लिए अनिवार्य है, जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
    • यदि खुले समुद्र में प्रभाव की आशंका हो तो EIAs को सार्वजनिक किया जाना चाहिए एवं राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर भी इसका संचालन किया जाना चाहिए।
  • लाभ साझा करने के दिशा-निर्देश: संधि अनुसंधान के माध्यम से एकत्र किए गए समुद्री आनुवंशिक संसाधनों (Marine Genetic Resources- MGR) के लिए उचित लाभ-साझाकरण सिद्धांतों की रूपरेखा तैयार करती है।
  • जैव विविधता संरक्षण: विश्व के 30% महासागरों के लिए सुरक्षा का प्रस्ताव है एवं समुद्री संरक्षण प्रयासों के लिए धन में वृद्धि करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से समुद्री जैविक विविधता के सतत् उपयोग को बढ़ावा देता है।
    • यह सुनिश्चित करता है, कि कोई भी देश खुले समुद्री संसाधनों पर संप्रभु अधिकार का दावा नहीं कर सकता है।
    • विकासशील देशों को समुद्री संसाधनों का पूर्ण उपयोग करने एवं उनके संरक्षण में योगदान करने में मदद करने के लिए क्षमता निर्माण तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण।

खुले समुद्र (High Seas) के बारे में

  • वर्ष 1958 के जिनेवा कन्वेंशन में परिभाषित उच्च समुद्र तटीय देशों के विशेष आर्थिक क्षेत्रों से 200 समुद्री मील से अधिक दूर के क्षेत्र हैं।
  • विस्तार: खुले समुद्र, समुद्री सतह का 64% भाग कवर करते हैं एवं पृथ्वी की सतह का 43% हिस्सा बनाते हैं।

  • उच्च सागरों का महत्त्व
    • जैव विविधता: खुले समुद्र लगभग 2.7 लाख ज्ञात प्रजातियों का आवास हैं, जिनमें से कई की खोज अभी बाकी है।
    • जलवायु विनियमन: वे कार्बन को अवशोषित करके एवं सौर विकिरण का भंडारण करके जलवायु को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • उनके महत्त्व के बावजूद, उच्च समुद्रों का केवल 1.44% हिस्सा संरक्षित है, जिससे वे अत्यधिक दोहन, प्रदूषण एवं जैव विविधता के नुकसान के प्रति संवेदनशील हो गए हैं।

उच्च समुद्रों पर मानवजनित दबाव

  • अत्यधिक मत्स्याखेट एवं आक्रामक प्रजातियों का आगमन।
  • समुद्री तल में खनन एवं रासायनिक रिसाव।
  • प्रदूषण, जिसमें प्लास्टिक एवं अनुपचारित कचरा शामिल है।
    • वर्ष 2021 में, संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि लगभग 17 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में फेंक दिया गया था।
  • महासागरीय अम्लीकरण एवं ध्वनि प्रदूषण।

डीप ओशन मिशन (Deep Ocean Mission)

  • भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) द्वारा सितंबर 2021 में डीप ओशन मिशन (DOM) लॉन्च किया गया था।
  • अनुमानित लागत: रु. 4,077 करोड़, दो चरणों में निष्पादित।

फोकस क्षेत्र

  • गहरे समुद्र में अन्वेषण: समुद्रयान परियोजना के तहत ‘MATSYA 6000 सबमर्सिबल’ सहित क्रू एवं अनक्रूड सबमर्सिबल का उपयोग करना।
  • गहरे समुद्र में खनन: सतत् खनन के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास।
  • अंडरवाटर रोबोटिक्स: अंडरवाटर रोबोटिक्स में नवाचार।
  • महासागरीय जलवायु परिवर्तन: गहरे समुद्र के आँकड़ों पर आधारित जलवायु मॉडल एवं अनुमान।
  • गहरे समुद्र में जैव विविधता: समुद्री जैव विविधता के लिए अन्वेषण एवं संरक्षण प्रौद्योगिकियाँ।
  • समुद्री जैव-संसाधन: समुद्री जैव-संसाधनों का सतत् उपयोग एवं संरक्षण।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: महासागर आधारित नवीकरणीय ऊर्जा समाधान विकसित करना।

BBNJ समझौते का भारत पर प्रभाव

BBNJ समझौते में भारत की भागीदारी उसके विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) से परे के क्षेत्रों में समुद्री संरक्षण एवं संसाधनों के सतत् उपयोग की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम का प्रतिनिधित्व करती है। भारत के लिए लाभों में शामिल हैं;

  • सामरिक उपस्थिति: अंतरराष्ट्रीय जल में भारत के रणनीतिक प्रभाव का विस्तार।
  • संरक्षण को सुदृढ़ बनाना: समुद्री संरक्षण प्रयासों, क्षमता निर्माण एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर आगे सहयोग।
  • संसाधनों तक पहुँच: वैज्ञानिक अनुसंधान, विकास एवं समुद्री आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच के लिए नए रास्ते।
    • भारत के गहरे महासागर मिशन के अनुरूप।

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