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भारत-श्रीलंका मत्स्य विवाद

Lokesh Pal February 14, 2025 03:04 82 0

संदर्भ 

पाक खाड़ी में, विशेष रूप से कच्चातीवु द्वीप के आसपास, मछली पकड़ने के अधिकारों को लेकर लंबे समय से चल रहे विवाद के कारण भारतीय और श्रीलंकाई मछुआरों के बीच अक्सर तनाव की स्थिति बनी रहती है।

विवाद की पृष्ठभूमि

  • भारत-श्रीलंका के मध्य मछली पकड़ने संबंधी विवाद एक पुराना मुद्दा है, जिसकी जड़ें ऐतिहासिक, भौगोलिक, आर्थिक और राजनीतिक कारकों में निहित हैं।
  • भारत और श्रीलंका के बीच वर्ष 1974 और वर्ष 1976 के द्विपक्षीय समझौतों ने अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (International Maritime Boundary Line-IMBL) की स्थापना की, जो दोनों देशों के बीच जल क्षेत्र को विभाजित करती है।
    • वर्ष 1974 का समझौता: भारत ने कच्चातीवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया, यह निर्णय भारत में, विशेषकर तमिलनाडु में विवादास्पद बना हुआ है।
    • वर्ष 1976 का समझौता: समुद्री सीमा और मछली पकड़ने के अधिकारों को और स्पष्ट किया गया, जिससे दोनों देशों के मछुआरों को एक-दूसरे के जलक्षेत्र में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया गया।
  • कच्चातीवु द्वीप: पाक खाड़ी में एक छोटा, निर्जन द्वीप, जिसे वर्ष 1974 के भारत-श्री लंका समुद्री समझौते के माध्यम से भारत द्वारा श्रीलंका को सौंप दिया गया था।
  • पारंपरिक मछली पकड़ने के अधिकार: भारतीय मछुआरे, विशेष रूप से तमिलनाडु के, ऐतिहासिक रूप से इन जल क्षेत्रों में मछली पकड़ते रहे हैं, जिसके कारण वर्ष 1974 के बाद संघर्ष हुए।
  • पारिस्थितिक चिंताएँ: भारतीय मछुआरे अक्सर बॉटम ट्रॉलिंग का उपयोग करते हैं, जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अत्यधिक विनाशकारी है, प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुँचाता है और मछली के आबादी को कम करता है।

हालिया प्रगति

  • गिरफ्तारियाँ एवं जब्तियाँ: हाल ही में, श्रीलंका की नौसेना ने तमिलनाडु के 14 भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया। श्रीलंका ने उनकी 2 मछली पकड़ने वाली नावें (ट्रॉलर) भी ज़ब्त कर लीं।
    • वर्ष 2024 में, श्रीलंकाई नौसेना ने 146 भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया और 18 नावें जब्त कीं, जिससे दोनों देशों में तनाव बढ़ गया।
  • श्रीलंकाई मछुआरों का विरोध: जाफना, मुल्लातिवु और मन्नार जिलों के मछुआरों ने भारतीय मछुआरों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किया है, उन पर अवैध रूप से मछली पकड़ने और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाने का आरोप लगाया है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किए जाने या हिंसा का सामना करने की घटनाओं ने तमिलनाडु में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।

कच्चातीवु द्वीप (Kachchatheevu Island) 

  • कच्चातीवु एक निर्जन द्वीप है, जो भारत-श्रीलंका संबंधों में चर्चा का विषय रहा है।
  • ऐतिहासिक रूप से, इसका उपयोग दोनों देशों के मछुआरे करते थे।
  • वर्ष 1974 के समुद्री सीमा समझौते के तहत भारत ने इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया था।
  • पाक जलडमरूमध्य में द्वीप का रणनीतिक स्थान इसे समुद्री सीमाओं और मछली पकड़ने की गतिविधियों के लिए महत्त्वपूर्ण बनाता है।

भारत-श्रीलंका मत्स्यपालन संघर्ष के निहितार्थ

  • मछुआरों के परिवारों पर प्रभाव: श्रीलंका नौसेना द्वारा भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी और कारावास से उनके परिवारों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है।
  • जीवन की हानि: समुद्री संघर्षों के कारण मछुआरे मारे गए हैं और लापता हुए हैं, जिससे मछुआरा समुदायों के लिए जोखिम बढ़ गया है।
  • निगरानी संबंधी लागत में वृद्धि: अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (IMBL) पर गश्त करने के लिए भारतीय तटरक्षक और श्रीलंका नौसेना से महत्त्वपूर्ण संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  • तस्करी और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: तस्कर विवादित क्षेत्र का इस्तेमाल नशीली दवाओं, हथियारों और प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी के लिए करते हैं।
  • भारत-श्रीलंका तनावपूर्ण संबंध: श्रीलंका नौसेना द्वारा भारतीय मछुआरों के साथ कठोर व्यवहार के आरोपों से कूटनीतिक तनाव बढ़ता है।
    • इस संघर्ष ने मानवाधिकार उल्लंघन के संबंध में श्रीलंका के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों पर भारत के रुख को प्रभावित किया है।
    • उदाहरण: श्रीलंका पर UNHRC प्रस्तावों के लिए भारत का वर्ष 2012 और वर्ष 2013 का समर्थन आंशिक रूप से मछली पकड़ने के मुद्दे और तमिल चिंताओं पर घरेलू दबाव से प्रभावित था।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: भारतीय मछुआरों द्वारा समुद्र तल पर मछली पकड़ने से समुद्रतल, मछली प्रजनन क्षेत्र और प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुँचता है।

मत्स्यन की स्वतंत्रता और अंतरराष्ट्रीय कानून

अंतरराष्ट्रीय कानून तटीय राज्यों और उच्च समुद्र शासन के अधिकारों का सम्मान करते हुए समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए मछली पकड़ने की गतिविधियों को विनियमित करते हैं।

  • संयुक्त राष्ट्र मत्स्य भंडारण समझौता (UN Fish Stocks Agreement-UNFSA, 1995): राज्यों को क्षेत्रीय मत्स्य प्रबंधन संगठनों (Regional Fisheries Management Organizations-RFMO) का सदस्य बनने या उनके संरक्षण और प्रबंधन उपायों पर सहमत होने के लिए प्रोत्साहित करता है।
    • RFMO अंतरराष्ट्रीय संगठन हैं, जो विशिष्ट महासागर क्षेत्रों में मछली स्टॉक को विनियमित करने के लिए जिम्मेदार हैं।
    • UNFSA अत्यधिक मछली पकड़ने और संसाधनों की कमी को रोकते हुए मत्स्य संसाधनों तक समान पहुँच सुनिश्चित करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS), 1982: अनुच्छेद 87- उच्च समुद्री क्षेत्र की स्वतंत्रता।
    • UNCLOS राज्यों को संरक्षण नियमों का पालन करने की आवश्यकता के द्वारा मछली पकड़ने की पूर्ण स्वतंत्रता को सीमित करता है।
    • यह उन राज्यों के जहाजों द्वारा मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगाता है, जो संरक्षण आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहते हैं।
  • क्षेत्रीय और प्रथागत कानून: कई क्षेत्रीय समझौते UNCLOS और UNFSA के पूरक हैं, जैसे:-
    • इंडियन ओशन टूना कमीशन (Indian Ocean Tuna Commission-IOTC): हिंद महासागर में टूना मछली पकड़ने का प्रबंधन करता है।
    • जैविक विविधता पर कन्वेंशन (CBD): समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग को प्रोत्साहित करता है।

विवाद सुलझाने में चुनौतियाँ

  • कानूनी एवं कूटनीतिक बाधाएँ: अतीत के विपरीत, जब गिरफ्तार मछुआरों को तुरंत रिहा कर दिया जाता था, हाल के वर्षों में समुद्री कानूनों का सख्त पालन देखा गया है, जिसके कारण उनके ऊपर दोषसिद्धि और जुर्माना लगाया गया है।
  • आर्थिक निर्भरता: मछली पकड़ना दोनों पक्षों के समुदायों के लिए प्राथमिक आजीविका है, जिससे मछली पकड़ने की प्रथाओं में प्रतिबंध या परिवर्तन लगाना मुश्किल हो जाता है।
  • पर्यावरणीय गिरावट: अत्यधिक मत्स्याखेट और बॉटम ट्रॉलिंग जैसी विनाशकारी प्रथाएँ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डालती हैं, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता है।

आगे की राह

  • उच्च स्तरीय द्विपक्षीय वार्ता: इस मुद्दे को व्यापक रूप से संबोधित करने के लिए भारत और श्रीलंका की सरकारों के बीच उच्च स्तरीय बैठकें आयोजित करना।
    • प्रक्रिया को समावेशी बनाने के लिए वार्ता में तमिलनाडु सरकार और दोनों देशों के मछुआरा समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना।
  • संधारणीय मछली पकड़ने की प्रथाओं को बढ़ावा देना: भारतीय मछुआरों को पर्यावरण के लिए विनाशकारी प्रथाओं जैसे कि नीचे की ओर मछली पकड़ने से गहरे समुद्र में मछली पकड़ने जैसी संधारणीय विधियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • संयुक्त संरक्षण प्रयास: पाक खाड़ी और मन्नार की खाड़ी क्षेत्रों में मछली स्टॉक और जैव विविधता की रक्षा के लिए समुद्री संरक्षण परियोजनाओं पर सहयोग करना।
  • निगरानी और विनियमन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना: मछुआरों को GPS डिवाइस प्रदान करना और मछली पकड़ने की गतिविधियों की निगरानी के लिए उपग्रह इमेजरी का उपयोग करना।
  • कच्चातीवु मुद्दे को संबोधित करना: भारत और बांग्लादेश के बीच तीन बीघा मामले के समान एक मॉडल का पता लगाना, जहाँ एक पट्टा समझौता विवादित क्षेत्र के साझा उपयोग की अनुमति देता है।
  • कानूनी और नीतिगत सुधार: तमिलनाडु के मछुआरों की चिंताओं को दूर करने और संसाधनों तक समान पहुँच सुनिश्चित करने के लिए समुद्री सीमा समझौतों की पुनः जाँच करना।

निष्कर्ष

भारत-श्रीलंका मत्स्य विवाद कानूनी, पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक आयामों वाला एक जटिल मुद्दा है। एक स्थायी समाधान के लिए सक्रिय कूटनीति, सामुदायिक सहभागिता और पर्यावरण के अनुकूल मत्स्याखेट की प्रथाओं की ओर परिवर्तन की आवश्यकता है।

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