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भारत का रक्षा निर्यात और मानवीय कानून

Lokesh Pal September 27, 2024 03:41 4 0

संदर्भ

भारत के उच्चतम न्यायालय ने इजरायल को रक्षा उपकरणों के निर्यात पर रोक लगाने की माँग वाली एक जनहित याचिका (PIL) को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि विदेश नीति संबंधी निर्णय इसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं।

संबंधित तथ्य 

  • भारत विश्व स्तर पर हथियारों के सबसे बड़े आयातकों में से एक है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह उपस्थिति महत्त्वपूर्ण  कानूनी और नैतिक प्रश्न उठाती है।
  • युद्ध अपराध के आरोपों के बावजूद इजरायल को हथियार निर्यात करने संबंधी मामले को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खारिज करना, भारत की कानूनी प्रणाली [विशेष रूप से हथियार निर्यात संबंधी निर्णयों के लिए अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL) के अनुपालन को अनिवार्य करने वाले नियमों की अनुपस्थिति को] में एक महत्त्वपूर्ण अंतर को उजागर करता है।
  • नीदरलैंड और यूनाइटेड किंगडम सहित कई देशों ने गाजा में IHL उल्लंघन का हवाला देते हुए इजरायल को किये जाने वाले रक्षा निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया है या उसकी समीक्षा की है।

भारत का रक्षा उत्पादन और निर्यात वृद्धि 

  • रक्षा उत्पादन उपलब्धि: भारत का रक्षा उत्पादन वर्ष 2023-24 में ₹1.27 लाख करोड़ के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया।
  • रक्षा निर्यात में उपलब्धि: वर्षं 2023-24 में पहली बार रक्षा निर्यात 21,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया, जिसमें 90 से अधिक मित्र देशों को सैन्य हार्डवेयर और हथियारों की  आपूर्ति की जा रही हैं।
  • निर्यात वृद्धि उद्देश्य: रक्षा मंत्रालय का लक्ष्य अगले पाँच वर्षों के भीतर निर्यात को 50,000 करोड़ रुपये तक बढ़ाना है।
  • रक्षा विनिर्माण में कारोबार का लक्ष्य: रक्षा मंत्रालय ने अगले पाँच वर्षों में रक्षा विनिर्माण में ₹1.75 लाख करोड़ का व्यापार करने का लक्ष्य रखा है।
  • FDI सीमा में वृद्धि: मई 2020 में, सरकार ने स्वचालित मार्ग के तहत रक्षा क्षेत्र में FDI सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% कर दिया, जिससे विशिष्ट मामलों में 100% FDI  की अनुमति मिल गई।

भारतीय रक्षा निर्यात कानूनों में विधिक खामियाँ

  • भारतीय कानून में IHL अनुपालन समीक्षा का अभाव: UK  के निर्यात नियंत्रण अधिनियम या EU नियमों के विपरीत, भारत के पास रक्षा उपकरणों के निर्यात से पहले अंतरराष्ट्रीय  मानवतावादी कानून (IHL) के साथ किसी देश के अनुपालन के मूल्यांकन को अनिवार्य करने वाला कोई कानून नहीं है।
  • भारत में विनियामक प्रावधान: हालाँकि, भारत के विदेश व्यापार अधिनियम, 1992 तथा सामूहिक विनाश के हथियार (WMDA) अधिनियम, 2005 जैसे कुछ अधिनियम हैं, जो केंद्र सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा और संधियों, अनुबंधों या सम्मेलनों के तहत अंतरराष्ट्रीय दायित्वों जैसे कारणों से निर्यात को विनियमित करने का अधिकार देते हैं।

अंतरराष्ट्रीय शस्त्र व्यापार कानून और भारत के लिए इसकी प्रासंगिकता 

  • शस्त्र व्यापार संधि  (ATT): ATT पारंपरिक हथियारों के व्यापार को विनियमित करने वाला एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जिसका लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL) के उल्लंघन सहित गंभीर अपराधों को अंजाम देने के लिए हथियारों के उपयोग को रोकना है।
  • ATT  के प्रावधान: अनुच्छेद-6(3), हथियारों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाता है, यदि निर्यातक देश को यह संभावना लगती  है, कि हथियारों का उपयोग युद्ध अपराध या अन्य गंभीर उल्लंघन करने के लिए किया जाएगा।
    • अनुच्छेद-7: हस्ताक्षरकर्ता देशों से यह अपेक्षा की जाती है, कि वे इस जोखिम का आकलन करें कि निर्यात किए गए हथियारों का उपयोग आयात करने वाले देश द्वारा IHL के गंभीर उल्लंघन करने या उसे सुविधाजनक बनाने के लिए किया जा सकता है।
  • भारत की स्थिति: भारत ATT  का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है और इसलिए, इसके प्रावधान भारत पर विधिक रूप से बाध्यकारी नहीं हैं।
    • यद्यपि ATT को भारत में न्यायिक रूप से शामिल नहीं किया जा सकता है, फिर भी इसके कुछ सिद्धांत प्रथागत अंतरराष्ट्रीय  कानून को प्रतिबिंबित करते हैं, जो अभी भी कानूनी व्याख्या को प्रभावित कर सकते हैं।

 अंतरराष्ट्रीय  मानवीय कानून (IHL) के तहत भारत का दायित्व

  • जिनेवा कन्वेंशन: जिनेवा कन्वेंशन अंतरराष्ट्रीय संधियों का एक समूह है, जो युद्ध में मानवीय उपचार के लिए मानक स्थापित करता है।
    • वे संघर्षों के दौरान घायल और बीमार सैनिकों, क्षतिग्रस्त जहाजों के नाविकों, युद्ध बंदियों और नागरिकों की सुरक्षा करते हैं।
    • भारत ने वर्ष 1950 में जिनेवा कन्वेंशन की पुष्टि की, वर्ष 1949 कन्वेंशन के लिए कानून बनाने और लागू करने वाला विश्व का 5वाँ देश बन गया। 
    • जिनेवा कन्वेंशन का अनुच्छेद-1: यह भारत पर बाध्यकारी है और यह सभी स्टेट को IHLका सम्मान सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करता है।
  • निकारागुआ बनाम संयुक्त राज्य अमेरिका मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने कहा कि यदि कोई देश संधियों का उल्लंघन करता है तो अन्य देशों का यह दायित्व है कि वे उसे हथियार न दें।

भारत के रक्षा निर्यात में वृद्धि के कारण

  • भारत की रक्षा निर्यात रणनीति: रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्द्धन नीति (DPEPP) का लक्ष्य वर्ष 2025 तक 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रक्षा निर्यात और 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर का राजस्व प्राप्त करना है, जिसे रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया, 2020 (DAP 2020) जैसे ढाँचे द्वारा समर्थन प्राप्त है, जिससे भारत के रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने में मदद मिली है।
    • DPEPP, आत्मनिर्भरता तथा निर्यात के लिए भारत की रक्षा उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए रक्षा मंत्रालय के मार्गदर्शक दस्तावेज के रूप में कार्य करता है।
  • निर्यात प्राधिकरण में वृद्धि: निर्यात प्राधिकरण की संख्या वित्त वर्ष 2023 में 1,414 से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 1,505 हो गई (लगभग 6.6% वृद्धि) है।
  • सरकारी पहल: निर्यात प्रक्रियाओं के सरलीकरण और उद्योग-समर्थक नीतियों से कंपनियों के लिए रक्षा निर्यात में शामिल होना आसान हो गया है।
    • आत्मनिर्भर भारत पहल का कार्यान्वयन रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है।
  • नीतिगत सुधार: भारत की ऑफसेट नीति के अनुसार विदेशी रक्षा कंपनियों को अपने अनुबंध मूल्य का एक हिस्सा घरेलू स्तर पर निवेश करना होगा, जिससे संयुक्त उद्यमों और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
  • वित्त वर्ष 2023-24 के लिए रक्षा बजट में घरेलू आवंटन में वृद्धि: वित्त वर्ष 2023-24 में, घरेलू उद्योग के लिए रक्षा पूँजी खरीद बजट का आवंटन वित्त वर्ष 2022-23 में 68% की तुलना में बढ़कर 75% हो गया, जिसके परिणामस्वरूप कुल घरेलू उत्पादन ₹1.27 ट्रिलियन रूपये हो गया।
  • अनुसंधान और विकास (R&D): रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए 23,855 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जिससे ब्रह्मोस मिसाइल और आकाश वायु रक्षा प्रणाली जैसे निर्यात योग्य उत्पादों का विकास संभव हो सकेगा।
  • रणनीतिक निर्यात साझेदारी: उल्लेखनीय निर्यात सौदे, जैसे कि आर्मेनिया के साथ पिनाका रॉकेट और आकाश वायु रक्षा मिसाइलों के लिए किए गए सौदे, ने भारतीय उत्पादों के लिए नए बाजार खोले हैं।
  • मूल्य निर्धारण निर्णय: भारतीय रक्षा उत्पाद अपनी गुणवत्ता और प्रतिस्पर्द्धी मूल्य निर्धारण के लिए प्रसिद्ध हैं। उदाहरण के लिए, आकाश सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली अन्य देशों की समतुल्य मिसाइल की तुलना में काफी सस्ती है, जो आर्मेनिया जैसे खरीदारों को आकर्षित करती है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी
    • iDEX पहल: सरकार रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (iDEX) कार्यक्रम के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देती है।
    • रक्षा लाइसेंसों में वृद्धि: जारी किए गए रक्षा लाइसेंस वर्ष 2014 में 215 से बढ़कर मार्च 2019 तक 440 हो गए।
    • रक्षा औद्योगिक गलियारे: उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना एक प्रतिस्पर्द्धी रक्षा विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाती है।

भारत के रक्षा क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ 

  • आयात निर्भरता: भारत विश्व स्तर पर सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है, जो SIPRI के अनुसार वर्ष 2019 से 2023 तक कुल वैश्विक हथियार आयात का 9.8% हिस्सा है
    • यह निर्भरता विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव डालती है तथा भू-राजनीतिक तनाव के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा उत्पन्न करती है।

  • रक्षा निर्यात में सामंजस्य का अभाव: भारतीय सशस्त्र बलों, रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (DPSU), निजी निर्माताओं और रक्षा मंत्रालय के बीच असंतुलित समन्वय, स्वदेशी रक्षा उत्पादों को बढ़ावा देने में बाधा उत्पन्न करता है।
    • रक्षा निर्यात रणनीतियों की देखरेख के लिए एजेंसी का अभाव इसे और अधिक जटिल बना देता है।
  • प्रशासनिक बाधाएँ: नौकरशाही प्रतिरोध और पुरानी प्रथाएँ, रक्षा विनिर्माण में निजी क्षेत्र के एकीकरण में बाधा डालती हैं और नवाचार को रोकती हैं।
  • परियोजना में देरी: महत्त्वपूर्ण रक्षा परियोजनाओं में विलंब और ऐसे विलंब के कारण लागत में वृद्धि, विकास में बाधा उत्पन्न करती है।
    • रक्षा मंत्रालय के अनुसार, DRDO की 55 ‘मिशन मोड’ परियोजनाओं में से 23 में विलंब हुआ है।
  • अनुसंधान एवं विकास संबंधी मुद्दे: अनुसंधान एवं विकास पर भारत का सकल व्यय केवल 0.65% है।
  • बुनियादी ढाँचे के मुद्दे: बुनियादी ढाँचे की कमी से भारत की लॉजिस्टिक लागत बढ़ जाती है, जिससे रक्षा क्षेत्र में लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता और दक्षता कम हो जाती है। 
  • धीमी खरीद प्रक्रिया: रक्षा खरीद प्रक्रिया (DPP) जटिल और अप्रभावी बनी हुई है। 
  • भारत की ऑफसेट नीति की चुनौतियाँ: भारत की ऑफसेट नीति के अनुसार, 2,000 करोड़ रुपये से अधिक के रक्षा अनुबंधों के लिए अनुमानित लागत का न्यूनतम 30% दायित्व अनिवार्य है।
  • निजी क्षेत्र की कम भागीदारी: वित्त वर्ष 2024 में निजी क्षेत्र ने अभी भी केवल 22% का योगदान दिया।
  • तकनीकी असमानता: भारत को उन्नत सामग्री, उच्च-स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक्स और प्रणोदन प्रणाली जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो आधुनिक रक्षा क्षमताओं के लिए आवश्यक हैं।

भारतीय रक्षा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए संभावित कार्रवाई

  • विधायी संशोधन की आवश्यकता: भारत को WMDA तथा  FTA में संशोधन करना चाहिए ताकि उसके रक्षा उपकरणों का आयात करने वाले देशों के IHL अनुपालन के आकलन को स्पष्ट रूप से शामिल किया जा सके।
    • यह सक्रिय कदम, एक जिम्मेदार रक्षा-निर्यात राष्ट्र के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाएगा और इसकी निर्यात नीतियों को अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL) के अनुरूप बनाएगा।
  • रक्षा ऋण लाइनें और ब्याज दरें: प्रस्तावों में रक्षा ऋण सहायता को लागू करने से विदेशी खरीदारों को वित्तीय सहायता प्रदान करके प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाया जा सकता है, जबकि ब्याज दरों को कम करने से भारतीय रक्षा उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजारों के लिए अधिक आकर्षक बनेंगे।
  • अंतरराष्ट्रीय बिक्री के लिए रूपरेखा: अंतरराष्ट्रीय बिक्री के लिए एक स्पष्ट रूपरेखा स्थापित करने से सुचारू और अधिक कुशल हस्तांतरण संभव होगा तथा रक्षा निर्यात में पारदर्शिता एवं स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा, साथ ही संभावित खरीदारों को आकर्षित किया जा सकेगा।

  • प्रौद्योगिकी विकास निधि (TDF)
    • रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन (DRDO) द्वारा प्रबंधित TDF योजना, भारतीय उद्योगों, विशेष रूप से स्टार्टअप और MSME द्वारा रक्षा प्रौद्योगिकियों के स्वदेशी विकास का समर्थन करती है।
  • रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (iDEX)
    • मई 2021 में लॉन्च किया गया iDEX रक्षा नवाचार संगठन (DIO) के तहत एक पहल है, जिसका उद्देश्य स्टार्टअप और MSMEs को शामिल करके रक्षा और एयरोस्पेस में नवाचार को बढ़ावा देना है।
    • यह योजना डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज (DISC) और ओपन चैलेंज जैसी चुनौतियों के माध्यम से संचालित होती है, जो रक्षा आवश्यकताओं के लिए नवीन समाधानों को बढ़ावा देती है।

  • ऑफसेट नीति में सुधार: भारत को एक समर्पित ऑफसेट प्रबंधन एजेंसी की स्थापना करके तथा निर्यातोन्मुख परियोजनाओं के साथ ऑफसेट आवश्यकताओं को संरेखित करने के लिए एक पारदर्शी ऑनलाइन मंच बनाकर अपनी ऑफसेट नीति में सुधार करना चाहिए, जिसमें प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सह-विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
  • स्वदेशीकरण और नवाचार: रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन(DRDO) की प्रौद्योगिकी विकास निधि (TDF) योजना और रक्षा नवाचार संगठन (DIO) द्वारा रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार ( iDEX) योजना के बीच सहयोग के माध्यम से स्वदेशीकरण एवं नवाचार को कारगर बनाने के प्रयास आवश्यक हैं।
  • रक्षा निर्यात संवर्द्धन एजेंसी की स्थापना: सरकार को रक्षा निर्यात को प्रभावी ढंग से समन्वित करने, सशस्त्र सेवाओं, सार्वजनिक और निजी निर्माताओं तथा विदेशी भागीदारों के मध्य तालमेल बढ़ाने के लिए PMO के तहत एक रक्षा निर्यात संवर्द्धन एजेंसी (DEPA) का गठन करना चाहिए।
  • आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन से बचना: आत्मनिर्भर भारत की दिशा में, भारत को आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन मॉडल से बचना चाहिए, जिसके तहत कोई देश प्रौद्योगिकी के लिए बाहरी सरकारों, निर्माताओं तथा वैज्ञानिकों के साथ सहयोग करना बंद कर देता है।

निष्कर्ष 

भारत के रक्षा निर्यात को मानवीय कानून के अनुरूप होना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सैन्य आपूर्ति से मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो।

  • हथियारों के व्यापार में नैतिक विचारों को प्राथमिकता देकर भारत क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देते हुए एक जिम्मेदार वैश्विक रक्षा उत्पादक के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ा सकता है।

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