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निजता के अधिकारों के पक्षधर न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी का निधन

Lokesh Pal October 30, 2024 03:40 32 0

संदर्भ

हाल ही में ‘आधार’ (Aadhar) को चुनौती देने वाले निजता के अधिकार मामले में मुख्य याचिकाकर्ता, कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के.एस. पुट्टास्वामी का निधन हो गया।

निजता का अधिकार क्या है?

  • निजता का अधिकार व्यक्ति के आंतरिक क्षेत्र को राज्य और गैर-राज्य दोनों प्रकार के हस्तक्षेप से बचाता है तथा व्यक्तियों को स्वायत्त जीवन विकल्प चुनने की अनुमति देता है।
  • निजता में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू होते हैं।
    • नकारात्मक विषयवस्तु राज्य को नागरिक के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अतिक्रमण करने से रोकती है।
    • इसकी सकारात्मक विषयवस्तु राज्य पर व्यक्ति की निजता की रक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय करने का दायित्व डालती है।
    • अन्य अधिकारों की तरह जो भाग III द्वारा संरक्षित मौलिक स्वतंत्रताओं का हिस्सा हैं, जिसमें अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार शामिल है, निजता एक पूर्ण अधिकार नहीं है।

संबंधित तथ्य

  • वर्ष 2012 में पुट्टास्वामी ने आधार की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। 
  • पुट्टास्वामी ने प्रत्येक व्यक्ति के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने की सरकार की नीति और पहचान-पत्र को विभिन्न सरकारी योजनाओं से जोड़ने की योजना पर सवाल उठाया। 
  • पुट्टास्वामी ने तर्क दिया कि आधार संविधान के तहत प्रत्येक व्यक्ति को दिए गए समानता और निजता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

वर्ष 2017 में निजता पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि निजता, व्यक्ति की गरिमा का अभिन्न अंग है, जो शरीर एवं मन दोनों की स्वायत्तता को सक्षम बनाती है।
  • यह स्वायत्तता व्यक्ति को महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत मामलों पर निर्णय लेने की क्षमता का समर्थन करती है।
  • न्यायालय ने कहा कि राज्य द्वारा निजता पर किसी भी प्रतिबंध को तीन मानदंडों को पूरा करना चाहिए:
    • विधायी अधिदेश: प्रतिबंध का विधायी आधार होना चाहिए।
    • राज्य के वैध उद्देश्य: प्रतिबंध का वैध उद्देश्य पूरा होना चाहिए।
    • आनुपातिकता: प्रतिबंध की प्रकृति और सीमा लोकतांत्रिक समाज में आवश्यक होनी चाहिए और इच्छित परिणाम प्राप्त करने के लिए उपलब्ध सबसे कम हस्तक्षेप वाला विकल्प होना चाहिए।

अन्य देशों में निजता का अधिकार

  • अमेरिका का वर्ष 1974 का निजता अधिनियम: नागरिकों को संघीय एजेंसियों द्वारा व्यक्तिगत रिकॉर्ड के मनमाने उपयोग से बचाता है।
  • सामान्य डेटा सुरक्षा विनियमन (General Data Protection Regulation-GDPR): यूरोपीय संघ का एक अंतरराष्ट्रीय निजता कानून, जो यूरोपीय संघ के निवासियों की जानकारी को संसाधित या संगृहीत करने वाले संगठनों पर लागू होता है।
  • कैलिफोर्निया उपभोक्ता निजता अधिनियम (California Consumer Privacy Act -CCPA): संयुक्त राज्य अमेरिका में एक राज्य कानून जो डेटा निजता पर लागू होता है।
  • चीन का व्यक्तिगत सूचना संरक्षण कानून (Personal Information Protection Law-PIPL): एक कानून, जो चीनी नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी को संसाधित और विश्लेषण करने वाले संगठनों पर लागू होता है।
  • स्विस संशोधित संघीय डेटा सुरक्षा अधिनियम (Federal Act on Data Protection-FADP): एक कानून जो बायोमेट्रिक और आनुवंशिक डेटा को शामिल करने के लिए संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा की परिभाषा का विस्तार करता है।
  • कनाडाई मानवाधिकार अधिनियम (Canadian Human Rights Act), 1977: मुख्य रूप से डेटा सुरक्षा के लिए निजता कानून प्रस्तुत किए गए।

सर्वोच्च न्यायालय ने आधार की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी

  • एक प्रमुख चिंता यह थी कि क्या आधार से ‘निगरानी वाले राज्य’ की स्थापना होगी।
    • हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि आधार लेन-देन संबंधी डेटा को बरकरार नहीं रखता है।
    • नामांकन के दौरान, UIDAI द्वारा केवल न्यूनतम बायोमेट्रिक डेटा जैसे कि, आईरिस स्कैन और फिंगरप्रिंट एकत्र किए जाते हैं।
    • लेन-देन का उद्देश्य, स्थान या विवरण दर्ज नहीं किया जाता है, और जानकारी अलग-अलग साइलो में रहती है।
    • बैंक और कर प्राधिकरण जैसी प्रमाणीकरण एजेंसियों को किसी व्यक्ति की प्रमाणीकरण स्थिति के बारे में केवल ‘हाँ’ या ‘नहीं’ का जवाब मिलता है।
  • न्यायालय ने पाया कि आधार अपने वर्तमान स्वरूप में निजता संबंधी निर्णय द्वारा स्थापित परीक्षणों को पूरा करता है तथा निजता का उल्लंघन उचित माना।

‘आधार अधिनियम’ एक धन विधेयक के रूप में

  • सर्वोच्च न्यायालय ने आधार अधिनियम को धन विधेयक के रूप में मान्यता देने के लोकसभा अध्यक्ष के निर्णय को बरकरार रखा। 
  • न्यायालय ने तर्क दिया कि अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य भारत की संचित निधि से समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों को सहायता, अनुदान और सब्सिडी जैसे वित्तीय लाभ प्रदान करना है।

आधार (Aadhaar) और आनुपातिकता का सिद्धांत (Doctrine of Proportionality)

  • सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकारी सेवाओं तक पहुँच के लिए आधार के उपयोग को बरकरार रखा तथा आनुपातिकता के सिद्धांत को लागू किया, जो यह निर्धारित करता है कि किसी व्यक्ति के अधिकारों में राज्य का हस्तक्षेप उसके लक्ष्य के अनुपात में होना चाहिए।
    • हालाँकि, न्यायालय ने यह भी निर्धारित किया कि सरकार बिना किसी प्रतिबंध के ‘लाभ’ ​​के दायरे का विस्तार नहीं कर सकती।
  • ये लाभ विशेष रूप से भारत की संचित निधि द्वारा वित्तपोषित कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित हैं।

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