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भारत के हथियार आयात में रूसी प्रभुत्व की कमी

Lokesh Pal March 14, 2024 06:08 93 0

संदर्भ

पिछले पाँच वर्षों (2017-2021) में रूस से भारत का हथियार आयात 64% से घटकर 45% हो गया है।

संबंधित तथ्य

वर्ष 2018 और 2022 के दौरान भारत हथियारों की खरीद के लिए फ्राँस पर निर्भर रहा, जिससे फ्राँस भारत को हथियारों का दूसरा अग्रणी प्रदाता बन गया।

रूस से हथियारों के आयात में कमी का कारण

  • विविधीकरण रणनीति: भारत ने पाकिस्तान और चीन के साथ तनाव के प्रत्युत्तर में रूसी हथियारों पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से अपनी रक्षा खरीद रणनीति को रणनीतिक रूप से परिवर्तित कर दिया है।
  • हथियारों के व्यापार में वैश्विक रुझान में बदलाव: SIPRI रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019-23 में सभी हथियारों के निर्यात में संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप का योगदान 72% है।
    • फ्राँस ने हथियारों के निर्यात में 47% की वृद्धि दर्शाई है और स्वयं को रूस से आगे रखा है।
    • इसके विपरीत, रूस के हथियारों के निर्यात में 53% की कमी आई है, जिससे वह फ्राँस के बाद तीसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक बन गया है।
  • घरेलू वस्तुओं के साथ आयात का प्रतिस्थापन: भारत का झुकाव घरेलू स्तर पर डिजाइन किए गए उत्पादों की ओर है। इसलिए इसका ध्यान आयात को उन प्रमुख हथियारों से परिवर्तित करने पर है, जो घरेलू स्तर पर डिजाइन और उत्पादित किए गए हैं।

भारत की व्यापारिक स्थिति (2018 – 2022)

भारतीय बाजार

  • हथियार निर्यात बाजार के रूप में भारत: SIPRI के आँकड़ों के अनुसार, भारत रूस, फ्राँस और इजरायल के लिए प्राथमिक हथियार निर्यात बाजार था।
  • भारत: शीर्ष हथियार आयातक: भारत शीर्ष हथियार आयातक बना हुआ है, सऊदी अरब दूसरे स्थान पर है।
    • रूस ने भारत के आयात की 45% आपूर्ति की, इसके बाद फ्राँस ने 29% और अमेरिका ने 11% आपूर्ति की।
  • यह दक्षिण कोरिया के लिए दूसरा सबसे बड़े हथियार निर्यात बाजार है।
  • हथियार निर्यातकों में 21वें स्थान पर होने के बावजूद, भारत, दक्षिण अफ्रीका के लिए तीसरा सबसे बड़ा बाजार था।
  • भारत से निर्यात: रूस और चीन के बाद आयात में 14% योगदान के साथ भारत म्याँमार को हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में तीसरे स्थान पर है।

रूस से भारत के हथियार आयात में कमी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • आर्थिक निहितार्थ
    • सकारात्मक प्रभाव: भारत द्वारा वैकल्पिक हथियार आपूर्तिकर्ताओं की खोज से अधिक अनुकूल समझौते, बढ़ी हुई प्रतिस्पर्द्धा और संभावित रूप से कम व्यय हो सकते हैं।
    • नकारात्मक प्रभाव: रूस से हथियारों के आयात में कमी से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार संबंधों और आर्थिक संबंधों पर असर पड़ सकता है।
  • बढ़ी हुई सुलह की स्थिति

रूसी हथियारों पर निर्भरता कम होने से भारत की वार्ता शक्ति मजबूत हो सकती है।

    • सुलह की बेहतर स्थिति: क्योंकि भारत को रूसी हथियारों पर अधिक निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है, वह अन्य आपूर्तिकर्ताओं के साथ अधिक प्रभावी ढंग से वार्ता कर सकता है।
      • इसका अर्थ है कि भारत को हथियार खरीदते समय बेहतर सौदे और शर्तें मिल सकती हैं।

लागत बचत और बेहतर दक्षता: फ्राँस जैसे अन्य आपूर्तिकर्ताओं के साथ प्रतिस्पर्द्धात्मक रूप से वार्ता करने की भारत की क्षमता से रक्षा खरीद में लागत बचत और बेहतर दक्षता प्राप्त हो सकती है।

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