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भारत के आधे से अधिक उप-जिलों में वर्षा अधिक हो रही है (More than half of the sub-districts of India are receiving excess rainfall)

Samsul Ansari January 20, 2024 04:12 186 0

संदर्भ

एक अनुसंधान और नीति निर्धारक थिंक टैंक ‘ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद’ (Council on Energy, Environment and Water- CEEW) द्वारा किए गए अध्ययन में वर्ष 1982 से 2022 तक चार दशकों के मौसम संबंधी डेटा का विश्लेषण किया गया है, जिसे भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा दर्ज किया गया है।

संबंधित तथ्य 

इस अध्ययन में पहली बार भारत में उप-जिला स्तर पर वर्षा का विश्लेषण किया गया है।

विवरण के मुख्य निष्कर्ष

  • परिणाम: यह मानसून के व्यवहार में तेजी से बदलाव की ओर इशारा करता है, जिसमें जलवायु परिवर्तन की तेज गति के कारण अनियमित वर्षा पैटर्न उभरकर सामने आ रहा है।
    • हालाँकि 55% तहसीलों में वर्षा में वृद्धि (10% से अधिक वृद्धि) देखी गई है, उनमें से लगभग 11% में पिछले दशक (2012-2022) में दक्षिण-पश्चिम मानसूनी वर्षा में कमी देखी गई है।
  • चरम मौसम: नई दिल्ली, बेंगलुरु, नीलगिरी, जयपुर, कच्छ और इंदौर सहित 23 जिलों में दोनों चरम स्थितियों का अनुभव हुआ, जिनमें कम और अत्यधिक वर्षा वाले वर्षों की संख्या अधिक थी।
  • वृद्धि: दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान वर्षा में वृद्धि, अल्पावधि में भारी वर्षा की घटनाओं के कारण अचानक बाढ़ आ जाती है।
    • 31% तहसीलों में पिछले 30 वर्षों की तुलना में पिछले दशक में दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान सालाना चार या अधिक दिनों की भारी वर्षा की वृद्धि दर्ज की गई है।
  • मानसून के निवर्तन में विलंब: रिपोर्ट में पाया गया है कि संभवतः दक्षिण-पश्चिम मानसून के देरी से निवर्तन के कारण अक्टूबर में वर्षा में 10% से अधिक की वृद्धि हुई है।
  • स्थान: राजस्थान, गुजरात, मध्य महाराष्ट्र और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों जैसे शुष्क क्षेत्रों में जून से सितंबर की अवधि के दौरान वर्षा में 30% से अधिक की स्पष्ट वृद्धि देखी गई।
  • वृद्धि का कारण: हाल के वर्षों में हिमालय में कम दबाव वाली मौसम प्रणाली के साथ मानसून के अभिसरण के कारण बढ़ते तापमान के कारण अत्यधिक भारी वर्षा हुई है।
  • कमी: कम वर्षा का अनुभव करने वाली तहसीलों में से:
    • जून से सितंबर तक सभी मानसून महीनों में लगभग 68% में कम वर्षा देखी गई।
    • जून और जुलाई के शुरुआती मानसून महीनों के दौरान लगभग 87% की गिरावट देखी गई, जो खरीफ फसलों की बुवाई के चरण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • कम वर्षा वाले स्थान: जिन तहसीलों में कम वर्षा दर्ज की गई, वे वर्षा आधारित सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों, पूर्वोत्तर भारत और ऊपरी हिमालयी क्षेत्र में स्थित हैं।
  • कमी का प्रभाव: ये क्षेत्र कृषि उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं जो भारत के आधे से अधिक कृषि उत्पादन में योगदान करते हैं और संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र का घर हैं, जो विशेष रूप से चरम जलवायु घटनाओं के प्रति संवेदनशील हैं।

सिफारिशें

  • अधिक स्थानीय स्तर पर मानसून प्रदर्शन का मानचित्रण: उच्च माह-दर-माह परिवर्तनशीलता और नम चरम स्थितियों की बढ़ती घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, स्थानीय निर्णय लेना महत्त्वपूर्ण है।
    • इसलिए व्यापक, कार्रवाई योग्य अंतर्दृष्टि प्रदान करने, आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया को बढ़ाने के लिए विस्तृत स्तर के डेटा की आवश्यकता होती है।
  • जिला स्तरीय जलवायु कार्य योजनाओं का विकास: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के वर्ष 2019 के निर्देश के अनुरूप, जलवायु परिवर्तन पर स्टेट एक्शन प्लान (SAPCCs) का संशोधन किया जा रहा है।
    • कृषि, जल और ऊर्जा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में विस्तृत जलवायु जोखिम आकलन के लिए जिला स्तरीय जलवायु कार्य योजना विकसित करने की सिफारिश की गई है।
  • हाइपर लोकल लेवल (Hyper-Local Level) पर वर्षा परिवर्तनशीलता का पता लगाने के लिए स्वचालित मौसम स्टेशनों और समुदाय आधारित रिकॉर्डिंग में निवेश करना: राष्ट्रीय मौसम सूचना नेटवर्क और डेटा सिस्टम (WINDS) तथा सामुदायिक प्रयासों जैसी पहलों के माध्यम से ‘हाइपर लोकल जलवायु अनुकूलन रणनीतियों’ की आवश्यकता है।
  • हाइपरलोकल शब्द का प्रयोग आमतौर पर एक बहुत छोटे क्षेत्र का वर्णन करते समय किया जाता है, जो आमतौर पर स्थानीय माने जाने वाले क्षेत्र से बहुत छोटा होता है।

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