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मच्छर नियंत्रण हेतु मछलियों की आक्रामक प्रजातियों का उपयोग

Lokesh Pal February 06, 2025 03:12 71 0

संदर्भ

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने मच्छर नियंत्रण के लिए दो अत्यधिक आक्रामक विदेशी प्रजातियों की मछलियों के उपयोग के संबंध में केंद्र सरकार से जवाब माँगा है।

  • अधिकरण विभिन्न राज्यों के जल निकायों में गंबूसिया एफिनिस (Gambusia Affinis) और पोसिलिया रेटिकुलता (Poecilia Reticulata) या गप्पी (Guppy) को छोड़े जाने के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था।

गंबूसिया एफिनिस (वेस्टर्न मॉस्किटोफिश) के बारे में

  • सामान्य नाम: मॉस्किटोफिश (Mosquitofish)।
  • उद्देश्य: मच्छरों के लार्वा को नियंत्रित करने के लिए जैविक एजेंट के रूप में उपयोग किया जाता है।
    • मूल क्षेत्र: मध्य इंडियाना और इलिनोइस (Illinois) से लेकर मैक्सिको की खाड़ी तक मिसिसिपी नदी बेसिन।

  • मच्छर नियंत्रण: एक वयस्क मछली प्रतिदिन 100 से 300 मच्छरों के लार्वा खाती है।
  • विशेषताएँ
    • आवास स्थान: मीठे जल में पाया जाता है; खारे जल और उच्च लवणता के प्रति सहिष्णु है।
    • अनुकूलनशीलता: कम ऑक्सीजन स्तर में जीवित रह सकती है।
    • प्रजनन: गर्मियों में प्रजनन करती हैं और विविपेरस (Viviparous) होती हैं, यानी वे अंडे देने के बजाय जीवित बच्चों को जन्म देती हैं।
    • आक्रामकता: IUCN द्वारा 100 सबसे खराब आक्रामक विदेशी प्रजातियों में सूचीबद्ध।
    • भारत में ऐतिहासिक उपयोग: मच्छर नियंत्रण के लिए ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1928 में पेश किया गया।
    • IUCN स्थिति: कम चिंताजनक।

पोसिलिया रेटिकुलता (Poecilia Reticulata) के बारे में 

  • सामान्य नाम: गप्पी, मिलियनफिश या रेनबो फिश (Rainbow Fish)।

  • रेंज: उत्तरी दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन द्वीपों की मूल प्रजाति।
  • आवास स्थान: तालाबों और नदियों के उथले किनारों में पाई जाती है।
  • उपयोग: मच्छरों के लार्वा नियंत्रण के लिए भी उपयोग किया जाता है।
  • IUCN स्थिति: कम चिंताजनक।

जल निकायों में मछली का प्रयोग करने वाले राज्य

  • मॉस्किटोफिश को असम, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पंजाब और आंध्र प्रदेश के जल निकायों में छोड़ा गया है।
  • गप्पी को महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब और ओडिशा के जल निकायों में छोड़ा गया है।
  • चिंता: इनका व्यापक वितरण स्थानीय जैव विविधता के लिए जोखिम उत्पन्न करता है।

आक्रामक प्रजातियों के बारे में

  • ये आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ हैं, जो तेजी से अपना प्रसार करती हैं और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाती हैं।
  • ये अक्सर देशी प्रजातियों को समाप्त कर देती हैं, पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करती हैं और आर्थिक या पर्यावरणीय क्षति का कारण बनती हैं।

भारत में आक्रामक प्रजातियों के उदाहरण

  • वनस्पति: लैंटाना कैमरा, पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस (Parthenium Hysterophorus) (कांग्रेस ग्रास), प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा (Prosopis Juliflora) (विलायती कीकर)।
  • जीव-जंतु: अफ़्रीकी कैटफिश [क्लैरियास गैरीपिनस (Clarias Gariepinus)], तिलापिया [ओरियोक्रोमिस मोसाम्बिकस (Oreochromis Mossambicus)] और विशाल अफ्रीकी घोंघा।

पारिस्थितिक प्रभाव

  • देशज मछलियों के लिए खतरा: खाद्य एवं आवास के लिए प्रतिस्पर्द्धा के चलते , देशज मछलियों के लिए खाद्य की कमी का सामना करना पड़ता है।
  • जैव विविधता का ह्रास: देशज प्रजातियों की गिरावट या विलुप्ति का कारण बन सकता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: खाद्य शृंखलाओं में परिवर्तन पूरे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते हैं।

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