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कुकी, जोमी आदिवासियों के ST दर्जे पर पुनर्विचार (Reconsideration of ST status of Kuki, Zomi tribals)

Samsul Ansari January 10, 2024 06:57 184 0

संदर्भ

मणिपुर में “घुमंतू चिन-कुकी (Nomadic Chin-Kuki)” को अनुसूचित जनजाति सूची (Scheduled Tribe- ST) से हटाने के लिए एक याचिका दायर की गई है।

सम्बंधित तथ्य :

  • जनवरी 2011 के उच्चतम न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए याचिका में मांग की गई है कि देश में अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने के लिए देशजता (Indigeneity) प्रमुख मानदंड होना चाहिए
  • याचिका में उल्लेख किया गया है कि “जो (Zou)” जनजाति एक म्यांमार के चिन (Chin) राज्य से संबंधित थी, जिसका स्वतंत्रता-पूर्व भारत की जनगणना में कोई उल्लेख नहीं है और इसलिए उसे मणिपुर की ST सूची में नहीं होना चाहिए।

कुकी (Kuki) और जोमी (Zomi) जनजातियों के बारे में:

  • कुकी-जोमी जनजातियाँ बांग्लादेश क्षेत्र के जातीय समूहों में से एक हैं। ये भारत में मुख्य रूप से मणिपुर और मिजोरम के निवासी हैं।
  • उन्हें चिन या मिजो लोगों के रूप में भी जाना जाता है और वे एक समान वंश (Ancestry) और संस्कृति साझा करते हैं।
  • वे चिन-कुकी-मिजो भाषा परिवार की विभिन्न बोलियाँ बोलते हैं, जो ‘सिनो-तिब्बतन’ भाषाओं की तिब्बती-बर्मन शाखा से संबंधित है।
  • वे चिन और मिजो जैसी अन्य जनजातियों के साथ-साथ विशाल ज़ो (Zo) समुदाय से संबंधित हैं।

ST सूची में संशोधन की प्रक्रिया

  • भारत की संसद द्वारा बनाए गए कानून के माध्यम से ही किसी जनजाति या आदिवासी समुदाय को सूची में शामिल या बाहर किया जा सकता है।
    • अनुसूचित जनजातियों को निर्दिष्ट करने वाले अनुच्छेद 342 के खंड (1) के तहत जारी एक अधिसूचना का उपयोग सूची में संशोधन करने के लिए किया जाता है।
  • उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुसार, राज्य सरकारों, न्यायालयों या न्यायाधिकरणों या किसी अन्य प्राधिकरण को यह अधिकार नहीं है कि वे अनुच्छेद 342 के खंड (1) के तहत जारी अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियों की सूची को रूपांतरित (Modify), संशोधित या परिवर्तित कर सकें।
  • हालाँकि, केंद्र सरकार ने कहा है कि अनुसूचित जनजाति सूची से शामिल या बाहर करने की प्रक्रिया के लिए प्रस्ताव संबंधित राज्य सरकार से ही आना चाहिए, उसके बाद इस पर संसद द्वारा कार्रवाई की जाती है।
  • समुदायों को ST घोषित करने के लिए सरकार द्वारा उपयोग किए जाने वाले मानदंड वर्ष 1965 में लोकुर समिति (Lokur Committee) द्वारा तय किए गए थे और आज भी प्रयोग में हैं।
    • मानदंड में आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, बड़े पैमाने पर पिछड़ापन आदि शामिल हैं।

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