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कृषि संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट संसद में पेश की गई

Lokesh Pal March 17, 2025 12:41 12 0

संदर्भ

कृषि पर संसद की स्थायी समिति ने खेतिहर मजदूरों के योगदान को मान्यता देने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय का नाम बदलने का सुझाव दिया है।

संबंधित तथ्य

  • हाल ही में संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट में प्रमुख नीतिगत बदलावों की सिफारिश की गई है, जिनमें छोटे किसानों के लिए व्यापक फसल बीमा और जैविक फसलों के लिए उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) शामिल हैं।

संसदीय पैनल द्वारा उठाई गई चिंताएँ

  • पीएम-किसान योजना से कृषि मजदूरों को लाभ नहीं मिल रहा है: पीएम-किसान योजना से वर्तमान में केवल भूमिधारक किसानों को लाभ मिल रहा है, जबकि लाखों कृषि मजदूर इससे वंचित हैं, जिनके पास भूमि नहीं है।
  • कृषि के लिए बजट आवंटन में कमी: रिपोर्ट में पिछले कुछ वर्षों में कुल केंद्रीय व्यय के अनुपात में कृषि मंत्रालय के बजट में लगातार गिरावट पर प्रकाश डाला गया है:-
    • वर्ष 2021-22: 3.53%
    • वर्ष 2022-23: 3.14%
    • वर्ष 2023-24: 2.57%
    • वर्ष 2024-25: 2.54%
    • वर्ष 2025-26: 2.51%
  • पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए अपर्याप्त उपाय: पराली जलाना एक प्रमुख पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है, लेकिन मौजूदा उपाय प्रभावी नहीं रहे हैं।
  • जैविक खेती के लिए MSP का अभाव: शुरुआती फसल पैदावार में कमी और अनिश्चित बाजार कीमतों के कारण किसान जैविक खेती करने में हिचकिचाते हैं।
  • खेत मजदूरों के लिए मजदूरी असमानता एवं खराब सामाजिक सुरक्षा: समिति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि खेत मजदूरों को कम मजदूरी मिलती है और उन्हें सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं मिलते हैं।

समिति की मुख्य सिफारिशें

  • कृषि मंत्रालय का नाम बदलना: समिति ने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का नाम बदलकर कृषि, किसान एवं खेत मजदूर कल्याण मंत्रालय करने का सुझाव दिया है।
  • कृषि मजदूरों के लिए पीएम-किसान योजना का विस्तार: वर्तमान में, पीएम-किसान योजना भूमिधारक किसानों को प्रति वर्ष ₹6,000 प्रदान करती है।
    • समिति ने कहा कि भारत की 55% आबादी खेती में लगी हुई है, लेकिन उनमें से कई खेत मजदूर हैं जिनके पास जमीन नहीं है।
  • कृषि के लिए बजट आवंटन: समिति ने वर्ष 2020-21 से वर्ष 2025-26 तक कृषि के लिए बजटीय आवंटन में गिरावट पर प्रकाश डाला।
    • इसने धन बढ़ाने और उनका समय पर और प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करने की सिफारिश की।
  • छोटे किसानों के लिए व्यापक फसल बीमा: दो हेक्टेयर तक की भूमि वाले किसानों के लिए एक निःशुल्क और अनिवार्य फसल बीमा योजना शुरू करना।
    • इससे वित्तीय सुरक्षा मिलेगी, कर्ज पर निर्भरता कम होगी और बेहतर कृषि पद्धतियों में निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
  • पराली जलाने की समस्या का समाधान: किसानों को पराली इकट्ठा करने और उसका प्रबंधन करने के लिए प्रति क्विंटल धान के लिए 100 रुपये का मुआवजा मिलना चाहिए।
    • यह राशि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के अतिरिक्त होनी चाहिए और सीधे किसानों को हस्तांतरित की जानी चाहिए।
  • फसल अवशेषों के लिए बाजार: समिति ने BioCNG और इथेनॉल जैसे जैव ईंधनों के लिए फसल अवशेषों के लिए बाजार विकसित करने का भी प्रस्ताव रखा और ईंट भट्टों, भट्टियों और ताप विद्युत संयंत्रों के लिए ईंधन के रूप में भी इसका उपयोग करने का सुझाव दिया।
  • जैविक फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): पैनल ने पारंपरिक फसलों पर MSP के अलावा सभी जैविक फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का समर्थन किया।
    • यह कदम किसानों को शुरुआती कम पैदावार के बावजूद जैविक खेती की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
  • कृषि मजदूरों के लिए न्यूनतम जीवन-यापन मजदूरी पर राष्ट्रीय आयोग: समिति ने कृषि मजदूरों के लिए न्यूनतम जीवन-यापन मजदूरी पर राष्ट्रीय आयोग बनाने का प्रस्ताव रखा ताकि:
    • कृषि श्रमिकों के लिए उचित न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की जा सके।
    • मजदूरी असमानताओं को दूर करना और समान वेतन सुनिश्चित किया जा सके।
    • स्वास्थ्य एवं पेंशन योजनाओं सहित सामाजिक सुरक्षा लाभों में सुधार करना।
    • कामकाजी परिस्थितियों को बेहतर बनाएँ और नौकरी की सुरक्षा प्रदान करना।

भारत में कृषि मजदूरों के सामने आने वाली चुनौतियाँ

  • कम मजदूरी और आय अस्थिरता: कई मजदूरों को कम मजदूरी मिलती है, जो अक्सर न्यूनतम मजदूरी से भी कम होती है, और खेती की मौसमी प्रकृति के कारण उन्हें अनियमित रोजगार का सामना करना पड़ता है।
    • ग्रामीण भारत में औसतन एक पुरुष कृषि मजदूर ने वित्त वर्ष 2023 में प्रतिदिन 345.7 रुपये कमाए, जो एक परिवार की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक राशि से कम है।
  • नौकरी की सुरक्षा का अभाव: अधिकांश खेत मजदूर अनुबंध या दैनिक मजदूरी के आधार पर कार्य करते हैं, जिससे उनकी आजीविका अत्यधिक अनिश्चित हो जाती है।
    • कृषि कार्य मौसमी है और कई मजदूरों को सालाना केवल 100-150 दिन ही रोजगार मिलता है।
  • खराब कार्य स्थितियाँ: वे अक्सर उचित सुरक्षा गियर या स्वास्थ्य सुविधाओं के बिना चरम मौसम की स्थिति में लंबे समय तक कार्य करते हैं।
    • NCRB के अनुसार, भारत में प्रत्येक घंटे एक किसान/खेत मजदूर आत्महत्या करता है।
  • भूमिहीनता एवं निर्भरता: कई मजदूरों के पास जमीन नहीं है और वे कार्य के लिए जमींदारों पर निर्भर हैं, जिससे उनका शोषण होता है।
    • भारत में लगभग 86% किसान छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है, जबकि लगभग 144 मिलियन लोग कृषि मजदूर के रूप में कार्य करते हैं, जिनके पास कोई जमीन नहीं है।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच: कई मजदूरों के पास बुनियादी शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं तक पहुँच नहीं है, जिससे उनका समग्र कल्याण प्रभावित होता है।
    • खेतिहर मजदूरों के बच्चे स्कूल छोड़ने के मामले में सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा का अभाव: अधिकांश खेत मजदूरों को पेंशन, बीमा या भविष्य निधि जैसे लाभों तक पहुँच नहीं है, जिससे उनकी वृद्धावस्था आर्थिक रूप से असुरक्षित हो जाती है।
    • असंगठित श्रमिकों को पेंशन प्रदान करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन (PMSYM) योजना में जागरूकता और पहुँच की कमी के कारण खेत मजदूरों के बीच सीमित नामांकन देखा गया है।

कृषि मजदूरों के लिए क्रियान्वित योजनाएँ

  • जीवन एवं दिव्यांगता कवर: मृत्यु या दिव्यांगता के मामले में वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, सरकार निम्नलिखित सुविधाएँ प्रदान करती है:-
    • प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY): जीवन बीमा कवरेज प्रदान करती है।
    • प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY): आकस्मिक मृत्यु या दिव्यांगता के विरुद्ध बीमा प्रदान करती है।
  • स्वास्थ्य एवं मातृत्व लाभ: आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) कृषि मजदूरों सहित कम आय वाले परिवारों को मुफ्त स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करती है।
  • वृद्धावस्था सुरक्षा: प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन योजना (PM-SYM) को वर्ष 2019 में कृषि मजदूरों सहित असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सेवानिवृत्ति के बाद वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए शुरू किया गया था।
  • अन्य कल्याणकारी योजनाएँ: पात्रता के आधार पर कई अतिरिक्त योजनाएँ कृषि और ग्रामीण मजदूरों को लाभान्वित करती हैं:-
    • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और एक राष्ट्र एक राशन कार्ड: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA): ग्रामीण रोजगार की गारंटी देता है।
    • दीन दयाल अंत्योदय योजना: गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित करती है।
    • PMSVANidhi और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY): वित्तीय और कौशल विकास सहायता प्रदान करती है।
  • ई-श्रम पोर्टल: केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए ई-श्रम पोर्टल का उद्देश्य सरकारी कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए असंगठित श्रमिकों का राष्ट्रीय डेटाबेस (NDUW) बनाना है।

आगे की राह

  • उचित मजदूरी एवं आय स्थिरता: न्यूनतम मजदूरी कानूनों का कठोरता से पालन और PM-KISAN जैसी आय सहायता योजनाओं में खेतिहर मजदूरों को शामिल करने से वित्तीय असुरक्षा को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • यू.एस.ए में उचित श्रम मानक अधिनियम (FLSA) खेतिहर मजदूरों के लिए संघीय न्यूनतम मजदूरी को अनिवार्य बनाता है, जिससे आय स्थिरता बनाए रखने में मदद मिलती है।
  • नौकरी की सुरक्षा और रोजगार सृजन: वर्ष भर रोजगार प्रदान करने के लिए मनरेगा का विस्तार करना और कानूनी सुरक्षा के साथ अनुबंध खेती को बढ़ावा देना स्थिर आजीविका सुनिश्चित कर सकता है।
    • राजस्थान जैसे सूखाग्रस्त राज्यों में मनरेगा के विस्तार से मजदूरों को वर्ष भर रोजगार पाने में मदद मिली है।
  • बेहतर काम करने की स्थितियाँ: सुरक्षा के लिए श्रम कानूनों को लागू करना, स्वास्थ्य जाँच और दुर्घटना बीमा प्रदान करना और मशीनीकरण को प्रोत्साहित करना श्रम स्थितियों में सुधार कर सकता है।
    • यूरोपीय संघ के कृषि सुरक्षा कार्यक्रम में कृषि श्रमिकों के लिए सुरक्षात्मक उपकरण और कार्यस्थल सुरक्षा ऑडिट अनिवार्य किए गए हैं।
  • भूमिहीनता और निर्भरता को संबोधित करना: भूमि पट्टे की नीतियों को लागू करना, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को मजबूत करना और सहकारी खेती के मॉडल को बढ़ावा देना खेत मजदूरों को सशक्त बना सकता है।
    • भारत में भूदान आंदोलन ने भूमिहीन मजदूरों को भूमि का पुनर्वितरण किया, हालाँकि आज और अधिक संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है।
  • शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच: मध्याह्न भोजन योजनाओं को मजबूत करना, ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करना और व्यावसायिक प्रशिक्षण शुरू करना दीर्घकालिक कल्याण को बढ़ा सकता है।
    • पश्चिम बंगाल में कन्याश्री योजना ने खेत मजदूरों के बच्चों के बीच स्कूल छोड़ने की दर को कम किया है।
  • कौशल विकास और वैकल्पिक आजीविका: आधुनिक खेती, कृषि प्रसंस्करण और छोटे व्यवसायों में प्रशिक्षण प्रदान करने से खेत मजदूरों को अपने आय स्रोतों में विविधता लाने में मदद मिल सकती है।
    • महाराष्ट्र के कृषि-उद्यमिता प्रशिक्षण कार्यक्रम ने खेत मजदूरों को छोटे व्यवसाय शुरू करने में मदद की है।
  • सरकारी नीतियाँ और जागरूकता कार्यक्रम: श्रमिक संघों, वकालत समूहों और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को मजबूत करने से जागरूकता बढ़ सकती है और कृषि श्रमिकों की स्थिति में सुधार हो सकता है।
    • ओडिशा की मो सरकार पहल नीति कार्यान्वयन में सुधार के लिए कृषि श्रमिकों के साथ सीधे जुड़ाव को बढ़ावा देती है।

भारतीय कृषि मजदूरों की स्थिति

  • कार्यबल वितरण और रोजगार हिस्सेदारी: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2023-24 के अनुसार, भारत में कृषि प्राथमिक रोजगार क्षेत्र बना हुआ है।
    • कृषि में कार्यबल की हिस्सेदारी वर्ष 2017-18 में 44.1% से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 46.1% हो गई।
  • GDP में योगदान: कार्यबल के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को रोजगार देने के बावजूद, भारत के GDP में कृषि का योगदान अपेक्षाकृत कम है।
    • वर्ष 2024 तक, कार्यबल का 46% हिस्सा कृषि में लगा हुआ था, जो GDP में केवल 18% का योगदान देता है।
  • लैंगिक आधारित रोजगार रुझान: कृषि में महिला श्रम शक्ति की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • कृषि में महिला भागीदारी वर्ष 2017-18 में 57.0% से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 64.4% हो गई।
  • भूमिहीन किसान: भारत में भूमिहीन कृषि श्रमिकों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है।
    • वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भूमिहीन कृषि मजदूरों की संख्या 106.7 मिलियन थी। वर्ष 2011 में यह संख्या बढ़कर 144.3 मिलियन हो गई।

निष्कर्ष

समिति की सिफारिशों का उद्देश्य किसानों और खेत मजदूरों के कल्याण को मजबूत करना, वित्तीय सुरक्षा बढ़ाना और सतत् कृषि को बढ़ावा देना है। यदि इन उपायों को लागू किया जाता है, तो इससे भारत के कृषि क्षेत्र में दीर्घकालिक सुधार आ सकते हैं।

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