100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

‘शामलात देह’ भूमि अधिकार पर फैसले की समीक्षा

Lokesh Pal May 21, 2024 05:44 392 0

संदर्भ 

हरियाणा राज्य के ग्रामीण इलाकों में भू-स्वामियों के अधिकारों की रक्षा करते हुए उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2022 के फैसले की समीक्षा की अनुमति दी है, जिसमें ग्राम पंचायतों को शामलात देह भूमि के अधिग्रहण की अनुमति दी गई थी।

संबंधित तथ्य 

  • पृष्ठभूमि: उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2022 के फैसले में पंजाब ग्राम सामान्य भूमि विनियमन अधिनियम, 1961 (Punjab Village Common Lands Regulation Act) में वर्ष 1992 के संशोधन को बरकरार रखा था, जो ग्राम पंचायतों को शामलात देह भूमि को ‘सामान्य उद्देश्यों के लिए आरक्षित भूमि’ के रूप में प्रबंधित और नियंत्रित करने की अनुमति देता है। 
  • वर्ष 1992 के संशोधन को चुनौती: वर्ष 1992 के संशोधन को हाल ही में चुनौती दी गई थी क्योंकि वर्ष 2022 के फैसले में भगत राम बनाम पंजाब राज्य (1967) मामले में संविधान पीठ द्वारा दिए गए महत्त्वपूर्ण निर्णय की अवहेलना की गई है।

शामलात देह (Shamlat Deh)

  • ‘शामलात देह’ गाँव की आम भूमि होती है, जिसे कई भू-स्वामियों द्वारा गाँव के लोगों के ‘साझा उद्देश्यों’ की पूर्ति के लिए अपनी व्यक्तिगत भूमि के बराबर हिस्से का योगदान से बनाया जाता है।
  • अनुच्छेद-31A: अनुच्छेद-31A का दूसरे प्रावधान के अनुसार, यदि भूमि का आकार ‘निर्धारित सीमा’ से कम हो, तो सरकार किसी व्यक्ति की भूमि का अधिग्रहण नहीं कर सकती है। साथ ही, राज्य को उस भूमि के लिए कम-से-कम ‘बाजार मूल्य’ के बराबर मुआवजा देना अनिवार्य है।

विवाद की पृष्ठभूमि और उच्चतम न्यायालय के फैसले

  • भगत राम बनाम पंजाब राज्य (1967): अनुच्छेद-31A के तहत भूमि अधिग्रहण का अर्थ स्पष्ट करना।
    • भूमि चकबंदी योजना की वैधता: वर्ष 1967 में पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने सुंदरपुर गाँव में हुए भूमि चकबंदी योजना की वैधता का फैसला किया, जिसमें भूमि को ‘सामान्य उद्देश्यों के लिए’ आरक्षित करने और इस भूमि से प्राप्त आय को पंचायत को हस्तांतरित करने का प्रस्ताव दिया गया था।
      • पंजाब राज्य ने तर्क दिया कि पंचायत की आय के लिए भूमि आरक्षित करना भूमि अधिग्रहण के रूप में सही नहीं है क्योंकि आय का उपयोग ग्राम समुदाय के लाभ के लिए किया जाएगा।
      • यह भी तर्क दिया गया कि यह अधिग्रहण वर्ष 1964 के 17वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद-31A के लागू होने से पहले किया गया था, इसलिए इन अनुच्छेद का दूसरा प्रावधान लागू नहीं होगा।

अजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य (1967): इस मामले में पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने राज्य द्वारा अधिग्रहित की जाने वाली भूमि तथा अनुच्छेद-31A के तहत भूमि अधिकारों के संशोधन के बीच अंतर बताया।

  • जब भूमि का अधिग्रहण किया जाता है, तो राज्य लाभार्थी होता है, किंतु भूमि अधिकारों के संशोधन या निरस्त करने पर ऐसा नहीं होता है (जब तक कि भूमि का अधिकार राज्य को हस्तांतरित नहीं हो जाता)।

    • योजना को चुनौती: भू-स्वामियों ने इस योजना को यह तर्क देते हुए चुनौती दी है कि यह योजना अनुच्छेद-31A के दूसरे प्रावधान का उल्लंघन करती है।
    • उच्चतम न्यायालय का फैसला: उच्चतम न्यायालय ने भगत राम मामले में ‘अजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य (1967)’ के निर्णय को लागू किया तथा न्यायालय ने कहा कि भूमि की चकबंदी योजना का लाभार्थी पंचायत थी, अर्थात् दूसरे रूप में राज्य भी लाभार्थी था।
      • न्यायालय ने कहा है कि पंचायत अपनी आय आरक्षित करके प्रभावी ढंग से भूमि का अधिग्रहण कर रही थी।
      • पंचायत की आय का उपयोग ग्राम समुदाय के लाभ के लिए किया जा सकता है।
      • इस प्रकार, राज्य के तर्क को स्वीकार करने से अनुच्छेद-31A के दूसरे प्रावधान का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
      • इस योजना पर पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी, फलस्वरूप भूमि का स्वामित्व और नियंत्रण हस्तांतरित नहीं किया गया।
      • पूर्वी पंजाब स्वामित्व (चकबंदी और विखंडन की रोकथाम) अधिनियम, 1948 (Punjab Holdings Consolidation and Prevention of Fragmentation Act) की धारा 24 के तहत, स्वामित्व हस्तांतरित होने के बाद ही योजना को लागू माना जाएगा।
        • बाद में इस अधिनियम का नामकरण चकबंदी अधिनियम (Consolidation Act) के रूप में कर दिया गया।
  • जय सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2003): शामलात भूमि पर स्वामित्व भू-स्वामियों का है या पंचायत का?
    • पंजाब अधिनियम को चुनौती: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में पंजाब अधिनियम में हुए वर्ष 1992 के संशोधन को चुनौती दी गई है, जिसके तहत हरियाणा में शामलात देह भूमि का नियंत्रण ग्राम पंचायत को दिया गया था।
    • आरक्षित भूमि और मालिकों द्वारा योगदान दी गई भूमि के बीच अंतर: न्यायालय ने चकबंदी अधिनियम के तहत सामान्य उद्देश्यों के लिए आरक्षित भूमि तथा व्यक्तिगत भू-स्वामियों द्वारा योगदान दी गई भूमि के बीच अंतर को रेखांकित किया है।
    • योगदान वाली भूमि का नियंत्रण: अधिशेष भूमि को चकबंदी योजना के रूप में पंचायत के साथ निहित नहीं किया जा सकता है।
      • भू-स्वामियों द्वारा योगदान की गई भूमि, जिसे चकबंदी योजना में शामिल नहीं किया गया है, बचत या अधिशेष भूमि (Bachat or Surplus Land) कहलाता है। 
      • भगत राम मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय ने कहा है कि राज्य और ग्राम पंचायत मुआवजा दिए बिना चकबंदी योजना के तहत आरक्षित भूमि का अधिग्रहण नहीं कर सकते।
    • फैसले को चुनौती: हरियाणा राज्य ने इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है, जो वर्ष 2003 के फैसले को खारिज करता है।
    • उच्चतम न्यायालय का फैसला: न्यायालय का मानना है कि मुआवजा देने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि 44वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद-31 को रद्द करने के बाद पंजाब अधिनियम में संशोधन किया गया था।
      • भूमि के प्रबंधन और नियंत्रण का अधिकार पंचायत में निहित कर दिया गया था, जो चकबंदी योजना को क्रियान्वित करने का प्रारंभिक कदम था।
      • अनुच्छेद-31A के दूसरे प्रावधान को लागू करने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि पंचायत केवल भूमिधारकों की ओर से भूमि का प्रबंधन कर रही थी, ना कि उसका अधिग्रहण।
  • करनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2024): उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2022 के फैसले की समीक्षा की अनुमति दे दी।
    • वर्ष 2022 के फैसले तथा भगत राम मामले में संवैधानिक पीठ के निर्णय के बीच विवाद: वर्ष 2022 के फैसले के अनुसार, भूमि आवंटित होने के बाद पंचायत को भूमि के नियंत्रण का अधिकार प्रदान किया गया है, जो भगत राम मामले में संवैधानिक पीठ के निर्णय से ‘पूरी तरह विपरीत’ है।
      • भगत राम मामले में कहा गया है कि जब तक भूमि का स्वामित्व स्थानांतरित नहीं हो जाता, तब तक प्रबंधन और नियंत्रण पंचायत में निहित नहीं हो सकता है तथा भूमिधारक उस समय तक अपनी भूमि पर अधिकार बनाए रखता है।

संवैधानिक पीठ: संविधान के अनुच्छेद-145(3) में संवैधानिक पीठ का प्रावधान है।

  • संरचना: इस पीठ में आम तौर पर पाँच (न्यूनतम), सात या नौ न्यायाधीश शामिल होते हैं, जो संविधान की व्याख्या के संबंध में कानून के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार-विमर्श करते हैं।

  • समीक्षा पर फैसला: न्यायालय ने माना है कि किसी छोटी पीठ द्वारा संवैधानिक पीठ के फैसले की अनदेखी करना ‘आदेश के साथ अन्याय’ है।
    • फलस्वरूप, पीठ ने वर्ष 2022 के फैसले को वापस ले लिया है तथा उच्च न्यायालय के फैसले (2003) पर दी गई चुनौती को एक बार पुनः सुनने का निर्देश दिया है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.