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वैश्विक संघर्ष में संयुक्त राष्ट्र शांति बल की भूमिका

Lokesh Pal October 26, 2024 03:34 52 0

संदर्भ

वैश्विक संघर्षों की हालिया घटनाओं में, संयुक्त राष्ट्र शांति बल की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए अपराधी के साथ-साथ ‘निष्क्रिय समूहों/संस्थाओं’ को भी केंद्र में लाया जाना चाहिए और उन्हें भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

शांति संचालन विभाग (Department of Peace Operation) के बारे में

  • शांति अभियान विभाग संयुक्त राष्ट्र का एक विभाग है, जो संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों की योजना, तैयारी, प्रबंधन और निर्देशन का कार्य करता है।
  • स्थापना: मार्च 1992।

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना बल के बारे में

  • संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान, शांति संचालन विभाग और परिचालन सहायता विभाग के बीच एक संयुक्त प्रयास है।
  • इसमें नागरिक, पुलिस और सैन्यकर्मी शामिल होते हैं।

  • उद्देश्य: संघर्षग्रस्त देशों को सुरक्षा, राजनीतिक और शांति निर्माण सहायता प्रदान करके स्थायी शांति के लिए परिस्थितियाँ बनाने में मदद करना।
  • क्षमता: वैश्विक स्तर पर सैनिकों को तैनात करने की क्षमता; सैन्य, पुलिस और नागरिक शांति सैनिकों को एक साथ लाता है।
  • संरचना: संघर्ष स्थितियों के लिए विशिष्ट अधिदेशों के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा निर्देशित।
  • पहला संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन मई 1948 में स्थापित किया गया था।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने मध्य पूर्व में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षकों की एक छोटी संख्या की तैनाती को अधिकृत किया ताकि संयुक्त राष्ट्र युद्धविराम पर्यवेक्षण संगठन (United Nations Truce Supervision Organization- UNTSO) का गठन किया जा सके।
    • इजरायल तथा उसके अरब पड़ोसियों के बीच युद्धविराम समझौते की निगरानी करना।

संयुक्त राष्ट्र चार्टर: वैश्विक शांति बनाए रखना

  • अध्याय VI: शांतिपूर्ण विवाद निपटान पर ध्यान केंद्रित करना।
  • अध्याय VII: आक्रामकता के मामलों में सशस्त्र बल के लिए सुरक्षा परिषद को अधिकृत करना, सदस्य-राष्ट्रों को आवश्यक बल प्रदान करना।
  • अध्याय VIII: सुरक्षा परिषद द्वारा अधिकृत क्षेत्रीय प्रवर्तन को बढ़ावा देना।

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के सिद्धांत

  • संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना तीन बुनियादी सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होती है:-
    • पक्षों की सहमति: संघर्ष में पक्ष बनने से बचने के लिए संचालन के लिए सहमति की आवश्यकता होती है।
    • निष्पक्षता: शांति सैनिकों को जनादेश लागू करते समय निष्पक्ष रहना चाहिए।
    • बल का प्रयोग न करना: बल का प्रयोग केवल आत्मरक्षा या जनादेश की रक्षा के लिए किया जाता है।

अधिदेश एवं कार्य

  • संघर्ष की रोकथाम: संघर्षों को बढ़ने से रोकना।
  • युद्धविराम स्थिरीकरण: क्षेत्रों को स्थिर करने के लिए युद्धविराम के बाद तैनाती करना।
  • शांति समझौते का कार्यान्वयन: व्यापक समझौतों को लागू करने में सहायता करना।
  • राजनीतिक संक्रमण: लोकतांत्रिक और स्थिर शासन संक्रमण का समर्थन करना।
  • मानवीय सहायता: मानवीय सहायता प्रदान करना, शरणार्थियों के पुनः एकीकरण का समर्थन करना और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देना।

दूसरी पीढ़ी के शांति मिशन

  • दूसरी पीढ़ी के शांति मिशन संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान का एक अधिक जटिल तथा विविध प्रकार है, जो शीतयुद्ध के बाद प्रारंभ हुआ।
  • बहुआयामी दृष्टिकोण: इसमें सैन्य, पुलिस और मानवीय भूमिकाएँ शामिल हैं, जो आंतरिक संघर्षों, राष्ट्र-निर्माण, नागरिक प्रशासन, चुनाव और शरणार्थियों के प्रत्यावर्तन को संबोधित करती हैं।
  • प्रमुख देशों का समावेश: प्रमुख देशों के कर्मियों की भागीदारी में वृद्धि।
  • तटस्थता में कमी: मिशनों को अक्सर विशिष्ट स्थानीय समूहों या विचारधाराओं का समर्थन करने वाला माना जाता है।
  • उदाहरण
    • नामीबिया (UNTAG): स्वतंत्रता तथा लोकतांत्रिक चुनावों का निरीक्षण किया।
    • कंबोडिया (UNTAC): चुनाव कराए गए तथा शरणार्थियों को वापस भेजा गया।
    • अंगोला (UNAVEM): शांति समझौतों की पुष्टि की तथा पुनर्एकीकरण का समर्थन किया।

संघर्ष समाधान में योगदान

  • संघर्ष की रोकथाम: उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों (उदाहरण के लिए, साइप्रस और लेबनान) में शांति सैनिकों की तैनाती संघर्षों को बढ़ने से रोकती है।
  • युद्ध विराम की निगरानी: शांति सैनिक युद्ध विराम की निगरानी और सत्यापन में सहायता करते हैं, संघर्षरत पक्षों के बीच शांति समझौतों का समर्थन करते हैं। 
  • मानवीय सहायता: शांति सैनिक गलियारों को सुरक्षा देकर और राहत संगठनों की सहायता करके मानवीय सहायता की सुविधा प्रदान करते हैं। 
  • चुनाव और शासन: शांति सैनिक लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थापना और चुनाव आयोजित करने में सहायता करते हैं (उदाहरण के लिए, तिमोर लेस्ते, कंबोडिया)। 
  • क्षमता निर्माण: वे संघर्ष के बाद पुनर्निर्माण में स्थानीय अधिकारियों का समर्थन करते हैं और भविष्य की स्थिरता के लिए स्थानीय पुलिस बलों को प्रशिक्षित करते हैं।

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना की सफलताएँ और विफलताएँ

  • शांति स्थापना में उपलब्धियाँ
    • वर्ष 1948 से, इसने कंबोडिया, अल साल्वाडोर, ग्वाटेमाला, मोजांबिक, नामीबिया और ताजिकिस्तान सहित दर्जनों देशों में सफल शांति अभियानों का संचालन करके संघर्षों को समाप्त करने और सुलह को बढ़ावा देने में मदद की है।
    • सफल संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन: कंबोडिया, मोजांबिक, सिएरा लियोन, अंगोला, तिमोर लेस्ते, लाइबेरिया, कोसोवो।
    • सम्मान: वर्ष 1988 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • विफलताएँ
    • रवांडा (वर्ष 1994), बोस्निया (वर्ष 1995) तथा माली (वर्ष 2023): संयुक्त राष्ट्र स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा करने में विफल रहा है।
    • हालिया विफलताएँ: यूक्रेन और इजरायल-गाजा संघर्षों में निर्णायक रूप से कार्य करने में संयुक्त राष्ट्र की अक्षमता उजागर हुई।
    • यौन शोषण: हैती, बोस्निया, कंबोडिया, पूर्वी तिमोर, इराक और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य सहित कई देशों में यौन शोषण के आरोप लगे।

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना की चुनौतियाँ एवं सीमाएँ

  • वीटो शक्ति: P5 सदस्यों के बीच बढ़ते ध्रुवीकरण के कारण वीटो शक्ति का बार-बार प्रयोग किया जा रहा है, जिससे शांति सैनिकों की समय पर तैनाती में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 2023 में अमेरिका ने गाजा में मानवीय सहायता रोकने के प्रस्ताव पर वीटो लगा दिया था।
  • संसाधन की कमी: पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित और अच्छी तरह से सुसज्जित बलों की आवश्यकता प्रभावशीलता को सीमित कर सकती है।
  • राजनीतिक बाधाएँ: सुरक्षा परिषद की वीटो शक्ति तेजी से हस्तक्षेप में बाधा डाल सकती है, जैसा कि रवांडा नरसंहार में देखा गया था।
  • जटिल अधिदेश: शांति सैनिकों को कभी-कभी अस्पष्ट उद्देश्यों वाले अधिदेशों का सामना करना पड़ता है, जिससे निर्णायक रूप से कार्य करना जटिल हो जाता है, उदाहरण के लिए, यूक्रेन और गाजा में हाल के संघर्षों में।
  • संघर्षों की बदलती प्रकृति: आधुनिक संघर्षों में जटिल अर्बन वारफेयर, साइबर समस्या और नॉन-स्टेट अभिकर्ता शामिल हैं, जिन्हें सँभालने के लिए पारंपरिक शांति सेना सुसज्जित नहीं है।
  • पक्षपात के आरोप: संयुक्त राष्ट्र बलों को कभी-कभी पक्षपात के आरोपों का सामना करना पड़ता है, जिससे संघर्ष क्षेत्र में उनकी विश्वसनीयता एवं अधिदेश को खतरा होता है।
  • विश्वसनीयता संकट: ऐतिहासिक विफलताएँ संयुक्त राष्ट्र शांति सेना की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाती रहती हैं।
  • क्षेत्रीय विकल्प: सोमालिया में अफ्रीकी संघ के शांति अभियान (ATMIS) जैसे क्षेत्रीय संगठन शांति अभियानों में तेजी से अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।

शांति मिशनों में भारत का योगदान

  • सैन्य योगदान: भारत ने किसी भी अन्य देश की तुलना में सबसे अधिक सैन्य योगदान दिया है, जिसके 2,53,000 से अधिक कार्मिक वर्ष 1948 से 49 संयुक्त राष्ट्र मिशनों में सेवारत हैं।
    • 31 दिसंबर, 2023 तक, भारत ने संयुक्त राष्ट्र के 12 शांति मिशनों में 5,901 सैनिकों को तैनात किया है।
  • शांति स्थापना में महिलाएँ: वर्ष 2007 में भारत संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन में पूर्णतः महिला दल तैनात करने वाला पहला देश बना।
    • हाल ही में कांगो में संयुक्त राष्ट्र मिशन में सेवा देने वाली भारतीय महिला शांति सैनिक मेजर राधिका सेन को प्रतिष्ठित सैन्य लैंगिक अधिवक्ता पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।
  • नेतृत्व: भारत ने संयुक्त राष्ट्र मिशनों के लिए कमांडर स्तरीय बल उपलब्ध कराए हैं।
  • समर्थन: भारत ने संयुक्त राष्ट्र, मेजबान देशों और साझेदार देशों के लिए रसद सहायता, शांति रक्षक प्रशिक्षण और क्षमता विकास भी प्रदान किया है।
    • भारतीय सेना ने शांतिरक्षा अभियानों में प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए नई दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा केंद्र (CUNPK) की स्थापना की है।
      • प्रत्येक वर्ष 12,000 से अधिक सैनिकों को प्रशिक्षित करता है।
  • ट्रस्ट फंड: भारत, यौन शोषण और दुर्व्यवहार पर ट्रस्ट फंड में योगदान देने वाला पहला देश था, जिसे वर्ष 2016 में स्थापित किया गया था।
  • मान्यता: भारतीय शांति सैनिकों को उनके प्रयासों और प्रदर्शन के उच्च मानकों के लिए प्रशंसा मिली है।
    • संयुक्त राष्ट्र मिशनों में सेवा करते हुए 175 से अधिक भारतीय शांति सैनिक मारे गए हैं।
  • प्रतिबद्धता: संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के प्रति भारत की प्रतिबद्धता वसुधैव कुटुंबकम् के प्राचीन भारतीय सिद्धांत पर आधारित है।

आगे की राह

  • राजनीतिक समाधान और संघर्ष समाधान: संघर्षों को रोकने, प्रबंधित करने और हल करने के लिए कूटनीतिक तथा राजनीतिक दृष्टिकोण को बढ़ाना।
  • सुरक्षा परिषद की सदस्यता का विस्तार: प्रतिनिधित्व और निर्णय लेने के संतुलन को बढ़ाने के लिए भारत तथा दक्षिण अफ्रीका जैसी उभरती शक्तियों को शामिल करने का प्रस्ताव।
  • वीटो पॉवर को सीमित करना: मानवीय संकटों में वीटो के उपयोग को सीमित या संशोधित करने से शांति सेना की तेजी से तैनाती हो सकती है।
  • अधिदेश को मजबूत करना: नागरिकों की सुरक्षा के लिए स्पष्ट अधिदेश के साथ शांति सेना को सशक्त बनाना और बड़े पैमाने पर अत्याचारों को रोकने के लिए आवश्यक होने पर बल का उपयोग करना।
  • महिला, शांति तथा सुरक्षा: महिला शांति सैनिकों की संख्या बढ़ाकर और सभी शांति गतिविधियों में लैंगिक दृष्टिकोण सुनिश्चित करके महिला, शांति तथा सुरक्षा (WPS) एजेंडे के एकीकरण को प्राथमिकता देना।
  • नागरिकों तथा मानवाधिकारों की सुरक्षा: परिचालन प्रतिक्रिया में सुधार करके और स्थानीय समुदायों के साथ भागीदारी को मजबूत करके, विशेष रूप से अस्थिर संघर्ष क्षेत्रों में नागरिकों की सुरक्षा के लिए तंत्र को मजबूत करना ताकि विश्वास एवं सुरक्षा बढ़े।
  • शांति सैनिकों की सुरक्षा: निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणालियों सहित उन्नत प्रौद्योगिकी में निवेश करना तथा उच्च जोखिम वाले वातावरण में शांति सैनिकों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण तथा संसाधनों में सुधार करना।
  • प्रदर्शन तथा जवाबदेही: यह सुनिश्चित करने के लिए कि शांति स्थापना घटक उच्च मानकों को पूरा करें जैसे कठोर प्रदर्शन और जवाबदेही ढाँचे की स्थापना करना।
    • सभी शांति मिशनों में नियमित मूल्यांकन और पारदर्शी रिपोर्टिंग तंत्र लागू किया जाना चाहिए।
  • प्रभावी भागीदारी: क्षेत्रीय संगठनों, मेजबान सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ सहयोगात्मक प्रयासों को बढ़ावा देना।
  • नैतिकता और आचरण: शांति मिशनों की विश्वसनीयता और अखंडता बनाए रखने के लिए सख्त आचार संहिता लागू करना।

निष्कर्ष

सीमाओं के बावजूद, संघर्ष को बढ़ने से रोकने और वैश्विक शांति को बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना एक महत्त्वपूर्ण उपकरण बनी हुई है। हालाँकि, आधुनिक समय के संघर्षों के अनुकूल होने और प्रतिक्रियात्मक के बजाय सक्रिय शांति प्रवर्तक के रूप में अपनी भूमिका बढ़ाने के लिए संरचनात्मक सुधारों और अधिक दक्षता की आवश्यकता है।

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