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सर्वोच्च न्यायालय ने खनिज भूमि और खदानों पर कर लगाने के राज्यों के अधिकार पर पुनर्विचार याचिका खारिज की

Lokesh Pal October 07, 2024 04:53 204 0

संदर्भ 

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पूर्व  के निर्णय को चुनौती देने वाली कई समीक्षा याचिकाओं को खारिज कर दिया है, जिसमें खनिज युक्त भूमि एवं खदानों पर कर लगाने के राज्य विधानसभाओं के अधिकार को बरकरार रखा गया था।

संबंधित तथ्य 

  • पूर्व निर्णयों की व्याख्या: सर्वोच्च न्यायालय ने 25 जुलाई के अपने निर्णय की पुनः पुष्टि की है, जिसमें कुछ भूमि पर कर लगाना केवल संसद का अधिकार नहीं है।
  • याचिकाकर्ताओं की अपील: केंद्र सरकार, कर्नाटक आयरन एंड स्टील मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन और अन्य ने पूर्व के निर्णय पर पुनर्विचार की माँग की।
  • बहुमत का निर्णय: भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को तथ्यहीन पाया और उनकी समीक्षा याचिकाओं को खारिज कर दिया।
  • पूर्व निर्णय त्रुटिहीन: पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि पिछले निर्णय में कोई महत्त्वपूर्ण त्रुटि नहीं थी।
  • असहमतिपूर्ण राय: न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने तर्क दिया कि समीक्षा याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई होनी चाहिए थी।
  • अंतिम परिणाम: निर्णय पर असहमतिपूर्ण राय के बावजूद, बहुमत का निर्णय लागू हुआ और समीक्षा याचिकाओं को खारिज कर दिया गया।

समीक्षा याचिकाओं के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • सर्वोच्च न्यायालय की समीक्षा शक्ति: भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 137 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णयों या आदेशों की समीक्षा करने की शक्ति प्राप्त है। यह सर्वोच्च न्यायालय के नियमों द्वारा शासित है, जहाँ आदेश XLVII नियम 1 उन परिस्थितियों को रेखांकित करता है, जिनके तहत समीक्षा की माँग की जा सकती है।
  • आम तौर पर समीक्षा पर तभी विचार किया जाता है, जब कोई स्पष्ट त्रुटि हो या कोई नया साक्ष्य सामने आए जिसके लिए पुनर्विचार की आवश्यकता हो।

25 जुलाई का फैसला और उसका महत्त्व 

  • ऐतिहासिक निर्णय: यह निर्णय वित्तीय संघवाद को समर्थन देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि राज्यों को खनिज भूमि और खदानों पर कर लगाने का अधिकार है।
  • कर लगाने का राज्यों का अधिकार: न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि राज्यों को अपनी सीमाओं के भीतर खदानों पर कर लगाने का अधिकार है।
    • इसने जोर देकर कहा कि इस अधिकार पर किसी भी तरह के प्रतिबंध से राज्यों की राजस्व जुटाने की क्षमता प्रभावित होगी।
  • MMDR अधिनियम और राज्यों की विधायी शक्ति: निर्णय में स्पष्ट किया गया कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) राज्यों को कानून बनाने और खानों तथा खदानों पर कर लगाने से नहीं रोकता है।
    • राज्य अपने अधिकार क्षेत्र में कानून बनाने और कर लगाने के लिए स्वतंत्र हैं तथा उन पर केंद्र की ओर से कोई प्रतिबंध नहीं है।

खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957

  • MMDR अधिनियम भारत में एक महत्त्वपूर्ण कानून है, जो खनिज संसाधनों के अन्वेषण, विकास और विनियमन को नियंत्रित करता है।

MMDR अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों में शामिल हैं

  • लाइसेंसिंग और परमिट: अधिनियम कुछ शर्तों और आवश्यकताओं के अधीन खनन कार्यों के लिए लाइसेंस तथा परमिट प्रदान करता है।
  • पर्यावरण नियम: यह खनन कंपनियों को पारिस्थितिकी तंत्र पर खनन के प्रभाव को कम करने के लिए पर्यावरण मानकों का अनुपालन करने का आदेश देता है।
  • सुरक्षा मानक: अधिनियम खदान श्रमिकों के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सुरक्षा नियम निर्धारित करता है।
  • खनन क्षेत्रों का पुनर्वास: यह खनन कंपनियों को परिचालन बंद होने के बाद भूमि को उसकी मूल स्थिति या उपयुक्त वैकल्पिक उपयोग में बहाल करने के लिए खनन क्षेत्रों का पुनर्वास करने की आवश्यकता है।
  • महत्त्वपूर्ण खनिजों का संरक्षण: अधिनियम उन महत्त्वपूर्ण खनिजों के संरक्षण को प्राथमिकता देता है, जो देश की आर्थिक वृद्धि और सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं।

खनिज कराधान में स्वायत्तता के लिए राज्यों की माँग 

  • राज्यों की स्वायत्तता की माँग: छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा जैसे प्रचुर खनिज संसाधनों वाले राज्यों ने अपनी खनिज संपदा पर कर लगाने पर अधिक नियंत्रण की माँग की है।
  • आर्थिक चुनौतियाँ: अपनी संसाधन समृद्धि के बावजूद, इन राज्यों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, राष्ट्रीय औसत की तुलना में प्रति व्यक्ति आय कम है।
  • 25 जुलाई के फैसले को जीत के रूप में देखा गया: सर्वोच्च न्यायालय के 25 जुलाई के फैसले को इन राज्यों के लिए जीत के रूप में देखा गया, क्योंकि इसने उन्हें खनन भूमि पर कर लगाने की अनुमति देकर अधिक वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान की।
  • संभावित आवेदन पर स्पष्टीकरण: इस बात को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हुईं कि क्या यह निर्णय केवल भविष्य के मामलों पर लागू होगा।
    • न्यायालय ने 14 अगस्त को स्पष्ट किया कि राज्यों को 1 अप्रैल, 2005 से केंद्र और खनन कंपनियों से खनिज युक्त भूमि पर रॉयल्टी पर पूर्वव्यापी रूप से बकाया वसूलने की अनुमति दी गई है।
  • बहुमत का निर्णय: न्यायमूर्ति नागरत्ना को छोड़कर अधिकांश न्यायाधीशों ने निर्णय दिया कि यह निर्णय सभी प्रासंगिक मामलों पर लागू होगा तथा खनिज भूमि पर पिछले राज्य कर कानूनों की वैधता सुनिश्चित करेगा।

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