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सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियों की वैधानिकता पर संदेह व्यक्त किया

Lokesh Pal October 07, 2024 04:48 141 0

संदर्भ

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली नगर निगम (DMC) अधिनियम, 1957 की धारा 487 के अंतर्गत दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों की वैधानिकता एवं वैधता पर प्रश्न उठाया।

  • यह मामला दिल्ली नगर निगम स्थायी समिति में रिक्त पद को भरने के लिए चुनाव कराने के उपराज्यपाल के निर्देश से संबंधित है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उठाए गए प्रमुख मुद्दे

  • उपराज्यपाल की शक्तियों पर प्रश्न: न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा एवं न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने दिल्ली नगर निगम (DMC) अधिनियम की धारा 487 के तहत उपराज्यपाल (LG) के अधिकार पर ‘गंभीर संदेह’ जताया है।
    • पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि यह धारा उपराज्यपाल को कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति देती है, लेकिन चुनाव जैसे विधायी कार्यों में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देती है।
  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप: सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर इस तरह के कार्यकारी हस्तक्षेप के प्रभाव पर असहमति व्यक्त की। 
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 487 का उपयोग विधायी प्रक्रियाओं में बाधा उत्पन्न करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

DMC अधिनियम की धारा 487

  • धारा 487 के तहत उपराज्यपाल की शक्तियाँ
    • यह उपराज्यपाल को असाधारण परिस्थितियों में दिल्ली नगर निगम के कामकाज में हस्तक्षेप करने की शक्ति प्रदान करता है।
    • हालाँकि, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया है कि ये शक्तियाँ कार्यकारी प्रकृति की हैं और इनका उपयोग चुनावी प्रक्रियाओं अथवा विधायी कार्यों में हस्तक्षेप करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) 

  • प्रशासक: दिल्ली का उपराज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (National Capital Territory- NCT) का प्रशासक है। 
    • उपराज्यपाल NCT का संवैधानिक प्रमुख है।
  • नियुक्त: भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति और इसका कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है। 
  • सहायता एवं सलाह: उपराज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना आवश्यक है, सिवाय उन मामलों को छोड़कर, जहाँ उपराज्यपाल को स्वतंत्र रूप से कार्य करने की आवश्यकता होती है।
  • शक्तियाँ: उपराज्यपाल के पास दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 सहित विभिन्न कानूनों के अंतर्गत विशिष्ट शक्तियाँ हैं।
  • एल्डरमैन (Aldermen) को नामित करना: उपराज्यपाल दिल्ली सरकार की मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना दिल्ली नगर निगम (MCD) में एल्डरमैन को नामित कर सकते हैं।
  • प्रावधानों का निलंबन: यदि उपराज्यपाल यह रिपोर्ट देते हैं कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का प्रशासन अनुच्छेद-239AA के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है, तो राष्ट्रपति अनुच्छेद-239AA के किसी भी प्रावधान के संचालन को निलंबित कर सकते हैं।
  • भारत में केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासन संविधान के भाग VIII के अनुच्छेद-239 से 241 द्वारा शासित होता है।
  • राष्ट्रपति की भूमिका: राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रशासक के माध्यम से केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासन किया जाता है।

भारत में संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन

  • भारत में केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों को केंद्रशासित प्रदेशों (UT) के आधार पर लेफ्टिनेंट गवर्नर (LG) या मुख्य आयुक्त कहा जाता है।
    • उपराज्यपाल: अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, दिल्ली और पुडुचेरी के प्रशासक।
    • मुख्य आयुक्त: चंडीगढ़, दादरा और नागर हवेली, दमन और दीव और लक्षद्वीप के प्रशासक।
    • राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल को निकटवर्ती केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासक के रूप में भी नियुक्त कर सकते हैं, उदाहरण के लिए, पंजाब के राज्यपाल चंडीगढ़ के प्रशासक भी हैं।
  • विधानमंडल: संसद अनुच्छेद-239A के माध्यम से केंद्रशासित प्रदेशों के लिए विधानमंडल का गठन कर सकती है।
  • राष्ट्रपति के लिए नियम: राष्ट्रपति कुछ केंद्रशासित प्रदेशों की शांति, प्रगति और सुशासन के लिए नियम बना सकते हैं।
    • इन विनियमों की शक्ति एवं प्रभाव संसद के अधिनियम के समान ही है।
  • दिल्ली के लिए विशेष प्रावधान: अनुच्छेद-239AA राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए विशेष प्रावधान प्रदान करता है।

पहलू 

राज्यपाल 

दिल्ली के उपराज्यपाल

संवैधानिक आधार भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 153 प्रत्येक राज्य के लिए राज्यपाल का पद सृजित करता है। अनुच्छेद-239AA दिल्ली को एक केंद्रशासित प्रदेश तथा विधानसभा युक्त बनाने के लिए उपराज्यपाल का प्रावधान करता है।
कार्यकारी शक्तियाँ  अनुच्छेद-154 के तहत कार्यकारी प्राधिकार का प्रयोग करता है; मंत्रियों की नियुक्ति करता है (अनुच्छेद- 164)। कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करता है, लेकिन अक्सर केंद्र सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होती है। केंद्रीय प्रतिनिधि की तरह कार्य करता है।
विधायी भूमिका राज्य विधानमंडल को बुलाना और स्थगित करना (अनुच्छेद-174); विधानसभा को भंग कर सकता है (अनुच्छेद-172)। दिल्ली विधानसभा सत्र को आहूत और स्थगित किया जा सकता है, लेकिन कानून बनाने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक है (अनुच्छेद 239AA)।
वीटो शक्ति विधेयक पर स्वीकृति दे सकता है, स्वीकृति रोक सकता है या विधेयक वापस कर सकता है (अनुच्छेद-200)। दिल्ली विधानसभा के कानून पर कोई वीटो शक्ति नहीं है, जब तक कि वह राज्य सूची के विषयों से संबंधित न हो।
न्यायिक शक्तियां क्षमा, विलंबन या दंड में छूट दे सकता है (अनुच्छेद-161)। इसमें क्षमा प्रदान करने की शक्ति नहीं है; न्यायिक प्राधिकार न्यायालयों के पास है।
आपातकालीन शक्तियां अनुच्छेद-356 के अंतर्गत आपातकाल की घोषणा की जा सकती है, जिससे राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है। केंद्रीय सरकार के निर्देशों तक सीमित; स्वतंत्र रूप से आपातकाल की घोषणा नहीं करता।
राज्य की पुलिस पर अधिकार वह राज्य पुलिस का प्रमुख  होता है तथा कानून प्रवर्तन पर उसका अधिकार होता है। पुलिस पर सीमित नियंत्रण है।

केंद्र सरकार की सेनाओं पर निर्भर है।

राज्य में विशेष शक्तियाँ उनके पास कोई विशेष शक्ति नहीं है। कानून और व्यवस्था, भूमि और पुलिस की देखरेख करने के लिए विशेष शक्तियाँ  हैं।

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