हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने खनिज अधिकारों पर कराधान से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर अपने वर्ष 1989 के निर्णय को पलट दिया है।
न्यायालय द्वारा 8:1 के निर्णय में पुष्टि की गई कि राज्य विधानसभाओं को संसद के खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 से मुक्त होकर खनन भूमि एवं खदानों पर कर लगाने का अधिकार है।
खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 [Mines and Minerals (Development and Regulation) Act- MMDRA) की धारा 9
इसमें यह अपेक्षा की गई है कि जो लोग खनन गतिविधियों के संचालन के लिए पट्टे प्राप्त करते हैं, वे ‘खनन किये गए किसी भी खनिज के संबंध में रॉयल्टी का भुगतान’ उस व्यक्ति या निगम को करें जिसने उन्हें भूमि पट्टे पर दी है।
पृष्ठभूमि
इंडिया सीमेंट लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य, 1989: 7 न्यायाधीशों की पीठ ने कंपनी द्वारा तमिलनाडु के एक कानून को चुनौती देने के मामले की सुनवाई की, जिसमें रॉयल्टी सहित भूमि राजस्व पर उपकर लगाया गया था।
उपकर: यहसामान्यतः कर योग्य राशि के अतिरिक्त लगाया जाने वाला कर है।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: न्यायालय ने कहा कि राज्यों को केवल रॉयल्टी वसूलने का अधिकार है, खनन गतिविधियों पर कर लगाने का अधिकार नहीं है।
इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार को कानून (इस मामले में MMDRA) द्वारा प्रदत्त सीमा तक संघ सूची की प्रविष्टि 54 के तहत ‘खानों और खनिज विकास के विनियमन’ पर अत्यावश्यक अधिकार प्राप्त है।
राज्यों के पास इस विषय पर और अधिक कर लगाने का अधिकार नहीं है।
रॉयल्टी एक कर है: जो रॉयल्टी पर कर होने के कारण राज्य विधानमंडल की क्षमता से परे है।
पश्चिम बंगाल राज्य बनाम केसोराम इंडस्ट्रीज लिमिटेड 2004: भूमि और खनन गतिविधियों पर उपकर से निपटने वाले एक समान मामले में, पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने माना कि इंडिया सीमेंट के फैसले में एक भाषागत त्रुटि थी और वाक्यांश ‘रॉयल्टी एक कर है’ को ‘रॉयल्टी पर उपकर एक कर है’ के रूप में पढ़ा जाना चाहिए।
न्यायालय अपने निर्णय को पलट नहीं सका: केसोराम इंडस्ट्रीज मामले की न्यायिक पीठ, इंडिया सीमेंट मामले की न्यायिक पीठ से छोटी थी, अतः न्यायालय अपने निर्णय को पलट नहीं सका और स्थिति को सुधार नहीं सका।
वर्ष 2011 में: न्यायालय ने केसोराम इंडस्ट्रीज तथा इंडिया सीमेंट के बीच स्पष्ट विवाद का संज्ञान लिया, जिसका उसके समक्ष मामले पर सीधा प्रभाव पड़ा था।
9 न्यायाधीशों की पीठ: अंतिम रूप से कानूनी स्थिति तय करने के लिए मामले को 9 न्यायाधीशों की पीठ को भेजने का निर्णय लिया गया था।
वक्तव्य ‘रॉयल्टी एक कर है’: इस वक्तव्य से ऐसे मुद्दे सामने आए, जिसके कारण उच्चतम न्यायालय में 9 न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया गया है।
रॉयल्टी क्या है?
रॉयल्टी खनिजों के मालिक द्वारा सरकार या किसी निजी व्यक्ति को दिया जाने वाला प्रतिफल है।
यह एक वैधानिक समझौते (पट्टादाता और पट्टेदार के बीच खनन पट्टा) से प्राप्त होता है।
यह खनिजों को निष्कर्षण या उपभोग करने के लिए पट्टेदार को दिए गए विशेषाधिकार की वापसी को दर्शाता है।
यह आम तौर पर निष्कर्षित गए खनिजों की मात्रा के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
अलग-अलग अवधारणाओं के रूप में रॉयल्टी और करों के बीच मुख्य अंतर
भुगतान की प्रकृति: रॉयल्टी एक संपत्ति के मालिक (पट्टादाता) को पट्टेदार की संपत्ति पर संसाधनों का उपयोग करने के अधिकार के बदले में किया जाने वाला भुगतान है। जबकि कर सरकार द्वारा लगाया जाने वाला एक अनिवार्य भुगतान है।
भुगतान का कारण: रॉयल्टी का भुगतान भूमि से खनिज निष्कर्षण के विशिष्ट कार्य के लिए किया जाता है, जबकि कर कानून द्वारा उल्लिखित विभिन्न घटनाओं या गतिविधियों के अनुसार लगाया जाता है।
कानूनी उत्पत्ति: रॉयल्टी दो पक्षों के बीच स्थापित पट्टा समझौते से उत्पन्न होती है, जबकि कर कानून का निर्माण है।
रॉयल्टी तथा कर के बीच मुख्य वैचारिक अंतर
अधिरोपण: मालिक खनिजों पर अपना अधिकार बाँटने के बदले में रॉयल्टी वसूलता है, जबकि कर संप्रभु द्वारा लगाया गया कर है।
विशेष कार्रवाई: रॉयल्टी एक विशेष कार्रवाई के लिए देय है, जो मिट्टी से खनिजों का निष्कर्षण है जबकि कर आम तौर पर कानून द्वारा निर्धारित कर योग्य घटना पर लगाया जाता है।
कानून द्वारा लगाया गया: कानून द्वारा लगाए गए कर की तुलना में रॉयल्टी को पट्टा विलेख द्वारा बंद कर दिया जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के बारे में
9 न्यायाधीशों की पीठ ने निम्नलिखित प्रश्नों की जाँच की:-
क्या खनन पट्टों पर रॉयल्टी को कर माना जा सकता है?
क्या राज्यों को MMDR अधिनियम के लागू होने के बाद खनिज अधिकारों पर रॉयल्टी/कर लगाने का अधिकार है?
‘रॉयल्टी एक कर है’ कथन का निहितार्थ
सातवीं अनुसूची (Seventh Schedule)
संविधान के अनुच्छेद-246 के अंतर्गत सातवीं अनुसूची संघ तथा राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन से संबंधित है।
इसमें तीन सूचियाँ हैं- संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची।
प्रविष्टि 50 सूची II: खनिज विकास से संबंधित संसद द्वारा कानून द्वारा लगाए गए किसी भी प्रतिबंध के अधीन खनिज अधिकारों पर कर।
प्रविष्टि 54 सूची I: खानों का विनियमन और खनिज विकास उस सीमा तक जिस तक संघ के नियंत्रण के अधीन ऐसा विनियमन और विकास संसद द्वारा विधि द्वारा लोकहित में न्यायसंगत घोषित किया गया हो।
यदि रॉयल्टी एक कर है तो इसका संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची दो के तहत राज्यों की कर लगाने की शक्ति पर प्रभाव पड़ता है।
लेकिन यदि यह कर नहीं है तो राज्य कर पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।
इसलिए, इसका परिणाम यह होगा कि जिन राज्यों ने पहले से ही खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने के लिए विभिन्न कर कानून बनाए हैं, वे वैध होंगे और राज्य कर वसूलने के हकदार होंगे।
न्यायालय में राज्यों द्वारा दिए गए तर्क: सूची II की प्रविष्टि 50 (खनिज अधिकारों पर राज्यों की कर लगाने की शक्तियाँ) में ‘सीमा’ शब्द का अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि कर लगाने की शक्ति संसद को हस्तांतरित कर दी गई है।
प्रविष्टि 50 सूची II संसद को खनिज अधिकारों पर कर लगाने में सक्षम बनाए बिना राज्यों के अधिकार को सीमित करती है।
केंद्र सरकार के तर्क: सूची II की प्रविष्टि 50 स्वाभाविक रूप से राज्य की शक्तियों को सीमित करती है तथा इसकी व्याख्या राष्ट्रीय खनिजों के समग्र प्रबंधन के साथ संरेखित करने के लिए व्यापक रूप से की जानी चाहिए। MMDR अधिनियम, अपने अस्तित्व के कारण, राज्य की कर लगाने की शक्तियों को सीमित करता है।
खनिज कराधान पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निष्कर्ष
रॉयल्टी और डेड रेंट, कर की विशेषताओं को पूरा नहीं करते हैं: इंडिया सीमेंट्स मामले में दिए गए पिछले निर्णय को खारिज कर दिया गया, जिसमें रॉयल्टी को कर माना गया था।
MMDR अधिनियम सीमाएँ नहीं लगाता: पीठ ने यह भी कहा कि MMDRअधिनियम राज्यों की कर लगाने की शक्तियों पर सीमाएँ नहीं लगाता है।
रॉयल्टी कर नहीं है: MMDR अधिनियम की धारा 9 के तहत रॉयल्टी को कर नहीं माना जाता है।
सूची I की प्रविष्टि 54: खनिजों पर संघ की शक्ति से संबंधित यह सूची विनियामक हैऔर इसमें कर प्राधिकरण शामिल नहीं है। राज्यों के पास खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी शक्ति है।
सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि 49 में ‘भूमि’ शब्द: इसमें खनिज युक्त भूमि शामिल है,जो राज्यों को ऐसी भूमि पर कर लगाने का अधिकार प्रदान करती है।
निष्कर्ष: राज्य विधानसभाओं के पास खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का अधिकार है तथा वे खनिज युक्त भूमि की उपज को कराधान के उपाय के रूप में उपयोग कर सकते हैं।
निर्णय के विरुद्ध तर्क
खनिज विकास के हित को नुकसान पहुँचाना: MMDRA के तहत रॉयल्टी को देश में खनिज विकास के हित में एक कर माना जाना चाहिए।
MMDRA का उद्देश्य: इसका उद्देश्य खनिज विकास और खनन गतिविधियों को बढ़ावा देना था और यदि राज्यों को उनके द्वारा एकत्रित रॉयल्टी के अतिरिक्त शुल्क और उपकर (विभिन्न प्रकार के कर) लगाने का अधिकार दिया गया तो यह उद्देश्य विफल हो जाएगा।
MMDRA के माध्यम से संतुलन पहले ही बना लिया गया: MMDRA के पारित होने के बाद राज्यों की कर लगाने की शक्तियों को ‘नष्ट’ कर दिया गया था क्योंकि यह राज्यों को रॉयल्टी के रूप में कर एकत्र करने की शक्ति देता है, तथा अन्यथा संसद और केंद्र को खनिज विकास पर पूर्ण नियंत्रण देता है।
Latest Comments