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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कोर क्षेत्रों में बाघ सफारी पर प्रतिबंध

Lokesh Pal November 20, 2025 03:29 7 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्षों (Human Wildlife Conflicts- HWC) से निपटने के लिए बाघ अभयारण्यों के अंदर और उसके निकट बाघ सफारी, खनन और बुनियादी ढाँचे जैसी गतिविधियों को प्रतिबंधित करने के निर्देश जारी किए।

न्यायालय द्वारा जारी प्रमुख निर्देश

  • बाघ पर्यटन (Tiger tourism)
    • मुख्य क्षेत्रों में प्रतिबंध: न्यायालय ने मुख्य या महत्त्वपूर्ण बाघ आवासों में बाघ सफारी पर प्रतिबंध लगा दिया है और इस बात पर बल दिया है कि इन क्षेत्रों का अतिक्रमण नहीं होना चाहिए।
    • अनुमेय सफारी स्थान: सफारी केवल गैर-वन भूमि या अवक्रमित वन भूमि पर ही स्थापित की जाएँगी और केवल तभी जब वह क्षेत्र बाघ गलियारे का हिस्सा न हो।
    • संरक्षण आधारित सफारी मॉडल: सफारी केवल एक पूर्ण विकसित बचाव और पुनर्वास केंद्र के सहयोग से ही संचालित होनी चाहिए, जहाँ उसी क्षेत्र के संघर्षग्रस्त, घायल या परित्यक्त बाघों को रखा जा सके।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष (Human Wildlife Conflict- HWC)
    • प्राकृतिक आपदा के रूप में मानव-वन्यजीव संघर्ष: न्यायालय ने राज्यों से मानव-वन्यजीव संघर्ष को “प्राकृतिक आपदा” के रूप में वर्गीकृत करने पर विचार करने का आग्रह किया ताकि त्वरित राहत और बेहतर जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
    • अनुग्रह राशि मानदंड: राज्यों को मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण हुई प्रत्येक मानव मृत्यु के लिए ₹10 लाख की अनुग्रह राशि का भुगतान करना होगा, जैसा कि वन्यजीव आवासों का एकीकृत विकास (IDWH) योजना के तहत अनिवार्य है।
    • एक समान नीति और दिशा-निर्देश: NTCA को छह महीने के भीतर HWC पर आदर्श दिशा-निर्देश जारी करने होंगे और राज्यों को भी उसी अवधि के भीतर उन्हें लागू करना होगा।
      • उत्तर प्रदेश ने पहले ही HWC को प्राकृतिक आपदा के रूप में अधिसूचित कर दिया है।

वन्यजीव आवासों का एकीकृत विकास (Integrated Development of Wildlife Habitats- IDWH)

IDWH पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य पूरे भारत में वन्यजीव संरक्षण और आवास संरक्षण में सुधार करना है।


  • विनियमित/निषिद्ध गतिविधियाँ
    • सख्त प्रतिबंध: न्यायालय ने वाणिज्यिक खनन, आरा मिलों, प्रदूषणकारी उद्योगों, प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं, बिना अनुमति पेड़ों की कटाई तथा पर्यटन गतिविधियों से संबद्ध कम ऊँचाई पर संचालित विमानों—जिनमें ड्रोन और गर्म हवा के गुब्बारे शामिल हैं—के संचालन पर प्रतिबंध लगाया।
    • विमान की ऊँचाई का नियम: विमान को अपनी अनुमानित स्थिति से 8 किमी. के दायरे में स्थित सर्वोच्च अवरोध से न्यूनतम 300 मीटर की ऊँचाई बनाए रखना अनिवार्य होगा।
    • विनियमित गतिविधियाँ: न्यायालय ने सख्त मानदंडों के अधीन, होटलों और रिसॉर्ट्स की विनियमित स्थापना, प्राकृतिक जल संसाधनों के व्यावसायिक उपयोग, बाड़ लगाने, सड़क चौड़ीकरण और रात्रि वाहनों की आवाजाही की अनुमति दी।
  • पर्यटन और बुनियादी ढाँचे का विनियमन
    • पारिस्थितिकी पर्यटन बनाम सामूहिक पर्यटन: बफर जोन में पर्यटन अवसंरचना को ESZ मानदंडों का पालन करना होगा। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि “पारिस्थितिकी पर्यटन सामूहिक पर्यटन जैसा नहीं हो सकता”
    • केवल बफर क्षेत्रों में पर्यावरण-अनुकूल रिसॉर्ट: नए पर्यावरण-अनुकूल रिसॉर्ट केवल बफर जोन में ही स्थापित किए जा सकते हैं, वन्यजीव गलियारों में नहीं।
    • सामुदायिक पर्यटन को बढ़ावा: होम स्टे और सामुदायिक प्रतिष्ठानों को प्रोत्साहन के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • रात्रि पर्यटन और मोबाइल फोन के उपयोग पर प्रतिबंध
    • रात्रिकालीन आवागमन पर सख्त नियम: जहाँ सड़कें मुख्य/महत्त्वपूर्ण पर्यावासों से होकर गुजरती हैं, वहाँ एंबुलेंस और आपातकालीन वाहनों को छोड़कर, शाम से सुबह तक वाहनों का आवागमन प्रतिबंधित है।
    • बाघ अभयारण्यों में रात्रि पर्यटन पर पूर्ण प्रतिबंध; मुख्य पर्यावासों के भीतर पर्यटन क्षेत्रों में मोबाइल फोन का उपयोग प्रतिबंधित।
  • राज्य को निर्देश
    • कोर और बफर क्षेत्र अधिसूचना: सभी राज्यों को छह महीने के भीतर बाघ अभयारण्यों के कोर और बफर क्षेत्रों को अधिसूचित करना होगा।
    • पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) अधिदेश: राज्यों को एक वर्ष के भीतर सभी बाघ अभयारण्यों के आस-पास, बफर और सीमांत क्षेत्रों सहित, पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रों को अधिसूचित करना होगा।
    • ESZ सीमाएँ: ESZ निर्माण में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 23 अप्रैल, 2018 के दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा, जिसमें निर्दिष्ट किया गया है कि न्यूनतम ESZ क्षेत्रों में बाघ अभयारण्यों के बफर या सीमांत क्षेत्र शामिल होने चाहिए।
    • बाघ संरक्षण योजना (TCP): राज्यों को तीन महीने के भीतर एक TCP तैयार करनी होगी, जिसमें NTCA अनुपालन की निगरानी करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि संचालन समितियों की बैठक वर्ष में कम-से-कम दो बार हो।
    • ESZ अधिसूचना की समय सीमा: राज्यों को एक वर्ष के भीतर बाघ अभयारण्यों के आस-पास ESZ अधिसूचित करना होगा।

  • कोर/क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट: उच्चतम सुरक्षा वाला हस्तक्षेप रहित क्षेत्र; मानवीय गतिविधियों पर कठोर नियंत्रण।
  • बफर जोन: कोर के आस-पास का क्षेत्र; जहाँ आजीविका के लिए विनियमित मानवीय गतिविधियाँ संभव हैं।

निर्णय का महत्त्व

  • पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन: इस निर्णय का उद्देश्य दीर्घकालिक पारिस्थितिकी क्षति को दूर करना और बाघों के आवासों को व्यावसायिक शोषण से बचाना है।
  • संरक्षण प्रशासन को सुदृढ़ बनाना: बाघ संरक्षण में मुख्य आवासों, गलियारों, ESZ और बफर जोन की प्रधानता की पुष्टि करता है।
  • पर्यटन और पारिस्थितिकी में संतुलन: उच्च-प्रभाव वाले पर्यटन और शोषणकारी गतिविधियों को समाप्त करते हुए विनियमित, समुदाय-उन्मुख पारिस्थितिकी पर्यटन को प्रोत्साहित करता है।
  • वन्यजीव-मानव सह-अस्तित्व: HWC को एक आपदा के रूप में मान्यता देने से संरचित राहत, त्वरित सहायता और बेहतर दीर्घकालिक शमन सुनिश्चित होता है।

टाइगर रिजर्व 

  • परिभाषा: बाघ अभयारण्य एक निर्दिष्ट संरक्षित क्षेत्र है, जिसका उद्देश्य बाघों का संरक्षण और उनके प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करना है।
  • ये अभयारण्य प्रोजेक्ट टाइगर के तहत निर्मित किए गए हैं, जो वर्ष 1973 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की प्रमुख संरक्षण पहल है।
  • बाघ अभयारण्य की संरचना: प्रत्येक अभयारण्य को दो मुख्य क्षेत्रों में विभाजित किया गया है-
    • कोर क्षेत्र (महत्त्वपूर्ण बाघ आवास): न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप वाला एक पूर्णतः संरक्षित क्षेत्र, जो बाघों की सुरक्षा और समग्र पारिस्थितिकी अखंडता को बनाए रखने के लिए समर्पित है।
    • बफर क्षेत्र: कोर क्षेत्र के आस-पास का बाहरी क्षेत्र, जहाँ पारिस्थितिकी पर्यटन, अनुसंधान और प्राकृतिक संसाधनों के सतत् उपयोग जैसी विनियमित गतिविधियों की अनुमति है।
  • कानूनी ढाँचा: बाघ अभयारण्यों को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत अधिसूचित किया जाता है।
  • कार्यान्वयन एजेंसियाँ: अभयारण्यों का प्रबंधन राज्य वन विभागों, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है।
  • वर्तमान स्थिति: भारत में अब 58 से अधिक बाघ अभयारण्य हैं।

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