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उच्चतम न्यायालय ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी

Lokesh Pal October 21, 2024 03:35 114 0

संदर्भ  

सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकता अधिनियम, 1955 (Citizenship Act, 1955) की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को 4:1 बहुमत से बरकरार रखा है। 

संबंधित तथ्य 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध आव्रजन के विरुद्ध कानूनों के सख्त क्रियान्वयन तथा आव्रजन एवं नागरिकता संबंधी कानूनों के क्रियान्वयन की न्यायिक निगरानी का भी आह्वान किया। 

नागरिकता अधिनियम की धारा 6A के बारे में

  • मान्यता के लिए रूपरेखा: वर्ष 1985 में, असम समझौते (Assam Accord) को प्रभावी बनाने के लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में धारा 6A प्रस्तुत की गई थी। 
    • धारा 6A असम में प्रवासियों को भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता देने या उनके प्रवास की तिथि के तहत उन्हें निष्कासित करने का आधार प्रदान करती है।
  • नागरिकता के लिए पात्रता: इस प्रावधान में असम में बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने की अंतिम तिथि 25 मार्च, 1971 तय की गई है।
    • ‘भारतीय मूल’ (Indian Origin) के सभी व्यक्ति जो 1 जनवरी, 1966 से पहले राज्य में प्रवेश कर चुके हैं और तब से असम में ‘सामान्य रूप से निवासी’ (Ordinarily Resident) हैं, “भारत के नागरिक माने जाएँगे”। 
  • पंजीकरण की आवश्यकताएँ: इसके अतिरिक्त, इसमें यह प्रावधान है कि 1 जनवरी, 1966 के बाद लेकिन 24 मार्च, 1971 से पहले असम में प्रवेश करने और रहने वाले किसी भी व्यक्ति को, जिसे ‘विदेशी पाया गया है’ केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार खुद को पंजीकृत करने का अवसर मिलेगा। 

नागरिकता अधिनियम की धारा 6A और असम समझौते की पृष्ठभूमि

  • प्रवासियों का आगमन: भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1971 के युद्ध के कारण बांग्लादेश स्वतंत्र हुआ, जिसके कारण पूर्वी पाकिस्तान से बंगाली भाषी शरणार्थियों का भारत में भारी आगमन हुआ।
  • अखिल असम छात्र संघ (AASU) आंदोलन: बांग्लादेशी आप्रवासन के कारण जनसांख्यिकीय परिवर्तन से चिंतित, अखिल असम छात्र संघ (All Assam Students Union- AASU) ने अवैध प्रवासियों को वापस भेजने की माँग को लेकर एक आंदोलन शुरू किया। 
    • यह आंदोलन छह वर्षों तक चला, जिसमें काफी अशांति और हिंसा हुई।
  • असम समझौता (Assam Accord): यह विरोध अगस्त 1985 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा असम समझौते पर हस्ताक्षर के साथ समाप्त हुआ।
    • असम समझौते का एक महत्त्वपूर्ण पहलू असम में ‘विदेशियों’ की पहचान के लिए मानदंड स्थापित करना था।
    • समझौते के खंड 5 में मतदाता सूची में विदेशियों के नाम निर्धारित करने के लिए आधार कट-ऑफ तिथि 1 जनवरी, 1966 निर्धारित की गई।
      • इसमें उस तिथि के बाद, अर्थात् 24 मार्च, 1971 तक राज्य में आने वाले लोगों को नागरिकता प्रदान करने की प्रक्रिया भी प्रदान की गई।
  • धारा 6A का समावेश
    • दिसंबर 1985 में असम समझौते के प्रावधानों को औपचारिक रूप देने के लिए धारा 6A को नागरिकता अधिनियम में शामिल किया गया।

नागरिकता अधिनियम की धारा 6A को चुनौतियाँ

  • याचिकाकर्ताओं की चिंताएँ: असम लोक निर्माण अध्यक्ष और असम संयुक्त महासंघ सहित याचिकाकर्ताओं ने धारा 6A को भेदभावपूर्ण बताते हुए चुनौती दी है, उनका तर्क है कि:-
    • असम को अनुचित तरीके से निशाना बनाया जा रहा है।
    • बड़े पैमाने पर आप्रवासन को सुविधाजनक बनाता है।
    • मार्च 1971 की निर्दिष्ट तिथि से पहले प्रवेश का दावा करने वाले प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करके राज्य की जनसांख्यिकी को बदल दिया गया है।
    • स्वदेशी असमिया लोगों को अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक बना दिया गया है और संविधान के अनुच्छेद-29 के तहत उनके सांस्कृतिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला गया है।
  • असंगत निर्दिष्ट तिथियाँ
    • संविधान का अनुच्छेद-6, 19 जुलाई, 1948 से पहले पाकिस्तान से आए किसी भी व्यक्ति को नागरिकता प्रदान करता है।
    • याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि धारा 6A अप्रत्यक्ष रूप से इस संवैधानिक प्रावधान में संशोधन करती है, क्योंकि उन्होंने तर्क दिया कि 1 जनवरी, 1966 तक बांग्लादेश अभी भी पाकिस्तान का हिस्सा था।
    • नागरिकता प्रदान करने के लिए नई निर्दिष्ट तिथि को शामिल करने से पाकिस्तान से भारत में प्रवेश करने वाले आप्रवासियों के लिए मौजूदा निर्दिष्ट तिथि का उल्लंघन होगा।

केंद्र की रक्षा

  • संसद के पास नागरिकता को विनियमित करने की शक्ति है:
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-11 (Article 11 of the Indian Constitution): केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद-11 का हवाला दिया, जो संसद को नागरिकता से संबंधित मामलों को विनियमित करने का अधिकार देता है, जिसे धारा 6A के लिए आधार बनाया गया है।
    • संघ सूची की प्रविष्टि 17, संसद को ‘नागरिकता, प्राकृतिकीकरण और विदेशियों’ (Citizenship, Naturalisation and Aliens) से निपटने के लिए कानून बनाने की शक्ति देती है।
  • धारा 6A को रद्द करने के संभावित परिणाम: NGO ‘सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस’ सहित अन्य उत्तरदाताओं ने चेतावनी दी कि धारा 6A को खत्म करने से कई वर्तमान निवासी ‘राज्यविहीन’ हो सकते हैं, और 50 से अधिक वर्षों तक नागरिकता के अधिकारों का आनंद लेने के बाद उन्हें विदेशी माना जा सकता है।

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens- NRC)

  • परिभाषा: NRC वास्तविक भारतीय नागरिकों का रिकॉर्ड है, जिसका उद्देश्य वर्ष 1955 के नागरिकता अधिनियम (Citizenship Act of 1955), 1946 के विदेशी अधिनियम और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के अनुसार अवैध प्रवासियों की पहचान करना और उन्हें निर्वासित करना है। 
    • एकमात्र राष्ट्रव्यापी NRC, वर्ष 1951 में बनाई गई थी।
    • असम वर्तमान में एकमात्र राज्य है, जो वर्ष 2014 से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनिवार्य NRC को बनाए रख रहा है।

असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC)

  • उद्देश्य: 24 मार्च, 1971 तक असम में रहने वाले वास्तविक नागरिकों की पहचान करना तथा आव्रजन संबंधी चिंताओं का समाधान करना।
  • NRC प्रक्रिया आरंभ: सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के तहत वर्ष 2013 में शुरू हुआ, 31 अगस्त 2019 तक पूरा होने की तिथि निर्धारित थी।
  • पात्रता: इसमें वर्ष 1951 की NRC में शामिल व्यक्तियों या उनके वंशजों के नाम, 24 मार्च, 1971 तक की मतदाता सूची, तथा उस तिथि से पहले की उपस्थिति को प्रमाणित करने वाले अन्य स्वीकार्य दस्तावेज शामिल हैं।
  • जारी किया गया: अद्यतन NRC 31 अगस्त, 2019 को जारी की गई, जिसमें 1.9 मिलियन से अधिक आवेदकों को बाहर कर दिया गया, जिससे वे ‘राज्यविहीन’ हो गए।
    • बहिष्कृत व्यक्ति, राज्य द्वारा प्रदत्त कानूनी सहायता का उपयोग करते हुए 120 दिनों के भीतर विदेशी न्यायाधिकरण में अपील कर सकते हैं तथा उन्हें 24 मार्च, 1971 से पहले अपने पूर्वजों की नागरिकता सिद्ध करनी होगी।
    • न्यायाधिकरण का निर्णय होने तक तत्काल हिरासत में नहीं लिया जाता है तथा बांग्लादेश के साथ औपचारिक प्रत्यावर्तन संधि के अभाव के कारण निर्वासन जटिल हो जाता है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के मुख्य बिंदु

  • धारा 6A की संवैधानिक वैधता: धारा 6A संविधान के अनुच्छेद-6 और अनुच्छेद-7 का उल्लंघन नहीं करती है, जो पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान से आने वाले प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने के लिए 26 जनवरी, 1950, जो संविधान के लागू होने की तिथि है, एक निर्दिष्ट तिथि निर्धारित करते हैं।
    • अनुच्छेद-6 और अनुच्छेद-7 का उद्देश्य केवल 26 जनवरी, 1950 को संविधान के लागू होने पर नागरिकता निर्धारित करना है। दूसरी ओर, धारा 6A, “उन लोगों से संबंधित है, जो संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं”।
  • धारा 6A का विधायी उद्देश्य: इसका उद्देश्य भारतीय मूल के प्रवासियों की मानवीय आवश्यकताओं तथा भारतीय राज्यों की आर्थिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं पर प्रवास के प्रभाव के बीच संतुलन स्थापित करना था।
  • धारा 6A और समानता का अधिकार: असम में प्रवासियों के आगमन का राज्य के सांस्कृतिक और राजनीतिक अधिकारों पर अनोखा प्रभाव पड़ा, जिससे असम के साथ अन्य राज्यों से अलग व्यवहार करना तर्कसंगत हो गया।

धारा 6A पर असहमति जताने वाले न्यायाधीश के मुख्य बिंदु

  • प्रवासियों के लिए दोषपूर्ण नागरिकता प्रक्रिया (वर्ष 1966-71)
    • न्यायमूर्ति पारदीवाला ने 1 जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 तक के प्रवासियों को स्वेच्छा से नागरिकता के लिए आवेदन करने की अनुमति देने वाली व्यवस्था के अभाव पर प्रकाश डाला। 
    • इसके बजाय, उन्हें सरकार द्वारा ‘संदिग्ध आप्रवासियों’ के रूप में पहचाने जाने तक इंतजार करना होगा, ताकि वे विदेशी न्यायाधिकरण के समक्ष अपनी नागरिकता साबित कर सकें।
  • समय के साथ अप्रभावी होना
    • धारा 6A, जो पहले संवैधानिक थी, अब अप्रभावी हो गई है।
    • विदेशियों की पहचान के लिए उचित समय-सीमा के बिना, यह वर्ष 1966-71 की अवधि के प्रवासियों की त्वरित और प्रभावी पहचान के अपने मूल उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाता है।
  • निष्कासन के लिए समय-सीमा का अभाव
    • समय-सीमा के अभाव से सरकार को ‘वर्ष 1966-71 की धारा’ से संबंधित आप्रवासियों की पहचान करने और उन्हें मतदाता सूची से हटाने के बोझ से ‘मुक्ति’ मिलेगी।
    • इन आप्रवासियों को मतदाता सूची में ‘अनिश्चित अवधि’ तक बने रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, जब तक कि उनका पता नहीं चल जाता है।

    • धारा 6A अन्य सीमावर्ती राज्यों को छोड़कर केवल असम के प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करके समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।
  • धारा 6A ‘बाहरी आक्रमण’ को बढ़ावा नहीं देता: न्यायालय ने फैसला सुनाया कि धारा 6A, जो पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए कुछ प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करती है, अवैध आव्रजन के माध्यम से ‘बाह्य आक्रमण’ के समान नहीं है।
  • विनियमित प्रवासन: धारा 6A यह प्रबंधित और विनियमित करने का एक तरीका प्रदान करती है कि कौन नागरिक बन सकता है।
  • अनुच्छेद-355 का उल्लंघन नहीं: याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि धारा 6A अनुच्छेद-355 (राज्यों को बाहरी खतरों से बचाने के लिए) का उल्लंघन करती है। न्यायालय ने इससे असहमति जताते हुए कहा कि लोगों को आपातकालीन शक्तियों का उपयोग करके कानूनों को चुनौती देने देने से अराजकता उत्पन्न होगी।
  • उचित निर्दिष्ट तिथि: 25 मार्च, 1971 की निर्दिष्ट तिथि उचित है, क्योंकि यह ऑपरेशन सर्चलाइट से मेल खाती है, जो बांग्लादेशी राष्ट्रवादी आंदोलन को दबाने के लिए 26 मार्च, 1971 को शुरू किया गया था।
    • इस ऑपरेशन से पहले आए प्रवासियों को भारतीय विभाजन का हिस्सा माना जाता है।
  • धारा 6A की गलत व्याख्या: यह दावा कि धारा 6A असम में प्रवास को प्रोत्साहित करती है, गलत माना जाता है, क्योंकि वर्ष 2003 में संशोधन से पहले नागरिकता अधिनियम की धारा 5(1)(a) के तहत बिना दस्तावेज वाले प्रवासी नागरिक के रूप में पंजीकरण करा सकते थे।
  • संवैधानिक सिद्धांतों का अनुपालन: धारा 6A संवैधानिक ढाँचे के अंतर्गत है, यह बंधुत्व के मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करती है, न ही यह भारत के संविधान के अनुच्छेद-6, 7, 9, 14, 21, 29, 326 या 355 का उल्लंघन करती है।
  • अन्य कानूनों के साथ संगतता: निर्णय में पुष्टि की गई कि धारा 6A अप्रवासी (असम से निष्कासन) अधिनियम, 1950 या अंतरराष्ट्रीय कानून के स्थापित सिद्धांतों के साथ संघर्ष नहीं करती है।
  • सांस्कृतिक विरासत संरक्षण: विविध नृजातीय समूहों की उपस्थिति संविधान के अनुच्छेद-29(1) के तहत भाषायी और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती है।
  • अवैध आव्रजन संबंधी चिंताओं की स्वीकृति: छिद्रपूर्ण सीमाएँ और अपर्याप्त बाड़बंदी, प्रवासियों के निरंतर प्रवाह में योगदान करती हैं।

निर्णय का महत्त्व

  • निर्दिष्ट तिथि को बरकरार रखना: उच्चतम न्यायालय द्वारा वैधता को बरकरार रखने के साथ, निर्दिष्ट तिथि बांग्लादेश और अन्य देशों से असम आने वाले लोगों को नागरिकता देने का आधार बनी रहेगी।
  • राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की स्थापना: इसने उस आधार को बरकरार रखा है, जिस पर असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) तैयार किया गया था।

असम में आप्रवासियों की समस्या से निपटने के लिए आगे की राह

  • प्रवर्तन तंत्र (Enforcement Mechanisms) को बेहतर बनाना: धारा 6A के प्रभावी प्रवर्तन को सुनिश्चित करने के लिए मजबूत तंत्र विकसित करना।
    • इसमें असम में अवैध आप्रवासियों की निगरानी और पहचान के लिए समर्पित संसाधनों तथा कार्मिकों को बढ़ाना शामिल है।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम: आव्रजन प्रवर्तन में शामिल अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करना ताकि वे विधायी ढाँचे और उचित प्रक्रिया के पालन के महत्त्व को बेहतर ढंग से समझ सकें।
  • विधायी प्रावधानों का एकीकरण: अवैध आप्रवासियों की पहचान प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए आप्रवासी (असम से निष्कासन) अधिनियम, 1950 को धारा 6A में एकीकृत करना।
    • आप्रवासी (असम से निष्कासन) अधिनियम, 1950 सरकार को 25 मार्च, 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले आप्रवासियों को असम से निष्कासित करने का अधिकार देता है।
  • प्रक्रियाओं को सरल बनाना: अवैध आप्रवासियों की पहचान, दस्तावेजीकरण और निर्वासन के लिए स्पष्ट और कुशल प्रक्रियाएँ स्थापित करना, जिससे नौकरशाही संबंधी देरी कम हो।
  • न्यायिक निरीक्षण (Judicial Oversight): आव्रजन कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने और निवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय के निर्देशानुसार निरंतर न्यायिक निगरानी लागू करना।
  • नियमित रिपोर्टिंग: अवैध आव्रजन की स्थिति और धारा 6A के तहत उठाए गए उपायों की प्रभावशीलता पर प्रवर्तन एजेंसियों से समय-समय पर रिपोर्ट प्राप्त करना आवश्यक है।
  • न्यायाधिकरणों को मजबूत बनाना: आव्रजन मामलों के लिए समर्पित न्यायाधिकरणों और कार्मिकों की संख्या में वृद्धि करके, आव्रजन कानूनों पर न्यायाधिकरण के सदस्यों के लिए सतत् प्रशिक्षण आदि।

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