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सर्वोच्च न्यायालय ने संपत्ति तथा पर्याप्त मुआवजे के अधिकार को बरकरार रखा

Lokesh Pal January 04, 2025 03:39 34 0

संदर्भ

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पुनः पुष्टि की है कि किसी भी व्यक्ति को पर्याप्त मुआवजे के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है तथा इस प्रकार उसने संपत्ति के स्वामित्व की संवैधानिक तथा मानव अधिकार स्थिति पर प्रकाश डाला है।

  • पीठ ने भूमि अधिग्रहण मामलों में उचित मुआवजे के महत्त्व पर जोर दिया।

निर्णय के प्रमुख बिंदु

  • यह निर्णय बंगलूरू-मैसूरु इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर परियोजना (BMICP) के लिए भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामले से संबंधित है।
    •  भू-स्वामियों ने तर्क दिया कि उनकी संपत्ति का अधिग्रहण हो जाने के बावजूद उन्हें मुआवजा नहीं दिया गया।
  • मुद्दा: विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी (SLAO) ने प्रारंभ में मुआवजा निर्धारित करने के लिए वर्ष 2011 की बाजार दरों का प्रयोग  किया, जिससे देरी और अपर्याप्त मूल्यांकन पर विवाद उत्पन्न हो गया।
  • मुआवजे में देरी: न्यायालय ने राज्य के अधिकारियों के ‘सुस्त रवैये’ की आलोचना की, यह देखते हुए कि भूमि मालिकों को लगभग 22 वर्षों से मुआवजा नहीं दिया गया है।
  • बाजार मूल्यांकन समायोजन: एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में, अदालत ने मुद्रास्फीति के प्रभाव और धन के समय मूल्य को स्वीकार करते हुए, मूल्यांकन की तिथि को वर्ष 2003 के बजाय 22 अप्रैल, 2019 कर दिया।
  • निष्पक्षता और न्याय: न्यायालय ने कहा कि पुरानी बाजार दरों का उपयोग करना हैउचित नहीं  तथा अनुच्छेद 300-A के तहत संवैधानिक प्रावधानों को कमजोर करेगा।

संवैधानिक प्रावधान: संपत्ति का अधिकार

  • अनुच्छेद 300-A: वर्षं 1978 में संविधान में 44वें संशोधन के बाद से संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं रहा, लेकिन यह एक संवैधानिक अधिकार बना हुआ है।
  • कानून का अधिकार: अनुच्छेद 300-A के अनुसार, संपत्ति को केवल राज्य द्वारा कानूनी अधिकार और उचित प्रक्रिया के साथ अधिग्रहीत किया जा सकता है।

निर्णय के व्यापक निहितार्थ

  • मानवाधिकार परिप्रेक्ष्य: संपत्ति का अधिकार, हालाँकि अब मौलिक नहीं रहा, लेकिन कल्याणकारी राज्य में यह आवश्यक है और इसे निष्पक्ष प्रक्रियाओं के साथ सुरक्षित रखा जाना चाहिए।
  • मुआवजे की समयबद्धता: न्यायालय ने भूमि अधिग्रहण के मामलों में मुआवजे के शीघ्र निर्धारण और वितरण की आवश्यकता पर जोर दिया।
  • भूमि अधिग्रहण के लिए मील का पत्थर: यह निर्णय भूमि अधिग्रहण में न्याय सुनिश्चित करने के लिए एक मिसाल कायम करता है और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को बनाए रखने के लिए पर्याप्त मुआवजे के महत्त्व की पुष्टि करता है।

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