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दोषियों के लिए क्षमा नीति पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश

Lokesh Pal November 07, 2024 05:10 66 0

संदर्भ 

उच्चतम न्यायालय ने देश में दोषियों के लिए स्थायी क्षमा को नियंत्रित करने वाली नीतियों की पारदर्शिता को मानकीकृत करने एवं सुधारने के लिए राज्य तथा केंद्रशासित प्रदेश सरकारों को निर्देश जारी किए हैं।

राष्ट्रपति एवं राज्यपाल की क्षमादान शक्तियाँ

  • क्षमादान (Pardon): भारत का राष्ट्रपति किसी अपराधी को उसकी सजा और दोषसिद्धि दोनों से मुक्त करते हुए क्षमा प्रदान कर सकता है तथा अपराधी को सभी सजाओं, दंडों और अयोग्यताओं से मुक्त कर सकता है।
  • विनिमय (Commutation): इसका अर्थ है दंड की प्रकृति में परिवर्तन करना तथा दंड के एक रूप के स्थान पर हल्का रूप लागू करना।
    • उदाहरण: मृत्युदंड को कठोर कारावास में परिवर्तित किया जा सकता है, जिसे बाद में साधारण कारावास में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • छूट (Remission): छूट का अर्थ है दंड की प्रकृति में परिवर्तन किए बिना दंड की अवधि को कम करना।
    • उदाहरण: दो वर्ष के कठोर कारावास की सजा को घटाकर एक वर्ष के कठोर कारावास में बदला जा सकता है।
  • राहत (Respite): इसका अर्थ है किसी विशेष कारण जैसे कि दोषी की शारीरिक अक्षमता या गर्भावस्था के कारण मूल सजा के स्थान पर कम सजा देना।
  • दंडविराम (Reprieve): इसका तात्पर्य है कि सजा के निष्पादन पर अस्थायी अवधि के लिए रोक लगा दी जाती है, ताकि दोषी को राष्ट्रपति से क्षमा या सजा में छूट माँगने का समय मिल सके।

निर्देशों के बारे में

  • मामला: न्यायिक पीठ द्वारा वर्ष 2021 के स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई करते हुए निर्देश पारित किए गए, जिसका शीर्षक ‘जमानत देने के लिए नीतिगत रणनीति’ था।
    • अद्यतन: अतिरिक्त मुद्दों जैसे कि क्या राज्यों को सभी क्षमा अस्वीकृतियों के लिए कारण बताना चाहिए एवं दोषी आवेदनों की स्वतंत्र रूप से पात्रता पर विचार करना चाहिए, इस पर 3 दिसंबर, 2024 को आगे विचार-विमर्श किया जाएगा।
  • निर्देश
    • निर्णयों की समय पर सूचना: राज्यों को यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापक कदम उठाने की आवश्यकता है कि छूट के लिए पात्र दोषियों को पर्याप्त जानकारी मिले तथा उनके मामलों पर निष्पक्ष विचार किया जाए।
    • नीति संबंधी जानकारी तक पहुँच: वर्तमान क्षमा नीतियों को, भविष्य में किए जाने वाले किसी भी संशोधन सहित, देश भर की जेलों में उपलब्ध कराया जाना चाहिए तथा संबंधित सरकारी वेबसाइटों पर अंग्रेजी में अपलोड किया जाना चाहिए।
    • अपील अस्वीकृति के बारे में सूचित करना: आदेश पारित होने के एक सप्ताह के भीतर दोषियों को स्थायी छूट के आवेदन की अस्वीकृति के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।
      • इन अस्वीकृतियों की प्रतियाँ राज्य सरकार द्वारा संबंधित जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों को भेजी जानी चाहिए ताकि दोषियों को उचित कानूनी सहायता सुनिश्चित की जा सके।
    • लंबित अपील: सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि लंबित दोषसिद्धि अपीलों के कारण ही देरी को उचित नहीं ठहराया जा सकता है और लंबित अपीलों के कारण छूट पर विचार न करने की प्रथा की भी उसने आलोचना की।
      • हालाँकि, न्यायालय ने कहा कि यदि राज्य द्वारा सजा बढ़ाने या दोषमुक्त करने के लिए अपील दायर की जा रही हो तो आवेदन को लंबित रखा जा सकता है।
    • मामलों पर व्यक्तिगत विचार: न्यायिक पीठ ने क्षमा अनुदान के लिए ‘रूढ़िवादी शर्तें’ लागू करने के विरुद्ध निर्णय दिया और कहा कि कोई भी शर्ते प्रत्येक मामले के विशिष्ट विवरण के आधार पर तैयार की जानी चाहिए।

क्षमा पर गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देश

नीचे दी गई श्रेणियों के कैदी, जिन्होंने पिछले तीन वर्षों में सजा अवधि के दौरान लगातार अच्छा आचरण बनाए रखा है और कोई सजा नहीं पाई है, विशेष छूट के लिए पात्र हो सकते हैं:

  • 50 वर्ष एवं उससे अधिक उम्र की महिलाएँ तथा ट्रांसजेंडर दोषी, जिन्होंने अपनी कुल सजा अवधि का 50% पूरा कर लिया है।
  • 60 वर्ष एवं उससे अधिक उम्र के पुरुष दोषी, जिन्होंने अपनी कुल सजा अवधि का 50% पूरा कर लिया है (अर्जित सामान्य क्षमा की अवधि की गणना किए बिना)। 
  • 70% एवं उससे अधिक (मेडिकल बोर्ड द्वारा विधिवत प्रमाणित) दिव्यांगता वाले शारीरिक रूप से दिव्यांग/अक्षम दोषी, जिन्होंने अपनी कुल सजा अवधि का 50% पूरा कर लिया है।
  • असाध्य रूप से बीमार अपराधी (मेडिकल बोर्ड द्वारा विधिवत प्रमाणित)।
  • ऐसे सजायाफ्ता कैदी, जिन्होंने अपनी कुल सजा अवधि का दो-तिहाई (66%) पूरा कर लिया है। 
  • गरीब या निर्धन कैदी जो अपनी सजा पूरी कर चुके हैं लेकिन उन पर लगाए गए जुर्माने का भुगतान न करने के कारण अभी भी जेल में हैं, उनका जुर्माना माफ कर दिया गया है।
  • ऐसे व्यक्ति जिन्होंने कम उम्र में यानी 18-21 वर्ष के बीच अपराध किया है एवं उनके विरुद्ध कोई अन्य आपराधिक संलिप्तता/मामला नहीं है, जिन्होंने अपनी सजा अवधि का 50% पूरा कर लिया है।

दंड में क्षमा के लिए नीति के बारे में

  • दंड में क्षमा का अर्थ है दंड की प्रकृति में परिवर्तन किए बिना उसकी अवधि को कम करना।
    • उदाहरण: पाँच वर्ष के कठोर कारावास की सजा को घटाकर एक वर्ष किया जा सकता है।  
  • सिद्धांत: जेलों का उद्देश्य प्रतिशोधात्मक दंड देने के बजाय पुनर्वासात्मक न्याय प्रदान करना है।
  • उद्देश्य: क्षमा याचिकाओं पर तब विचार किया जाता है, जब मामले के कुछ ऐसे पहलू सामने आते हैं, जो न्यायालय में कार्यवाही के दौरान सामने नहीं आए थे और कार्यपालिका कानून के अनुसार क्षमा, निलंबन या अल्पीकरण के माध्यम से दोषी पर दया दिखा सकती है।
  • क्षमा के लिए संवैधानिक प्रावधान
    • संविधान के अनुच्छेद-72 (राष्ट्रपति) एवं अनुच्छेद-161 (राज्यपाल) में किसी दोषी को क्षमादान, विनिमय, छूट, राहत या दंडविराम देने की संप्रभु शक्तियाँ दी गई हैं। हालाँकि, कार्यकारी प्रमुख इन शक्तियों का प्रयोग केवल मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही कर सकता है।
  • वैधानिक प्रावधान 
    • आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 432: उपयुक्त राज्य सरकारें आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 432 के तहत दोषी को दी गई सजा की पूरी या आंशिक सजा माफ कर सकती हैं। 
    • आजीवन कारावास के मामलों में: CrPC की धारा 433A के अनुसार, जेल में 14 वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद ही क्षमा पर विचार किया जा सकता है।
      • संगीत बनाम हरियाणा राज्य (वर्ष 2012): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी अपराधी द्वारा आजीवन कारावास की सजा पूरी करने तथा जेल में 14 वर्ष पूरे करने के बाद भी, उसे समयपूर्व रिहाई का अधिकार नहीं मिलता है तथा सजा में छूट पर केवल मामला-दर-मामला आधार पर ही विचार किया जाना चाहिए।

हरियाणा राज्य बनाम महेंद्र सिंह एवं अन्य (2007)

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-20 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों के अनुसार छूट के लिए विचार किए जाने के अधिकार को कानूनी माना जाना चाहिए।
    • चूँकि किसी कैदी को जेल में उसके अच्छे आचरण के आधार पर छूट मिलती है, इसलिए छूट को दान या करुणा के कार्य के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे कानूनी कर्तव्य के निर्वहन के रूप में देखा जाना चाहिए।

मिर्जा मोहम्मद हुसैन बनाम यूपी राज्य (वर्ष 2002)

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद-161 के तहत क्षमादान की शक्ति कार्यपालिका की ओर से विवेकाधीन नहीं हो सकती है और इसका प्रयोग संविधान के शक्ति विभाजन सिद्धांत को नकारते हुए किया जा सकता है।

    • राज्य का विषय: जेल राज्य का विषय है, इसलिए प्रत्येक राज्य के जेल नियम कुछ सुधारात्मक और पुनर्वास गतिविधियों की पहचान करते हैं, जिन्हें दोषी सजा में छूट पाने के लिए उपयोग कर सकते हैं।
  • क्षमा पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश: लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत संघ (2000) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पाँच आधार निर्धारित किए थे, जिनके आधार पर छूट पर विचार किया जाना था। 
    • यह निर्धारित करना कि क्या अपराध एक व्यक्तिगत अपराध है जो समाज को प्रभावित नहीं करता है।
    • अपराध की पुनरावृत्ति की संभावना। 
    • क्या दोषी ने अपराध करने की अपनी क्षमता खो दी है। 
    • क्या दोषी को एवं अधिक कारावास में रखने का कोई सार्थक उद्देश्य है। 
    • दोषी के परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति। 

क्षमा के लिए

क्षमा के विरुद्ध

सुधारात्मक न्याय: क्षमा देना सुधारात्मक न्याय के सिद्धांत को बढ़ावा देता है एवं संभावना को अलग करना सुधार के लिए अनुकूल नहीं है। दुरुपयोग: राजनीतिक लाभ के लिए या विशेषाधिकार प्राप्त कुछ लोगों के हितों की रक्षा के लिए सत्ता का दुरुपयोग किया जा सकता है।

  • उदाहरण: बिलकिस बानो मामले के दुष्कर्म के दोषियों को क्षमादान।
मूल अधिकार: प्रत्येक कैदी को सुधार एवं पुन: एकीकृत होने का अवसर दिया जाना चाहिए। शक्तियों का पृथक्करण: कार्यपालिका को क्षमादान की शक्ति देना शक्तियों के पृथक्करण सिद्धांत के विरुद्ध है, जिससे आपराधिक न्याय प्रणाली की निष्पक्षता एवं अखंडता में जनता का विश्वास कम हो जाता है।
राज्य पर बोझ: कम अपराध वाले दोषियों को क्षमा दी जा सकती है, जिससे उन्हें समाज में पुनः शामिल होने में मदद मिलेगी एवं राज्य पर भी कम बोझ पड़ेगा। पारदर्शिता: खुले न्यायिक परीक्षण के विपरीत, क्षमादान के पीछे निर्णय लेने की प्रक्रिया अक्सर अपारदर्शी होती है, जिसमें कार्यपालिका के कार्यों के लिए बहुत कम सार्वजनिक जाँच या औचित्य प्रदान किया जाता है।
न्यायिक गलती को सुधारने के लिए: इसे अत्यधिक या गलत कारावास के लिए सुधारात्मक उपाय के रूप में प्रदान किया जा सकता है। न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करता है: इस अधिकार का प्रयोग करने वाली कार्यपालिका द्वारा न्यायिक निर्णयों को कमजोर किया जाता है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया कम स्वतंत्र एवं कम सम्मानित हो जाती है।

भारत में उल्लेखनीय क्षमा के मामले

  • राजीव गांधी हत्या मामला (वर्ष 1991): तमिलनाडु सरकार ने राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों में से एक ए. जी. पेरारिवलन को अच्छे आचरण के आधार पर सजा माफ करने की सिफारिश की है। राज्यपाल ने याचिका खारिज कर दी है।
  • पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या (वर्ष 1995): पंजाब सरकार ने वर्ष 2014 में पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या में शामिल कुछ दोषियों को अच्छे आचरण के आधार पर रिहा करने का फैसला किया, जिससे न्याय और पीड़ित परिवारों के अधिकारों को लेकर बहस छिड़ गई।
  • जेसिका लाल मर्डर केस (1999): वर्ष 2011 में दिल्ली सरकार ने अच्छे आचरण का हवाला देते हुए मनु शर्मा की समयपूर्व रिहाई की सिफारिश की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। दोषी मनु शर्मा को हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
  • बिलकिस बानो केस: गुजरात सरकार ने दुष्कर्म के 11 दोषियों को सजा में क्षमा दी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को खारिज कर दिया।

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