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विदेश मंत्रालय में सुधार की आवश्यकता

Lokesh Pal January 15, 2025 02:50 74 0

संदर्भ

भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) में विदेश नीति तंत्र पर व्यापक सुधार की आवश्यकता पर चर्चा चल रही है, क्योंकि भारत, वैश्विक शासन में बड़ी भूमिका निभा रहा है।

संबंधित तथ्य

  • विदेश मंत्रालय भारत की विदेश नीति के मुख्य कार्यवाहक के रूप में कार्य करता है, राजनयिक संबंधों का प्रबंधन करता है और वैश्विक स्तर पर भारत के रणनीतिक हितों को प्रस्तुत करता है।
  • हालाँकि दुनिया भू-राजनीतिक उतार-चढ़ाव, आर्थिक अंतरनिर्भरता एवं जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट जैसी उभरती वैश्विक चुनौतियों के दौर से गुजर रही है, इस संदर्भ में भारत के विदेश मंत्रालय की नीतिगत प्रक्रियाओं पर नए तरीके से बदलाव का दबाव बढ़ रहा है।

भारतीय विदेश मंत्रालय के बारे में

  • भारत का विदेश मंत्रालय (MEA) विदेशी मामलों एवं अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार सरकारी विभाग है।
  • यह भारत की विदेश नीति को आकार देने एवं लागू करने, वैश्विक स्तर पर देश के हितों का प्रतिनिधित्व करने तथा द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • प्रमुख नेतृत्व
    • विदेश मंत्री: वर्तमान में डॉ. एस. जयशंकर (वर्ष 2025 से)
    • राज्य मंत्रियों और भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारियों के एक कैडर द्वारा समर्थित।
  • विदेश मंत्रालय के कार्य
    • राजनयिक संबंध: विश्व के विभिन्न देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करना और उन्हें बनाए रखना।
    • नीति निर्माण: राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों के साथ संरेखित विदेश नीति रणनीतियों को तैयार करना।
    • अंतरराष्ट्रीय समझौते: संधियों, व्यापार समझौतों एवं द्विपक्षीय समझौतों पर बातचीत करना और उन्हें अंतिम रूप देना।
    • कांसुलर सेवाएँ: पासपोर्ट सेवाओं, वीजा मुद्दों और कानूनी सहायता के साथ विदेश में भारतीय नागरिकों की सहायता करना।
    • बहुपक्षीय जुड़ाव: संयुक्त राष्ट्र (UN), विश्व व्यापार संगठन (WTO), G20 और BRICS जैसे वैश्विक मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करना।
    • सॉफ्ट पॉवर को बढ़ावा देना: सांस्कृतिक कूटनीति, शिक्षा और आउटरीच कार्यक्रमों जैसे- अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के माध्यम से भारत की वैश्विक छवि को मजबूत करना।

वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • चीन की बहुस्तरीय कूटनीति: चीन 276 से अधिक दूतावासों एवं वाणिज्य दूतावासों के साथ एक विशाल राजनयिक नेटवर्क बनाता है, जो आर्थिक साझेदारी एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • अमेरिकी सार्वजनिक कूटनीति: अमेरिका फुलब्राइट स्कॉलरशिप एवं अंतरराष्ट्रीय आगंतुक नेतृत्व कार्यक्रम जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सक्रिय रूप से जुड़ता है, जिससे द्विपक्षीय संबंध मजबूत होते हैं।
  • यूरोपीय संघ जलवायु कूटनीति: यूरोपीय संघ के राष्ट्र जलवायु उद्देश्यों को विदेश नीति में एकीकृत करते हैं, हरित ऊर्जा संक्रमण और कार्बन तटस्थता पर वैश्विक वार्ता का नेतृत्व करते हैं।
  • सिंगापुर का रणनीतिक प्रशिक्षण: सिविल सर्विस कॉलेज जैसे विशेष संस्थानों के माध्यम से राजनयिकों को बातचीत और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त बनाए रखने के लिए विश्व स्तरीय प्रशिक्षण प्रदान करता है।

विदेश मंत्रालय के लिए चिंता के विषय

  • संरचनात्मक पुनर्गठन: विदेश मंत्रालय की आंतरिक संरचना में नीतिगत एवं निर्णयन बाधाओं को कम करने एवं समन्वय में सुधार करने के लिए पुनर्गठन की आवश्यकता है। इसमें कई छोटे-छोटे विभाग हैं, विशेषकर क्षेत्रीय विभाग, जो अक्सर अक्षमताओं का कारण बनते हैं।
  • भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका: वर्ष 2023 में G20 की भारत की अध्यक्षता एवं BRICS, QUAD और SCO जैसे मंचों में सक्रिय भागीदारी ने इसके कूटनीतिक ढाँचे पर बढ़ती माँगों को उजागर किया है।
  • भू-राजनीतिक चुनौतियाँ: रूस-यूक्रेन संघर्ष और अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता जैसे हालिया वैश्विक घटनाक्रम, जटिल कूटनीतिक परिदृश्यों को प्रभावी ढंग से नेविगेट करने के लिए भारत की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
  • क्षेत्रीय संबंध: भारत-चीन सीमा तनाव, ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के माध्यम से पड़ोसियों तक पहुँच और हिंद महासागर क्षेत्र में रणनीतिक चुनौतियों जैसे मुद्दे विदेश मंत्रालय के भीतर बढ़ी हुई क्षमताओं की माँग करते हैं।
  • तकनीकी कूटनीति: डिजिटल कूटनीति और साइबर सुरक्षा चिंताओं का उदय, भारत की तकनीकी नेतृत्व आकांक्षाओं के साथ मिलकर उभरती चुनौतियों का समाधान करने के लिए सुधारों की आवश्यकता है।
  • आंतरिक चिंताएँ: विदेश मंत्रालय के सीमित स्टाफ, बजट की कमी तथा जलवायु वार्ता और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे नए मुद्दों में विशेषज्ञता की कमी के संबंध में आलोचना ने प्रणालीगत सुधारों की माँग को पुनः उजागर किया है।

भारतीय विदेश सेवा (IFS) के बारे में

  • स्थापना: भारतीय विदेश सेवा (IFS) की स्थापना वर्ष 1946 में भारत के विदेशी मामलों के प्रबधन के लिए की गई थी, जिसमें कूटनीति, व्यापार और सांस्कृतिक संबंध शामिल हैं।
  • भूमिका: IFS अधिकारी विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, समझौतों पर वार्ता करते हैं, विदेशों में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा करते हैं और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
  • भर्ती: उम्मीदवारों का चयन UPSC सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से किया जाता है, जिसके बाद उन्हें दिल्ली में विदेश सेवा संस्थान (FSI) में विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है।
  • कैरियर: ये अधिकारी दुनिया भर में भारतीय दूतावासों, उच्चायोगों और वाणिज्य दूतावासों में और विदेश मंत्रालय (MEA) में प्रमुख भूमिकाओं में कार्य करते हैं।
  • वैश्विक पहुँच: भारत में 190 से अधिक राजनयिक मिशन हैं, जो IFS को भारत की विदेश नीति को लागू करने और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बनाए रखने के लिए अभिन्न अंग बनाते हैं।

विदेश मंत्रालय के लिए सुझाए गए सुधारों में आगे की राह

  • मानव संसाधन का विस्तार करना: भारत में लगभग 850 भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारी हैं, जो रूस (4,500), यू.के. (4,600) या अमेरिका (14,500) से काफी कम है।
    • व्यापार विशेषज्ञों की लैटरल इंट्री WTO या मुक्त व्यापार समझौतों जैसे मंचों में बातचीत का समर्थन कर सकती है।
  • बजट आवंटन में वृद्धि: MEA को केंद्रीय बजट (2023-24) का 0.4% आवंटित किया गया था।
    • दूतावासों के आधुनिकीकरण, सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ाने और विदेशी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति जैसी सॉफ्ट पॉवर पहलों का समर्थन करने के लिए धन में वृद्धि करना।
  • विशेषज्ञता एवं प्रशिक्षण: जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य कूटनीति और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में राजनयिकों के लिए मध्य-कॅरियर विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना।
    • उदाहरण: सिंगापुर के ‘ली कुआन यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी’ के समान प्रशिक्षण मॉड्यूल बातचीत एवं रणनीतिक दृष्टिकोण में कौशल बढ़ा सकते हैं।
  • मिशन का विकेंद्रीकरण: तीव्र निर्णयन प्रक्रिया और स्थानीय जुड़ाव के लिए दूतावासों एवं क्षेत्रीय कार्यालयों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना।
    • उदाहरण: यू.के. का विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय (FCDO) दूतावासों को क्षेत्रीय नीति-निर्माण संबंधी अधिकार प्रदान करता है।
  • सांस्कृतिक कूटनीति और सॉफ्ट पॉवर को मजबूत करना: विदेशों में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने के लिए भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के तहत कार्यक्रमों के आयोजन में वृद्धि।
    • योग दिवस जैसी पहलों का विस्तार करना, जिसमें वर्ष 2023 में 190 देशों की भागीदारी देखी गई थी।
  • डिजिटल और तकनीकी कूटनीति: डिजिटल संप्रभुता और साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक समर्पित साइबर कूटनीति प्रभाग की स्थापना करना।
    • उदाहरण: कूटनीति में एस्टोनिया का डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे तकनीकी एकीकरण वैश्विक पहुँच को बढ़ाता है।

निष्कर्ष

बदलती वैश्विक शासन व्यवस्था में भारत का विदेश मंत्रालय एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। जिनमें दूरदर्शी सुधारों को अपनाकर और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से प्रेरणा लेकर, विदेश मंत्रालय समकालीन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करना शामिल है। विदेश नीति संबंधी क्षमताओं में वृद्धि, विशेष प्रशिक्षण एवं अभिनव कूटनीति यह सुनिश्चित करेगी कि भारत परस्पर अंतर्संबंधित और बहुध्रुवीय विश्व की जटिलताओं का प्रभावी तरीके से निर्णयन कर सके।

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