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भारत के पवन ऊर्जा क्षेत्र का परिवर्तन (वर्ष 2025 विनियम)

Lokesh Pal August 18, 2025 05:11 6 0

संदर्भ

31 जुलाई, 2025 को, केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने पवन ऊर्जा क्षेत्र के लिए व्यापक नियम लागू किए।

भारत में पवन ऊर्जा की स्थिति

  • वैश्विक स्थिति: स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता के मामले में भारत चौथे स्थान पर है और वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक देश है।
  • मजबूत वृद्धि: क्षमता वर्ष 2014 में 21.04 गीगावाट से बढ़कर जुलाई 2025 तक 52.1 गीगावाट हो गई है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा की भूमिका: भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में सौर ऊर्जा के बाद पवन ऊर्जा दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है।
    • भारत में कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता- 237.49 गीगावाट।
  • उच्च क्षमता वाले राज्य: प्रमुख राज्यों में राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश शामिल हैं।
  • क्षमता: राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (NIWE) के अनुसार, भारत में जमीनी स्तर से 150 मीटर ऊपर 1,163.86 गीगावाट पवन ऊर्जा क्षमता है।

संबंधित तथ्य

प्रमुख नीतिगत प्रावधान

  • प्रमुख सुधार: भारत में कार्यरत सभी पवन टरबाइन निर्माताओं के लिए अनिवार्य घरेलू आपूर्ति शृंखलाएँ, अनुसंधान एवं विकास केंद्र और डेटा केंद्र।
  • मॉडलों और निर्माताओं की अनुमोदित सूची (Approved List of Models and Manufacturers-ALMM)
    • RLMM का स्थान लेता है।
    • महत्त्वपूर्ण घटकों (ब्लेड, टॉवर, गियरबॉक्स, जनरेटर, बेयरिंग) की आपूर्ति केवल घरेलू रूप से अनुमोदित आपूर्तिकर्ताओं से ही अनिवार्य है।
    • ये घटक टरबाइन की लागत का 65-70% हिस्सा निर्धारित करते हैं।
  • घरेलू अनुसंधान एवं विकास आवश्यकताएँ
    सभी निर्माताओं को एक वर्ष के भीतर अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित करने होंगे।

    • टरबाइनों को भारतीय परिस्थितियों (वायु की कम गति, उच्च तापमान, धूल भरी आँधी, आदि) के अनुरूप अनुकूलित किया जाना चाहिए।
  • साइबर सुरक्षा सुरक्षा उपाय
    • भारत में सभी टरबाइन डेटा संग्रहण।
    • विदेशों में वास्तविक समय में परिचालन डेटा स्थानांतरण पर प्रतिबंध।
    • संचालन और नियंत्रण केवल भारतीय सुविधाओं से ही किया जाएगा।
  • गुणवत्ता आश्वासन (BIS  प्रमाणन)
    • सितंबर 2026 से सभी टरबाइन घटकों के लिए BIS प्रमाणन अनिवार्य है।
    • मशीनरी और विद्युत उपकरण सुरक्षा मानदंडों के अंतर्गत सुरक्षा, विश्वसनीयता और प्रदर्शन मानकों को सुनिश्चित करता है।
  • संक्रमण प्रावधान
    • जुलाई 2025 से पूर्व निविदा आधारित परियोजनाओं (3 वर्षों के भीतर चालू) के लिए छूट।
    • 18 महीनों के भीतर चालू होने पर कैप्टिव/औद्योगिक परियोजनाओं को छूट।
    • इनोवेशन विंडो: 2 वर्षों में नए मॉडलों के लिए 800 मेगावाट क्षमता की छूट।

सुधारों के पीछे तर्क

  • सामरिक स्वायत्तता: चीनी आयात पर निर्भरता कम करना (भारत में चीन की बाजार हिस्सेदारी वर्ष 2019 में 10% से बढ़कर वर्ष 2025 में 45% हो गई)
  • समान अवसर: सुजलॉन (31% हिस्सेदारी) जैसी घरेलू कंपनियाँ सस्ते चीनी आयात के कारण नुकसान में हैं।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा
    • विदेश नियंत्रित डेटा सर्वर और सॉफ्टवेयर अपडेट के जोखिम (NSA और नीति आयोग द्वारा चिह्नित)।
    • महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे का साइबर लचीलापन।
  • दक्षता: घरेलू विनिर्माण की कम उपयोगिता संबंधी समस्या से निपटना (20 गीगावाट क्षमता, लेकिन वित्त वर्ष 2024-25 में केवल 4.15 गीगावाट स्थापित)।

प्रमुख सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति (वर्ष 2015): अपतटीय पवन परियोजनाओं के लिए भारत के तटीय क्षेत्र का लाभ उठाती है, जिसके विकास हेतु नोडल एजेंसी राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (NIWE) है।
  • राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति (वर्ष 2018): ग्रिड स्थिरता बढ़ाने और ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने के लिए पवन और सौर ऊर्जा को मिलाकर हाइब्रिड परियोजनाओं को बढ़ावा देती है।
  • वित्तीय प्रोत्साहन: त्वरित मूल्यह्रास, घटकों पर रियायती सीमा शुल्क और मार्च 2017 से पहले की परियोजनाओं के लिए उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन जैसे लाभों के माध्यम से निजी निवेश को प्रोत्साहित करती है।
  • पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए पुनर्शक्तीकरण नीति: मौजूदा स्थलों से उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए पुराने पवन टरबाइनों (2 मेगावाट से कम) को आधुनिक, उच्च क्षमता वाली इकाइयों से प्रतिस्थापित करने का लक्ष्य।
  • पवन ऊर्जा क्षमता विस्तार: वर्ष 2030 तक पवन नवीकरणीय ऊर्जा, क्रय आधारित प्रक्षेप पथ निर्धारित किया गया है तथा 30 जून, 2025 तक प्रारंभ होने वाली सौर एवं पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए ISTS शुल्क माफ कर दिया गया है।

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