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विकसित भारत गारंटी रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) (VB-G RAM G) विधेयक, 2025

Lokesh Pal December 17, 2025 03:50 80 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के स्थान पर विकसित भारत गारंटी रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) (VB-G RAM G) विधेयक, 2025 पेश किया है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के बारे में

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) विश्व का सबसे बड़ा रोजगार गारंटी कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण परिवारों के उन वयस्क सदस्यों को, जो स्वेच्छा से अकुशल शारीरिक श्रम करने के लिए तैयार हों, प्रतिवर्ष कम-से-कम 100 दिनों का मजदूरी रोजगार प्रदान कर आजीविका सुरक्षा को सुदृढ़ करना है।
  • प्रारंभ: MGNREGA को वर्ष 2005 में अधिनियमित किया गया और 2 फरवरी, 2006 को लागू हुआ।
    • यह एक अधिकार-आधारित ढाँचा है, जो ग्रामीण रोजगार की कानूनी गारंटी देता है, जिससे सरकार माँग के अनुसार रोजगार प्रदान करने के लिए जवाबदेह बनती है।
  • कार्यान्वयन: यह योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) द्वारा राज्य सरकारों के साथ साझेदारी में कार्यान्वित की जाती है।
    • ग्राम पंचायतें MGNREGA के तहत परियोजनाओं की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य का स्वरूप निर्धारित हो।
  • वित्तपोषण संरचना
    • MGNREGA का वित्तपोषण मुख्य रूप से केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है, जो अकुशल श्रम की लागत का 100% और सामग्री की लागत का 75% वहन करती है।
    • राज्य सरकारें शेष 25% सामग्री की लागत का योगदान करती हैं और यदि माँग के 15 दिनों के भीतर कार्य उपलब्ध नहीं कराया जाता है तो बेरोजगारी भत्ता देने के लिए जिम्मेदार होती हैं।

MGNREGA के अंतर्गत प्राप्त उपलब्धियाँ

  • व्यापक रोजगार सृजन: वर्ष 2006 में शुरू होने के बाद से, MGNREGA ने 31 अरब व्यक्ति-दिवस से अधिक रोजगार सृजित किया है।
    • वित्त वर्ष 2024–25 में, इस योजना के अंतर्गत 196.30 करोड़ व्यक्ति-दिवस का ग्रामीण रोजगार सृजित किया गया।
    • वर्तमान में, इसके पास 25 करोड़ पंजीकृत श्रमिक हैं।
  • व्यापक वित्तीय निवेश: सरकार ने इस माँग-आधारित रोजगार योजना पर वर्षों में ₹6.4 लाख करोड़ से अधिक व्यय किए हैं।
    • केंद्रीय बजट, 2025 में MGNREGA के लिए ₹86,000 करोड़ आवंटित किए गए थे।
  • जल संरक्षण प्रयास: जल संरक्षण से संबंधित 30 मिलियन से अधिक संपत्तियाँ (जैसे-तालाब, नहरें, चेक डैम) बनाई गई हैं।
  • प्रौद्योगिकी-आधारित कार्यान्वयन: पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिए मोबाइल ऐप के माध्यम से ऑनलाइन पंजीकरण, इलेक्ट्रॉनिक निधि हस्तांतरण और संपत्तियों की जियोटैगिंग जैसे उपकरणों की शुरुआत की गई है।
  • ग्रामीण मजदूरी पर प्रभाव: विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि MGNREGA ने श्रमिकों की सौदेबाजी शक्ति को बढ़ाकर अप्रत्यक्ष रूप से ग्रामीण मजदूरी बढ़ाने में योगदान दिया है।

VB-G RAM G विधेयक के प्रमुख प्रावधान

VB-G RAM G विधेयक रणनीतिक अभिसरण और साझा शासन के सिद्धांतों के आधार पर योजना का पुनर्गठन करता है:-

  • गारंटी में वृद्धि: प्रत्येक ग्रामीण परिवार के लिए वैधानिक गारंटी 100 दिनों से बढ़ाकर 125 दिनों के वेतन रोजगार तक कर दी गई है।
  • वित्तपोषण जिम्मेदारी में बदलाव: वित्तीय भार मुख्य रूप से केंद्र द्वारा वित्तपोषित वेतन मॉडल से हटकर साझा वित्तीय दायित्व वाली केंद्र प्रायोजित योजना पर आ गया है:-
    • अधिकांश राज्यों के लिए केंद्र-राज्य का अनुपात 60:40 है।
    • पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर) के लिए केंद्र-राज्य का अनुपात 90:10 है।
  • आवंटन मॉडल: माँग आधारितश्रम बजट’ को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित राज्य-वार मानक आवंटन से प्रतिस्थापित किया गया है।
  • अनिवार्य कार्य निलंबन: राज्यों को वित्तीय वर्ष में 60 दिनों तक की अवधि अधिसूचित करने का अधिकार दिया गया है, जो कृषि के चरम मौसमों (बुवाई/कटाई) के साथ मेल खाती है, जिसके दौरान श्रम की कमी से बचने के लिए योजना संबंधी कार्य नहीं किए जाएँगे।
  • रणनीतिक संपत्तियों पर ध्यान केंद्रित करना: कार्यविकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण अवसंरचना योजना’ के अनुरूप होने चाहिए, जिसमें चार विषयगत क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया हो:-
    • जल सुरक्षा।
    • ग्रामीण बुनियादी ढाँचा।
    • आजीविका संबंधी बुनियादी ढाँचा।
    • अत्यधिक मौसम संबंधी घटनाओं का शमन।

  • डिजिटल एकीकरण: GIS आधारित उपकरणों, पीएम गति शक्ति लेयर्स और AI ऑडिट का अनिवार्य उपयोग वैधानिक है।
  • बेरोजगारी भत्ता बना रहेगा इस विधेयक में आवेदन के 15 दिनों के भीतर कार्य न मिलने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान बनाए रखा गया है।

परिवर्तन की आवश्यकता – सरकार का तर्क

भारत सरकार का तर्क है कि वर्ष 2005 का ढाँचा पुराना और संरचनात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण है, जिसके कारण एक नए कानूनी पुनर्गठन की आवश्यकता है:-

  • संरचनात्मक परिवर्तन: ग्रामीण गरीबी में भारी गिरावट आई है (वर्ष 2011-12 में 25.7% से घटकर वर्ष 2023-24 में 4.86% हो गई है)
    • डिजिटल पहुँच में सुधार और ग्रामीण आजीविका के विविधीकरण के साथ, पुराना मॉडल अब वर्तमान ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अनुरूप नहीं है।
  • प्रणालीगत विफलताएँ: प्रगति (जैसे- 99.99% ई-भुगतान) के बावजूद, प्रमुख प्रणालीगत विफलताएँ बनी रहीं हैं।
    • इनमें गबन (जैसे- वर्ष 2024-25 में ₹193.67 करोड़), कार्य का न होना और डिजिटल उपस्थिति (NMMS) का व्यापक रूप से उल्लंघन शामिल है।
  • संपत्ति गुणवत्ता: संपत्तियाँ प्रायः व्यय के अनुरूप नहीं थीं या उनमें रणनीतिक उपयोगिता की कमी थी, जिससे रणनीतिक संपत्तियों पर केंद्रित एक नए ढाँचे की आवश्यकता हुई।

VB-G RAM G विधेयक का महत्त्व 

प्रस्तावित कानून को ग्रामीण रोजगार संरचना के उन्नयन के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसका उद्देश्य आय सुरक्षा, उत्पादकता, कृषि स्थिरता और जलवायु अनुकूलन क्षमता को बढ़ाना है।

  • आय सुरक्षा और ग्रामीण माँग में मजबूती: बढ़ी हुई 125-दिवसीय रोजगार गारंटी ग्रामीण सुरक्षा जाल का विस्तार करती है, जिससे संभावित आय में 25% की वृद्धि होती है।
    • इससे सीधे तौर पर ग्राम स्तर पर उपभोग को बढ़ावा मिलता है, संकटग्रस्त पलायन कम होता है और दिहाड़ी मजदूरों की आय स्थिर होती है।
  • उत्पादक और जलवायु-अनुकूल संपत्तियों का निर्माण: जल सुरक्षा और आजीविका अवसंरचना को प्राथमिकता देने से दीर्घकालिक ग्रामीण उत्पादकता मजबूत होती है।
    • मिशन अमृत सरोवर’ जैसी पहल, जिसके तहत 68,000 से अधिक जल निकायों का निर्माण किया गया है, सिंचाई की उपलब्धता, भूजल पुनर्भरण और कृषि लचीलेपन में सुधार करती है, जिससे ग्रामीण रोजगार भारत के जलवायु अनुकूलन लक्ष्यों के अनुरूप हो जाता है।
  • कृषि और खाद्य सुरक्षा को समर्थन: फसल बुवाई और कटाई के चरम समय के दौरान 60 दिनों का विराम कृषि से श्रम के विचलन की लंबे समय से चली आ रही चिंता का समाधान करता है।
    • महत्त्वपूर्ण कृषि कार्यों के लिए श्रम की उपलब्धता सुनिश्चित करके, यह प्रावधान मौसमी श्रम की कमी को रोकता है, कृत्रिम मजदूरी मुद्रास्फीति से बचाता है और खाद्य उत्पादन लागत को नियंत्रित करने में मदद करता है, जिससे किसानों की आय और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को समर्थन मिलता है।
  • सामाजिक न्याय और समावेशी विकास: अनुसूचित जाति (SCs) और अनुसूचित जनजाति (STs) के लिए व्यक्तिगत संपत्ति सृजन पर निरंतर जोर देने से सामाजिक समानता को बढ़ावा मिलता है, जबकि महिलाओं की उच्च भागीदारी से महिला आर्थिक सशक्तीकरण और घरेलू कल्याण मजबूत होता है।
  • निश्चित रोजगार और पारदर्शी वितरण: अति-स्थानीय रूप से विकसित ग्राम पंचायत योजनाओं की ओर बदलाव से नियोजित तथा सुनिश्चित कार्य-उपलब्धता संभव होती है।
    • लगभग सार्वभौमिक इलेक्ट्रॉनिक वेतन भुगतान (वर्ष 2024-25 में 99.94%) और वास्तविक समय निगरानी प्रणालियों के संयोजन से पारदर्शिता बढ़ती है, वेतन रिसाव पर अंकुश लगता है और श्रमिक सुरक्षा मजबूत होती है।
  • समग्र ग्रामीण आर्थिक सुदृढ़ीकरण: रोजगार सृजन, कृषि स्थिरता, संपत्ति सृजन और पारदर्शिता को एकीकृत करके, विधेयक ग्रामीण अनुकूलन को मजबूत करने, श्रम उत्पादकता में सुधार करने और सतत् ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।

VB-G RAM G विधेयक से जुड़ी चुनौतियाँ एवं चिंताएँ

VB-G RAM G विधेयक में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन प्रस्तुत किए गए हैं, जिन्होंने इसके संघीय और अधिकार-आधारित निहितार्थों पर बहस को जन्म दिया है, जिससे तीखी राजनीतिक जाँच का सामना करना पड़ रहा है।

  • कार्य के अधिकार का हनन: माँग-आधारित वित्तपोषण मॉडल को मानक आवंटन सीमा से बदलने से वैधानिक रोजगार गारंटी कमजोर हो जाती है, जिससे निधि समाप्त होने के बाद कार्य का अधिकार और बेरोजगारी भत्ता सशर्त हो जाते हैं (ज्यां द्रेज)

  • राजकोषीय संघवाद और राज्य का बोझ: केंद्र-राज्य वित्तपोषण का 60:40 अनुपात राज्य की राजकोषीय देनदारियों (₹50,000 करोड़ से अधिक) को काफी बढ़ा देता है, जिससे उच्च माँग वाले राज्यों पर असमान प्रभाव पड़ता है और विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए 90:10 समर्थन के बावजूद क्षेत्रीय कार्यान्वयन में असमानता का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  • केंद्रीकरण और विकेंद्रीकरण का कमजोर होना: राष्ट्रीय ग्रामीण अवसंरचना स्टैक, GIS/AI-आधारित टेम्पलेट और केंद्र द्वारा अधिसूचित क्षेत्र ग्राम सभा और पंचायत की स्वायत्तता को कमजोर करते हैं, जिससे योजना का सार्वभौमिक, माँग-आधारित स्वरूप कमजोर हो जाता है।
  • आय सुरक्षा और श्रम अधिकारों का कमजोर होना: 60 दिनों के अनिवार्य कार्य निलंबन से 125 दिनों की गारंटी तक पहुँच सीमित हो जाती है, जिससे संकट के समय भूमिहीन मजदूरों और महिला श्रमिकों को आय से वंचित होना पड़ता है।
  • राज्य-प्रबंधित श्रम आपूर्ति संबंधी चिंताएँ: अनिवार्य कार्य-निलंबन श्रम-आपूर्ति के अनैच्छिक पुनर्निर्देशन का कारण बन रहा है, जिसके परिणामस्वरूप श्रमिकों की रोजगार-चयन स्वायत्तता एवं गरिमा में क्षरण होता है।
  • तकनीकी और प्रशासनिक बहिष्कार: आधार-आधारित भुगतान प्रणाली, बायोमेट्रिक्स और डिजिटल प्रणालियों पर वैधानिक निर्भरता, कनेक्टिविटी की कमी, कम डिजिटल साक्षरता और प्रणालीगत त्रुटियों के कारण भुगतान में देरी और बहिष्कार का जोखिम उत्पन्न करती है, साथ ही जॉब कार्ड के युक्तिकरण से यह समस्या और भी बढ़ जाती है।
  • समावेशिता का कमजोर होना और राजनीतिक विरोध: सर्वोच्च परिषद में अनिवार्य सामाजिक प्रतिनिधित्व को हटाने से समावेशी शासन कमजोर होता है, जबकिमहात्मा गांधी’ की प्रतीकात्मक छवि मिटाने से विपक्ष के उन दावों को बल मिलता है कि अधिकारों पर आधारित विरासत को कमजोर किया जा रहा है।

MGNREGA बनाम VB-G RAM G बिल की तुलना 

विशेषताएँ मनरेगा (अधिकार आधारित) VB-G RAM G बिल (विकास-उन्मुख)
मूल सिद्धांत

न्यायसंगत 

कानूनी अधिकार शर्तों के अधीन गारंटीकृत सेवा
गारंटी युक्त रोजगार दिवस प्रति परिवार प्रति वर्ष 100 दिन 125 दिन/परिवार/वर्ष (वैधानिक)
वेतन के लिए वित्त आवंटन 100% केंद्र सरकार 60:40 केंद्र-राज्य (सामान्य राज्य)
बजट मॉडल माँग आधारित (अनिश्चितकालीन प्रतिबद्धता) मानक आवंटन (केंद्र द्वारा निर्धारित वार्षिक अधिकतम सीमा)
कार्य में रुकावट कोई नहीं (वर्ष भर काम करने का अधिकार) कृषि के चरम समय के दौरान 60 दिनों तक
डिजिटल/तकनीकी एकीकरण वेतन हस्तांतरण के लिए मूल आधार/DBT योजना, क्रियान्वयन और लेखापरीक्षा के लिए बायोमेट्रिक और GIS/AI अनिवार्य हैं।

आगे की राह

VB-G RAM G विधेयक के लिए यह आवश्यक है कि यह अधिकारों की विरासत से समझौता किए बिना विकसित भारत के लक्ष्य को सफलतापूर्वक पूरा करे, इसके लिए एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है:-

  • निधि प्रवाह में लचीलापन: मानक आवंटन में एक सुलभ आकस्मिक निधि शामिल होनी चाहिए जो संकट के कारण माँग में अचानक वृद्धि का सामना कर रहे क्षेत्रों के लिए स्वचालित रूप से अतिरिक्त केंद्रीय निधि जारी करे, जिससे कार्य संबंधी गारंटी की अखंडता सुनिश्चित हो सके।
  • एकीकृत योजना और निगरानी: योजना प्रक्रिया में पीएम गतिशक्ति जैसे उपकरणों का उपयोग स्थानिक मानचित्रण के लिए किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि संपत्तियाँ अधिकतम आर्थिक प्रभाव के लिए रणनीतिक रूप से स्थित हैं, साथ ही स्वतंत्र सामाजिक लेखापरीक्षाओं की आवश्यक भूमिका भी बनी रहे।
  • कौशल विकास और आर्थिक संक्रमण (वैश्विक मॉडल): योजना को कौशल विकास कार्यक्रमों से रणनीतिक रूप से जोड़ा जाना चाहिए।
    • इथियोपिया के उत्पादक सुरक्षा जाल कार्यक्रम जैसे संपत्ति-केंद्रित कार्यक्रमों से प्रेरणा लेते हुए, सशर्त कौशल प्रोत्साहनों को शामिल करने से श्रमिकों को गारंटीकृत निम्न-कुशल रोजगार से उच्च-उत्पादकता वाले, स्थायी रोजगारों में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • चरणबद्ध और प्रायोगिक कार्यान्वयन: तकनीकी और वित्तीय प्रारंभिक समस्याओं को प्रभावी ढंग से दूर करने के लिए, राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने से पहले प्रायोगिक (पायलट) परीक्षण सहित चरणबद्ध कार्यान्वयन किया जाना चाहिए।
  • संसदीय अनुशंसा: ग्रामीण विकास और पंचायती राज संबंधी स्थायी समिति ने आय सुरक्षा और योजना के अधिकार-आधारित ढाँचे को मजबूत करने के लिए 150 दिनों के गारंटीकृत कार्य और ₹400 प्रति दिन के न्यूनतम वेतन की अनुशंसा की है।

निष्कर्ष

VB-G RAM G विधेयक परिणामोन्मुखी ग्रामीण शासन की दिशा में एक बदलाव को दर्शाता है। हालाँकि, सुधारों को सामाजिक न्याय, सहकारी संघवाद और विकेंद्रीकृत लोकतंत्र के संवैधानिक वादे को बनाए रखना होगा, यह सुनिश्चित करते हुए कि दक्षता में वृद्धि से ग्रामीण श्रमिकों के आजीविका के न्यायसंगत अधिकार का हनन न हो।

अभ्यास प्रश्न

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) एक माँग-आधारित, अधिकार-आधारित सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम है। इस संदर्भ में, प्रस्तावित विकसित भारत-रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025 पर उठाई गई चिंताओं का विश्लेषण कीजिए।

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